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वित्त मंत्री ने मैसूर में बैंक नोटों के लिए कागज़ की मिल की आधारशिला रखी

22 मार्च 2010

वित्त मंत्री ने मैसूर में बैंक नोटों के लिए कागज़ की मिल की आधारशिला रखी

"देश की अर्थव्यवस्था में करेंसी भुगतान का एक प्रमुख जरिया बना हुआ है। करेंसी से सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात जो वर्ष 1951 में 12 प्रतिशत था अब वह लगभग 13 प्रतिशत पर है। भारत जैसे बड़े और विकासशील देश के लिए कागज़, स्याही आदि जैसी अपनी विभिन्न सामग्री सहित करेंसी नोटों के निर्माण की प्रक्रिया की जरूरत नीतिगत रूप से महत्त्वपूर्ण है। साथ ही, इससे आश्वासित, सरल और समय पर आपूर्ति, लागत की बचत, सुरक्षा और रोज़गार निर्माण आदि के रूप में भी समेकित लाभ प्राप्त होगा। निर्माण प्रक्रिया में एक उल्लेखनीय उपलब्धि के रूप में भारत सरकार के माननीय वित्त मंत्री, श्री प्रणव मुखर्जी ने भारतीय रिज़र्व बैंक नोट मुद्रण प्राईवेट लिमिटेड (बीआरबीएनएमपीएल) के परिसर में आज दोपहर में मैसूर में एक नए बैंक नोटों के लिए कागज़ की मिल की आधारशिला रखी।

इस कार्यक्रम में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर डॉ. डी.सुब्बाराव, उप गवर्नर, श्रीमती उषा थोरात जो भारतीय रिज़र्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड की अध्यक्षा भी है, मुख्य प्रबंध निदेशक भारतीय सुरक्षित छपाई और मिंट कार्पोरेशन लिमिटेड, श्री एम.एस.राणा, प्रबंध निदेशक, भारतीय रिज़र्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड, श्री एस.सी.अग्रवाल, सांसद, श्री ए.एच.विश्वनाथ और श्री ध्रृव नारायण,विधेयक और मैसूर के मेयर श्री पुरुषोत्तम ने भाग लिया।

यह बैंक नोटों के लिए कागज़ की मिल बीआरबीएनएमपीएल जो भारतीय रिज़र्व बैंक की नोट छपाई इकाई है तथा एसपीएमसीआइएल जो भारत सरकार का उपक्रम है का संयुक्त कार्य है। ये दो एजेंसियाँ देश में सभी करेंसी नोटों की छपाई के लिए संयुक्त रूप से जिम्मेदार हैं। यह इकाई जो मैसूर में नोट छपाई प्रेस के नज़दिक स्थित है के पास 6000 मेट्रिक टन के उत्पादन की क्षमता होगी। साथ ही, दूसरे चरण में लगाई जाने वाली और एक अतिरिक्त लाइन होगी।

वित्त मंत्री ने अपने भाषण में कहा कि ‘मैं एमओएफ तथा भारतीय रिज़र्व बैंक को इस परियोजना की रूपरेखा तैयार करने तथा काफी कम समय में इसका कार्यान्वयन त्वरित पूरा करने के लिए धन्यवाद देता हूँ’। बैंक नोटों के लिए कागज़ का निर्माण से आश्वासित, सरल और समय पर आपूर्ति, लागत की बचत, रोज़गार निर्माण तथा जाली नोटों को रोकने के लिए प्रभावी उपाय के रूप में समेकित लाभ प्राप्त होगा। अत: यह परियोजना एक महत्त्वपूर्ण नीति का परिणाम है और हमें इसकी सफलता के लिए हर दम प्रतिबद्ध रहना चाहिए।

अपनी टिप्पणी में गवर्नर, डॉ.डी.सुब्बाराव ने भारत में करेंसी के कागज़ के इतिहास की जानकारी दी और कागज़ के मिल का महत्त्व और उसकी आवश्यकता को उज़ागर किया। उन्होंने कहा कि नोटों का एक मात्र जारीकर्ता होने के नाते भारतीय रिज़र्व बैंक की यह जिम्मेदारी है कि वह जनता को अच्छे और स्वच्छ नोट पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराएं।

वर्ष 2008-09 में रिज़र्व बैंक ने चार प्रिंटिंग प्रेसों के माध्यम से 15 बिलियन नोटों की छपाई की। मौजूदा वर्ष में उसने लगभग 18,000 मिलियन टन के बैंक नोटों के कागज़ के लगभग 17 बिलियन नोटों का इंडेंट किया है। निकट भविष्य में नोटों और कागज़ की माँग की अवश्यकता और अधिक बढ़ने की अपेक्षा है। उन्होंने यह कहा कि ‘नोटों की छपाई की संख्या के आधार पर विश्व में हमारा देश दूसरे स्थान पर है’। साथ ही उन्होंने कहा कि करेंसी नोटों की छपाई की आवश्यक कुल मात्रा देश के भीतर ही होती है। तथापि, जहाँ तक नोट की छपाई के लिए कागज़ की आवश्यकता का मामला है, भारत करेंसी नोटों की छपाई के लिए आवश्यक कागज़ का केवल 5 प्रतिशत ही (होशंगाबाद सुरक्षित कागज़ मिल के माध्यम से) उत्पादन करता है। शेष 95 प्रतिशत की आवश्यकता के लिए भारत आयातों पर निर्भर होता है। गवर्नर ने कहा कि ‘हमें इस स्थिति को बदलना होगा। मैसूर का यह प्लैंट उत्पादन युनिट होगा जोकि विश्व को उत्कृष्ट अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों के साथ बैंक नोटों के कागज़ के उत्पादन की क्षमता को दर्शाएगा।’

पृष्ठभूमि

  • रिज़र्व बैंक की स्थापना के बाद देश में नोटों के परिचालन का मूल्य वर्ष 1935 में लगभग 172 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2000 में 7 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया है।

  • मात्रा के अनुसार परिचालन में नोट वर्ष 1935 में 124 मिलियन की संख्या से बढ़कर सितंबर 2009 में 51 बिलियन की संख्या से अधिक हो गए हैं।

  • वर्तमान में चार प्रिंटिंग प्रेस हैं - दो भारत सरकार द्वारा स्वाधिकृत हैं जिसमें एक नासिक, महाराष्ट्र (वर्ष 1928 में स्थापित) तथा दूसरा देवास, मध्य प्रदेश (वर्ष 1975) में स्थित हैं और दो रिज़र्व बैंक द्वारा स्वाधिकृत हैं जो मैसूर, कर्नाटक (वर्ष 1996) और शालबोनी, पश्चिम बंगाल (वर्ष 1996) में स्थित हैं। वर्ष 2008-09 में इन चार मुद्रणालयों द्वारा 15 बिलियन नोटों से अधिक नोट मुद्रित किए गए और वर्तमान वर्ष में इनकी संख्या लगभग 17 बिलियन नोटों तक हो जाने की संभावना है। इस परिमाण के साथ भारत मुद्रित नोटों के मामले में विश्व का दूसरा बड़ा देश है।

  • भारत को करेंसी नोट मुद्रण के लिए प्रति वर्ष कागज़ के केवल 5 प्रतिशत की आवश्यकता होती है।

  • वर्तमान में बैंक नोटों के लिए कागज़ की वार्षिक आवश्यकता लगभग 18 हजार टन है।

  • चीन के बाद भारत करेंसी नोटों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है।

  • मुख्य देश उदाहरणार्थ संयुक्त राज्य अमरीका, जापान, चीन, ब्राज़ील, रूस और यूरोपय संघ के देश तथा दक्षिणी कोरिया, इंडोनेशिया, इरान और पाकिस्तान जैसे छोटे देश भी अपने करेंसी नोट पेपर स्वयं तैयार करते हैं।

जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/1269

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