पहला द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2015-16 - आरबीआई - Reserve Bank of India
पहला द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2015-16
7 अप्रैल 2015 पहला द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2015-16 मौद्रिक और चलनिधि उपाय वर्तमान और उभरती समष्टि आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि:
परिणामस्वरूप, एलएएफ के अंतर्गत प्रतिवर्ती रिपो दर 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रहेगी तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 8.5 प्रतिशत रहेगी। आकलन 3. वैश्विक वित्तीय बाजारों को अमेरिकी मौद्रिक नीति के सामान्यीकरण की प्रत्याशाओं से प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है, मौद्रिक नीति रुख अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में काफी उदार हो रहा है और अनेक उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाएं नीति दरों को सहज बना रही हैं जिससे कि वृद्धि संबंधी मुद्दों का समाधान हो सके। कमजोर मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं, आवधिक प्रीमियमों के कम होने और अमेरिकी ट्रेजरीज़ के सुरक्षित आश्रय आकर्षण के कारण दीर्घावधिक प्रतिलाभ अभी तक के सबसे कम हो गए हैं। अत्यंत कम ब्याज दरों और जोखिम प्रीमियम में कमी के कारण अधिकांश आस्तियों के मूल्य रिकार्ड उच्च कीमतों पर पहुंच गए हैं और इससे निवेशक इक्विटी और कम दर वाली ऋण लिखतों जैसी जोखिमभरी आस्तियों के प्रति प्रेरित हुए हैं। अधिकांश मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर में मजबूती आने से मुद्रा विनिमय दरों में बड़े और अस्थिर उतार-चढ़ाव हुए हैं। उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में बाजारों ने तुलनात्मक रूप से कमजोर आधारों और/अथवा तेल निर्यातकों के मुकाबले अंतर दिखाया है। फिर भी, उभरते हुए बाजारों में उच्च पोर्टफोलियो प्रवाह के साथ बाजार भावना में अचानक परिवर्तन होने से उत्पन्न होने वाले जोखिम बढ़ गए हैं। 4. घरेलू आर्थिक कार्यकलापों में चौथी तिमाही में मजबूती आने की संभावना है। कृषि मंत्रालय के दूसरे अनुमान दर्शाते हैं कि वर्ष 2014-15 में खाद्यान्न में कमी पूर्व में प्रत्याशित कमी से और कम हो सकती है। तथापि, मार्च में बेमौसमी वर्षा और ओलावृष्टि के प्रतिकूल प्रभाव अभी भी दिखाई दे रहे हैं। प्रारंभिक अनुमान दर्शाते हैं कि रबी की फसल के अंतर्गत 17 प्रतिशत बुआई क्षेत्र प्रभावित रहा होगा जबकि अभी नुकसान के सटीक परिमाण का निर्धारण किया जाना है। संबद्ध कार्यकलापों में वृद्धि विगत समय की भांति सुदृढ़ रहने की संभावना है, यद्यपि यह देखना बाकी है कि क्या इससे खाद्यान्न उत्पादन में कमी की पूरी तरह से क्षतिपूर्ति हो जाएगी। 5. औद्योगिक क्षेत्र और विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र गति पकड़ता हुआ प्रतीत हो रहा है, इस क्षेत्र में जनवरी तक लगातार तीन महीनों में उत्पादन वृद्धि सकारात्मक रही है। जबकि मूलभूत वस्तुओं के उत्पादन में नवंबर 2013 से विस्तार हो रहा है, फिर भी पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन तुलनात्मक रूप से ढेलेदार और अस्थिर रहा है तथा निवेश मांग में टिकाऊ गति के बारे में आश्वस्त होने के लिए और सकारात्मक अध्ययन की आवश्यकता है। दो वर्ष से अधिक समय से उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में लगातार कमी से उपभोक्ता मांग और उच्चतर आयात में अंतर्निहित कमी प्रतिबिंबित हो सकती है। 6. सेवा क्षेत्र से मिल-जुले संकेत आ रहे हैं। जबकि राष्ट्रीय लेखा आंकड़े यह दर्शाते प्रतीत हो रहे हैं कि सेवाओं की उपभोग मांग माल की मांग की तुलना में अधिक प्रबल है और परचेजिंग मैनेजर्स नए आदेशों के आधार पर कार्यकलाप में विस्तार का अनुमान लगाते हैं, रेलवे और बंदरगाह ट्रैफिक, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय यात्रा ट्रैफिक, अंतरराष्ट्रीय मालभाड़ा ट्रैफिक, पर्यटन आगमन सहित सेवा क्षेत्र कार्यकलापों के विभिन्न समकालीन संकेतक, मोटरसाइकिल और ट्रैक्टरों की बिक्री तथा बैंक क्रेडिट एवं जमाराशि वृद्धि मंद रही है। 7. दिसंबर से मूल्य सूचक आभासी रूप से प्रभावहीन होने के बाबजूद संशोधित उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर बदलावों द्वारा मापित खुदरा मुद्रास्फीति फरवरी में लगातार तीसरे महीने स्थिर बनी हुई है क्योंकि अनुकूल आधार प्रभाव गायब हो गए। सब्जी और फलों के मूल्यों में मौसमी गिरावट होने पर भी दालों, माँस, मछली और दूध जैसे प्रोटीन समृद्ध मदों की कीमतों के उच्च स्तर से अभी भी खाद्य मुद्रास्फीति बनी हुई। वैश्विक पण्य-वस्तुओं की कीमतों में कमी के चलते चीनी और खाद्य तेल जैसी मदों के मूल्य में सुधार हुआ। विद्युत और जलाने वाली लकड़ी की कीमतों में वृद्धि के कारण लगातार दूसरे महीने में ईंधन मुद्रास्फीति में मामूली बढ़ोतरी हुई। 8. खाद्य और ईंधन को छोड़कर मुद्रास्फीति फरवरी तक लगातार नौ महीनों में कम रही। इस अवस्फीति का एक बड़ा कारण अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में कमी रहा जिसका प्रभाव पेट्रोल और डीज़ल की घरेलू कीमतों के माध्यम से हुआ जिन्हें परिवहन और संचार की श्रेणी में शामिल किया जाता है। संशोधित उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में आवासीय मुद्रास्फीति भी सहज हई जो आंशिक रूप से पद्धति संबंधी और कवरेज़ सुधार दर्शाती है। इसके अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और अन्य सेवाओं के मूल्यों पर प्रभाव डालने वाले अपसाइड दबाव भी कमजोर मांग स्थिति के कारण कम हो गए हैं। ग्रामीण मजदूरी की वृद्धि दर नवंबर 2013 तक व्याप्त दोहरे अंकों से काफी घट गई। हाल के परचेजिंग मैनेजर्स सर्वेक्षण को छोड़कर फर्में भी इनपुट मूल्य दबावों में काफी सहजता रिपोर्ट कर रहे हैं। विगत की अवस्फीति को दर्शाते हुए परिवार मुद्रास्फीति प्रत्याशाएं एक अंक में हैं, यद्यपि ये भी जनवरी-फरवरी के दौरान खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति के बढ़ने की प्रतिक्रिया में चौथी तिमाही में कुछ वृद्धि दिखा रहे हैं। 9. जनवरी में मौद्रिक नीति रुख में उदार नीति की तरफ परिवर्तन से रिज़र्व बैंक अग्रसक्रिय चलनिधि प्रबंध के माध्यम से सुविधाजनक चलनिधि स्थिति सुनिश्चित करने के लिए आगे बढ़ा है, इसके लिए कार्यदिवसों के दौरान अच्छी तरह परिचालन और सीमांत स्थायी सुविधा की पहुंच तथा शनिवार के दिन स्थायी दर प्रतिवर्ती रिपो आयोजित करता है। इससे चलनिधि प्रयास सहज बनाने में मदद मिली है जिन प्रयासों की विशेषता मुद्रा बाजार दरों को रिपो दर पर आश्रित रखते हुए अग्रिम कर भुगतान और तुलन-पत्र की तारीखें हैं। घर्षणात्मक कारकों के कारण मार्च में उत्पन्न हुए दबावों को कम करने के लिए रिज़र्व बैंक ने 8 दिन से 28 दिनों की परिपक्वता अवधि वाली रिपो नीलामियां आयोजित कर अपनी चलनिधि प्रबंध लिखतों को तेज किया, इन नीलामियों में मार्च के अंत तक नियमित 14 दिवसीय मीयादी नीलामियों और स्थायी दर ओवरनाइट रिपो नीलामियों के अतिरिक्त रु.1430 बिलियन (एमएसएफ से रु.416 बिलियन की सहायता सहित) की बकाया राशि एकत्र की गई। चलनिधि की उपलब्धता का आकलन इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि मार्च में परिवर्तनीय/स्थायी दर प्रतिवर्ती रिपो नीलामियों केमाध्यम से बाजार सहभागिता से प्राप्त औसत दैनिक चलनिधि रु. 293 बिलियन तक पहुंच गई। 10. निर्यात निष्पादन उत्तरोत्तर कमजोर होता जा रहा है और दिसंबर 2014 से गैर-तेल और पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात में कमी जारी है। क्षणिक बाह्य मांग स्थिति और अंतरराष्ट्रीय पण्य-वस्तु मूल्यों में नरमी काफी मात्रा में हुई है जैसाकि एशिया की अनेक अन्य उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में हुआ है। विशेषकर निर्यात मात्रा में बढ़ोतरी के बावजूद भी मूल्य प्राप्ति में कमी आई है। वास्तविक प्रभावी अर्थों में भारतीय रुपया में मजबूती के साथ निर्यात मार्जिन उन निर्यातकों के लिए दबाव में आ रहा है जिनके पास अच्छी मात्रा में आयातित इनपुट नहीं हैं। निवल व्यापार लाभ और पेट्रोलियम उत्पादों के आयात में कमी वर्ष 2009-10 से अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई। सोने का आयात नियंत्रित रहा, यद्यपि इन वर्षों में गैर-तेल गैर-स्वर्ण का आयात धीमी गति के साथ बढ़ा, यह आयात घरेलू विनिर्माण में सुस्ती को देखते हुए प्रतिस्थापन प्रभाव दिखा सकता है। 11. सेवाओं का निर्यात, विशेषकर सॉफ्टवेयर और यात्रा ने उम्मीद की किरण दिखाई है और चालू खाता घाटे को कम करने में मदद की, चालू खाता घाटा तीसरी तिमाही में कम हो गया। इस सुधार में चौथी तिमाही में संभवतः विस्तार हुआ। परिणामस्वरूप, पूंजीगत प्रवाह - घरेलू ऋण और इक्विटी बाजारों में मुख्यरूप से पोर्टफोलियो प्रवाह और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश वित्तीय आवश्यकता से अधिक हो गया तथा इससे विदेशी मुद्रा भंडार में अभिवृद्धि हो सकी जो अभी तक सबसे अधिक होकर 3 अप्रैल 2015 को 343 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई। अगले तीन महीनों में डिलीवर की जाने वाली वायदा खरीद सहित ये मुद्रा भंडार उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति के सामान्यीकरण से होने वाले संभावित पूंजीगत बहिर्वाहों के विरूद्ध बफर उपलब्ध कराएंगे। निस्संदेह अच्छी समष्टि आर्थिक नीति निवेशकों का विश्वास बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण पहला रक्षा कवच है। नीतिगत रुख और इसका औचित्य 12. वर्ष 2015 में अभी तक मुद्रास्फीति पथ जनवरी 2015 में बड़ी कमी के बाद अनुमानित पथ के साथ उभरकर सामने आया है। सीपीआई मुद्रास्फीति को वर्ष 2015-16 की पहली तिमाही में इसके वर्तमान स्तर पर अनुमानित की गई है, इसके बाद अगस्त तक लगभग 4 प्रतिशत तक कम होते हुए किंतु वर्ष के अंत तक 5.8 प्रतिशत तक पहुंच कर स्थिर हो सकती है (चार्ट 1)। केंद्रीय अनुमान में अपसाइड जोखिम हैं जिनका कारण एल निनो स्थिति का संभावित सघनीकरण हो सकता है जिससे सामान्य से कम मानसून हो सकता है, बेमौसम वर्षा के कारण सब्जियों और फलों का अपने नियमित मौसमी पैटर्नों से विचलन हो सकता है, प्रशासित मूल्यों में प्रत्याशित से अधिक बढ़ोतरी हो सकती है, उत्पादन अंतराल तेजी से भर सकता है, भौगोलिक-राजनीतिक गतिविधियां हो सकती हैं जिनके कारण वैश्विक पण्य-वस्तु कीमतें बढ़ सकती हैं और विनिमय दर और आस्ति मूल्य चैनलों के माध्यम से बाह्य गतिविधियों से स्पिल-ओवर हो सकता है। तथापि, इस समय ये अपसाइड जोखिम वैश्विक अपस्फीतिकारी/अवस्फीतिकारी प्रवृत्तियों, वैश्विक पण्य-वस्तुओं की कीमतों पर वर्तमान दृष्टिकोण, और घरेलू अर्थव्यवस्था में मंदी से उत्पन्न हुए डाउनसाइड जोखिमों से संतुलित होते प्रतीत होते हैं। 13. कमजोर क्रेडिट ऑफटेक और दो बार दरों में कटौती करने के बावजूद भी अभी तक नीतिगत दरों का उधार दरों में अंतरण नहीं हुआ है। कम अंतरण और इस संभावना के साथ कि आवक आंकड़े मुद्रास्फीति पर जोखिम संतुलन में अधिक स्पष्टता मुहैया कराएंगे, रिज़र्व बैंक इस समीक्षा में अपने मौद्रिक नीति रुख में यथास्थिति कायम रखेगा। 14. भारत सरकार और रिज़र्व बैंक द्वारा फरवरी 2015 में हस्ताक्षर की गई मौद्रिक नीति रूपरेखा से वर्ष 2015-16 और इसके बाद के वर्षों के लिए मौद्रिक नीति का रुख तैयार होगा। रिज़र्व बैंक इस बात को सुनिश्चित करने के लिए अपना ध्यान केंद्रित करता रहेगा कि अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे किंतु टिकाऊ आधार पर मूल्यों में कमी करे, इसके लिए जनवरी 2016 तक 6 प्रतिशत सीपीआई लक्ष्य रखा गया है और वर्ष 2017-18 के अंत तक 4 प्रतिशत लक्ष्य रखा गया है। यद्यपि, वर्ष 2017-18 के लिए लक्ष्य और इसके बाद का लक्ष्य मध्यबिंदु के ईर्द-गिर्द +/- 2 प्रतिशत के टॉलरेंस बैंड के रूप में निर्धारित किया गया है, रिज़र्व बैंक का प्रयास रहेगा कि मुद्रास्फीति को अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रतिकूल प्रभावों को कम करते हुए मध्य-बिंदु हासिल करने के लिए उपलब्ध कराई गई बढ़ाई हुई अवधि के साथ मध्य-बिंदु पर या इसके आसपास रखा जाए। जैसाकि ऊपर कहा गया है कि जनवरी से मौद्रिक नीति रुख में बदलाव कर इसे अनुकूलन बनाने के साथ अनेक अनुकूल ताकतें कार्य कर रही हैं। रिज़र्व बैंक का उद्देश्य अवस्फीतिकारी गति प्रदान करना है जिससे कि इसका विस्तार अर्थव्यवस्था में हो सके, किंतु मुद्रास्फीतिजनक दबावों के उत्पन्न होने के बारे में सतर्क रहें क्योंकि इनसे करार में निर्धारित किए गए मुद्रास्फीति उद्देश्यों की प्रगति अस्थिर हो सकती है। 15. वृद्धि की संभावनाएं धीरे-धीरे बढ़ रही हैं। चलनिधि की परिस्थितियां सहज होने से, बैंक नीतिगत दरों में हाल में हुई कमी के कारण अपनी ऋण दरों में कमी ला पाएंगे, जिससे अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों की वित्तीयन संबंधी परिस्थितियों में सुधार होगा। आधारभूत संरचना में निवेश को बढ़ाने एवं कारोबारी वातावरण में सुधार लाने के संबंध में केंद्र के बजट में घोषित उपायों और मुद्रास्फीति की प्रेरक संभावनाओं सहित ये कारक निजी निवेश को भरोशा दिलाएंगे एवं उपभोक्ताओं को वास्तविक आय संबंधी लाभ तथा कॉर्पोरेटों को अपेक्षाकृत कम इनपुट लागत का लाभ प्रदान करेंगे। 2014-15 के लिए जीडीपी वृद्धि से संबंधित केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) के अनुमानों में पहले ही मजबूत वृद्धि होना दर्शाया गया है, किंतु प्रमुख एवं अनुकूल सूचकों से यह पता चलता है कि पिछली तिमाही में वास्तविक गतिविधियों से संबंधित में पूर्ण जानकारी उपलब्ध होने पर इन अनुमानों में कमी हो सकती है। आधारभूत (बेसलाइ) वृद्धि अनुमानों में दो प्रमुख जोखिम मानसून का आगमन एवं उसके वितरण की अनिश्चितताएं तथा अप्रत्याशित वैश्विक गतिविधियां हैं। मानसून के सामान्य रहने, सहारा प्रदान करने वाले नीतिगत वातावरण के चक्रीय सुधार के जारी रहने तथा कोई बड़ा संरचनागत परिवर्तन या आपूर्ति संबंधी परेशानी नहीं होना मानते हुए 2015-16 के लिए उत्पादन वृद्धि के 7.8 प्रतिशत रहने की संभावना है, जो 2014-15 में रही 7.5 प्रतिशत वृद्धि दर से 30 आधारभूत अंक अधिक है। हालांकि, आर्थिक गतिविधियों के सूचकों में अभी भी मंदी होने के कारण इसमें कमी होने का दबाव है (चार्ट 2)। 16. इसके आगे, मौद्रिक नीति का समायोजनकारी रुझान बरकरार रखा जाएगा किंतु मौद्रिक नीति के कदमों को, प्राप्त होने वाले आंकड़ों के अनुसार अनुकूल बनाया जाएगा। पहला, रिज़र्व बैंक जनवरी एवं फरवरी में अपनी नीतिगत दरों में की गई कमी के कारण बैंकों द्वारा उनकी ऋण दरों में कमी किए जाने का इंतजार करेगा। दूसरा, क्षेत्रवार मूल्यों की गतिविधियों, विशेषरूप से खाद्य मूल्यों की गतिविधियों पर नजर रखी जाएगी। साथ ही, हाल के मौसम संबंधी वितरणों तथा मानसून की संभावित मजबूती पर भी नजर रखी जाएगी, क्योंकि रिज़र्व बैंक वर्तमान में जारी अवस्फीति के खतरे के प्रति सतर्क रहता है। रिज़र्व बैंक मौसमी एवं आधारभूत कारणों –दोनों को ध्यान में रखेगा। तीसरा, रिज़र्व बैंक आपूर्ति संबंधी प्रतिक्रियाओं को मुक्त करने के नीतिगत प्रयासों को जारी रखने और उसमें तेजी लाने की भी कोशिश करेगा ताकि ऊर्जा एवं भूमि जैसे प्रमुख इनपुट उपलब्ध कराए जा सकें। सार्वजनिक व्यय को ढुलमुल ढंग से लक्षित छूट के स्थान पर सार्वजनिक निवेश की ओर पुनर्नियोजित करने में हुई प्रगति तथा किए गए निवेश की अंतर्गत प्रक्रियाओं में कमी लाने से भी आपूर्ति की बाधाओं को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी एवं मौद्रिक समायोजन की संभावनाएं भी बढ़ जाएंगी। अंतत:, रिज़र्व बैंक अमेरिकी मौद्रिक नीति के सामान्य होने के लक्षणों पर नजर रखेगा, हालांकि रिज़र्व बैंक यह मानता है कि भारत किसी संभावित अनिश्चितता के प्रति अतीत की तुलना में बेहतर ढंग से तैयार है। भाग ख : विकासात्मक एवं विनियामकीय नीतियां 17. वक्तव्य के इस भाग में रिज़र्व बैंक द्वारा हाल के नीतिगत वक्तव्य में घोषित विभिन्न विकासात्मक एवं विनियामकीय नीतिगत उपायों में हुई प्रगति की समीक्षा की गई है तथा इसमें बैंकिंग संरचना को मजबूत बनाने, वित्तीय बाजारों को विस्तृत एवं सघन बनाने तथा सभी को वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए उठाए जाने वाले कदमों को भी निर्धारित किया गया है। I. मौद्रिक नीतिगत ढांचा 18. मौद्रिक नीतिगत ढांचे में संशोधन करने के लिए उठाए गए कदमों को इसके साथ संलग्न मौद्रिक नीति रिपोर्ट में दर्शाया गया है। II. बैंकिंग संरचना 19. बैंकिंग पर्यवेक्षण से संबंधित बासेल समिति ने निवल स्थिर निधीयन अनुपात (एनएसएफआर) के विषय में अंतिम नियम अक्तूबर 2014 में जारी कर दिया है। रिज़र्व बैंक ने पहले ही जनवरी 2015 से चलनिधि कवरेज अनुपात (एलसीआर) को लागू करना प्रारंभ कर दिया है और रिज़र्व बैंक भारत स्थित बैंकों के लिए 1 जनवरी 2018 से एनएसएफआर को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। रिज़र्व बैंक द्वारा एनएसएफआर से संबंधित मसौदा दिशानिर्देश 15 मई 2015 को जारी करने का प्रस्ताव है। 20. प्रतिचक्रीय पूंजीगत बफर (सीसीसीबी) के संबंध में दिशानिर्देश 5 फरवरी 2015 को जारी किए गए। इन दिशानिर्देशों में कहा गया है कि जब कभी आवश्यक होगा तब सीसीसीबी को सक्रिय किया जाएगा और सामान्यत: इस निर्णय की घोषणा चार तिमाहियों की समय-सीमा के पहले की जाएगी। इस ढांचे के अंतर्गत जीडीपी की तुलना में ऋण के अनुपात को प्रमुख सूचक माना गया है जिसका प्रयोग तीन वर्षों की गतिशील अवधि से संबंधित वृद्धिशील ऋण-जमाराशि (सी-डी) अनुपात, औद्योगिक संभावना सर्वेक्षण (आईओएस) निर्धारण सूचकांक एवं ब्याज कवरेज अनुपात जैसे अन्य सहायक सूचकों के साथ में किया जा सकेगा। सीसीसीबी को सक्रिय करने की आवश्यकता का निर्धारण करने के लिए इन सूचकों की समीक्षा तथा आनुभविक जांच की गई। यह निष्कर्ष निकला कि इस समय की परिस्थितियों में सीसीसीबी को लागू किए जाने की आवश्यकता नहीं है। 21. जुलाई 2014 में बैंकों को (i) आधारभूत संरचना के उप-क्षेत्रों में दीर्घावधि परियोजनाओं, एवं (ii) वहनीय आवास के लिए ऋण देने संबंधी विशिष्ट विनियामकीय पूर्वक्रयाधिकारों में छूट सहित दीर्घावधि बांड (एलटीबी) जारी करने की अनुमति प्रदान की गई। हालांकि, वर्तमान में बैंकों के बीच इस तरह के बांडों को परस्पर धारित (क्रॉस होल्डिंग) की इजाजत नहीं है। समीक्षा करने पर यह निर्णय लिया गया है कि निम्नलिखित शर्तों के अधीन बैंकों को इस प्रकार से जारी किए गए बांडों में निवेश करने की अनुमति प्रदान की जाए :
इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश शीघ्र ही जारी किए जाएंगे। 22. मौद्रिक संचरण के लिए ऋण दरों का नीतिगत दर के प्रति संवेदनशील होना ही चाहिए। 1 जुलाई 2010 को आधारभूत दर का प्रारंभ होने के साथ ही बैंक अपनी वास्तविक ऋण एवं अग्रिम की दरों को आधारभूत दर के अनुसार निर्धारित कर सकते थे। वर्तमान में, बैंक अपनी आधारभूत दर की गणना के लिए अलग प्रणाली का अनुसरण कर रहे हैं जिनका आधार निधियों की लागत का औसत, निधियों की सीमांत लागत या निधियों की मिश्रित लागत (देयताएं) हैं। निधियों की सीमांत लागत पर आधारित आधारभूत दरों को नीतिगत दरों में परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए। मौद्रिक नीति के संचरण की दक्षता में वृद्धि करने के लिए रिज़र्व बैंक, बैंकों को उनकी आधारभूत दरों के निर्धारण के लिए निधियों की सीमांत लागत आधारित प्रणाली को समयबद्ध ढंग से अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा। विस्तृत दिशानिर्देश शीघ्र ही जारी किए जाएंगे। 23. भारतीय नियत आय मुद्रा बाजार और व्युत्पन्नी संघ (फिम्डा), भारतीय विदेश मुद्रा व्यापारी संघ (फेडाई) एवं भारतीय बैंक संघ (आईबीए) द्वारा संयुक्त रूप से प्रारंभ किए गए द फाइनेंसियल बेंचमार्क्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को स्वतंत्र बेंचमार्क प्रशासक के रूप में स्थापित किया गया है। यह प्रशासक मई 2015 के अंत तक कार्य प्रारंभ कर देगा। बाजार ब्याज दरों के विभिन्न सूचकों का इसके द्वारा प्रकाशन शुरू करने के बाद रिज़र्व बैंक उत्पादों के मूल्यन के लिए इन सूचकों को बाहरी बेंचमार्क की तरह प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करने की संभावनाएं तलाशेगा। 24. रिज़र्व बैंक, बैंकों के बोर्डों के विचार-विमर्श के लिए एक समग्र ‘समीक्षा का कैलेंडर’ जारी करता रहा है, जिसमें वर्षों के दौरान काफी बातें जोड़ी गई हैं। समीक्षाओं में खर्च किए गए समय से बैंकों के लिए उत्पाद बाजार रणनीति एवं जोखिम प्रबंध जैसे रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के लिए बोर्ड की गुंजाइश कम हो जाती है। भारत में बैंक के बोर्डों के अभिशासन की समीक्षा करने के लिए गठित समिति (अध्यक्ष : डॉ. पी. जे. नायक) ने अनुशंसा की है कि बैंकों के बोर्डों में विचार-विमर्श में सुधार लाने की आवश्यकता है तथा रणनीतिक मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इसलिए, समीक्षा के अनिवार्य मुद्दों के कैलेंडर को समाप्त करने और उसके बदले नायक समिति द्वारा निर्धारित किए गए सात महत्वपूर्ण विषयों, नामत: - कारोबारी रणनीति, वित्तीय रिपोर्टें एवं उनकी सत्यनिष्ठा, जोखिम, अनुपालन, उपभोक्ता संरक्षण, वित्तीय समावेशन एवं मानव संसाधन को शामिल करने तथा विचार-विमर्श की अन्य मदों की सूची एवं उनकी अवधि को निर्धारित करने का उत्तरदायित्व बैंकों के बोर्ड को सौंपने का प्रस्ताव किया गया है। 25. बैंकों के बोर्डों में पेशेवर नजरिये को लाने की आवश्यकता पर बहुत जोर नहीं दिया जा सकता। पेशेवर निदेशकों को आकर्षित करने एवं उनको बनाए रखने के लिए उनको समुचित पारितोषिक प्रदान किया जाना अनिवार्य है। सरकारी बैंक, इस संबंध में सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देंशों का पालन करते हैं। वर्तमान सांविधिक प्रावधानों के अनुसार निजी क्षेत्र के बैंक के अंश-कालिक अध्यक्ष की परिलब्धियां प्रत्येक बैंक के लिए विशेषरूप से अनुमोदित की जाती हैं। हालांकि, निजी क्षेत्र के बैंकों के गैर-कार्यपालक निदेशकों की परिलब्धियों के संबंध में कोई दिशानिर्देश नहीं है। इसलिए यह प्रस्तावित किया जाता है कि :
26. शहरी सहकारी बैंकों के कारोबार का विस्तार करने की संभावनाओं का विस्तार करने के उद्देश्य से वित्तीय रूप से सुदृढ़ और सुप्रबंधति (एफएसडब्लूएम) ऐसे अधिसूचि शहरी सहकारी बैंकों को क्रेडिट कार्ड जारी करने की अनुमति प्रदान की जाए, जो सीबीएस-समर्थित हों और जिनकी निवल मालियत ₹ 100 करोड़ की हो। इस संबंधि में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। 27. इसी प्रकार से, राज्य सहकारी बैंको को उनके कारोबार का विस्तार करने की अधिक स्वतंत्रता प्रदान करने और उनके ग्राहकों को प्रौद्योगिकी-समर्थित रसेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया है कि पात्रता संबंधी विशिष्ट शर्तों को पूरा करने पर राज्य सहकारी बैंकों को रिज़र्व बैंक की पूर्वानुमति के बिना बैंकों से बाहर एटीएम/मोबाइल एटीएम स्थापित करने की अनुमति प्रदान की जाए। इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। III. वित्तीय बाजार 28. रिज़र्व बैंक ने सरकारी प्रतिभूतियों एवं ब्याज दर व्युत्पन्नी बाजारों में चलनिधि बढ़ाने से संबंधित कार्य दल (अध्यक्ष : श्री आर. गांधी) की अनुशंसाओं के अनुसार सरकारी प्रतिभूतियों के बाजार में चलनिधि को प्रोत्साहित करने के लिए बहुत से कदम उठाया है। इनमें अन्य बातों के साथ ही साथ ये भी शामिल हैं, ए) एक समान मूल्य तथा विविध मूल्य फॉर्मेट –दोनों में सरकारी प्रतिभूतियों की नीलामी करना, बी) खजाना बिलों (टी-बिल) के संबंध में प्राथमिक नीलामियों के निपटान चक्र को टी+2 के स्थान पर टी +1 के आधार पर परिवर्तित करना, एवं सी) राज्य विकास ऋणों को पुन: जारी किया जाना। 29. चलनिधि को प्रोत्साहित करने के अनवरत उपायों के रूप में रिज़र्व बैंक, अर्द्ध-चलनिधि युक्त एवं चलनिधि रहित सरकारी प्रतिभूतियों में प्राथमिक डीलरों द्वारा बाजार निर्मित करने की योजना तैयार करेगा। योजना के विवरण तैयार किए जाएंगे और अगले तीन महीनों के अंदर बाजार के प्रतिभागियों से विचार-विमर्श करते हुए इसे लागू किया जाएगा। 30. सरकारी प्रतिभूति बाजार की प्रकृति मुख्यत: संस्थागत होने के बावजूद रिज़र्व बैंक ने खुदरा/व्यक्तिगत निवेशों को प्रोत्साहित करने के लिए गैर-प्रतिस्पर्धी बोली लगाने की योजना एवं तयशुदा लेनदेन प्रणाली-आर्डर मिलान (एडीएस-ओएम) की उपलब्धता प्रदान करने जैसे बहुत से कदम उठाया है। सरकारी प्रतिभूति बाजार में खुदरा और मिड-सेगमेंट निवेशकों की सहभागिता बढ़ाने के लिए गिल्ट खाता धारकों (जीएएच) को भी एनडीएस-ओएम (द्वितीय बाजार ट्रेडिंग मंच) और एनडीएस-नीलामी मंच (प्राथमिक बाजार मंच) के लिए वेब आधारित एक्सेस पहले ही दे रखी थी। तब से सरकारी प्रतिभूतियों की नीलामियां एक और अधिक सुदृढ़ सीबीएस मंच (ई-कुबेर) पर होने लगी हैं। तदनुसार,
31. कुछ अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं को कुछ शर्तों के अधीन विदेशी बाज़ारों में रुपया बांड जारी करने की अनुमति दी गई है। इन निर्गमों का स्वागत हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों की रुपया ऋण में रूचि एक स्वागत प्रगति है। इस परिप्रेक्ष्य में यह प्रस्ताव है कि भारत सरकार के साथ परामर्श के बाद अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा जारी ऐसे बांडों के दायरे में वृद्धि की जाए साथ ही पात्र भारतीय कॉर्पोरेट्स को विदेशी केंद्रों में उचित विनियामक ढांचे के साथ रुपया बांड जारी करके बाह्य वाणिज्यिक उधार बढ़ाने की अनुमति दी जाए। 32. विदेशी मुद्रा विनिमय प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा) के अधीन विदेशी मुद्रा व्युत्पन्न संविदाओं को अभिशासित करने वाले वर्तमान विनियामक ढांचे के अधीन एकल आधार पर प्रयोक्ताओं को विकल्प चुनने की अनुमति नहीं है । तथापि अंतिम उपयोगकर्ता बिल्कुल सादे यूरोपीय विकल्पों के एक साथ क्रय –विक्रय की विकल्प नीतियों में प्रवेश कर सकते हैं बशर्तें कि कोई निवल प्रीमियम प्राप्त न किया गया हो। विदेशी मुद्रा जोखिमों की सुरक्षा को प्रोत्साहित करने एवं मुद्रा विकल्प बाज़ार की तरलता बढ़ाने के उद्देश्य से यह प्रस्ताव है कि भारतीय निर्यातकों और आयातकों को शर्तों के अधीन वास्तविक संविदाकृत फॉरेक्स एक्सपोज़र के आधार पर रक्षित विकल्प प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाए। विस्तृत परिचालनात्मक अनुदेश अलग से जारी किए जाएंगे। IV वित्त तक पहुंच 33. रिज़र्व बैंक ने हाल ही में प्राथमिकता क्षेत्र दिशानिर्देशों पर दुबारा चर्चा करने के लिए आंतरिक कार्य दल का गठन किया है। कार्य दल ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है जोकि टिप्पणियों/सुझावों के लिए रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखी गई है। कार्य दल ने अन्य बातों के साथ-साथ लघु और सीमांत किसानों और सूक्ष्म उद्यमियों के लिए विश्ष्टि उप-लक्ष्यों की सिफ़ारिश की है और प्राथमिकता क्षेत्र उधारों की सीमा में कुछ विशिष्ट प्रकार की सामाजिक संरचनाओं को शामिल किया है। कार्य दल ने यह भी सिफ़ारिश की है कि प्रणाली के सहभागियों के बीच घाटे/अधिशेष के प्रबंधन के लिए अन्य लिखत के रूप में ट्रेडिंग-योग्य प्राथमिकता क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र की शुरुआत की जाए। रिज़र्व बैंक प्राप्त फिडबैक के आधार पर सिफारिशों की समीक्षा करेगा और शीघ्र ही इस संबंध में दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। 34. सूक्ष्म–वित्त संस्था (एमएफआई) क्षेत्र में सुधार और लघु कारोबारों और कम आयवाले परिवारों के लिए व्यापक वित्तीय सेवाओं पर समिति (अध्यक्ष: डॉ. नचिकेत मोर) की सिफ़ारिशों पर विचार करते हुए यह जरूरी है कि उधारकर्ताओं की कुल ऋणग्रस्तता, पात्र ग्रामीण और अर्ध-शहरी परिवारों की वार्षिक आय की सीमा की समीक्षा करके उसमें वृद्धि की जाए और ऋण राशि को निम्नानुसार प्रथम और बाद के चक्रों में वितरित किया जाए जो इस प्रकार हैं : i) उधारकर्ता की कुल ऋणग्रस्तता शैक्षणिक/चिकित्सा व्यय छोड़कर, ₹ 1,00,000 (₹ 50,000 की वर्तमान सीमा से बढ़कर) से अधिक न हो। ii) उधारकर्ता को वितरीत ऋण के मामले में ग्रामीण परिवारों की वार्षिक आय ₹ 1,00,000 (₹ 60,000 की वर्तमान सीमा से बढ़कर) से और अर्ध-शहरी परिवारों की वार्षिक आय ₹ 1,60,000 (₹1,20,000 की वर्तमान सीमा से बढ़कर) से अधिक न हो। iii) ऋण वितरण की राशि प्रथम साईकल में ₹ 60,000 (₹ 35000 की वर्तमान सीमा से बढ़कर) से और बाद की साईकलों में ₹ 1,00,000 (₹ 50,000 की वर्तमान सीमा से बढ़कर) से अधिक न हो। 35. मूलभूत सुविधा क्षेत्र में समय पर निधि प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय किए गए हैं । उनमें से एक था गैर – बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के स्वतंत्र संवर्ग का निर्माण करना जिसे एनबीएफसी - मूलभूत सुविधा ऋण निधि (एनबीएफसी-आईडीएफ) कहा जाएगा। इन एनबीएफसीज को त्रिपक्षीय करार के अंतर्गत अन्यों के बीच परियोजना प्राधिकारी को शामिल करते हुए सार्वजनिक निजी सहभागिता (पीपीपी) खंड के अंतर्गत केवल अंतरण वित्तपोषण की आपूर्ति की अनुमति दी गई थी। इन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को कुछ विनियामक रियायतें भी दी गई थी। परियोजनाओं, जिन्हें ये उधार देते थे, के स्वरूप में वृद्धि के उद्देश्य से प्रस्ताव है कि एनबीएफसी-आईडीएफ को कुछ शर्तों के अधीन पीपीपी खंड के अंतर्गत जिन परियोजनाओं ने परिचालन का एक वर्ष पूर्ण कर लिया है, के मामले में त्रिपक्षीय करार के अभाव में और गैर-पीपीपी खंड में अंतरण वित्तपोषण की आपूर्ति की अनुमति दी जाए। विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। 36. भविष्य की ओर देखते हुए रिज़र्व बैंक की विकासात्मक और विनियामक नीतियां मौद्रिक और तरलता प्रबंधन की प्रभावशीलता में सुधार, वित्तीय समावेशन में वृद्धि और देश की विशिष्ट जरूरतों के अनुसार सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रणालियों को अपनाते हुए बैंकिंग क्षेत्र सुधारों में निरंतरता के लिए पांच-स्तंभीय दृष्टिकोण द्वारा दिशानिर्देशित की जाती रहेगी। 37. दूसरा द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य 2 जून 2015 को, तीसरा द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य 4 अगस्त 2015 को, चौथा द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य 29 सितंबर 2015 को, पांचवा द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य 1 दिसंबर 2015 को और छठां द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य 2 फरवरी 2016 को घोषित किया जाएगा। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2014-2015/2101 |