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वर्ष 2010-11 की मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा : डॉ. डी.सुब्बाराव, गवर्नर का प्रेस वक्तव्य

27 जुलाई 2010

वर्ष 2010-11 की मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा :
डॉ. डी.सुब्बाराव, गवर्नर का प्रेस वक्तव्य

आज सुबह रिज़र्व बैंक ने प्रमुख बैंकों के मुख्य कार्यपालकों के साथ एक बैठक में वर्ष 2010-11 के लिए मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा जारी की। इस समीक्षा के महत्त्वपूर्ण निर्णयों में रिपो दर को 5.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 5.75 प्रतिशत तथा प्रत्यावर्तनीय रिपो दर को 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.50 प्रतिशत किया जाना शामिल है। दरों में इस विषम वृद्धि से चलनिधि समायोजन सुविधा सीमा 150 आधार बिंदुओं से कम होकर 125 आधार बिंदु हो जाती है।

नीति रुझान का संतुलन

2. वह व्यापक चिंता जिसने इस समीक्षा में मौद्रिक सबसे अधिक नीति रूझान को आकार दिया है वह उच्चतर मुद्रास्फीति है। यद्यपि, खाद्यान्न मुद्रास्फीति और सामान्यत: उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति ने कुछ नरमी दिखाई है, लेकिन अभी भी वे दुहरे अंकों में हैं। गैर-खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ी है तथा माँग पक्ष की ओर से दबाव स्पष्टत: दिखाई दे रहे हैं। वृद्धि के मजबूत होने के साथ नीति रूझान के संतुलन को निर्णयात्मक रूप से मुद्रास्फीति को रोकने तथा मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं को व्यवस्थित करने की ओर लाना होगा।

वैश्विक दृष्टिकोण

3. अप्रैल में हुई अपनी पिछली नीति समीक्षा के बाद समष्टि आर्थिक वातावरण में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है। ग्रीक सरकार के ऋण संकट और यूरोप तथा अमरीका में दिखाई दे रही अन्य मंदी के बाद सुधार को बनाए रखने के बारे में पुनः अनिश्चितता बनी हुई है। इसके विपरीत, घरेलू माँग के बढ़ने, माल का पुनः भण्डारण करने और अब तक के वैश्विक व्यापार में सुधार के चलते उभरती बाज़ार अर्थ-व्यवस्थाओं में तेज़ वृद्धि दिखाई दी। उभरती बाज़ार अर्थ-व्यवस्थाओं में सामान्यतः तेज़ सुधार के साथ-साथ उच्चतर मुद्रास्फीति भी बनी रही। फिर भी, समग्र रूप से वर्ष 2010 की दूसरी छमाही में वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की व्यापक संभावना है।

भारतीय अर्थव्यवस्था

वृद्धि

4. भारत में समष्टि आर्थिक गतिविधियाँ वैश्विक प्रवृत्ति के विपरीत है। हमने तेज़ी से सुधार किया है, लेकिन हमारी मुद्रास्फीति दर भी उच्चतर रही है। सुधार की प्रक्रिया समेकित हुई है तथा अप्रैल 2010 से और अधिक व्यापक आधारवाली हो गई है। अप्रैल 2010 में मानसून पर संभावना एक बड़े ‘ज्ञात अज्ञात’ स्थिति की थी। वह अब इस अर्थ में ‘ज्ञात और ज्ञात’ हो गई है कि अब तक हुई वर्षा पिछले वर्ष की अपेक्षा बेहतर रही है तथा फसल-वार बुआई किए गए क्षेत्र और वर्षा का वितरण कृषि पटल पर सतर्क आशावादिता का क्षेत्र प्रस्तुत करते हैं।

5. कृषि क्षेत्र की बेहतर संभावनाओं के मद्देनज़र ग्रामीण मांग में बढ़ोत्तरी की संभावना है। इससे मजबूती के साथ वृद्धि की ओर अग्रसर औद्योगिक क्षेत्र के निष्पादन को और गति मिलने की संभावना है। सुधार में आ रही यह मजबूती कॉरपोरेट क्षेत्र की बिक्री एवं लाभप्रदता में आ रही वृद्धि में परिलक्षित होती है जिससे अधिक निवेश करने की चाह विभिन्न क्षेत्रों में कार्य रूप ले रही है। यद्यपि वृद्धि से संबंधित घरेलू कारक सुदृढ़ हैं पर वैश्विक सुधार में यदि कोई गिरावट आती है तो इससे भारत समेत सभी उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं पर असर पड़ेगा।

6. उपर्युक्त कारकों को ध्यान में रखते हुए, वास्तविक सकल घरेलू उत्पादन की वृद्धि को 2010-11 हेतु अप्रैल की नीति के 8.0 प्रतिशत से बढ़ाकर 8.5 प्रतिशत कर दिया गया है। यह उर्ध्वमुखी संशोधन मुख्यत: बेहतर औद्योगिक उत्पादन एवं सेवा क्षेत्र पर इसके सकारात्मक प्रभाव के चलते रहा है, साथ ही इसमें वैश्विक परिदृश्य को भी ध्यान में रखा गया है।

मुद्रास्फीति

7. तथापि, मुद्रास्फीति के क्षेत्र में हो रही घटनाएं चिंताजनक हैं। थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति फरवरी 2010 से दो अंकों में बनी हुई है। हालांकि, मुख्य खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति में कुछ कमी आई है परंतु फिर भी यह दो अंकों में बनी हुई है। नवंबर 2009 से जून 2010 के बीच खाद्येतर मुद्रास्फीति शून्य से बढ़कर 10.6 प्रतिशत हो गई है तथा खाद्येतर विनिर्मित मुद्रास्फीति शून्य से बढ़कर 7.3 प्रतिशत हो गई है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जून 2010 में थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में खाद्येतर मदों का योगदान 70 प्रतिशत से भी अधिक था जिससे ज्ञात होता है कि मुद्रास्फीति बेहद आम हो गई है। सभी चारों उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों में मुद्रास्फीति दो अंकों में बनी हुई है, फिर भी हाल के महीनों में इसमें कुछ गिरावट देखी गई है।

8. संभावना बनती है कि आगे मुद्रास्फीति का हाल इन तथ्यों पर निर्भर करेगा: (i) शेष अवधि में मानसून की स्थिति; (ii) वैश्विक स्तर पर शक्ति एवं पण्यों के मूल्य की स्थिति, पिछले कुछ सप्ताह में इनमें नरमी के संकेत दिखाई पड़े हैं; एवं (iii) मांग-पक्ष दबाव की संभावना एवं घरेलू वृद्धि में मजबूती की संभावना।

9. उभरते घरेलू एवं बाह्य परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए मार्च 2010 के थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति हेतु हम अपने अनुमान को अप्रैल की नीति के 5.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.0 प्रतिशत करते हैं।

मौद्रिक सकल

10. प्रत्याशा है कि उच्चतर वृद्धि अनुमानों के बावजूद भी मौद्रिक सकल अप्रैल के नीतिगत विवरण में दर्शाई गई अनुमानिक वक्र रेखा के आसपास ही घुमने की आशा है। तद्नुसार, नीतिगत उद्देश्य हेतु हम अपने पूर्वानुमानों के हिसाब से मुद्रा आपूर्ति (एम3) की वृद्धि को 17 प्रतिशत तथा खाद्येतर बैंक ऋण वृद्धि 20 प्रतिशत पर ही रख रहे हैं।

जोखिम तत्व

11. मुझे वृद्धि और मुद्रास्फीति परिदृश्य से जुड़े कुछ जोखिमों के बारे में बताने दें।

  • पहला जोखिम तत्व है कि यदि वैश्विक सुधार (सुधार) नहीं हो पाता, तो उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई)पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभवना रहेगी और वैश्विक व्यापार में व्यापक मंदी का प्रभाव भारतीय विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों पर भी पड़ेगा।

  • दूसरा जोखिम कारक यह है कि एक अनिश्चित वैश्विक स्थिति के कारण ईएमई को पूंजी प्रवाह में महत्वपूर्ण रूप से कमी आ जाएगी। पूंजी अंतर्वाह में इस तरह की कमी देशी निवेश का मार्ग अवरुद्ध करेगी जो उच्च वृद्धि दर हासिल करने और उसे बनाए रखने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। संभवत: भारत में भी यह एक समस्या हो सकती है क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था में तीव्र सुधार के परिणामस्वरूप चालू खाता घाटा बढ़ा है।

  • तथापि, इस बात को स्वीकार किया जाना चाहिए कि पूँजी प्रवाह का जोखिम दोनों तरफ से होता है। यह काफी हद तक संभव है कि ईएमई, भारत को सम्मिलित करते हुए, को विस्तारित अवधि के लिए अग्रणी देशों के केंद्रीय बैंकों की आर्थिक सहायतावाली मौद्रिक नीतियों के कारण उन्हें आवश्यकता से अधिक प्रवाह प्राप्त होता हो। हमारी अर्थव्यवस्था की अवशोषण क्षमता से भी अधिक बृहद पूँजी प्रवाह मौद्रिक और विनिमय दर प्रबंधन के लिए चुनौतियाँ खड़ी करेगा और आस्ति मूल्यों के लिए भी इसके प्रभाव पड़ेंगे। इन परिस्थितियों में व्यापक चालू खाता घाटा पूँजी प्रवाह के बृहत्तर भाग को अवशोषित करने में सहायता करेगा।

  • तीसरा जोखिम कारक मुद्रास्फीति मामले का है। आगे के महीनों में मुद्रास्फीति में नरमी खाद्य मूल्यों में कमी पर निर्भर होगी जो परिणामस्वरूप इस मानसून की शेष अवधि में वर्षा के स्थानिक और सामयिक वितरण पर निर्भर होगा।

  • तथापि, जोखिम कारकों के संबंध में हमें इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए कि जब तक वैश्विक वृद्धि में तेज़ी नहीं आती, पण्य वस्तुओं और ऊर्जा की कीमतें दबी रहेंगी। इसके अतिरिक्त कई क्षेत्रों में उपयोग से बच रही वैश्विक क्षमता आयातों की कीमतों को कम रखेगी और आयात विकल्पों पर अधोगामी दबाव डालेगी।

मौद्रिक नीति रूझान

12. रिज़र्व बैंक ने अक्टूबर 2009 में अपनी विस्तारवादी मौद्रिक नीति में विपरीत क्रम का प्रारंभ किया है और भारत के ठोस वृद्धि - मुद्रास्फीति गतिशीलता से निकलने के उपाय किए हैं। आज की नीति कार्रवाई विशेष रूप से तीन प्रमुख अवधारणाओं द्वारा सूचित की गई है।

  1. देशी अर्थव्यवस्था में सुधार अपनी जड़ें जमा चुका है और यह मज़बूती की ओर बढ़ रहा है;

  2. माँग पक्ष के मुद्रास्फीतिकारी दबाव, जो स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं, उन्हें नियंत्रित करने की आवश्यकता है; और

  3. संचयी रूप से 75 आधार अंकों की वृद्धि नीति दरों में किए जाने के बावजूद यह निश्चित है कि हम अपने नीति लिखतों को उभरती हुई वृद्धि और मुद्रास्फीति स्थितियों के अनुरूप स्तर तक सामान्य बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और साथ ही यह सावधानी भी बरत रहे हैं कि सुधार में कोई बाधा न आने पाए।

13. हमारी मौद्रिक नीति कार्रवाईयों से अपेक्षित है कि वे

  1. माँग के दबावों और मुद्रास्फीति अपेक्षाओं को नियंत्रित करके मुद्रास्फीति को कम करेंगी।

  2. विकास को बरकरार रखने में सहायक वित्तीय स्थितियों को बरकरार रखेंगी।

  3. नीति के और अधिक प्रभावी प्रसार के अनुकूल चलनिधि परिस्थितियाँ उत्पन्न करेंगी।

  4. अल्पावधि दरों की अस्थिरता को और भी अधिक कम करेंगी।

मौद्रिक नीति की परिचालनात्मक प्रक्रियाएँ

14. अब मैं दो नए प्रयासों - पहली संरचनात्मक और दूसरी नीतिगत समीक्षा और संचार के संबंध में बात करूँगा।

15. रिज़र्व बैंक का एलएएफ कुछ इस तरह से परिचालित होता है कि मार्जिन पर भी प्रणालीगत चलनिधि आधिक्य और घाटे में बदलती रहती है, ओवरनाइट माँग मुद्रा दर रिवर्स रिपो दर और रिपो दर में परिवर्तित होती रहती है। चूँकि प्रणालीगत चलनिधि एक मार्गी आधिक्य स्वरूप से द्वि-मार्गी स्वरूप की ओर जाती है, मौद्रिक संचार की प्रभावक्षमता पर इसके प्रभाव पड़ेंगे। परिवर्तनशील चलनिधि गतिशीलता के संदर्भ में एलएएफ के परिचालन का अध्ययन किया जाना चाहिए। तदनुसार, एलएएफ सहित रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति की चालू परिचालनात्मक प्रक्रिया की समीक्षा करने के लिए एक कार्य दल की स्थापना प्रस्तावित है।

मौद्रिक नीति की मध्यावधि तिमाही समीक्षा

16. दूसरे नए प्रयास बार-बार होने वाली नीतिगत समीक्षा के संबंध में हैं। जबकि हमारी निर्धारित नीतिगत घोषणाएँ तिमाही आधार पर होती हैं, मार्च और जुलाई 2010 सहित हाल के वर्षों में कई ऐसे मौके आए हैं जब हमें निर्धारित समय से पहले मौद्रिक नीति संबंधी कार्रवाईयाँ करनी पड़ीं। तिमाही समय-सारणी का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह होता है कि निर्णय लेते समय हमारे समक्ष पर्याप्त मात्रा में सामग्री होती है। तथापि, तेजी से बदलने वाली समष्टि आर्थिक स्थिति में, हमें तिमाही प्रक्रिया की कठिनाई और व्यापकता को बार-बार की जाने वाली समीक्षाओं की प्रतिक्रिया और लचीलेपन के साथ मिला देना चाहिए। तदनुसार, रिज़र्व बैंक अब से मध्यावधि तिमाही समीक्षाएं प्रत्येक तिमाही समीक्षा के बाद लगभग डेढ़ महीने के अंतराल में आयोजित करेगी। समय-सारणी के अनुसार मध्यावधि तिमाही समीक्षाएँ जून, सितंबर, दिसंबर और मार्च में आयोजित की जाएँगी। ये समीक्षाएं प्रेस प्रकाशनी के माध्यम से जारी की जाएगी और आर्थिक परिस्थितियों के हमारे आकलन के बारे में बारंबार जानकारी दी जाएगी और हमारी नीति कार्रवाईयाँ अथवा स्थिति को बनाए रखने की उपयुक्तता के बारे में जानकारी उपलब्ध करायी जाएगी। तथापि, रिज़र्व बैंक के पास उभरती समष्टि आर्थिक गतिविधियों के कारण जब भी जरुरत हो तत्काल और सुधारात्मक  नीति कार्रवाई करने के लिए हमेशा की तरह लचीलापन बना रहेगा।

बैंकों के साथ विचार-विमर्श

17. रिज़र्व बैंक के नीतिगत रुझान का बैंकों ने स्वागत किया है। वे इस बात पर सहमत थे कि वर्तमान वैश्विक एवं घरेलू संतुलन के मद्देनज़र रिज़र्व बैंक द्वारा आज घोषित मौद्रिक उपाय उचित हैं। उन्होंने यह उल्लेख भी किया है कि ऋण के उठाव में तेजी आई है यद्यपि इसकी बड़े वर्ग तक पहुंच होनी शेष है। मौद्रिक उपायों के अलावा, बैंकों के साथ इन चार विशिष्ट विषयों पर भी ध्यान केंद्रित किया गया:- (i) चलनिधि की स्थिति एवं चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) सीमा (कॉरिडोर) ; (ii) बासेल III मानदंड; (iii) सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई); तथा (iv) आधार दर। बैंकों ने उल्लेख किया कि चलनिधि परिस्थिति आगे कुछ समय तक कठिनाई के दौर से गुजरेगी क्योंकि ऋण लेने की तुलना में जमा होने वाली राशि की मात्रा कम है। उन्होंने यह भी महसूस किया कि चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) सीमा (कॉरिडोर) अल्पावधि ब्याज दर में होने वाले उतार-चढ़ाव को प्रतिबंधित करेगा और मौद्रिक संचरण में सुधार लाएगा। बैंकों ने यह भी उल्लेख किया कि बासेल III मानदंडों का भारतीय बैंकों पर कोई बहुत महत्वपूर्ण असर नहीं पड़ेगा। तथापि, सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) आस्ति को चलनिधि व्याप्ति अनुपात में शामिल किए जाने की आवश्यकता है। कई बैंकों के एमएसएमई क्षेत्र से संबंधित संविभाग में तीव्र वृद्धि हो रही है। रिज़र्व बैंक ने जोर दिया कि एमएसएमई क्षेत्र को दिए जाने वाले ऋण में हो रही वृद्धि की दर को बनाए रखने की आवश्यकता है तथा बैंकों को चाहिए कि वे अपने मुख्य प्रबंधकों को एमएसएमई क्षेत्र को ऋण प्रदान करने के महत्व के बारे में जानकारी दें। बैंकों ने यह भी कहा कि यद्यपि आधार दर में अंतरण सामान्यत: सुगम रहा है पर वर्तमान ऋणों से संबंधित कुछ मसले हैं।"

जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/140

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