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वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जून 2011

14 जून 2011

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जून 2011

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज यहॉं जारी अपनी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) में भारत के वित्तीय क्षेत्र के स्‍वास्‍थ्‍य का आकलन प्रस्‍तुत किया। रिपोर्ट यह दर्शाती है कि रिज़र्व बैंक वित्तीय क्षेत्र स्थिरता के प्रति प्रारंभिक जोखिमों के आकलन को प्रसारित करने का प्रयास कर रहा है। पहली वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट मार्च 2010 में तथा दूसरी दिसंबर 2010 में जारी की गई थी। आगे जाकर वित्तीय स्थिरता रिपोर्टें प्रत्‍येक वर्ष छमाही आधार पर जून और दिसंबर में जारी की जाएगी।

जैसेकि पूर्ववर्ती रिपोर्टों के मामले में हैं, यह वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट संपूर्ण रूप से प्रणालीगत जोखिम परिप्रेक्ष्‍य से वित्तीय क्षेत्र वातावरण-संरचना के समग्र तत्‍वों - समष्टि आर्थिक ढॉंचा, नीतियों, बाज़ारों, संस्‍थाओं का आकलन करती है। तथापि, वित्तीय क्षेत्र स्थिरता का आकलन करने के लिए प्रयोग में लाए जा रहे उपकरण और तकनीक, प्रणालीगत जोखिम के निर्माण यदि हों, और दिसंबर 2010 और जून 2011 के बीच विभिन्‍न संवेदनशीलताओं की आवाजाही का व्‍यापक रूप से उन्‍नयन किया गया है।

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट यह बताती है कि वैश्विक समष्टि सित्तीय वातावरण में देखी जा रही कुछ छिट-पूट घटनाओं के समक्ष भारतीय वित्तीय प्रणाली स्थिर रही है। विश्‍व अधिकांश हिस्‍सों में वृद्धि मंद हो रही है यद्यपि, वैश्विक असंतुलनों तथा यूरोप में वैश्विक ऋण संकटों से जोखिमें मंडराती रही हैं। निरंतर उच्‍चतर ऊर्जा और पण्‍य वस्‍तु कीमतों के साथ वैश्विक वातावरण में अनिश्चितता ने भारत की वृद्धि की गति में भी हल्‍की नरमी लाई है। तथापि, भारत के लिए समष्टि आर्थिक मौलिक तत्‍व व्‍याप्‍त मुद्रास्‍फीतिकारी दबावों और राजकोषीय मंचों पर चिंताओं के होते हुए भी मज़बूत बने हुए है।

दिसंबर 2010 में पूर्ववर्ती वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद की अवधि के दौरान वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार भारतीय वित्तीय बाज़ार तनावमुक्‍त रहे हैं, यद्यपि वित्त के अंतर्राष्‍ट्रीय स्रोतों पर घरेलू फर्मों की विदेशी मुद्रा निर्भरता बढ़ती रही है। विनियामक व्‍यवस्‍थाओं को वर्तमान अंतर्राष्‍ट्रीय गतिविधियों पर सर्वोत्‍तम व्‍यवहारों के अनुरूप एक समन्वित दृष्टिकोण पर ज़ोर डालते हुए सुदृढ किया जा रहा है।

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट यह आकलन करती है कि बैंकिंग क्षेत्र स्थिर बना हुआ है, यद्यपि उल्‍लेखनीय रूप से 'संयुक्‍त' और 'समूहबद्ध' बैंकों द्वारा वर्णित क्षेत्र की संरचना में कतिपय अंतर्निहित जोखिक शामिल हैं जैसाकि नेटवर्क विश्‍लेषण - इस वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में लागू की गई नई विश्‍लेषणात्‍मक तकनीक (नीचे चित्र देखें) में से एक द्वारा दर्शाई गई है।

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कलर कोडि़ग : हरा (सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक) : जामुनी (निजी क्षेत्र के पुराने बैंक) : हरित-नील (निजी क्षेत्र के नए बैंक) : और भूरा (विदेशी बैंक)

पूर्ववर्ती वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में लागू बैंकिंग स्थिरता संकेतक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता में समग्र सुधार की पुष्टि करते हैं। अधिक कठिन संगणन पद्धतियों पर आधारित लागू नई जॉंच सहित विभिन्‍न समष्टि वित्तीय तनाव जॉंच भी यह दर्शाते हैं कि बैंकिंग क्षेत्र पर्याप्‍त रूप से पूँजीकृत और आस्ति गुण्‍पवत्‍ता आघातों तथा समष्टि आर्थिक परिदृश्‍य में अन्‍य विश्‍वसनीय प्रतिकूल परिवर्तनों के अनुकूल रहे हैं। अलग-अलग बैंकों के प्रणालीगत महत्‍व के आकलन के प्रयोजन के लिए किसी दूसरे बैंक को चिंता में डालने वाले बैंक की संभावना अथवा दूसरे बैंक की चिंता द्वारा प्रभावित हो रहे बैंकों का अन्‍य बातों के साथ-साथ 'विषाक्‍तता सूचकांक' तथा प्रत्‍येक बैंक के लिए 'संवेदनशीलता सूचकांक' की रचना के माध्‍यम से विश्‍लेषण किया गया है जो वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (नीचे चित्र देखें) में प्रस्‍तुत की गई है।

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वित्तीय स्थिरता के लिए अंतर-विनियामक सहायक प्रक्रिया की गहराई को दर्शाते हुए यह वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट संबंधित क्षेत्रों के संबंध में प्रणालीगत मुद्दों पर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) तथा बीमा विनियामक और विकास प्राधिकार (आइआरडीए) से उल्‍लेखनीय योगदान शामिल करती है।

अगली वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट दिसंबर 2011 में प्रकाशित होना निर्धारित है।

मुख्‍य-मुख्‍य बातें

वैश्विक समष्टि आर्थिक गतिविधियॉं

  • वैश्विक जोखिम परिदृश्‍य में सुधार हुआ है यद्यपि एशिया के कुछ विकासशील अर्थव्‍यवस्‍थाओं सहित अधिकांश देशों में वर्ष 2011 के दौरान वृद्धि में मंदी के संकेत हैं।

  • वैश्विक असंतुलन लाने वाले मुख्‍य अंतर्निहित कारकों का व्‍यपक रूप से समाधान नहीं हुआ जिससे वैश्विक सुधार के पथ की ओर अनिश्चितता बढ़ती गई।

  • कुछ यूरो क्षेत्र देशों ने सरकारी त्रण संकट तथा कुछ उन्‍नत देशों में बढ़ते हुए उच्‍च स्‍तर के सरकारी ऋण वैश्विक स्थिरता के लिए खतरा बने रहे।

घरेलू समष्टि आर्थिक गतिविधियॉं

  • कुछ घरेलू और अंतर्राष्‍ट्रीय कारकों के कारण सकल घरेलू उत्‍पाद वृद्धि के प्रति अवनतशील जोखिम हैं।

  • बढ़ते हुए दबावों का सामना करते हुए मुद्रास्‍फीति जारी रहने की संभावना है।

  • वर्तमान में सीएडी को वित्तीय सहायता प्रमुख चिंता नहीं है यद्यपि पूँजी अंतर्वाहों में मंदी उत्‍पन्‍न हो सकती है जब उन्‍नत अर्थव्‍यवस्‍थाएं आर्थिक सहायता नीति से बाहर होंगी।

  • सरकारी व्‍यय का प्रबंध राजकोषीय समेकन की प्रक्रिया के लिए चुनौ‍ती खड़ी कर सकता है।

वित्तीय बाजार

  • घरेलू वित्तीय बाज़ार तनावमुक्‍त बने रहे तथा उनसे आने वाली अवधि में ऐसा ही रहने की उम्‍मीद की जाती है।

  • मज़बूत ऋण मॉंग तथा परिचालन में उच्‍च स्‍तर की मुद्रा को देखते हुए प्रणाली में चलनिधि घाटे के स्‍वरूप में बनी रही।

  • सरकारी बॉण्‍ड प्रतिलाभ सभी परिपक्‍वताओं में कड़े रहे अधिकांशत: अल्‍पावधि में ऐसा हुआ जिससे प्रतिलाभ वक्र मिथ्‍या साबित हुए।

  • बाह्य वाणिज्यिक उधारों के प्रति घरेलू कंपनियों की व्‍यापक पहुँच से बढ़ते हुए मुद्रा असंतुलन प्रकट हुए।

  • एफसीसीबी के घरेलू कंपनी निर्गमकर्ता पुनर्निधीयन जोखिम का सामना कर सकते हैं क्‍योंकि मार्च 2013 तक परिपक्‍वता के नज़दीक वाले कई बॉण्‍ड इक्विटी में परिवर्तित नहीं किए जा सकते हैं।

  • मई 2010 में अमरीकी इक्विटी बाज़ारों में देखी गई 'फ्लैश क्रेसेज' जैसी घटनाओं के विरूद्ध् रक्षा करने की आवश्‍यकता है क्‍योंकि देश में कार्यक्रम कारोबार प्रणाली लागू की गई है।

वित्तीय संस्‍थाएं

  • बैंकिंग क्षेत्र मुख्‍य पूँजी पर्याप्‍तता तथा सहज स्‍तर पर सुविधा अनुपात दोनों के साथ सुपूँजीकृत बने रहे।

  • आस्ति गुणवत्‍ता में सुधारों के मध्‍य ऋण वद्धि की पुन्: वापसी हुई तथापि कतिपय विशिष्‍ट क्षेत्र आगे जा कर चिंताएं खड़ी कर सकते हैं।

  • बाजार उधारों की बढ़ती हुई निर्भरता बैंकों की चलनिधि स्थिति को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित कर सकती है।

  • ऋण में मज़बूत वृद्धि व्‍यक्तिगत हा‍मीदारी मानक को जब ऋण वृद्धि मंद हो तो गिरावट को रोकने के लिए कड़ा किया जा सकता है।

  • बढ़े हुए निवल ब्‍याज आय में उछाल के द्वारा बैंकों की लाभप्रदता में सुधार हुआ यद्यपि गैर-ब्‍याज आय स्थिर बनी रही। आगे जाकर लागत कारक लाभप्रदता को प्रभावित कर सकते है

  • खासकर विदेशी बैंकों के मामले में तुलन पत्रेतर निवेशों में वृद्धि की निगरानी की ज़रूरत है।

  • विशेषकर निजी खिलाडियों के सामने आने के बाद वर्षों के दौरान देश में बीमा क्षेत्र आकार और पहुँच बढ़ा है। यह क्षेत्र मज़बूत और सुविनियमित रहा है।

विनियामक वातावरण

  • बैंकिंग कानूनों में प्रस्‍तावित संशोधनों से विनियामक संरचना के सुदृढ़ होने की आशा है।

  • भारत के बैंक कई चुनौतियों का सामना करेंगे जब वे बासेल II के अंतर्गत उन्‍नत दृष्टिकोण की ओर जाएंगे तथा बासेल III के लिए तैयार होंगे।

  • बासेल III के  अंतर्गत प्रस्‍तावित प्रति-चक्रिय बफर के समायोजन को गुणात्‍मक निर्णय और परिमाणात्‍मक संकेतकों के संयोग की अपेक्षा होगी।

  • किसी विनियामक क्षेत्र के बाहर सहकारी समितियों द्वारा निधियों की प्राप्ति करते समय गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए विनियामक ढॉंचे में जारी अंतरालों का समाधान करने की ज़रूरत है।

  • सरकारी स्‍वाधिकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का प्रणालीगत महत्‍व बढ़ा है तथा ऐसी संस्‍थाओं को दी गई विनियामक छूट की पुन: जॉंच की जा रही है।

वित्तीय बाज़ार मूलभूत सुविधा

  • भारत में भुगतान और निपटान मूलभूत सुविधा का परिचालनात्‍मक कार्यनिष्‍पादन मज़बूत बना हुआ है।

  • भुगतान और निपटान प्रणालियों के विभिन्‍न खण्‍डों के बीच समेकन और अंत:संबंध कुछ चिंताएं खड़ी कर सकते हैं।

  • सीसीपी द्वारा सामना किए जा रहे चलनिधि जोखिमों के प्रबंध को किसी असफलता से संपार्श्विक क्षति को देखते हुए सावधानीपूर्वक प्रबंध करने की ज़रूरत है, हालांकि इसकी संभावना नहीं है।

  • ओटीसी व्‍युत्‍पनी बाज़ारों के लिए विद्यमान रिपोर्टिंग व्‍यवस्‍था सुविधा प्रदान करने की ज़रूरत है क्‍योंकि रिपोर्टिंग ढॉंचे के भीतर और अधिक उत्‍पाद/बाज़ार लाए जा रहे हैं।

तनाव जॉंच

  • ऋण, चलनिधि और ब्‍याज दर जोखिम के संबंध में तनाव जॉंच की एक श्रृंखला यह दर्शाती है कि बैंक समुचित ढंग से अनुकूल बने रहे यद्यपि उनकी लाभप्रदता उल्‍लेखनीय रूप से प्रभावित हो सकती थी।

  • कड़े तनाव परिदृश्‍यों के अंतर्गत बैंक चलनिधि बाध्‍यताओं का सामना कर सकते हैं।

  • बैंकों को व्‍याप्‍त मुद्रास्‍फीति और ब्‍याज दर स्थिति से आघातों के प्रति सतर्क रहने की ज़रूरत हो जो उनकी आस्ति गुणवत्‍ता को प्रभावित कर सकती है क्‍योंकि ब्‍याज दर में परिवर्तन से बैंकों की गिरावट अनुपात पर अधिक उल्‍लेखनीय (नकारात्‍मक) प्रभाव देखा गया है।

  • बैंकिंग स्थिरता उपायों के एक नये सेट ने यह दर्शाया है कि जब चिंता निर्भरताओं के विभिन्‍न समूहों से आकलन किया जाता है तो संकट की अवधि के दौरान प्रणालीगत जोखिमें बैंकों की अलग-अलग जोखिमों की अपेक्षा तेज़ी से उभरती है।

अजीत प्रसाद
 सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/1814

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