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भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर डॉ. वाई. वेणुगोपाल रेड्डी द्वारा वर्ष 2005-06 के लिए वार्षिक मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा पर वक्तव्य

26 जुलाई 2005

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर डॉ. वाई. वेणुगोपाल रेड्डी द्वारा वर्ष 2005-06 के लिए वार्षिक मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा पर वक्तव्य

वर्ष 2005-06 के लिए दिनांक 28 अप्रैल 2005 को प्रस्तुत वार्षिक नीति वक्तव्य में मौद्रिक नीति की तिमाही समीक्षाओं का प्रस्ताव किया गया था ताकि विकासात्मक परिस्थितियों की मांग के अनुसार विशिष्ट उपाय करने के लचीलेपन को बरक़रार रखते हुए और शीघ्र आधार पर बाजारों के साथ संरचनात्मक संप्रेषण का अवसर दिया जा सके। तदनुसार, वर्ष 2005-06 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक वक्तव्य की यह पहली तिमाही समीक्षा जारी की जा रही है। इस समीक्षा के दो भाग है : घ्. वर्ष 2005-06 में मैक्रोइकॉनॉमिक और मौद्रिक गतिविधियों की पहली तिमाही समीक्षा ; और घ्घ्. वर्ष 2005-06 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति का दफ्ष्टिकोण। वर्ष 2005-06 की पहली तिमाही के लिए मैक्रोइकॉनॉमिक और मौद्रिक गतिविधियों की विश्लेषणात्मक समीक्षा, इस समीक्षा के अनुपूरक के रूप में एक दिन पहले जारी की गयी थी जिसमें आसान चार्टों और सारणियों की सहायता से आवश्यक जानकारी और विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।

घ्. वर्ष 2005-06 में मैक्रोइकॉनॉमिक और

मौद्रिक गतिविधियों की पहली तिमाही समीक्षा

देशी गतिविधियां

  1. वार्षिक नीति वक्तव्य में वर्ष 2005-06 के लिए इस पूर्वानुमान के आधार पर वास्तविक सकल देशी उत्पाद का अनुमान करीब 7.0 प्रतिशत लगाया गया था कि मानसून सामान्य रहेगा और उद्योग तथा सेवा क्षेत्र तेल की कीमतों के प्रभाव को अपने में समेटते हुए अपनी वफ्द्धि का आवेग बरक़रार रखेंगे। यद्यपि इस वर्ष मानसून की शुरूआत देर से हुई लेकिन जून के अंत में इसमेंतेजी आ गई और 36 में से 29 मौसमी उप-मंडलों में अधिक या सामान्य वर्षां पायी गयी और 20 जुलाई 2005 की स्थिति के अनुसार कुल मौसमी वर्षां सामान्य थी।
  2. अप्रैल-मई 2005 के दौरान विनिर्माण उत्पादन में 10.5 प्रतिशत वफ्द्धि की सहायता से औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक 9.6 प्रतिशत बढ़ा। जहां मूल वस्तुओं, पूंजीगत माल और उपभोक्ता वस्तुओं की उत्पादन वफ्द्धि उछाल भरी रही वहीं सहायक सामग्री उत्पादन की वफ्द्धि धीमी पायी गयी। पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन 18.9 प्रतिशत बढ़ गया और उसने हाल के वर्षों में अपनी सर्वोच्च वफ्द्धि रिकाड़ की।
  3. भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र में सामान्य रूप से सतत अच्छे कार्यनिष्पादन और विनिर्माण उत्पादन में विशेष रूप से पायी गयी अच्छी वफ्द्धि का समग्र कारोबारी स्थिति के सकारात्मक मूल्यांकन और कारोबारी विश्वास के बेहतर स्तर में प्रतिबिंबिन हुआ है। प्रमुख कारोबारी संकेतकों जैसे उत्पादन के लिए कॉर्पोरेट प्रत्याशाएं, आड़र बुक , क्षमता उपयोग, कार्यशील पूंजी वित्तीय आवश्यकताओं, जुलाई - सितम्बर 2005 के लिए निर्यातों और आयातों के दृष्टिकोण में सुधार हुआ है।
  4. वर्ष 2005-06 के दौरान अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की जमाराशियां 8 जुलाई 2005 तक 6.6 प्रतिशत (72,792 करोड़ रूपये) बढ़ीं, जो पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में 5.00 प्रतिशत (41,768 करोड़ रुपये) थीं। खाद्य ऋण में 7,496 करोड़ रुपये की वफ्द्धि की तुलना में 3,696 करोड़ रूपये की वफ्द्धि हुई। खाद्येतर ऋण में 4.3 प्रतिशत (34,272 करोड़ रुपये) की तुलना में 6.5 प्रतिशत (69,096 करोड़ रुपये) की वफ्द्धि हुई। वफ्द्धिशील खाद्येतर ऋण-जमा अनुपात 54.7 प्रतिशत की तुलना में 66.8 प्रतिशत पर उच्चतर रहा।

  1. वर्ष 2004-05 के दौरान वफ्षि और उद्योग को ऋण में क्रमश: 35 और 17 प्रतिशत की वफ्द्धि हुई है जबकि वफ्षेतर और उद्योगेतर क्षेत्राें को ऋण प्रवाह 36 प्रतिशत पर उछाल भरा रहा। वर्ष 2005-06 के पहले दो महीने के लिए उपलब्ध असमेकित आंकड़े दर्शाते हैं कि उद्योग, आवास निर्माण और स्थावर संपदा को क्रेडिट में लगातार सफ्दृढ़ वफ्द्धि दर्ज की गई। औद्योगिक ऋण संबंधी जून 2005 तक की नवीनतम जानकारी से यह पता चलता है कि धातु और धातुनिर्मित उत्पादों, इंजिनियरिंग के सामान, उर्जा और सड़क तथा पत्तन क्षेत्रों को दिये जानेवाले क्रेडिट में उल्लेखनीय वफ्द्धि हुई है।
  2. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी निगमित क्षेत्र के बांडों/डिबेंचरों/शेयरों और वाणिज्यिक पत्र, आदि में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के निवेशों में 8 जुलाई 2005 तक 3.4 प्रतिशत (3,156 करोड़ रुपये) की गिरावट आई है, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में यह गिरावट 2.8 प्रतिशत (2,514 करोड़ रुपए) थी। इस गिरावट के बावजूद वाणिज्य क्षेत्र को अनुसूचित वाणिज्य बैंकों से संसाधनो का कुल प्रवाह 3.6 प्रतिशत (31,758 करोड़ रुपए) की तुलना में 5.7 प्रतिशत (65,940 करोड़ रुपए) तक बढ़ा। संसाधन प्रवाह में वर्ष दर वर्ष वफ्द्धि भी एक वर्ष पहले की 20.1 प्रतिशत की वफ्द्धि की तुलना में ,परिवर्तन को घटाकर, 27.4 प्रतिशत पर ऊंची थी।
  3. चालू वित्त वर्ष में 8 जुलाई 2005 तक मुद्रा आपूर्ति (एम3 ) 5.4 प्रतिशत (1,21,399 करोड़ रुपए) तक बढ़ी जबकि पिछले वर्ष की तत्संबंधित अवधि में यह 3.9 प्रतिशत (77,514 करोड़ रुपए) थी। वार्षिक आधार पर (एम3 ) में वफ्द्धि वार्षिक नीति वक्तव्य में वर्ष के लिए अनुमानित 14.5 प्रतिशत की तुलना में परिवर्तन को घटॉकर 13.9 प्रतिशत से कम थी। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की सकल जमा राशियां पिछले वर्ष की तत्संबंधित अवधि के 4.2 प्रतिशत (62,621 करोड़ रुपए) की तुलना में 6.1 प्रतिशत (1,03,460 करोड़ रुपए) तक बढ़ीं। वार्षिक आधार पर, सकल जमा राशियों में यह वफ्द्धि,परिवर्तन को घटाकर, 14.9 प्रतिशत थी।
  4. चालू वित्तीय वर्ष में 15 जुलाई 2005 तक प्रारक्षित मुद्रा 3.7 प्रतिशत (17,932 करोड़ रुपए) तक बढ़ी जबकि पिछले वर्ष की तत्संबंधित अवधि में इसमें 1.6 प्रतिशत (7,059 करोड़ रुपए) की गिरावट थी। चलन में करेंसी 5.2 प्रतिशत (19,200 करोड़ रुपए) तक बढ़ी जबकि पिछले वर्ष तत्संबंधित अवधि में यह वफ्द्धि 4.3 प्रतिशत (14,126 करोड़ रुपए) थी। भारतीय रिज़र्व बैंक में बैंकरों की जमा राशियों में पिछले वर्ष के 19.7 प्रतिशत (20,554 करोड़ रुपए) की गिरावट की तुलना में 0.1 प्रतिशत (171 करोड़ रुपए) की गिरावट आई। जहाँ तक प्रारक्षित मुद्रा के स्रोतों की बात है, केन्द्र सरकार को निवल भारतीय रिज़र्व बैंक ऋण 25,530 करोड़ रुपए बढ़ा जबकि पिछले वर्ष की तत्संबंधित अवधि में इसमें 33,227 करोड़ रुपए की गिरावट आई थी। चलनिधि समायोजन सुविधा के लिए समायोजित किए गए केन्द्र सरकार को निवल भारतीय रिजॅर्व बैंक ऋण ने 13,565 करोड़ रुपए की निम्न वफ्द्धि दर्शायी। भारतीय रिज़र्व बैंक की निवल विदेशी मुद्रा आस्तियों (एन एफ ई ए) में पिछले वर्ष की तत्संबंधित अवधि के दौरान 68,583 करोड़ रुपए की वफ्द्धि की तुलना में 20,941 करोड़ रुपए की गिरावट आई। तथापि, पुर्नमूल्यन के लिए समायोजित की गईं निवल विदेशी मुद्रा आस्तियां (एन एफ ई ए) पिछले वर्ष की तत्संबंधित अवधि में हुई 34,567 करोड़ रुपए की वफ्द्धि की तुलना में 5,793 करोड़ रुपए तक बढ़ीं। विदेशी मुद्रा अंर्तवाहों के असर को निष्प्रभावी बनाने के लिए (स्टरलाइजेशन) बाजार स्थिरीकरण योजना के अंतर्गत शेष राशियां 15 जुलाई 2005 को 70,258 करोड़ रुपए थीं। करेंसी से निवल विदेशी मुद्रा आस्तियों (एन एफ ई ए) का अनुपात मार्च के 166.2 प्रतिशत से गिरकर 15 जुलाई 2005 को 152.6 प्रतिशत पर आ गया। प्रारक्षित मुद्रा में वर्ष दर वर्ष वफ्द्धि एक वर्ष पहले की 14.4 प्रतिशत की तुलना में 15 जुलाई 2005 को 18.1 प्रतिशत रहकर उच्चतर थी।

10. विश्व बाजार में तेल के मूल्यों और उसकी घरेलू खपत, दोनों मामलों में बढ़ती अनिश्चितताओं के तहत वार्षिक नीति वक्तव्य में वर्ष 2005-06 के लिए बिंदु-दर-बिंदु वार्षिक मुद्रास्फीति दर का अनुमान 5.0 से 5.5 की सीमा में लगाया गया था। थोक मूल्य सूचकांक में घटबढ़ के आधार पर मापी गई बिंदु-दर-बिंदु वार्षिक मुद्रास्फीति मार्च की समाप्ति के 5.1 प्रतिशत के स्तर से बढ़कर 23 अप्रैल को 6.0 प्रतिशत हो गई लेकिन इसके बाद गिरकर 9 जुलाई 2005 को यह 4.1 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई। असमुच्चयित स्तर पर प्राथमिक वस्तुओं, "ईंधन, विद्युत, प्रकाश और लुब्रिकेन्ट्स" के उप समूह और विनिर्मित उत्पादों के थोक मूल्य सूचकांक में क्रमश: 0.9 प्रतिशत, 10.5 प्रतिशत और 3.0 प्रतिशत की वार्षिक वफ्द्धि दर्ज की गई जबकि एक वर्ष पहले यह वफ्द्धि क्रमश: 4.5 प्रतिशत, 10.4 प्रतिशत और 7.6 प्रतिशत थी। "ईंधन, ऊर्जा, प्रकाश और लुब्रिकेन्ट्स" उपसमूह को छोड़कर वार्षिक मुद्रास्फीति एक वर्ष पहले के 5.3 की प्रतिशत की तुलना में 1.9 प्रतिशत रहकर न्यून रही।

11. आपूर्ति संकट के आघात के प्रभाव को अलग-थलग करने के लिए थोक मूल्य सूचकांक के प्रासांगिक विश्लेषण से पता चलता है कि चार वस्तुओं अर्थात् लौह अयस्क, लोहा और स्टील, खनिज तेल तथा कोयला खनन ,जिनका थोक मूल्य सूचकांक में सम्मिलित भारांक 12.6 प्रतिशत है, को छोड़कर थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति दर बिंदु दर बिंदु आधार पर 9 जुलाई, 2005 को 2.2 प्रतिशत बैठती है जबकि एक वर्ष पूर्व यह 3.5 प्रतिशत थी।

12. औद्योगिक कामगारों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में घटबढ़ के आधार पर मापी गई वार्षिक मुद्रास्फीति बिंदु-दर-बिंदु आधार पर मई 2005 में 3.7 प्रतिशत थी जोकि एक वर्ष पहले 2.8 प्रतिशत थी।

13. वर्ष 2005-06 के दौरान अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में तेल के मूल्य अभी तक लगातार ऊंचे और अस्थिर बने हुए हैं। अप्रैल-जुलाई 2005 के दौरान कच्चे तेल की प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय किस्मों (ब्रेंट, डब्ल्यूटीआई और दुबई फतेह) का लगभग 52.1 अमेरिकी डालर प्रति बैरल औसत मूल्य जनवरी-मार्च 2005 के मूल्य की तुलना में 12.9 प्रतिशत और पिछले वर्ष की तद्नुरूपी अवधि के दौरान रहे मूल्य की तुलना में 45.1 प्रतिशत अधिक था। 20 जून 2005 से लागू नवीनतम मूल्यवफ्द्धि से चार मेट्रो शहरों में पेट्रोल और डीज़ल के औसत घरेलू मूल्य में मार्च 2005 की समाप्ति पर प्रचलित मूल्यों की तुलना में 6.2 प्रतिशत और एक वर्ष पहले की तुलना में 22.4 प्रतिशत की वफ्द्धि हुई है। कच्चे तेल के मूल्यों का प्रभाव सबसे महत्वपूर्ण कारक बना रहा जिसने घरेलू मुद्रास्फीति को प्रभावित किया।

14. संघीय बजट 2005-06 में केन्द्रीय सरकार की शुद्ध और सकल बाजार उधारियां क्रमश: 1,10,291 करोड़ रुपये और 1,78,467 करोड़ रुपये पर अनुमानित थी। 23 जुलाई 2005 तक केन्द्रीय सरकार ने 44,029 करोड़ रुपये (बजटीय राशि का 39.9 प्रतिशत) की शुद्ध बाजार उधारियां और 66,312 करोड़ रुपये (बजटीय राशि का 37.2 प्रतिशत) की सकल बाजार उधारियां पूरी कीं। दिनांकित प्रतिभूतियों के जरिए सरकारी उधारियों पर भारित औसत प्रतिफल वर्ष 2004-05 के 6.11 प्रतिशत से बढ़कर वर्तमान वर्ष के दौरान अब तक 7.24 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2005-06 के दौरान 23 जुलाई 2005 तक राज्य सरकारी उधारियां 3970 करोड़ रुपये (शुद्ध) और 10,245 करोड़ रुपये (सकल) थी।

15. सामान्य बाजार उधारियों के अलावा केन्द्रीय सरकार ने वर्ष 2005-06 के दौरान अब तक (23 जुलाई तक) स्टेरिलाइजेशन के प्रयोजन हेतु एमएसएस के अंतर्गत 6355 करोड़ रुपये (अंकित मूल्य) प्राप्त किए। समग्र रूप से वर्ष 2005-06 के दौरान अब तक सरकारी प्रतिभूतियों (केन्द्रीय, राज्य और एमएसएस) के माध्यम से प्राप्त शुद्ध धनराशि अंकित मूल्य पर 54, 354 करोड़ रुपये रही जबकि पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान यह राशि 70,307 करोड़ रुपये थी।

16. वर्ष 2005-06 के दौरान 8 जुलाई 2005 तक सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के निवेश में 972 करोड़ रुपये की गिरावट रही जबकि पिछले वर्ष की तदनुरुपी अवधि के दौरान इसमें 52,224 करोड़ रुपये की वफ्द्धि हुई थी। बैंकिंग सिस्टम का 8 जुलाई 2005 को प्रभावी सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) निवेश गिरकर शुद्ध मांग और समय देयताओं का 36.3 प्रतिशत हो गया जबकि एक वर्ष पहले यह 42.3 प्रतिशत था। लेकिन यह 25 प्रतिशत के न्यूनतम एसएलआर के स्तर से अधिक बना रहा।

17. अप्रैल-मई 2005 के दौरान केन्द्रीय सरकार का राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा क्रमश: 44,154 करोड़ रुपये और 47,603 करोड़ रुपये रहा जो कि वर्ष 2005-06 के बजट अनुमान का क्रमश: 46.3 प्रतिशत और 31.5 प्रतिशत है जबकि पिछले वर्ष की तदनुरुपी अवधि में यह क्रमश: 57.5 प्रतिशत और 28.4 प्रतिशत था।

18. चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रिवर्स रेपो वॉल्यूम मार्च 2005 के 29,809 करोड़ रुपये के औसत से गिरकर जुलाई 2005 (22 जुलाई तक) में 9,363 करोड़ रुपये के औसत पर पहुंच गया। इसके अलावा, बाजार स्थिरीकरण योजना (एम एस एस) के जरिए चलनिधि में कम मात्रा में हो पाई। परिणामस्वरूप, वर्तमान वर्ष के दौरान 22 जुलाई 2005 तक चलनिधि में क्रमिक रूप से लगभग 14000 करोड़ रुपये की वफ्द्धि हुई। वर्ष के दौरान अधिशेष चलनिधि में कुछ कमी होने के बावजूद चलनिधि की स्थिति (एम एस एस, एल ए एफ और सरकारी नकद शेष) लगभग 1,00,000 करोड़ रुपये पर अधिक बनी रही।

19. वर्ष 2005-06 के दौरान अब तक वित्तीय बाजार स्थिर रहे। हालांकि ब्याज दरों में कुछ वफ्द्धि उन्मुख हलचल दिखाई दी। मांग मुद्रा दर मार्च के 4.72 प्रतिशत के औसत से बढ़कर 22 जुलाई 2005 को 5.00 प्रतिशत रही। बाजार रेपो दर 4.36 प्रतिशत के औसत से बढ़कर 4.90 प्रतिशत हो गई तथा इसी अवधि में संपार्श्विक उधार लेने एवं उधार देने के परिचालन संबंधी दर (सीबीएलओ दर) 4.09 प्रतिशत से बढ़कर 4.93 प्रतिशत हो गई।

20. 91 दिवसीय और 364 दिवसीय खज़ाना बिल की दरें मार्च की समाप्ति के क्रमश: 5.32 प्रतिशत और 5.66 प्रतिशत के स्तर से बढ़कर 20 जुलाई 2005 को क्रमश: 5.49 प्रतिशत और 5.89 प्रतिशत हो गई। 182 दिवसीय खज़ाना बिलों का प्रतिफल 6 अप्रैल के 5.44 प्रतिशत के स्तर से बढ़कर जुलाई 13, 2005 को 5.67 प्रतिशत हो गया। सरकारी प्रतिभूतियों के गौण (सेकण्डरी) बाजार में एक वर्षीय अवशिष्ट अवधि वाली प्रतिभूतियों पर प्रतिफल मार्च 2005 की समाप्ति के 5.51 प्रतिशत के स्तर से बढ़कर 22 जुलाई 2005 को 5.85 प्रतिशत हो गया जबकि इसी अवधि के दौरान 10 वर्षीय एवं 20 वर्षीय अवशिष्ट अवधियों वाली सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिफल 6.65 प्रतिशत और 6.99 प्रतिशत से बढ़कर क्रमश: 7.16 प्रतिशत और 7.70 प्रतिशत हो गया। वफ्पया यह नोट किया जाए कि सरकारी प्रतिभूतियों के बाजार में दीर्घकालीन प्रतिफल अप्रैल की समाप्ति और मई 2005 के शुरू होने के समय सापेक्ष रूप से अधिक स्तर पर रहा। उदाहरण के लिए, 10 वर्षीय और 20 वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों का प्रतिफल क्रमश: 7.35 प्रतिशत और 7.77 प्रतिशत था। मार्च की समाप्ति से 22 जुलाई 2005 तक की अवधि के दौरान दीर्घकालीन ब्याज दरों में सापेक्ष रूप से अधिक वफ्द्धि होने के कारण प्रतिफल वक्र (कर्व) में गिरावट रही। जहां 1 वर्षीय और 10 वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों के बीच प्रतिफल अंतर 114 आधार बिंदु से बढ़कर 131 आधार बिंदु हो गया वहीं 1 वर्षीय और 20 वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों के बीच यह अतर 148 आधार बिंदु से बढ़कर 185 आधार बिंदु हो गया। तथापि, 5 वर्षीय अवधि के "एएए" रेटिंग वाले कार्पोरेट बांड्स और इसी अवधि वाली सरकारी प्रतिभूतियों के बीच प्रतिफल अंतर मार्च की समाप्ति के 76 आधार बिंदु से गिरकर 22 जुलाई 2005 को 30 आधार बिंदु हो गया। वाणिज्यिक पत्र (सीपी) पर भारित औसत बट्टा दर (डब्ल्यूएडीआर) मार्च की समाप्ति के 5.84 प्रतिशत से बढ़कर 15 जुलाई 2005 तक 5.93 प्रतिशत हो गई।

21. सरकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा 1 वर्ष से अधिक अवधि की जमाओं पर प्रदान की जा रही ब्याज दर मार्च में 4.75 से 7.00 प्रतिशत की रेंज में और जून 2005 में 5.25 से 6.50 प्रतिशत की रेंज में रही। मार्च और जून 2005 के बीच सरकारी क्षेत्र के, निजी क्षेत्र के और विदेशी बैंकों की बेंचमार्क मूल उधार दरें अपरिवर्तित रहीं और ये दरें क्रमश: 10.25 से 11.25 प्रतिशत, 11.00 से 13.50 प्रतिशत और 10.00 से 14.50 प्रतिशत की रेंज में रहीं। सरकारी क्षेत्र के बैंकों की मांग और आवधिक ऋणों पर प्रतिनिधि (माध्य) उधार दरें (जिन पर अधिकांश कारोबार किया जाता है) मार्च में क्रमश: 9.00 - 12.50 प्रतिशत और 8.35 - 12.00 प्रतिशत के स्तर से जून 2005 तक क्रमश: 8.00 - 12.15 प्रतिशत और 8.15 - 11.90 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई।

22. जून 2005 में बीएसई सेंसेक्स के 7000 का आंकड़ा पार करने के साथ इक्विटी बाजार में तेजी बनी रही। सेंसेक्स जून 2004 की समाप्ति के 4795 के स्तर से मार्च 2005 की समाप्ति पर 6493 के स्तर और 25 जुलाई 2005 को यह 7506 के स्तर पर पहुंच गया।

बाहरी क्षेत्र की गतिविधियां

23. तीन वर्षों (2001 से 2004) तक निरंतर अधिशेष स्थिति में रहने के बाद वर्ष 2004-05 के दौरान भुगतान शेष के चालू खाता घाटे में रहा। चालू खाते के संयत घाटे के बावजूद, वर्ष 2003-04 के 10.6 बिलियन अमेरिकी डालर की अधिशेष राशि और 2004-05 के 6.4 बिलियन अमेरिकी डालर का घाटा दोनों के रूप में 17.0 बिलियन अमेरिकी डालर बाहरी प्रवाह हुआ। इसका मुख्य कारण तेल शेष (6.0 बिलियन अमेरिकी डालर) और गैर-तेल व्यापार शेष (7.4 बिलियन अमेरिकी डालर) दोनों में गिरावट आना है।

24. अप्रैल - जून 2005 के दौरान अमेरिकी डालर के संदर्भ में भारत के निर्यातों में 19.5 प्रतिशत की वफ्द्धि हुई जबकि पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 34.0 प्रतिशत की वफ्द्धि हुई थी। तथापि, आयातों में तीव्र गति से 37.8 प्रतिशत वफ्द्धि हुई जबकि पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 36.6 प्रतिशत वफ्द्धि हुई थी। तेल आयातों में 33.1 प्रतिशत और गैर-तेल आयातों में 39.9 प्रतिशत की वफ्द्धि हुई। परिणामस्वरूप, अप्रैल-जून 2005 के दौरान समग्र व्यापार घाटा बढ़कर 11.5 बिलियन अमेरिकी डालर हो गया जबकि पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान यह 6.0 बिलियन अमेरिकी डालर था।

25. इस वर्ष व्यापार घाटे का अधिक होना तेल का अधिक आयात और गैर-तेल आयातों, विशेष रूप से पूंजीगत सामनों के आयात, में वफ्द्धि दर्शाता है। अलग-अलग आंकड़े अप्रैल 2005 में गैर-तेल आयातों (स्वर्ण और चांदी को छोड़कर) में 62.0 प्रतिशत की वफ्द्धि का संकेत करते हैं जबकि अप्रैल 2004 में यह 8.1 प्रतिशत थी। जहां एक ओर कच्चा लोहा और खनिज, इंजीनियरिंग सामान, केमिकल्स और टेक्सटाइल्स के निर्यातों में तेजी बनी रही, वहीं दूसरी ओर वफ्षि और सम्बद्ध उत्पादों तथा चमड़े के निर्यातों में गिरावट रही।

26. रुपये में दो-तरफा हलचल के साथ अप्रैल-जुलाई 2005 के दौरान भारतीय विदेशी मुद्रा बाजार में उपयुक्त स्थितियां दर्ज की गई। 25 जुलाई 2005 तक रुपये के मूल्य में अमेरिकी डालर के प्रति लगभग 0.6 प्रतिशत, यूरो के प्रति 7.9 प्रतिशत, पाउंड स्टर्लिंग के प्रति 8.6 प्रतिशत और जापानी येन के प्रति 4.8 प्रतिशत वफ्द्धि हुई। भारत के विदेशी-मुद्रा भंडार, जो मार्च 2005 की समाप्ति पर 141.5 बिलियन अमेरिकी डालर था, में 4.0 बिलियन अमेरिकी डालर की गिरावट आई और यह 22 जुलाई 2005 को 137.5 बिलियन अमेरिकी डालर के स्तर पर था।

वैश्विक अर्थव्यवस्था में गतिविधियां

27. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में धीमी गति से वफ्द्धि का अनुमान लगाया है और इसके 2004 के 5.1 प्रतिशत की तुलना में 2005 में 4.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है। वर्ष 2005 की पहली तिमाही में अपेक्षाओं से आगे बढ़ जाने के बाद, हाल ही के आंकड़े संकेत करते हैं कि 2005 की दूसरी तिमाही में वैश्विक वफ्द्धि की गति धीमी रही है जो आंशिक रूप से तेल मूल्यों में वफ्द्धि दर्शाती है। वफ्द्धि में बिखराव सभी क्षेत्रों में भी बढ़ रहा है। वर्तमान वर्ष में, अमेरिका, चीन और अधिकांश उभरते बाजारों एवं विकासशील देशों में वफ्द्धि सुदृढ़ रही लेकिन यूरो क्षेत्र (जोन) में कम वफ्द्धि दर्ज की गई है।

28. वर्ष 2005 की दूसरी तिमाही के दौरान अमेरिका में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में वफ्द्धि हुई है लेकिन यूरो जोन, इंग्लैण्ड, जापान और अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह स्थिर रही। उभरते अन्य प्रमुख बाजारों और लेटिन अमेरिकी देशों सहित विकासशील देशों में भी मुद्रास्फीति में इस तिमाही के दौरान कुछ कमी देखी गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि धातुओं और खनिजों के वैश्विक मूल्यों के स्थिर रहने से मुद्रास्फीति पर संयत प्रभाव पड़ा है। तेल झटकों के पूर्व अनुभव के विपरीत तेल मूल्यों में वफ्द्धि ने अभी तक सामान्य रूप से मुद्रास्फीति पर दबाव को बढ़ाया नहीं है।

29. वैश्विक तेल अर्थव्यवथा का वर्णन ऊंचे मूल्यों और काल्पनिक गतिविधियों द्वारा उत्पन्न गहन अस्थिरता द्वारा किया जाता रहा। भावी संभावनाएं बहुत ही अनिश्चित बनी रही जिनमें मालसूचियों, अप्रयुक्त क्षमताओं और नए निवेशों की निर्माण-पूर्व अवधियों को देखते हुए निकट भविष्य में आपूर्तियों के बढ़ने की सीमित संभावना है। ऐसा प्रतीत होता है कि भू-राजनैतिक घटक नाजुक बने रहेंगे। तेजी से बढ़ते चीन और भारत, जहां ऊर्जा-मितव्ययिता कम है, तथा अमेरिका में ऊर्जा के बड़े स्तर पर निरंतर उपभोग को देखते हुए मांग की संभावनाएं सुदृढ़ रहीं। हालांकि वैश्विक अर्थव्यवस्था पहले से बेहतर तरीके से इन अनिश्चितताओं से निपट रही है, अधिशेषों के प्रबंधन के मामले में तेल निर्यातक देशों के लिए सम्बद्ध समस्याएं जटिल हो रही हैं और मूल्यों पर प्रभाव, उत्पादन, प्रतिस्पर्धात्मता एवं वास्तव में प्रयोज्य आय के मामले में भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए समस्याएं कठिन हैं।

30. वैश्विक वफ्द्धि के लिए जोखिम भुगतान शेष के चालू खाते में असंतुलन, राजकोषीय असंतुलन, हेज़ फंड गतिविधि और कुछेक विकसित अर्थव्यवस्थाओं में अत्यधिक प्रभाव के कारण उत्पन्न होते हैं। चूंकि हाल ही में स्थावर-सम्पदा बाजार के मूल्यांकन में कम ब्याज वाले उपभोक्ता ऋण के कारण वफ्द्धि हुई है इसलिए आस्ति बाजारों में संभावित घटनाओं पर नजर रखे जाने की और भी महत्ती आवश्यकता है। हाल ही में अमेरिकी डालर में की गई मूल्य-वफ्द्धि से समायोजन प्रक्रिया में और विलम्ब हो सकता है तथा इससे भविष्य में तीव्र गति से समायोजन करने की आवश्यकता बढ़ सकती है। महत्वपूर्ण यह है कि पिछले सप्ताह चीन ने अमेरिकी डालर के प्रति आरएमबी में लगभग 2 प्रतिशत की आरंभिक मूल्य-वफ्द्धि के साथ कई विदेशी मुद्राओं से जुड़े प्रबंधित फलोटिंग विदेशी विनिमय दर व्यवस्था अपनाई है।

31. चीन द्वारा विनिमय दर नीति में घोषित आमूल-चूल परिवर्तन से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण परिणाम पड़ना अवश्यम्भावी है। पुनर्मूल्यन की सीमा को बहुत उपयुक्त बताया गया है और नीति की रुपरेखा में स्पष्ट रूप से विनिमय दर प्रबंधन का प्रावधान किया गया है लेकिन प्रबंधन का स्वरूप, सीमा और इसकी तीव्रता का अभी खुलासा किया जाना है और हर हाल में यह क्रमिक रूप से विकसित होगी। हालांकि परिवर्तन की दिशा स्पष्ट है। लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इन परिवर्तनों के प्रभाव को निर्धारित करने के लिए प्राधिकारियों को इनकी गति, उपाय और इससे जुड़े प्रशासनिक उपायों पर नज़र रखनी होगी। विशेष रूप से महत्वपूर्ण होगा - नई विदेशी विनिमय नीति के प्रति घरेलू वित्तीय और चीन में स्थावर क्षेत्रों का सतत प्रत्युत्तर। वर्तमान संकेतों के अनुसार ऐसा आकलन है कि भारत के संबंध में व्यापार खाते पर इसका प्रभाव मामूली रूप से सकारात्मक, चालू खाते पर तटस्थ और पूंजी प्रवाह पर कुछ अनिश्चित रहेगा। लेकिन ऐसी संभावना भी नहीं है कि भारत पर इसका प्रभाव नकारात्मक नहीं होगा। हालांकि वैश्विक आधार पर पूंजी प्रवाह अनिश्चित रह सकता है।

32. प्रमुख केन्द्रीय बैंकों में यूएस फेड. ने नीति दर में लगातार वफ्द्धि का स्पष्ट संकेत देकर अपनी नीति दर में हर बार 25 आधार बिंदु की वफ्द्धि करते हुए इसे जून 2004 के 1.0 प्रतिशत से जून 2005 के अंतर में 3.25 प्रतिशत के स्तर पर पहुंचा दिया है। हालांकि बैंक ऑफ इंग्लैण्ड ने अपनी रेपो दर को अगस्त 2004 से 4.74 प्रतिशत के स्तर पर बनाये रखा है, मौद्रिक नीति समिति की जुलाई 2005 में हुई बैठक के दौरान नौ में से चार सदस्यों ने रेपो दर में 25 आधार बिन्दुओं की कमी करने को प्राथमिकता दी। यूरोपियन केन्द्रीय बैंक ने अपनी नीति दर को जून 2003 से 2.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा है।

33. हाल ही के महीनों में मुद्रा बाजारों में अप्रत्याशित रूप से अधिक अनिश्चितता, दीर्घकालीन बॉण्ड प्रतिफल में तीव्र कमी - जिसे कॉननड्रम कहा जाता है और इक्विटी बाजारों में असाधारण तेजी देखी गई जिसे पेराडॉक्स कहा जाता है। हाल के महीनों में परिपक्व वित्तीय बाजारों में दीर्घकालीन बॉण्ड के प्रतिफल में कमी हुई है। शायद ऐसा होना संयत वफ्द्धि, निम्न मुद्रास्फीति की अपेक्षाएं, कारोबार चक्र को उपयुक्त बनाए जाने के कारण लघु वास्तविक अवधि प्रीमियम (स्मालर रियल टर्म प्रीमियम) और संस्थागत निवेशकों की निर्धारित आय वाली लिखतों के प्रति प्राथमिकता में परिवर्तन को दर्शाता है। ऐसा मत है कि वैश्विक बचत के वैश्विक निवेश अवसरों से अधिक रहने की संभावना है। इसके लिए आंशिक रूप से तेल निर्यातक देशों द्वारा पैदा किये गये आधिक्य को दिया जा सकता है जो संयोगवश अमरीकी डालर के वर्चस्व वाली तेल अर्थव्यवस्था की विशिष्ट आस्तियों को काफी वजन देता प्रतीत होता है। अधिमूल्यन की जोखिमवाली संभावनाओं के साथ करेंसी बजारों, बांड बाजारों और इक्विटी बाजारों के लिए ऐसे बचत-निवेश असंतुलनों के संभावित निहितार्थ हैं।ऊपर से दिखनेवाली स्थिरता के नीचे असाम्यावस्था हो जो आगे चलकर भविष्य में कभी ठीक हो जाएगी ऐसा असंभव नहीं है, और यदि सुधार की इस प्रक्रिया में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव होता है तो उभरती अर्थव्यवस्थाएं विशेषरूप से अतिसंवेदनशील रहेंगी। निस्संदेह रूप से अधिकांश उभरती अर्थव्यवस्थाओं को मौजूदा समष्टि-नीति ढांचे ने दृष्टव्य लोचकता प्रदान की है किंतु बढ़ी हुई वैश्विक अनिश्चितताएं हाल ही में विशिष्टता प्राप्त असाम्यावस्था के तत्वों पर बहुत बारीकी से ध्यान देने की मांग करती हैं ।

घ्घ्. वर्ष 2005-06 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति का दृष्टिकोण

  1. वार्षिक नीति वक्तव्य प्रस्तुत करते समय रिजर्व बैंक के सामने दो प्रमुख चुनौतियां थीं : अनेक अनिश्चितताओं के बीच मुद्रास्फीति संबंधी प्रभावों पर नियंत्रण रखना ताकि वित्तीय बाजारों में स्थिरता सुनिश्चित की जा सके और वफ्द्धि की अनवरत गति को समर्थन देने के लिए उपयुक्त स्तरों पर अपेक्षित वित्तपोषण किया जाना जारी रखा जाए ; और दूसरा, बजट में प्रस्तावित सरकारी उधारों और सुदफ्ढ़ ऋण वफ्द्धि के संकेतों के संदर्भ में चलनिधि का प्रबंधन। रिज़र्व बैंक स्पष्ट रूप से मूल्य स्थिरता के प्रति वचनबद्ध होकर मुद्रास्फीति संबंधी प्रभावों को संतुलित रखना चाहता था, जैसा कि रिवर्स रिपो दर में 25 आधार अंक वफ्द्धि करके उसे 5ॅ.0 प्रतिशत करने की नीति अपनाने में परिलक्षित होता है। वित्तीय बाजारों में इस उपाय के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई दी। अर्थव्यवस्था द्वारा पूंजी प्रवाह के बढ़ते अवशोषण और चलनिधि के स्रोतों में परिवर्तनों के कारण समग्र बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) की उच्चतम सीमा 80,000 करोड़ रुपये रखी गई। बाज़ार स्थिरीकरण योजना के माध्यम से कम राशि की उगाही तथा वर्ष 2005-06 के दौरान अब तक चलनिधि समायोजन सुविधा की मात्रा में कमी से यह संकेत मिलता है कि उपयुक्त चलनिधि उपलब्ध है।
  2. वर्ष 2005-06 की पहली तिमाही में मौद्रिक नीति का संचलन वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में घोषित किए गए दृष्टिकोण के अनुरूप रहा। समष्टि आर्थिक गतिविधियां और वित्तीय बाजारों की परिस्थितियां मोटे तौर पर वार्षिक नीति वक्तव्य में किए गए अनुमानों के अनुरूप रही लेवि न कुछ मामलों में ध्यान देने की आवश्यकता है। पहला, समग्र औद्योगिक वफ्द्धि में स्वस्थ वफ्द्धि का रुझान बना रहा, हालांकि मानसून के आने में विलंब के चलते कफ्षि उत्पादन के संभावित स्तर में कुछ अनिश्चितताएं पैदा हुई हैं। कफ्षि उत्पादन पर मानसून का असर अंतर-कालिक और क्षेत्रगत वितरणों पर निर्भर करेगा। दूसरा, खाद्येतर ऋण में अधिक वफ्द्धि की प्रवफ्त्ति दिखाई दी है तथा वह और अधिक व्यापक होती जा रही है। फिर भी यह वफ्द्धि आवास और भूसंपदा द्वारा प्रभावित है और इसलिए ऋण की गुणवत्ता सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है।तीसरा, उच्चतर ऋण वफ्द्धि के बावजूद सरकार व ा उधार कार्यक्रम भलीभांति संचालित किया गया है। एक ओर जहां बैंक जमाराशियों में वफ्द्धि की दर और अधिक है तथा सरकारी प्रतिभूतियों के लिए बैंकेतर वित्तीय संस्थाओं की मांग सकारात्मक है, दूसरी ओर सरकार और वाणिज्यिक क्षेत्र के बीच निधियों की मांग संबंधी प्रतिस्पर्धा संतुलित रही है। सरकार व ी तुलना में वाणिज्यिक क्षेत्र के पक्ष में बैंकों के परिचालनों पर और अधिक ध्यान देने के कारण ऐसा किया जाना सुगम हो पाया है जिसके लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने उपयुक्त चलनिधि प्रबंधन करके भी सहायता दी है। चौथा, मुद्रा आपूर्ति में वफ्द्धि अनुमानित सीमा के भीतर ही रही है। प्रारक्षित मुद्रा में वफ्द्धि विदेशी मुद्रा आस्तियों की तुलना में घरेलू आस्तियों में हुई वफ्द्धि द्वारा चालित हुई है। पांचवां, मुद्रास्फीति संबंधी परिणाम वर्ष के प्रारंभ में अनुमानों के अनुरूप रहा है और प्रच्छन्न मुद्रास्फीति नियंत्रण के भीतर रही है। फिर भी, तेल के मूल्यों का असर अभी समाप्त नहीं हुआ है। छठा, वित्तीय बाजार स्थिर रहे हैं हालांकि, ब्याज दरों में नीतिगत गतिविधियों के अनुरूप कुछ वफ्द्धि दिखायी दी है। सातवां,घरेलू वित्तपोषण संबंधी परिस्थितियां वफ्द्धि के लिए अनुकूल साबित हुई हैं। आठवां, अर्थव्यवस्था की चलनिधि संबंधी जरूरतों को,चलनिधि को व्यवस्थित ढंग से अनवाइंड करके पूरा किया गया है। नौवां, तेल उंचे मूल्यों और अर्थव्यवस्था की अवशोषण क्षमता में सुधार के कारण बढ़े हुए व्यापार घाटे को आंशिक रूप से व्यपार की निवल अदृश्य मदों में उछाल की सहायता से समंजित किया गया और भुगतान संतुलन के चालू खाते के घाटे का वित्तपोषण निवल पूंजीगत प्राप्तियों द्वारा किया गया। तेल पर आधारित अर्थव्यवस्था की प्रवफ्त्तियां और औद्योगिक उत्पादन तथा घरेलू निवेश संबंधी गतिविधियों में और अधिक वफ्द्धि इस बात की ओर संकेत करते हैं कि व्यापार घाटे और समग्र भुगतान संतुलन बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। एक ओर जहां इन गतिविधियों पर सावधानीपूर्वक नज़र रखना तथा नपेतुले कदम उठाना आवश्यक है , वहीं दूसरी ओर वर्तमान अनुमान के अनुसार व्यापार घाटा नियंत्रण में रहेगा और चालू खाते का घाटा हमारी सहन सीमा में है।
  3. अप्रैल 2005 में वार्षिक नीतिगत वक्तव्य दिए जाने के बाद से यद्यपि वैश्विक वफ्द्धि दर तथा मुद्रास्फीति के प्रति दृष्टिकोण में मोटे तौर पर काई परिवर्तना नहीं हुआ है लेकिन फिर भी हाल के महीनों में जोखिम बढ़ा है। विश्व अर्थव्यवस्था ने अब तक अंतर्राष्ट्रीय तेल मूल्यों में हुई भारी वफ्द्धि को बिना किसी बहुत बड़े उतार चढ़ाव के अभी तक समायोजित कर लिया है लेकिन इसके कारण पड़नेवाले दबाव स्पष्टरूप से दृष्टिगोचर होने लगे हैं तथा जिनके चलते वैश्विक वफ्द्धि और व्यापार में और अधिक कमी आ सकती है। तेल के मूल्य अभी भी ऊंचे हैं और अस्थिरता बनी हुई है। अंतर्राष्ट्रीय ब्याज दर चक्र से मिश्रित संकेत मिल रहे हैं और साथ ही अमरीका की पालिसी दर अधिक है जिसव ा उभरते हुए बाजारों में पहुचनेवाली पूंजी पर असर पड़ सकता है। चीन की विनिमय दर नीति में हाल ही में किए गए परिवर्तनों से संबंधित घोषणाओं के कारण भी अनिश्चितता बढ़ी है।
  4. घरेलू परिस्थितियां, जो भारत के लिए निश्चित रूप से ज्यादा तर्कसंगत हैं, लगातार सकारात्मक बनी हुई हैं। औद्योगिक क्षेत्र का कार्यनिष्पादन होता जा रहा है तथा सेवाओं में वफ्द्धि के संकेतक सकारात्मक हैं। औद्यागिक गतिविधियों में वफ्द्धि के साथ ही निवेश संबंधी मांग भी बढ़ रही है जैसा कि उत्पादन और पूंजीगत माल के आयात से स्पष्ट होता है। ऋण वफ्द्धि की दर लगातार सुदृढ़ बनी हुई है। कारोबार संभाव्यता संबंधी सर्वेक्षणों से भी लगातार सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। हालांकि मानसून शुरू होने में थोड़ा विलंब हुआ लेकिन बाद में यह अच्छा रहा परंतु मौसम के दौरान इसकी प्रगति और इसके परिणामस्वरूप वफ्षि उत्पादन पर मानसून के प्रभावों के संबंध में अनिश्चितता बनी हुई है। उच्चतर स्तरों की घरेलू गतिविधि और निर्यात संबंधी मांग को समर्थन देने के लिए अपर्याप्त बुनियादी संरचनाओं, खासतौर पर विद्युत और बंदरगाह क्षेत्र के, कारण भी आपूर्ति कम मात्रा में रह सकती है। कुल मिलाकर यद्यपि अनिश्चितताएं बनी हुई हैं फिर भी पहली तिमाही में घरेलू वफ्द्धि सुदृढ़ हुई है।
  5. चालू वर्ष के दौरान अब तक मुद्रास्फीति आशा के अनुफ्रूप रही है। थोक मूल्य सूचकांक संबंधी मुद्रास्फीति, विद्युत संबंधी मदों को छोड़कर, लगातार कम बनी हुई है तथा विनिर्मित उत्पादों के मूल्य भी कम हैं। मुद्रास्फीति अभी तक नियंत्रण में रही है। अभी तक सामान्य मांग संबंधी दबावों का कोई प्रमाण नहीं मिल रहा है,लेकिन ऋण की वफ्द्धि बहुत अधिक सुदृढ़ है।तथापि, मानसून की वर्षा और अंतर्राष्ट्रीय तेल मूल्यों में उतार-चढ़ाव, आपूर्ति संबंधी कारकों के प्रमुख निश्चायक होंगे जो मूल्यों के मामले में अपनी प्रधानता बनाए रखेंगे। यद्यपि आपूर्ति प्रबंधन में खाद्यान्न के स्टॉक और विदेशी मुद्रा भंडार के स्तर से अपेक्षित राहत मिलती रहेगी। एक ओर जहां अंतर्राष्ट्रीय तेल मूल्यों में हुई वफ्द्धि का कुछ असर हो चुका है, वहीं दूसरी ओर इसके अन्य प्रभाव अभी भी तक नहीं दिखाई दे रहे हैं। कुल मिलाकर पहली तिमाही के दौरान प्रच्छन्न मुद्रास्फीति संबंधी दबाव नियंत्रण में प्रतीत होते हैं और मुद्रास्फीति अनुमान के अनुरूप रखी जा सकी है।
  6. वित्तीय बाजारों ने मोटेतौर पर स्थिरता दिखायी दी है। एक ओर मुद्रा बाजार की ब्याज दरें पालिसी दर में हुए परिवर्तनों के साथ-साथ बढ़ी हैं, वहीं दूसरी ओर संपार्श्विकीवफ्तऔर गैर-संपार्श्विकीवफ्त क्षेत्र की दरें काफी पास-पास आ गई हैं। सरकारी प्रतिभूति बाजार में होनेवाले लाभों में अप्रैल की उच्चतम दरों की तुलना में संतुलन की प्रवफ्त्ति दिखाई दी है, वहीं
  7. साथ ही कुछ वफ्द्धि भी देखी गई है और लाभ वक्र गहरा हो गया है। प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं की तुलना में रुपये का मूल्य बढ़ा है लेकिन साथ ही विनिमय दर में उतार-चढ़ाव व्यवस्थित रहा है। इक्विटी बाजार में आशावादिता दिखाई दी है जोकि शेयर बाजार सूचकांक में उतार-चढ़ाव की मात्रा से प्रतिबिंबित होता है।

  8. वर्ष 2005-06 के दौरान की अब तक की गतिविधियों की परिप्रेक्ष्य में, मौद्रिक नीति का दृष्टिकोण समष्टि-आर्थिक गतिविधियों पर निर्भर करेगा जिसके अंतर्गत वैश्विक गतिविधियां और समग्र जोखिम संतुलन शामिल होगा। बढ़ती हुई वैश्विक अनिश्चितताओं, तेल की उंची और अस्थिर अंतर्राष्ट्रीय कीमतों, देश में तेल की कीमतों के अपूर्ण प्रभावों, अमेरिका में पालिसी दर की बढ़ती हुई सीमाओं, चलनिधि के आधिक्य, उच्च ऋण वफ्द्धि, अनवरत औद्योगिक वफ्द्धि और संभावित क्षमता संबंधी दबावों, व्यापार घाटे का बढ़ना, बुनियादी संरचना संबंधी कठिनाइयों और मानसून में विलंब के कारण मौद्रिक नीति संबंधी दफ्ष्टिकोण में परिवर्तन की जरूरत पड़ सकती है। उन दृष्टिकोणें को बनाए रखने के पक्ष में यह तर्क दिया जा सकता है कि मौद्रिक और राजकोषीय उपायों के समन्वय के जॅरिए तेल कीमत में हुई वफ्द्धि का प्रबंधन भलीभांति किया गया, अर्थव्यवस्था की अवशोषण क्षमता को बढ़ाकर चलनिधि की अधिकता को कम किया गया है, अधिक चलनिधि निष्प्रभावी रही है, चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत दृश्य चलनिधि कम हुई है। मुद्रा आपूर्ति में वफ्द्धि अनुमानित सीमा के भीतर है, ऋण प्रवाह का आधार व्यापक होता जा रहा है, बहुत लंबे समय की मंदी के बाद औद्योगिक वफ्द्धि फिर से शुरू हुई है, निवेश की मांग में वफ्द्धि स्पष्ट दिखाई दे रही है, निवेश के लिए वातावरण अनुकूल बना हुआ है, कंपनी क्षेत्र की प्राप्तियां और लाभ पूर्ववत् बने हुए हैं, मुद्रा स्फीति की वर्तमान दर थोक और खुदरा दोनों स्तरों पर संतुलित है, वैश्विक मौद्रिक नीति का रुख कुछ समायोजनपरक बना हुआ है और वर्ष 2005 के दौरान उच्च तेल मूल्यों के बावजूद वैश्विक मुद्रा स्फीति के दर के संतुलित रहने का अनुमान है। यथास्थिति के पक्ष में व्यक्त किए गए विचारों के समरूप ही मौद्रिक नीति के दफ्ष्टिकोण में परिवर्तन के पक्ष में भी विचार प्रस्तुत किए गए हैं लेकिन इस महत्वपूर्ण घड़ी में यथास्थिति बनाए रखना ही अच्छा होगा लेकिन साथ ही, विशेषरूप से अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में बढ़ती हुई अनिश्चितताओं पर नज़र रखनी होगी।

41. संक्षेप में रिज़र्व बैंक का समष्टिआर्थिक दृष्टिकोण और समग्र अवस्थिति के मौज़ूदा मूल्यांकन में वार्षिक नीति वक्तव्य में मोटेतौर पर कोई परिवर्तन नहीं है और वह की तरह ही पहले है। यह स्पष्ट है कि सामने अनेक वैश्विक अनिश्चितताएं तो हैं, परन्तु कुछ ऐसे देशी कारक हैं, जो स्थिर वातावरण में विश्वास के साथ बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था की ओर संकेत करते हैं। हालांकि भारत के लिए ये वैश्विक कारक क्रमिक रूप से महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं, देशी कारकों का वर्चस्व अभी भी बना हुआ है और उभरती परिस्थितियों के लिए तैयार रहने के साथ-साथ इस पड़ाव पर वफ्द्धि की गति को बनाये रखने के लिए स्थिरता की ओर संकेत करते हैं। तदनुसार, वर्ष 2005-06 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति का समग्र दृष्टिकोण वही रहेगा जो अप्रैल 2005 के वार्षिक नीति वक्तव्य में निर्धरित किया गया है, परन्तु सामने आनेवाली जोखिमों के आधार पर रिज़र्व बैंक उभरती स्थिति का पूरी तत्परता से और कारगर जवाब देगा।

मध्यावधि समीक्षा

  1. वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा 25 अक्तूबर 2005 को की जायेगी और उसमें आवश्यकता के अनुसार ऐसे अन्य परिवर्तन/उपायों का समावेश किया जायेगा।

 

जी. रघुराज

उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2005-2006/116

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