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मौद्रिक नीति 2009-10 की पहली तिमाही समीक्षा डॉ डी. सुब्बाराव, गवर्नर का प्रेस वक्तव्य

28 जुलाई 2009

मौद्रिक नीति 2009-10 की पहली तिमाही समीक्षा
डॉ डी. सुब्बाराव, गवर्नर का प्रेस वक्तव्य

"आज सुबह मैंने मुख्य बैंकों के प्रमुखों के साथ बैठक की है, जिसमें हमने 2009-10 की शेष अवधि हेतु रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति की घोषणा अब तक हुई समष्टि आर्थिक गतिविधियों के आलोक में की है। इस बैठक से रिज़र्व बैंक तथा वाणिज्य बैंकों को एक दूसरे के दृष्टिकोण को समझने और उसका मूल्यांकन करने का महत्वपूर्ण अवसर मिला है।

बैंकरों ने सामान्यत: रिज़र्व बैंक के नीति रुझान का स्वागत किया। उन्होंने महसूस किया कि नीति दरों पर यथास्थिति ब्याज दर प्रत्याशाओं को व्यवस्थित करेगी जिससे निवेश माँग में उछाल होगा। उन्होंने यह संकेत दिया कि वे घरेलू अर्थव्यवस्था में पुनर्जीवन के संकेत देख रहे हैं और आशा करते हैं कि वर्ष की दूसरी छमाही में ऋण माँग में तेजी आएगी। इस संदर्भ में मैंने विशेषकर कृषि और समष्टि, लघु और मध्यम उद्यमों में ऋण प्रवाह में वृद्धि की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। बैंकों की चिंता यह है कि उनकी देयता संरचना जमाराशियों की मीयादी ढाँचे में कमी के साथ छोटी होती जा रही है जबकि आस्ति संरचना, दीर्घावधि ऋण विशेषकर मूलभूत सुविधा के हुए हिस्से के कारण बड़ी होती जा रही है। कई बैंकों ने यह उल्लेख भी किया कि चालू और बचत (सीएएसए) जमाराशियों का हिस्सा घट रहा है जो उनके निवल ब्याज मार्जिनों (एनआइएम) पर दबाव डालेगा। जहाँ तक ऋण गुणवत्ता का संबंध है, बैंकों का विचार था कि अनर्जक आस्तियों (एनपीए) विशेषकर गैर-जमानती खण्डों में बढ़ोतरी की आशा है यद्यपि वे प्रबंध-योग्य बनी रहेंगी। आगे बोलते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने अपने आस्ति संविभाग में जोखिम भारित आस्ति विस्तार के रूप में पूँजी संग्रहण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

वैश्विक अर्थव्यवस्था

वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थायित्व के आरंभिक संकेत दिख रहे हैं पर अभी फिर से उठ खड़े होने की (रिकवरी) स्थिति नहीं है। कई प्रमुख अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं की आर्थिक गतिविधियों की गिरावट की रफ्तार में कमी आई है, निक्रीय ऋण बाजार में हलचल शुरू हुई है तथा ईक्वटी बाजार में सुधार शुरू हो गया है। हाल के महीनों में देखा गया है कि कई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में औद्योगिक गतिविधियों में फिर से जान आयी। कुछ सकारात्मक संकेतों के बावजूद, धीमी उपभोक्ता मांग, बेरोजगारी स्तर तथा वैश्विक व्यापार तथा निजी पूंजी प्रवाह में और कमी आने की प्रत्याशा के आलोक में वैश्विक सुधार की राह तथा समय का दायरा अनिश्चित बना हुआ है। कारोबारी तथा उपभोक्ता मज़बूती आने के निश्चित संकेत अभी दिखने शेष हैं जबकि विश्व भर की सरकारों तथा केंद्रीय बैंकों द्वारा उठाए गए समेकित कदमों की प्रतिक्रिया में वित्तीय क्षेत्र में स्थायित्व दिखने लगा है। संपदा क्षेत्र (रियल सेक्टर) में आर्थिक मंदी बनी हुई है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के नवीनतम आकलन के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था 2009 में सुधार होने से पहले 1.4 प्रतिशत घटने का तथा 2010 में 2.5 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। तथापि, (आईएमएफ) ने चीन तथा भारत की सुधरी हुई संभावनाओं का ज़िक्र करते हुए विकासशील एशिया की वृद्धि की संभावनाओं को उन्नत किया है।

संकट तथा भारत

भारतीय अर्थव्यवस्था ने पिछले पांच वर्ष के सुदृढ़ वृद्धिशील निष्पादन की तुलना में 2008-09 में उल्लेखनीय मंदी का सामना किया, ऐसा मुख्यत: वैश्विक वित्तीय संकट के प्रभाव के असर के कारण हुआ। भारत के निर्यात में लगातार आठ महीनों तक कमी आई जिसके परिणामस्वरूप औद्योगिक क्षेत्र तथा सेवा क्षेत्र पर असर पड़ा। तथापि, वैश्विक स्तर पर सुविधा हटाने की प्रक्रिया से उत्पन्न हुए गंभीर दबाव के बावजूद वित्तीय क्षेत्र सापेक्षत: प्रभावित नहीं हुआ, जिससे 2008-09 की दूसरी छमाही में पूंजी बहिर्वाह प्रवाह शुरू हुआ।

सरकार तथा भारतीय रिज़र्व बैंक, दोनों के त्वरित तथा आक्रामक नीतिगत कार्रवाई ने वैश्विक वित्तीय संकट के असर को कम किया। सरकारी उपभोग के समर्थन से बढ़ी हुई बड़ी घरेलू मांग, विदेशी मुद्रा (फोरेक्स) के प्रावधान तथा रुपया चलनिधि के साथ - साथ नीतिगत दरों में तेज कटौती, सुदृढ़ बैंकिंग क्षेत्र तथा सुचारू रूप से कार्य कर रहे वित्तीय बाजार ने संकट के गंभीर प्रभाव से अर्थव्यवस्था को बचाने में मदद की। भारत में अब सुधार के प्रगामी संकेत दिख रहे हैं: खाद्यान्न भंडार में वृद्धि हुई है; औद्योगिक उत्पादन सकारात्मक हो गया है; कॉरपोरेट के कार्यनिष्पादन में सुधार हुआ है; कारोबारी विश्वास पर किए गए सर्वेक्षण सकारात्मक हैं; प्रमुख संकेतक उर्ध्वगामी दिख रहे हैं; ब्याज दरों में गिरावट आई है; मई 2009 में ऋण प्रदान करने में तेजी आई है; शेयरों की कीमतों में फिर से बढ़ोत्तरी हुई है; प्राथमिक पूंजी बाजार में कुछ गतिविधियां दिख रही हैं; तथा बाह्य वित्तीय स्थितियों में सुधार हुआ है। दूसरी तरफ: देरी से आया तथा कम मानसून, खाद्यान्न की कीमतों में मुद्रास्फीति; वैश्विक पण्य मूल्यों में फिर से तेजी; बाह्य मांग का कमजोर बने रहना; तथा उच्च राजकोषीय घाटा जैसे कुछ नकारात्मक संकेत भी है।

मौद्रिक नीति कार्रवाई

पिछले दस महीनों में हमने नीति दरों में कई बार समायोजन किया है। इस समय, रिपो दर 4.75% है, प्रत्यावर्तनीय रिपो दर 3.25% है तथा आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) 5% है। समष्टि आर्थिक तथा मौद्रिक स्थितियों के अपने वर्तमान मूल्यांकन के अनुरूप हमने इन दरों को अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है।

रिज़र्व बैंक का नीति प्रभाव

सितंबर 2008 के मध्य से रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए विभिन्न नीति प्रयासों का प्रभाव पर्याप्त रुपया चलनिधि उपलब्ध कराना, यह सुनिश्चित करना कि डॉलर चलनिधि सुगम बनी रहे और सभी उत्पादक क्षेत्रों को ऋण प्रवाह बनाए रखने के लिए अनुरूप बाज़ार वातावरण बनाए रखे जाने पर रहा है। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लगभग 5,61,700 करोड़ रुपए की वास्तविक /सक्षम चलनिधि में वृद्धि हुई। नवंबर 2008 के मध्य से चलनिधि परिस्थिति सुगम बनी रही जैसा कि चलनिधि समायोजन सुविधा विंडो से देखा गया है, जहाँ रिज़र्व बैंक चालू वित्तीय वर्ष के दौरान दैनिक औसत आधार पर लगभग 1,20,000 करोड़ रुपए अवशोषित कर रहा है। चलनिधि का विस्तार, एक नीति व्यवस्था सुनिश्चित करते हुए रिज़र्व बैंक के रुझान के अनुरूप रहा है जो ऋण गुणवता को संरक्षित करते हुए व्यवहार्य दरों पर ऋण विस्तार में सहायता करेगा।

बैंकों से ब्याज दर प्रतिक्रिया

चलनिधि पर्याप्त बनी रहने के कारण बैंकों पर उधार दरों को कम करने का प्रतिस्पर्धात्मक दबाव बढ़ गया है। इसके फलस्वरूप, अप्रैल 2009 में पिछले वार्षिक वक्तव्य से नीति दर परिवर्तनों का बैंक के उधार दरों में अंतरण सुधरा है। जैसे ही पूर्व की उच्च दरों वाली अल्पावधि मीयादी जमाराशियां परिपक्व होती हैं और उसका पुनःमूल्य निर्धारण होता है तो बैंकों को अपनी उधार दरों को और अधिक कम करने का मौका मिलता है।

सरकारी उधार

संकट के कारण उत्पन्न अवरोध के फलस्वरूप सरकार राजकोषीय जवाबदेही तथा बजट प्रबंध (एफआरबीएम) अधिनियम द्वारा निर्धारित राजकोषीय समेकन की रूपरेखा से अलग हो गयी। घाटे के संकेतकों में वर्ष 2008-09 में तेज़ कमी आयी और वर्ष 2009-10 में उसके और बढ़ने की संभावना है। वर्ष 2008-09 में केंद्र और राज्य सरकारों के समेकित निवल बाज़ार उधार वर्ष 2007-08 में अपने निवल उधारों के लगभग ढाई गुना थे। वर्ष 2009-10 में इसे लगभग 34 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है। अवरोध - रहित तरीके से व्यापक बाज़ार उधार कार्यक्रम का प्रबंधन करने के लिए सक्रिय चलनिधि प्रबंधन की आवश्यकता है और तदनुसार रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2009-10 की पहली छमाही के दौरान 80,000 करोड़ रुपए की एक सांकेतिक राशि के लिए खुले बाज़ार परिचालनों (ओएमओ) के अंतर्गत सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद के अपने अभिप्राय का संकेत दिया है।

वर्ष 2009-10 की पहली छमाही के दौरान दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से केद्र सरकार के निवल बाज़ार उधार 2,65,911 करोड़ रुपए के होंगे जिसमें से करीब-करीब 63 प्रतिशत अंश (1,67,911 करोड़ रुपए) 27 जुलाई 2009 तक पूरा हो गया है और 28,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) शेष को फिर से शुरू करके जुटाई गई है। अब तक किए गए खुले बाज़ार परिचालन (ओएमओ) की राशि 33,439 करोड़ रुपए है जो 80,000 करोड़ रुपए की अधिसूचित राशि का लगभग 42 प्रतिशत है। अतः रिज़र्व बैंक के पास शेष उधार का प्रबंधन सरलता से करने हेतु पर्याप्त राशि (हेडरूम) उपलब्ध है। इस परिप्रेक्ष्य में यह उल्लेखनीय है कि 2009-10 की पहली छमाही में प्रस्तावित खुले बाजार परिचालन (ओएमओ) खरीद और बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) फिर से शुरू करने से प्राथमिक चलनिधि में 1,50,000 करोड़ रुपए की राशि बढ़ जाएगी जो मौद्रिक प्रभाव के रूप में आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में 3.5 प्रतिशत अंक से अधिक की कटौती के बराबर है।

वृद्धि की संभावना

वर्तमान मूल्यांकन के संबंध में 2009-10 के लिए सकल देशी उत्पाद (जीडीपी) का वृद्धि अनुमान वृद्धिशील आधार पर 6.0 प्रतिशत पर रखा गया है। यह अद्यतन वृद्धि अनुमान वार्षिक नीति वक्तव्य में उल्लिखित लगभग 6.0 प्रतिशत की वृद्धि प्रत्याशा से थोड़ा अधिक सुधार का संकेत देता है। समग्र समष्टि आर्थिक परिदृश्य अनिश्चित बना हुआ है फिर भी ऐसी अपेक्षा है कि राजकोषीय और मौद्रिक प्रोत्साहन उपाय 2009-10 में देशी मांग की पूर्ति करेंगे। शेष के संबंध में वृद्धि की गति में वृद्धिशील प्रवृत्ति 2009-10 के मध्य से पहले नहीं होगी।

मुद्रास्फीति की संभावना

अब मैं मुद्रास्फीति की संभावनाओं पर आता हूं। मार्च 2010 के अंत में थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) मुद्रास्फीति लगभग 5.0 प्रतिशत होने का अनुमान है - जो अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में किए गए 4.0 प्रतिशत के अनुमान से अधिक है। जैसाकि पूर्वानुमान था, जून 2009 में मांग में किसी कमी के कारण नहीं बल्कि सांख्यिकीय आधार के प्रभाव के कारण थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) मुद्रास्फीति ऋणात्मक हो गई है। तथापि, थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) मुद्रास्फीति में आई तीव्र गिरावट मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं में आई समान गिरावट के अनुरूप नहीं है। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) में प्राथमिक वस्तुओं, विशेषतः खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति उल्लेखनीय रूप से धनात्मक रही है। इसके अलावा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) वृद्धिशील रहा, हाल ही के महीनों में वह वास्तव में अधिक ही रहा है। वैश्विक पण्य मूल्य वैश्विक सुधार से अधिक रहे हैं और अनिश्चित मानसून को देखते हुए खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति में और वृद्धि हो सकती है।

वृद्धि और मुद्रास्फीति की संभावना के लिए जोखिम

शेष के संबंध में वास्तविक जीडीपी वृद्धि और 2009-10 की मुद्रास्फीति के वर्तमान अनुमानों के लिए अधिक जोखिम है। खाद्यान्न स्टॉक के संतोषजनक स्तर से आपूर्ति की ओर से मूल्य पर पड़नेवाले दबाव की स्थिति में जोखिम कम होने में सहायता होनी चाहिए। रिज़र्व बैंक चलनिधि के स्तर पर बारीकी से नजर रखेगा ताकि यदि आपूर्ति की ओर से मूल्य पर दबाव बढ़ जाता है तो भी मुद्रास्फीतिकारी अनुमानों को नियंत्रित किया जा सके।

मुद्रा आपूर्ति

यह सुनिश्चित करने के लिए कि वध्ंदिात सरकारी बाज़ार उधार कार्यक्रमों से निजी क्षेत्र के ऋण प्रवाह को नजरअंदाज नहीं किया जाता है 2009-10 के लिए मुद्रा आपूर्ति (एम3) वृद्धि का अनुमान वार्षिक नीति वक्तव्य में उल्लिखित 17 प्रतिशत से बढ़ाकर 18 प्रतिशत किया गया है। इसके अनुरूप वाणिज्य बैंकों की समग्र जमा और समायोजित खाद्येतर ऋण भी बढ़कर क्रमशः 19 प्रतिशत और 20 प्रतिशत होने का अनुमान है। हमेशा का तरह से आंकड़े सांकेतिक अनुमान जैसे हैं और लक्ष्य की तरह नहीं।

आगे के मार्गक्रमण के लिए चुनौतियां

अर्थव्यवस्था नीचे दिए गए अनुसार कई तात्कालिक और मध्यावधि चुनौतियों का सामना कर रही है

  • पहली चुनौती है प्रचुर चलनिधि उपलब्ध कराने की अल्पावधि की अनिवार्यता और मांग की स्थिति में और अधिक सुधार होने तथा ऋण प्रवाह पर पकड़ होने तक निभावात्मक मौद्रिक बल बनाए रखते हुए संभाव्य मुद्रास्फीतिकारी दबाव के बीच संतुलन की व्यवस्था करना। परंतु हमारे लिए आवश्यक है कि हमारे पास विस्तारकारी बल को तदनंतर तत्परता से और प्रभावी रूप से कम करने के लिए भावी योजना होनी चाहिए।

  • दूसरी चुनौती है वर्तमान अथवा संभाव्य निजी ऋण मांग को नजरअंदाज न करते हुए सरकारी बड़े उधार कार्यक्रम का प्रबंध करना। रिज़र्व बैंक द्वारा सक्रिय चलनिधि प्रबंध किए जाने के बावजूद सरकारी उधार में भारी और अचानक वृद्धि के परिणामस्वरुप प्रतिफल कम हो गए हैं जो कम ब्याज दर जिसकी वर्तमान स्थिति में अर्थव्यवस्था को आवश्यकता है की तुलना में स्पष्ट रुप से प्रतिकूल है।

  • तीसरी चुनौती यह है कि निजी निवेश की बढ़ती हुई माँग के लिए पालिसी दरों को एक समान रखा जाए एवं चलनिधि परिस्थितियों को अनुकूल रखा जाए जो संकट के कारण धीमी पड़ गई थी।

  • चौथी चुनौती यह है कि राजकोषीय समेकन की प्रक्रिया को आगामी कार्रवाईयों की रूपरेशा तैयार करके बहाल किया जाए। बड़े राजकोषीय घाटे यदि सुधार की अवधि के बाद भी जारी रहे, तो वे बड़ी मात्रा में निजी निवेश बाहर कर सकते हैं एवं मुद्रास्फीति दबावों को पैदा कर सकते हैं। बड़ी मात्रा में सरकारी उधारों ने पहले ही प्रतिफलों को सख्त किया हैं, जिससे मौद्रिक संचार में रुकावट हुई है। इसलिए सरकार के लिए राजकोषीय समेकन के रास्ते पर वापस आना आवश्यक होगा, जो राजकोषीय रुझान को विश्वसनीयता प्रदान करेगा एवं आर्थिक ऐजेंटों को पूर्वानुमान लगाने की क्षमता प्रदान करेगा। यह भी आवश्यक है कि परिमाणात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने के दौरान भी राजकोषीय समायोजन की गुणवत्ता पर भी ध्यान केंद्रित किया जाए। 

  • अंतत:, एक बड़ी मध्यावधि चुनौती यह है कि निवेश के वातावरण को बेहतर बनाया जाए एवं अर्थव्यवस्था की अवशोषण क्षमता को निम्नलिखित द्वारा बढ़ाया जाए: (i) वित्तीय क्षेत्र के सुधारों के साथ आगे बढ़ना ताकि वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया जा सके, वित्तीय बाज़ारों को और अधिक व्यापक और गहरा बनाया जा सके एवं वैश्विक वित्तीय संकट को मिली सीख का लेखा जोखा करते हुए वित्तीय संस्थाओं को मज़बूत बनाना; (ii) अभिशासन सुधारों पर अधिक ज़ोर देना जिसके बिना संभावित निवेशकों के भरोसे एवं आत्मविश्वास को प्रेरित कर पाना कठिन होगा।

मौद्रिक नीति रुझान

उपर्युक्त समग्र मूल्यांकन के आधार पर, 2009-10 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति का रुझान निम्नलिखित होगा:

  • चलनिधि का सक्रिय प्रबंधन करना ताकि निजी क्षेत्र को उचित दरों पर ऋण प्रवाह को सुनिश्चित करते समय सरकार की ऋण माँग पूरी की जा सके। 

  • मुद्रास्फीति की प्रवृत्तियों एवं संकेतों पर निगरानी रखना, एवं नीतिगत समायोजनों के माध्यम से शीघ्रता के साथ एवं प्रभावी ढंग से जवाब देने के लिए तैयार रहना।

  • मूल्य स्थिरता एवं वित्तीय स्थिरता के अनुरूप एक मौद्रिक एवं ब्याज दर व्यवस्था को बनाए रखना जो अर्थव्यवस्था को उच्च विकास के पथ पर वापस लाने में सहायता करेगी।

रिज़र्व बैंक इस बात को दुहराना चाहता है कि वह तब तक एक सहायक मौद्रिक रुख बरकरार रखेगा जब तक सुधार के निश्चित एवं पक्के संकेत नहीं मिल जाते हैं। तथापि, यह सहायक मौद्रिक रुख, स्थायी नहीं है। आगे आने वाले समय में, रिज़र्व बैंक को व्यापक उपायों को विपरीत दिशा में मोड़ना होगा ताकि वृद्धि की गति को कायम रखते हुए मुद्रास्फीति अपेक्षाओं को व्यवस्थित किया जा सके एवं मुद्रास्फीति दबावों को कम किया जा सके। बहिर्गमन रणनीति को विकसित समष्टि आर्थिक गतिविधियों के अनुसार अनुकूलता प्रदान की जाएगी।"


जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/154

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