भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए और उपाय - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए और उपाय
5 फरवरी 2009
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भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए और उपाय |
विदेशी मुद्रा स्वैप सुविधा के लिए समय सीमा का विस्तार |
भारतीय रिज़र्व बैंक ने नवबंर 2008 में समुद्रपारीय परिचालन करनेवाले भारतीय व्यक्तियों और निजी क्षेत्र के बैंकों को उनके समुद्रपारीय कार्यालयों में अल्पावधि निधि आवश्यकताओं का प्रबंध करने में लचीलापन उपलब्ध कराने के लिए तीन महीने की अवधि तक के लिए विदेशी मुद्रा स्वैप सुविधा का विस्तार किया है। वैश्विक स्तर पर जारी अनिश्चित ऋण स्थितियों की दृष्टि से वर्तमान में 30 जून 2009 तक उपलब्ध इस सुविधा को बढ़ाकर 31 मार्च 2010 तक कर दिया गया है। |
बहुविध बैंकिंग व्यवस्था के अंतर्गत बैंकों के बीच सूचना सहभागिता |
संघ/बहुविध बैंकिंग/सिंडिकेट व्यवस्था के संचालन से संबंधित कई विनियामक निर्धारणों को अक्तूबर 1996 में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ऋण संवितरण प्रणाली में लचीलापन तथा ऋण के सहज प्रवाह को सुविधा प्रदान करने की दृष्टि से वापस ले लिया गया था। तदनुसार, उधारकर्ता एक अथवा अपनी पसंद के एक से अधिक बैंकों के साथ बैंकिंग कारोबार करने के लिए स्वतंत्र थे। तथापि, बहुविध बैंकिंग व्यवस्था के अंतर्गत घटित अनियमितताओं और धोखाधड़ियों के आलोक में उधार देने वाले बैंकरों को उधारकर्ता संस्थाओं के पूर्ण निवेश ब्योरे की अनुपलब्धता के बारे में चिंताएं प्रकट की गई हैं। इस मामले की जाँच रिज़र्व बैंक द्वारा भारतीय बैंक संघ (आइबीए) के परामर्श से की गई है और उन बैंकों के बीच सूचना की सहभागिता के लिए एक ढाँचा विकसित किया गया है जिन्होंने उन उधारकर्ताओं को ऋण दिया है जो एक से अधिक बैंकों के साथ बैंकिंग कारोबार कर रहे हैं। इसमें अन्य बैंकों से उन वर्तमान उधारकर्ताओं द्वारा प्राप्त की गई ऋण सुविधाओं के संबंध में बैंकों द्वारा घोषणा प्राप्त करना शामिल है जिन्होंने 5 करोड़ रुपए और उससे अधिक की सीमा तक संस्वीकृति प्राप्त की है। ऐसी घोषणा नई सुविधाएं स्वीकृत किए जाने के समय भी प्राप्त करनी होगी। उधारदाता बैंकों के बीच सूचना के विनिमय की एक व्यापक प्रणाली लागू की गई है। सूचना सहभागिता ढाँचे में अन्य बातों के साथ उधारकर्ताओं की व्युत्पन्नी और बचाव व्यवस्था रहित विदेशी मुद्रा निवेश में स्थिति शामिल है। इस ढाँचे को 19 सितंबर 2008 को वेबसाईट पर डाला गया। इस ढाँचे पर भारतीय बैंक संघ के साथ पुन: चर्चा की गई जिसने आश्वासन दिया है कि बैंक ऊपर निर्दिष्ट सूचना सहभागिता ढाँचे के साथ-साथ ऋण सूचना ब्यूरो (भारत) लिमिटेड (सीआइबीआइएल) के पास उपलब्ध ऋण सूचना का भी पूर्ण उपयोग करेंगे ताकि एक मज़बूत ऋण संस्कृति उपलब्ध कराई जा सके। |
अग्रिमों की पुनर्संरचना से संबंधित उपाय |
27 अक्तूबर 2008 को रिज़र्व बैंक ने बैंकों द्वारा अग्रिमों को पुनर्संरचित करने के लिए व्यापक निर्देश जारी किए थे। उसके बाद, वैश्विक गतिविधियों की दृष्टि से विशेष विनियामक कार्रवाई के लिए द्वितीय पुनर्संरचना की पात्रता और वाणिज्यिक भूसंपदा निवेशों की पहली पुनर्संरचना सहित कतिपय सुविधाओं की स्वीकृति 30 जून 2009 तक दी गई थी। इसके अतिरिक्त बैंकों को अनुमति दी गई कि वे उन खातों के लिए विशेष विनियामक कार्रवाई लागू करें जो 1 सितंबर 2008 को मानक थे और इस अवधि के दौरान उनके गैर-निष्पादक हो जाने के बावजूद उन्हें 31 जनवरी 2009 तक पुनर्संरचित किया जाना था। रिज़र्व बैंक के पास यह आवेदन किया गया है कि बढ़े हुए कार्यभार के कारण बैंक 31 जनवरी 2009 तक की समय-सारणी का पालन नहीं कर सके हैं। अत: यह निर्णय लिया गया है कि पुनर्संरचित किए जाने की समय-सारणी को 31 मार्च 2009 तक बढ़ाया जाए। ये सभी एकबारगी उपाय हैं और 30 जून 2009 तक पुनर्संरचना पैकेजों के कार्यान्वयन के लिए उपलब्ध होंगे। इसके अतिरिक्त यह स्पष्ट किया जाता है कि यह कार्रवाई उन सभी खातों के लिए उपलब्ध होगी जो 1 सितंबर 2008 को मानक थे तथा 27 अगस्त, 8 दिसंबर 2008 तथा 2 जनवरी 2009 को जारी परिपत्रों के अनुसार पुनर्संरचना के अंतर्गत पात्र थे। |
विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण पर ब्याज दरें |
विदेशी मुद्रा में निर्यात पर ऋण सीमा वर्तमान में लिबोर से 100 आधार बिन्दु अधिक है। तथापि, विदेश में निधियों के संग्रह में बैंकों की लागत बढ़ गई है जिसके कारण वे इस सीमा के भीतर ऋण प्रदान करने में कठिनाई अनुभव कर रहे हैं। अत: भारत सरकार के परामर्श से यह निर्णय लिया गया है कि विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण पर सीमा दर को तत्काल प्रभाव से इस शर्त के अधीन लिबोर से 350 आधार बिन्दु अधिक तक बढ़ाया जाए कि बैंक किए गए तुरंत देय व्यय की वसूली के अलावा अन्य कोई प्रभार यथा सेवा प्रभार, प्रबंध प्रभार आदि प्रभारित न करें। इसी प्रकार के प्रभार ब्याज दरों पर उन मामलों में भी प्रभावित होंगे जहाँ यूरो लिबोर/यूरीबोर का उपयोग न्यूनतम आधार दर के रूप में किया गया है। तदनुरूप, समुद्रापारीय बैंकों में ऋण के अनुरूप ब्याज दर सीमा को भी 6 माह लिबोर/यूरोलिबोर/यूरीबोर से 75 आधार बिन्दु अधिक की बढ़ोतरी करते हुए तत्काल प्रभाव से अब छह माह लिबोर/यूरो लिबोर/यूरीबोर से 150 आधार बिन्दु अधिक तक बढ़ाया गया है। |
अल्पना किल्लावाला |
मुख्य महाप्रबंधक
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प्रेस प्रकाशनी : 2008-2009/1251 |