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घरेलू प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंक (डी-एसआईबी) ढांचा - मूल्यांकन पद्धति की समीक्षा

रिज़र्व बैंक ने 22 जुलाई 2014 को घरेलू प्रणालीगत रूप से  महत्वपूर्ण बैंकों (डी-एसआईबी) से निपटने के लिए रूपरेखा जारी की थी। इस ढांचे के अनुसार, बैंक को वार्षिक आधार पर डी-एसआईबी के रूप में नामित बैंकों के नामों की पहचान करना और प्रकट करना आवश्यक है।   इसके अलावा, ढांचे के अनुसार, प्रणालीगत रूप से बैंकों के महत्व का आकलन करने और डी-एसआईबी की पहचान के लिए मूल्यांकन पद्धति की समय-समय पर समीक्षा की जानी आवश्यक है। तदनुसार, इसकी शुरूआत के बाद से ढांचे की कार्यप्रणाली, प्रणालीगत जोखिम मापदंड के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियां और डी-एसआईबी ढांचे को लागू करने में अन्य देशों के अनुभव को ध्यान में रखते हुए, मूल्यांकन पद्धति की समीक्षा की गई है। समीक्षा के आधार पर, हालांकि चयनित संकेतकों या उनके संबंधित भार में कोई बदलाव नहीं हुआ है, बैंक ने पद्धति में निम्नलिखित संशोधन करने का निर्णय लिया है:

(ए) 'प्रतिस्थापन' संकेतक के अंतर्गत 'भुगतान' उप-संकेतक: इस उप-संकेतक के अंतर्गत डेटा आवश्यकता को "आरटीजीएस और एनईएफटी प्रणाली का उपयोग करके भारतीय रुपये में किए गए भुगतान" को निम्नानुसार संशोधित किया गया है:

  • भारतीय रुपये में किए गए डिजिटल भुगतान का कुल मूल्य (75 प्रतिशत भार)
  • भारतीय रुपये में किए गए डिजिटल भुगतान की कुल मात्रा (25 प्रतिशत भार)

स्पष्टीकरण: डिजिटल भुगतान में कागज-आधारित लिखतों के अलावा अन्य सभी भुगतान शामिल हैं।

(बी) वार्षिक मूल्यांकन और प्रकटीकरण के लिए समय- सीमा: नमूने में सभी बैंकों के मार्च के अंत के आंकड़ों के आधार पर प्रणालीगत महत्व स्कोर की गणना वार्षिक आधार पर अगस्त-अक्तूबर के महीनों में की जाएगी, और डी-एसआईबी के रूप में वर्गीकृत बैंकों के नामों की सूचना प्रत्येक वर्ष के नवंबर माह में दी जाएगी। तदनुसार, बैंकों को प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त तक रिज़र्व बैंक को आवश्यक डेटा प्रस्तुत  करने के लिए तैयार रहना होगा।

(सी) डेटा आवश्यकताओं में अन्य संशोधन - इस संबंध में प्रमुख संशोधनों में शामिल हैं:

(i) परस्पर संबद्धता (इंटरकनेक्टेडनेस) संकेतक के अंतर्गत 'बैंक द्वारा जारी कुल विपणन योग्य प्रतिभूतियों' के लिए - इस शीर्ष के अंतर्गत रिपोर्ट की गई प्रतिभूतियों का मूल्य उनके बाजार मूल्य पर आधारित होगा।

(ii) जटिलता संकेतक के अंतर्गत 'ट्रेडिंग के लिए रखी गई प्रतिभूतियां (एचएफटी) और बिक्री के लिए उपलब्ध (एएफएस) श्रेणियों[1] के लिए - बेसल III चलनिधि कवरेज अनुपात (एलसीआर) दिशानिर्देशों[2] में परिभाषित स्तर 1 और स्तर 2 परिसंपत्तियों (लागू हेयरकट के साथ) की परिभाषा को पूरा करने वाली इन श्रेणियों में रखी गई प्रतिभूतियों के उपसमूह में कटौती की जाएगी।

(iii) परस्पर संबद्धता (इंटरकनेक्टेडनेस) संकेतक के अंतर्गत अंतर- वित्तीय आस्तियों और अंतर- वित्तीय  देयताओं के भीतर रिपोर्ट किए गए प्रतिभूति वित्तपोषण लेनदेन (एसएफटी) और ओवर-दि-काउंटर (ओटीसी) डेरिवेटिव के लिए - जहां बेसल III पूंजी पर्याप्तता दिशानिर्देशों[3]  में निर्दिष्ट प्रभावी द्विपक्षीय नेटिंग संविदा मौजूद हैं, बैंक ऐसे लेनदेन की रिपोर्ट शुद्ध आधार पर कर सकते हैं।

2. संशोधित पद्धति के अनुसार विस्तृत दिशानिर्देश, प्रत्येक वर्ष वार्षिक मूल्यांकन में शामिल बैंकों को प्रदान किए गए मार्गदर्शन नोट और एक्सेल शीट में साझा किए जाएंगे।

3. संशोधित पद्धति 2024 के मूल्यांकन अभ्यास से लागू होगा।

(योगेश दयाल)  
मुख्य महाप्रबंधक

 प्रेस प्रकाशनी : 2023-2024/1565                                                  


[1] 31 मार्च 2025 से डेटा का उपयोग करते हुए डी-एसआईबी अभ्यास के लिए, लाभ और हानि के माध्यम से उचित मूल्य में प्रतिभूतियां (एफवीटीपीएल) और बिक्री के लिए उपलब्ध (एएफएस) श्रेणियों को इस शीर्ष के अंतर्गत शामिल किया जाएगा।

[2] समय-समय पर संशोधित दिनांक 9 जून 2014 का  आरबीआई परिपत्र DBOD.BP.BC.No.120/21.04.098/2013-14 जिसका शीर्षक था ‘चलनिधि मानकों–चलनिधि कवरेज अनुपात (एलसीआर), चलनिधि जोखिम निगरानी टूल्स और एलसीआर प्रकटीकरण मानक पर बेसल III फ्रेमवर्क’ ।

[3] समय-समय पर संशोधित दिनांक 12 मई 2023 का आरबीआई मास्टर परिपत्र DOR.CAP.REC.15/21.06.201/2023-24 जिसका शीर्षक था 'बेसल III पूंजीगत विनियम' है।

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