ईक्विटियों के लिए बैंकों द्वारा वित्तपोषण और शेयरों में निवेश (संशोधित दिशानिर्देश) - आरबीआई - Reserve Bank of India
ईक्विटियों के लिए बैंकों द्वारा वित्तपोषण और शेयरों में निवेश (संशोधित दिशानिर्देश)
ईक्विटियों के लिए बैंकों द्वारा वित्तपोषण और शेयरों में निवेश (संशोधित दिशानिर्देश)
11 मई 2001
वर्ष 2000-2001 के लिए अक्तूबर में घोषित मौद्रिक और ऋण नीति की मध्यावधि समीक्षा में की गयी घोषणा के अनुसरण में भारतीय रिज़र्व बैंक-सेबी तकनीकी समिति ने दिनांक 10 नवंबर 2000 को जारी परिपत्र में निर्धारित रिज़र्व बैंक दिशानिर्देशों की समीक्षा की थी। यह परिपत्र शेयरों में बैंकों के निवेश तथा शेयरों और अन्य संबंधित निवेशों पर अग्रिमों के संबंध में था। तकनीकी समिति द्वारा की गयी सिफारिशों पर बैंकों और बाज़ार सहभागियों से प्राप्त फीडबैक तथा पूर्ववर्ती दिशानिर्देशों के लिए प्रस्तावित प्रारूप संशोधनों के आधार पर रिज़र्व बैंक ने आज शेयरों में बैंकों के निवेश और ईक्विटियों के वित्तपोषण पर संशोधित दिशानिर्देश जारी किये हैं। संशोधित दिशानिर्देश 11 मई 2001 से प्रभावी होंगे।
दिनांक 10 नवंबर 2000 के परिपत्र में सूचित मूल प्रमुख विशेषताओं के मद्देनज़र, अद्यतन गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए संशोधित दिशानिर्देशों में निम्नलिखित परिवर्तन किये गये हैं :
- पूंजी बाज़ार के समग्र निवेश पर उच्चतम सीमा :
नवंबर 2000 के दिशानिर्देशों में निर्धारित किये अनुसार पूंजी बाज़ार में किये गये निवेशों पर 5 प्रतिशत की उच्चतम सीमा जारी रहेगी परंतु यह सीमा अब बैंक द्वारा शेयर बॉज़ारों (इनमें ऋणों/व्यक्तियों/कंपनियों और स्टॉक ब्रोकरों को शेयरों/डिबेंचरों आदि में निवेश के लिए दिये जानेवाले अग्रिम भी शामिल होंगे) में किये जानेवाले कुल निवेश पर भी लागू होगी। यह स्पष्ट किया जाता है कि व्यक्तियों/कंपनियों द्वारा सामान्य व्यापार/उत्पादन/निवेश या अन्य विकासात्मक गतिविधियों (जिनमें स्टॉक ब्रोकिंग या पूंजी बाज़ारों में निवेश सम्मिलित नहीं है) के लिए बैंक ऋण प्राप्त करने हेतु संपार्श्विक (कोलैटरल) के रूप में बैंकों को सौंपे गये शेयरों/परिवर्तनीय डिबेंचरों आदि के लिए यह उच्चतम सीमा लागू नहीं होगी।
(ii) कुछ चयनित स्टॉक ब्रोकिंग कंपनियों के लिए संकेंद्रीकरण (कॉन्सन्ट्रेशन) टालना
(क) सभी स्टॉक ब्रोकरों और बाज़ार निर्माताओं (मार्केट मेकर्स) के लिए (निधि आधारित और गैर-निधि आधारित) और
(ख) अलग-अलग स्टॉक ब्रोकिंग कंपनियां, उनकी सहयोगी कंपनियां/अंतर-संबद्ध कंपनियां।
(iii) व्यक्तियों को अग्रिम
व्यक्तियों को अग्रिम और आईपीओ को वित्तपोषण के संबंध में मौजूदा अनुदेश अपरिवर्तनीय होंगे। (मार्जिनों को छोड़कर)
(iv) मार्जिन
निर्धारित मार्जिनों को सरल और युक्तिसंगत बनाने का उपाय किया गया है। इस तरह गारंटियां जारी करने के लिए 25 प्रतिशत की न्यूनतम नकदी मार्जिन, डिमैट शेयरों पर अग्रिमों के लिए 25 प्रतिशत मार्जिन और वास्तविक शेयरों पर अग्रिमों के लिए 50 प्रतिशत के मौजूदा निर्धारण के सामने बैंकों द्वारा जारी की जानेवाली गारंटियों के संबंध में 20 प्रतिशत की न्यूनतम नकदी मार्जिन के साथ (40 प्रतिशत की मार्जिन के भीतर) सभी अग्रिमों/गारंटियों पर 40 प्रतिशत की एकसमान मार्जिन प्रस्तावित है।
(v) क्रय-विक्रय कार्यकलापों (आर्बिट्रेज ऑपरेशन्स) का वित्तपोषण
गौण बाज़ारों में बैंकों के निवेश संबंधी संदेहास्पद परिचालनों के कुछ मामले पाये गये जो क्रय-विक्रय कार्यकलापों पर स्पष्ट नीति की मांग करते हैं। अत: संशोधित दिशानिर्देशों में निम्नलिखित निर्धारण किये गये हैं :
(क) बैंकों को चाहिए कि वे स्वयं क्रय-विक्रय कार्यकलाप न करें या शेयर बाज़ारों में क्रय-विक्रय कार्यकलाप करने के लिए स्टॉक ब्रोकरों को प्रत्यक्ष या परोक्ष ऋण सुविधाएं प्रदान न करें।
(ख) यद्यपि गौण बाज़ार से शेयर प्राप्त करने के लिए बैंकों को अनुमति दी जाती है, उन्हें यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि अपने निवेश खाते में वास्तविक रूप से शेयर धारण किये बिना बिक्री के कोई लेनदेन नहीं किये जाते हैं।
(vi) निवेश और निगरानी कार्यों से संबद्ध जिम्मेदारियां अलग करना
आगे कोई अंतर-संबंध न उभरे इसलिए भावी सुरक्षा के रूप में संशोधित दिशानिर्देश इस बात पर बल देते हैं कि शेयरों में निवेश/शेयरों पर अग्रिम के संबंध में निर्णय लेने की प्रक्रिया स्पष्टत: अलग होनी चाहिए, जो बोड़ द्वारा गठित निवेश समिति करेगी। निवेशों/शेयरों पर अग्रिमों की निगरानी और जांच का कार्य, बोड़ की अलग और स्वतंत्र लेखा-परीक्षा समिति करेगी जो पूंजी बाज़ार में बैंक के कुल निवेश की समीक्षा करेगी, जो सभी फार्मों में निधि आधारित और गैर-निधि आधारित हो। लेखा-परीक्षा समिति को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि रिज़र्व बैंक और बैंक के बोड़ द्वारा जारी दिशानिर्देशों का अनुपालन हो रहा है और पर्याप्त जोखिम प्रबंधन और आंतरिक नियंत्रण प्रणालियां मौजूद हैं।
(vii) संक्रमणकालीन प्रावधान
संशोधित दिशानिर्देशों में कतिपय "संक्रमणकालीन प्रावधान" शामिल किये गये हैं, जिनसे नये नियमों को आसानी से अमल में लाना सुनिश्चित किया जा सके और शेयरों और अग्रिमों/शेयरों पर अग्रिमों में निवेश संविभाग से तालमेल बिठाने के लिए बैंकों को पर्याप्त समय मिल सके।
इसके साथ विस्तृत दिशानिर्देश संलग्न हैं तथा उन्हें रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर भी प्रकाशित किया गया ह ै।
अल्पना किल्लावाला
महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2000-2001/1538