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मौद्रिक नीति 2012-13 की पहली तिमाही समीक्षा डॉ. डी. सुब्‍बाराव, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक का प्रेस वक्‍तव्‍य

31 जुलाई 2012

मौद्रिक नीति 2012-13 की पहली तिमाही समीक्षा
डॉ. डी. सुब्‍बाराव, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक का प्रेस वक्‍तव्‍य

''सबसे पहले मैं रिज़र्व बैंक की ओर से आपका हार्दिक स्‍वागत करता हूँ।

2. आज सुबह हमने वर्ष 2012-13 के लिए मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा प्रस्‍तुत की है। वर्तमान समष्टिआर्थिक आकलन के आधार पर हमने यह निर्णय लिया है कि नीति दर और सीआरआर को अपरिवर्तित रखा जाए। तदनुसार, रिपो दर 8  प्रतिशत पर बना रहेगा तथा प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) वाणिज्यिक बैंकों की निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) का 4.7 प्रतिशत रहेगा।

3. इसके परिणामस्‍वरूप चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत प्रत्‍यावर्तनीय रिपो दर जो रिपो दर से 100 आधार अंकों के अंतर पर निर्धारित की गई है, 7 प्रतिशत बनी रहेगी। उसी प्रकार सीमांत स्‍थायी सुविधा (एमएसएफ) जो रिपो दर से 100 आधार अंक अधिक के अंतर पर है वह भी 9 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रहेगी।

4. इससे अलग हमने यह निर्णय लिया है कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) में कमी करते हुए उसे 11 अगस्‍त 2012 को शुरू होने वाले पखवाड़े से उनके एनडीटीएल के 24 प्रतिशत से 23 प्रतिशत किया जाए।

इस नीति प्रयास के पीछे की अवधारणा

5. मैं इस मौद्रिक नीति रूझान के पीछे के औचित्‍य का वर्णन करना चाहूँगा।

6. पहला प्रश्‍न यह है: नीति ब्‍याज दर को रोक रखने तथा सीआरआर अपरिवर्तित रखने के हमारे निर्णय का औचित्‍य क्‍या है? यह औचित्‍य वृद्धि-मुद्रास्‍फीति गतिशीलता के हमारे आकलन से लिया गया है।

  •  जहां तक मुद्रास्‍फीति का संबंध है हेडलाईन थोक मूल्‍य मुद्रास्‍फीति 7 प्रतिशत के ऊपर बनी हुई है। ऐसा खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी, इनपुट लागतों में बढ़ोतरी तथा कोयला जैसे कुछ लागू मदों की कीमतों में बढ़ोतरी के संशोधन के कारण हुआ है। हेडलाईन मुद्रास्‍फीति निरंतर बनी हुई है यद्यपि वृद्धि में सुधार हुआ है तथा कंपनियों की मूल्‍यन शक्तियां कमज़ोर हुई है। गैर-खाद्य विनिर्मित उत्‍पाद मुद्रास्‍फीति भी वृद्धि में सुधार की आवश्‍यक सीमा तक नीचे नहीं आयी है। यह गंभीर आपूर्ति बाधाओं तथा मुद्रास्‍फीति प्रत्‍याशाओं के विस्‍तार को दर्शाता है।

  •  अब हम वृद्धि की बात करेंगे। पिछले वर्ष वृद्धि इससे पहले वाले वर्ष में 8.4 प्रतिशत से घटकर 6.5 प्रतिशत हो गई। यद्यपि, हाल के अधिकांश आंकड़े कुछ तेज़ी का प्रस्‍ताव करते हैं, समग्र आर्थिक गतिविधि स्थिर बनी हुई है। मुद्रास्‍फीतिकारी प्रभावों का आकलन करने के लिए हमें प्रवृत्ति वृद्धि दर की तुलना में वर्तमान वृद्धि दर को देखने की ज़रूरत है। रिज़र्व बैंक का आकलन यह प्रस्‍तावित करता है कि संकट के बाद वृद्धि की प्रवृत्ति दर जिसे पहले 8.0 प्रतिशत अनुमानित किया गया था यह कम होकर 7.5 प्रतिशत हो गई है। इसका अर्थ यह है कि वृद्धि की वर्तमान दर प्रवृत्ति से कम है। तथापि, उत्‍पादन अंतराल जो वृद्धि की वास्‍तविक और प्रवृत्ति दर  के बीच का अंतर है वह सापेक्षत: छोटा बना रहेगस। इन स्थितियों के अंतर्गत मुद्रास्‍फीति पर मांग दबाव विद्यमान आपूर्ति दबावों को और खराब करते हुए अधिक तेज़ी से पुन: उभरेंगे।

7.   हमारे नीति रूझान पर दूसरा प्रश्‍न एसएलआर को 1 प्रतिशत बिंदु तक कम करने के निर्णय के बारे में है। मौद्रिक नीति संकेतकों के अंतरण में चलनिधि स्थितियां एक महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा करती है। यद्यपि हाल की अवधि में चलनिधि स्थिति उल्‍लेखनीय रूप से आसान हुई है, एसएलआर में कमी से यह आशा की जाती है कि वह यह सुनिश्चित करेगा कि चलनिधि दबाव अर्थव्‍यवस्‍था के उत्‍पादक क्षेत्रों के लिए ऋण के प्रवाह को बाधित नहीं करेंगे। इससे बैंकों को निजी क्षेत्र के पक्ष में अपने संविभाग को बदलने में सहायता मिलेगी।

मौद्रिक नीति रूझान

8. अब मैं अपनी मौद्रिक नीति रूझान की तीन व्यापक सीमाओं को बताना चाहूँगा । वे हैं:

  • पहली, मुद्रास्फीति पर काबू पाना और  मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को नियंत्रित रखना ;

  • दूसरी, मध्‍यावधि में निरंतर वृद्धि मार्ग को सहयोग देना; और

  • तीसरी, उत्पादक क्षेत्रों को ऋण उपलब्धता की सुविधा देने के लिए चलनिधि उपलब्धता जारी रखना।

मार्गदर्शन

9.    मानक  पद्धति के अनुसार, हमनें आनेवाली अवधि के लिए भी मार्गदर्शन दिया है। मैं उसका सार प्रस्तुत कर रहा हूँ।

10.  मौद्रिक नीति का मुख्य केन्द्र मुद्रास्फीति नियंत्रण ही बना हुआ है। मध्यम अवधि में निरंतर वृद्धि प्राप्त करने के लिए निम्न और स्थिर मुद्रास्फीति एक आवश्यक पूर्व-शर्त रही है। जबकि पिछले दो वर्षों में मौद्रिक कार्रवाईयों ने मंद वृद्धि में योगदान दिया है - जोकि एक अपरिहार्य कारण है - इसमें कई अन्य कारकों ने भी एक उल्लेखनीय भूमिका निभायी है। वर्तमान परिस्थितियों में, नीति दरों को कम करने से आवश्यक रूप से वृद्धि  को प्रोत्साहित किए बगैर ही मुद्रास्फीतिकारी प्रभाव बढ़ जाएंगे। जैसे ही वृद्धि के सामने आ रही विविध बाधाओं को का समाधान जाता है रिज़र्व बैंक उपयुक्‍त ढंग से अपने मौद्रिक नीति रूझान को समायोजित करेगा।

11.  इस बीच सुगमता स्तर के भीतर चलनिधि का प्रबंधन करना एक लक्ष्य बना रहेगा। रिज़र्व बैंक चलनिधि दबावों का समाधान खुले बाज़ार परिचालनों (ओएमओ) को शामिल करते हुए करेगा।

12. वर्तमान अनिश्चित और अशांत वैश्विक वातावरण में बाह्य आघातों का जोखिम अत्यधिक है। रिज़र्व बैंक उपलब्ध सभी लिखतों का प्रयोग करते हुए ऐसे किन्‍हीं आघातों का तुरंत समाधान करने के लिए तैयार है।

अपेक्षित परिणाम

13. हम अपेक्षा करते हैं कि आज की नीति कार्रवाईयाँ और मार्गदर्शन जो हमनें  दिया है  वह  निम्नलिखित दो परिणाम देंगे :

  • पहला, मुद्रास्फीति पर  काबू  पाने के लिए मौद्रिक नीति जिम्मेदारी पर आधारित मुद्रास्फीति अपेक्षाएं नियंत्रित की जाएंगी।

  • दूसरा, अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को ऋण के सुगम प्रवाह को सुविधा देने के लिए चलनिधि को बनाए रखा जाएगा और इससे वृद्धि को सहायता मिलेगी।

वैश्विक और घरेलू गतिविधियाँ

14. हमारे नीति निर्णय वैश्विक और घरेलू समष्टि रूप से आर्थिक परिस्थितियों के सावधानीपूर्वक आकलन पर आधारित है। मैं पहले वैश्विक अर्थव्यवस्था के हमारे आकलन से शुरू करना चाहूँगा।

वैश्विक अर्थव्यवस्था

15. अप्रैल 2012 के वार्षिक मौद्रिक नीति वक्तव्य से अब तक वैश्विक समष्टि -  आर्थिक परिस्थितियों में गिरावट आयी है। इस वर्ष के शुरूआती महीनों में कुछ अच्छी गति रही है। किन्तु अब वह खत्म हो गयी है। अधिकतम वैश्विक अर्थव्यवस्था अब एक समकालिक मंदी में है। मंद वैश्विक अर्थव्यवस्था के बावजूद पण्य मूल्यों के लिए दृष्टिकोण अनिश्चित है। यूरो क्षेत्र हाल की चूक  की संभावना से बढ़ गया है किंतु स्थिति चिंतानजक बनी हुई है।

16. सारे संसार में दुहरी गति के सुधार जिसके बारे में हम एक वर्ष पहले बात कर रहे थे वह अब बिखर गया है। उभरती और विकासशील अर्थव्‍यवस्‍थाओं में भी आर्थिक गतिविधि में मंद होना शुरू कर दिया है लेकिन उनमें से अधिकांश में मुद्रास्‍फीति भी नीचे आयी है। भारत ने स्‍पष्‍ट रूप से इसे झुठलाया है क्‍योंकि बाकी संसार के अनुरूप हमारी वृद्धि के मंद होने के बावजूद हमारी मुद्रास्‍फीति उच्‍चतर बनी हुई है।

भारतीय अर्थव्यवस्था

17.  घरेलू समष्टि आर्थिक स्थिति की ओर बढ़ते हुए, पिछले वर्ष सकल घरेलू उत्‍पाद वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत थी, जो कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा लक्षित 7 प्रतिशत से कम था। वास्तव में वृद्धि में 2010-11 की चौथी तिमाही के 9.2 प्रतिशत से 2011-12 की चौथी तिमाही में 5.3 प्रतिशत तक लगातार चार तिमाहियों में गिरावट आई। वृद्धि में आई कमी औद्योगिक विकास और साथ ही साथ सेवा क्षेत्र की गतिविधि में आई कमी के कारण थी।

18. वर्तमान वर्ष की बात करें तो अप्रैल में घोषित नीति में हमने सामान्य मानसून और औद्योगिक गतिविधि में सुधार का अनुमान लगाते हुए हमने 7.3 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि का अनुमान लगाया था। ये दोनों ही अनुमान सही साबित नहीं हुए। अभी तक मानसून कम और असामान्य रहा है। अप्रैल - मई  के लिए औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों का सुझाव दर्शाता है कि औद्योगिक गतिविधि कमज़ोर ही रहेगी।

19. इसके अतिरिक्त वैश्विक स्थिति के कारण जोखिम बढ़ा है। वैश्विक वृद्धि और व्यापार की मात्रा का अब पूर्व में अनुमानित दर से कम रहने का अनुमान है। भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ और अधिक मिलकर काम करने के कारण वृद्धि पर इसका विपरीत असर पड़ेगा,  विशेष तौर पर औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में।

20. उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखते हुए, वर्तमान वर्ष के लिए लक्षित वृद्धि को 7.3 प्रतिशत से संशोधित करके 6.5 प्रतिशत कर दिया गया है।

मुद्रास्फीति

21.  अब मैं मुद्रास्फीति की बात करुंगा। हेडलाइन डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति जून 2012 में कम होकर 7.3 प्रतिशत रह जाने से पूर्व के अप्रैल माह में 7.5 प्रतिशत से बढ़कर मई में 7.6 प्रतिशत हो गई। वृद्धि में काफी कमी आने के बावजूद मुद्रास्फीति के बरकरार रहने का कारण था उच्च प्राथमिक खाद्य मुद्रास्फीति जोकि सब्जियों के मूल्यों में आई वृद्धि और प्रोटीन पदार्थों के मूल्य में सतत उच्च मुद्रास्फीति के चलते इस वर्ष की प्रथम तिमाही के दौरान द्विअंकीय थी।

22. ईंधन समूह मुद्रास्फीति गैर-निर्धारित ईंधन कीमतों में आई गिरावट के कारण अप्रैल 2012 के 12.1 प्रतिशत से कम होकर मई में 11.5 प्रतिशत रह गई और जून में और अधिक घटकर 10.3 प्रतिशत हो गई। तथापि , हाल ही के सप्ताहों में कच्चे तेल की कीमतों में हुई वापसी मुद्रास्फीति दबावों को बढ़ा सकती है ।

23. खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति मई और जून 2012 में 4.8 प्रतिशत थी। तथापि, विनिमय दर गतिविधियों और आपूर्तिपक्ष के दबावों, दोनों ही के कारण इनपुट मूल्य दबाव जारी हैं। आगे की बात करें तो, खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति पर पड़ने वाले और अधिक दबाव को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है।

24.  डब्‍ल्‍यूपीआई मुद्रास्‍फीति के विपरीत, सीपीआई मुद्रास्‍फीति जोकि नए उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक द्वारा मापी गई है, पहली तिमाही में द्विअंकीय रही। यह खाद्य और खाद्येतर मूल्‍यों द्वारा संचालित था। डब्‍ल्‍यूपीआई और सीपीआई मुद्रास्‍फीति के बीच अंतर दो सूचकांकों में पण्‍यों के संघटन और भारों में अंतर और साथ ही साथ दोनों सूचकांकों में एक समान पण्‍यों के लिए मूल्‍य वृद्धि की अलग-अलग दरों के कारण था।

25.  अप्रैल में घोषित नीति में रिज़र्व बैंक ने मार्च 2013 के लिए डब्‍ल्‍यूपीआई मुद्रास्‍फीति के लिए 6.5 प्रतिशत का आधार लक्ष्‍य रखा था। तथापि, उसके बाद के कई अपसाईड जोखिम उत्‍पन्‍न हुए हैं:

  • पहला, मानसून कम और असमान रहा है। खाद्य मुद्रास्‍फीति पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

  • दूसरा, कुछ कमी के बावजूद भी अंतर्राष्‍ट्रीय कच्‍चे तेल की कीमतें बढ़ी हुई ही रहीं। सर्वोपरि रूप से रुपए की कीमतों में आयी गिरावट का असर आयात कीमतों में पड़ा है, जिससे ईंधन की घरेलू कीमतों के अत्‍यधिक बढ़ने का दबाव पड़ा है।

  • तीसरा, पेट्रोलियम उत्‍पादों की घरेलू कीमतों का अंतर्राष्‍ट्रीय  मूल्‍य परिवर्तनों के साथ समायोजन अभी अधूरा है। आगे की बात करें तो दबी हुई मुद्रास्‍फीति में निहित जोखिम, भारत में ईंधन की कीमतों पर प्रभाव डाल सकते हैं।

  • चौथा, खाद्येतर विनिर्मित उत्‍पाद मुद्रास्‍फीति वृद्धि में आयी कमी के अनुसरण में कम नहीं हुई है।

  • और अंतत: विनिमय दर गतिविधि और कोयला, खनिज़ और ऊर्जा के संबंध में मूलभूत संरचनात्‍मक अड़चनों के कारण खाद्येतर विनिर्मित उत्‍पाद मुद्रास्‍फीति पर अत्‍यधिक दबाव पड़ सकता है ।

26. खाद्य मुद्रास्‍फीति की हाल की प्रवृत्तियों को ध्‍यान में रखते हुए, वैश्विक पण्‍य कीमतों की प्रवृत्ति और संभावित मांग परिदृश्‍य, मार्च 2013 के लिए डब्‍ल्‍यूपीआई के आधार लक्ष्‍य को अप्रैल के 6.5 प्रतिशत के लक्ष्‍य से बढ़ाकर 7.0 प्रतिशत कर दिया गया है।

मौद्रिक और चलनिधि परिस्थितियां

27.  अब मैं मौद्रिक और चलनिधि परिस्थितियों की बात करूंगा। मोटे तौर पर नाममात्र वृद्धि का सतर अप्रैल में घोषित नीति के अनुरू बने रहने के कारण, मौद्रिक कुल राशियों के मौद्रिक नीति वक्‍तव्‍य 2012-13 में अनुमानित लक्ष्‍यों के अनुसार रहने की संभावना है। तदनुसार, इस वर्ष एम3 वृद्धि लक्ष्‍य 15 प्रतिशत ही रखा गया है और अनुसूचित वाणिज्‍य बैंकों के खाद्येतर क्रेडिट की वृद्धि 17 प्रतिशत रखी गई है।

28.  अप्रैल की नीति से अब तक चलनिधि की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। यह परिवर्तन रिज़र्व बैंक के पास सरकारी नकदी शेष में कमी, खुले बाजार परिचालन (ओएमओ) के माध्यम से लगभग 860 बिलियन की चलनिधि डालने और जून में  तिमाही-मध्‍य समीक्षा से बढ़ी हुई सीमा के पश्चात बैंकों द्वारा निर्यात ऋण पुनर्वित्तपोषण सुविधा के बढ़े हुए प्रयोग के कारण हुआ।

जोखिम घटक

29.  2012-13 के लिए वृद्धि और मुद्रास्फीति का हमारा अनुमान कई जोखिमों के अधीन है।

  • पहला, भारतीय अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण के लिए बाहरी जोखिम बढ़ रहे हैं। यूरो क्षेत्र में सरकारी और वित्तीय बाजार तनाव के बीच विपरीत प्रतिसूचना के भीतर बढ़े हुए जोखिम निवारण, वित्तीय बाज़ार में उतार-चढ़ाव और पूँजी प्रवाह की विकृत गति में परिणत हो रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और उभरती हुई तथा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि की गति में हानि से तालमेल करते हुए यूरो क्षेत्र में बिगड़ती बृहत आर्थिक स्थिति के साथ बहुत बड़े नकारात्मक जमावड़ों का जोखिम बढ़ गया है। भारत की वृद्धि की संभावना भी इससे बाधित होगी।

  • दूसरा, वैश्विक सुधार में गतिरोध के साथ-साथ विश्‍व के कई हिस्‍सों में मौसम संबंधि प्रतिमुलताओं को दर्शाते हुए खाद्य और पण्‍य वस्‍तुओं खासकर कच्‍चे तेल की कीमतों के लिए संभावना अनिश्चित हो गई है। इन गतिविधियों का घरेलू वृद्धि और मुद्रास्‍फीति पर प्रतिकुल प्रभाव होगा।

  • तीसरा, संरचनात्‍मक मांग-आपूर्ति असंतुलन के कारण प्रोटीन मदों में मुद्रास्फीति ऊंची बनी हुई है। इससे भी ऊपर अपर्याप्त और अनियमित मानसून के कारण खाद्य मुद्रास्फीति पर और दबाव बढेंगे जिससे संभावित रूप से मुद्रास्‍फीति और मुद्रास्‍फीति प्रत्‍याशाओं को बल मिलेगा।

  • और अंत में, चालू खाते और राजकोषीय घाटे के वर्तमान स्तर पर भारतीय अर्थव्यवस्था ''दुहरा घाटा'' जोखिम का सामना कर रही है। घरेलू बचत से राजकोषीय घाटे का वित्तपोषण करने से निजी निवेश का प्रभाव एक बार में समाप्त हो जाता है, जिससे वृद्धि  की संभावना कम हो जाती है। बदले में, यह चालू खाता घाटे के वित्तपोषण को अधिक  कठिन  बनाते हुए, पूँजी अंतर्प्रवाह को रोकता है। उचित नीति कार्रवाई से दुहरे घाटे को कम करने की असफलता बृहत आर्थिक स्थिरता और वृद्धि निरंतरता दोनों को संकट में डालेगी।

30. हमारी व्‍यापक आर्थिक चिंताओं को संक्षिप्‍त रूप में प्रस्‍तुत करते हुए मैं अपनी बात समाप्‍त करता हूँ। जब वृद्धि की गति महत्‍वपूर्ण रूप से धीमी हुई है, मुद्रास्‍फीति रिज़र्व बैंक के सुविधा स्‍तर पर बहुत ऊपर बनी हुई है। उच्‍च वैश्विक अनिश्चितता और घरेलू व्‍यापक आर्थिक दबावों की पृष्‍ठभूमि के विरुद्ध मौद्रिक नीति के लिए चुनौती यह है कि यह दृढ़ रूप से मुद्रास्‍फीति को रोकने और मुद्रास्‍फीति प्रत्‍याशाओं को कम करने की अपनी प्रतिबद्धता को कायम रखे। साथ ही, मौद्रिक नीति वृद्धि जोखिमों के लिए संवेदनशील बनी रहेगी। मैं यह भी दुहराना चाहता हूँ कि रिज़र्व बैंक बाहरी आघातों से निपटने के लिए भी तैयार है जो उथल-पुथल वाले वैश्विक वातावरण से उत्‍पन्‍न हो सकते हैं।

31.  धन्‍यवाद!''

आर. आर. सिन्‍हा
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/164

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