स्वच्छ नोट नीति : रिज़र्व बैंक - आरबीआई - Reserve Bank of India
स्वच्छ नोट नीति : रिज़र्व बैंक
स्वच्छ नोट नीति : रिज़र्व बैंक
5 दिसंबर 2002
श्री वेपा कामेसम, उप गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों से अनुरोध किया कि वे नवंबर 2001 से नये नोट पैकेटों को स्टेपल न करने और करेंसी नोटों का जीवन बढ़ाने की दृष्टि से पैकेटों पर कागज़/ पालिथिन के बैंड लगाना शुरू करने के बारे में जारी, रिज़र्व बैंक के अनुदेशों को लागू करें। उप गवर्नर ने आज सरकारी क्षेत्र के बैंकों तथा अन्य बैंकों, जिनके दिल्ली में करेंसी चेस्ट हैं, के साथ भारतीय रिज़र्व बैंक की स्वच्छ नोट नीति के लागू करने से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने के लिए उनके मुख्य कार्यपालकों के साथ एक बैठक की। रिज़र्व बैंक की स्वच्छ नोट नीति का लक्ष्य यह है कि नागरिकों को अच्छी क्वालिटी के मुद्रा नोट और सिक्के दिये जाएं जबकि गंदे नोटों को परिचालन से बाहर कर दिया जाए। रिज़र्व बैंक ने बैंकों को यह अनुदेश भी दिया कि वे जनता को केवल अच्छी क्वालिटी के स्वच्छ नोट ही जारी करें और उनके द्वारा प्राप्त गंदे नोटों को फिर से अपने काउंटरों पर देने की प्रवृत्ति को रोकें। रिज़र्व बैंक ने अपने ऐसे सभी कार्यालयों में, जहां मुद्रा का लेनदेन होता है, उच्च गति की करेंसी वेरिफिकेशन एण्ड प्रोसेसिंग सिस्टम (सीवीपीएस) स्थापित किये हैं। ये मशीनें एक घंटे में 50000-60000 नोट प्रोसेस करने की क्षमता रखती हैं और गंदे नोट मशीन में ही छोटे-छोटे टुकड़ों में बदलते हुए ईटों में ढाल दिये जाते हैं।
1999 से, जब गवर्नर ने स्वच्छ नोट नीति घोषित की थी, करेंसी नोटों तथा सिक्कों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए कई उपाय किये गये हैं। जनता से आग्रह किया गया था कि वे करेंसी नोटों पर न लिखें और बैंकों को अनुदेश दिये गये थे कि वे गंदे और कटे-फटे नोट बदलने के लिए जनता को असीमित सुविधा प्रदान करें। रिज़र्व बैंक के अनुदेशों के अनुसार बैंकों की करेंसी चेस्ट शाखाएं गैर-ग्राहकों को भी उनके गंदे तथा कटे-फटे नोटों के बदले अच्छी क्वालिटी के नोट तथा सिक्के अवश्य उपलब्ध करायें। अलबत्ता, इस संबंध में जनता तथा कारोबारी संगठनों से शिकायतें मिल रही हैं कि इन अनुदेशों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
प्रतिबंधात्मक व्यवहारों के बारे में भी कुछ शिकायतें मिली थीं जिनके अनुसार ग्रामीण तथा अर्ध-शहरी क्षेत्रों में कुछ करेंसी चेस्ट शाखाएं छोटे मूल्यवर्ग के नोट स्वीकार नहीं करती हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए रिज़र्व बैंक ने इन करेंसी चेस्टों को सिक्कों के वितरण के लिए विशिष्ट मासिक लक्ष्य निर्धारित किये हैं। रिज़र्व बैंक प ीडबैक रिपोर्टों के आधार पर इन लक्ष्यों की निगरानी करता है। इसके अलावा, प्रायोगिक आधार पर रिज़र्व बैंक ने इस वर्ष सितंबर और नवंबर के बीच बैंकों से अनुरोध किया था कि वे चुनिंदा केंद्रों पर महीने में एक रविवार को अपनी एक करेंसी चेस्ट शाखा को खुला रखें जो विशेष रूप से मुद्रा विनिमय तथा छोटे सिक्के जारी करने का और खराब नोटों को चलन से बाहर करने का ही काम करें। बैंकों से प्राप्त रिपोर्टों से पता चलता है कि इस प्रयोग को जनता ने बहुत अच्छा प्रतिसाद (रिस्पॉन्स) दिया है। अतएव, यह निर्णय लिया गया है कि बैंक इसी योजना को पूरे समर्पण भाव के साथ नियमित आधार पर चलाएं। केंद्र का चयन तथा महीने में रविवार का चयन निर्धारित करने का काम अलग-अलग बैंकों पर छोड़ दिया गया है।
उप गवर्नर ने इस बात पर ज़ोर दिया कि चेस्ट शाखाओं तथा गैर-चेस्ट शाखाओं के बीच उच्च-स्तरीय तालमेल की बहुत अधिक आवश्यकता है और वह समय आ चुका है कि करेंसी चेस्ट शाखाएं भी बैंड लगाने की मशीनों के अलावा छोटे आकार के डेस्कटॉप संस्करण स्थापित करके अपने कामकाज़ का मशीनीकरण करें ताकि जनता को बिना स्टेपल किये हुए अच्छी क्वालिटी के नोट मिलें और रिज़र्व बैंक को भी प्रोसेसिंग तथा नष्ट करने के लिए बिना स्टेपल के गंदे नोट प्राप्त हों। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि नोटों तथा सिक्कों के प्रेषणों के यथोचित तालमेल के लिए रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय निदेशकों से संपर्क किया जा सकता है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि बैंक, रिज़र्व बैंक की स्वच्छ नोट नीति को आम जनता तक पहुंचाने के लिए उसे पूरा सहयोग देंगे और बैंक को इस प्रयोजन के लिए किसी नियामक दखल के बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
सूरज प्रकाश
प्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2002-2003/589