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डॉ. डी. सुब्बाराव, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक का वर्ष 2008-09 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति के रूझान पर प्रेस वक्तव्य

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24 अक्तूबर 2008

डॉ. डी. सुब्बाराव, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक का
वर्ष 2008-09 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति के रूझान पर प्रेस वक्तव्य

"भारतीय रिज़र्व बैंक की मध्यावधि मौद्रिक नीति समीक्षा कई जटिल और बाध्यकारी नीति चुनौतियों के संदर्भ में निर्धारित है। वैश्विक वित्तीय प्रणाली अप्रत्याशित आयामों के एक संकट में है। सारे वैश्विक में मुद्रा बाज़ारों में गंभीर गतिरोध हुए हैं, शेयर बाज़ारों में भारी गिरावट हुई है और वित्तीय बाज़ारों में अत्यधिक जोखिम विमुखता आयी है। सारे वैश्विक की सरकारें, केंद्रीय बैंक और वित्तीय नियंत्रक इस संकट के प्रति आक्रामक, मौलिक तथा गैर-पारंपरिक उपाय कर रहे हैं ताकि बाज़ार में सुव्यवस्था और विश्वास वापस लाया जा सके और पुन: सामान्य स्थिति और स्थिरता स्थापित की जा सके।

2. भारत का वित्तीय क्षेत्र स्थिर और सुदृढ़ है। वित्तीय मज़बूती के सभी संकेतक जैसे कि पूँजी पर्याप्तता, अनर्जक आस्तियों के अनुपात (एनपीए) और हमारे वाणिज्यिक बैंकों के लिए आस्तियों पर प्रतिलाभ (आरओए) काफी सुदृढ़ हैं। भारतीय बैंकों का अमरीकी सब-प्राइम आस्तियों में कोई प्रत्यक्ष वित्तीय निवेश नहीं है। भारतीय बैंकों की विदेशी सहायक कंपनियाँ तथा विदेशी बैंकों के समुद्रपारीय संविभाग ऋण अंतर सामान्य रूप से व्यापक होने के कारण वित्तीय बाज़ारों पर बही मूल्य अंकित करने की कुछ हानियों के कारण प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। यह क्षति उनके कारोबार के आकार के संबंध में कम है। भारत में वाणिज्यिक बैंकों का समग्र पूँजी पर्याप्तता अनुपात 12.7 प्रतिशत है जो विनियामक न्यूनतम 9 प्रतिशत तथा बासेल समझौता अपेक्षा के 8 प्रतिशत से काफी ऊपर है। इसके अतिरिक्त सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) के रूप में निवल माँग और मीयादी देयताओं का 25 प्रतिशत तथा आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) के रूप में 6.5 प्रतिशत बनाए रखने का विनियामक अधिदेश भारतीय बैंकों को एक अंतर्निहित सुदृढ़ता उपलब्ध कराता है। उन्नत देशों के वित्तीय क्षेत्रों में समस्या का सर्वाधिक मुख्य लक्षण अंतर-बैंक बाज़ारों का निष्क्रीय होना है। इसके विपरीत भारत में अंतर-बैंक बाज़ार एक व्यवस्थित तरीके से कार्य कर रहे हैं।

3. तथापि, घरेलू वित्तीय बाज़ारों पर वैश्विक गतिविधियों का कुछ अप्रत्यक्ष आकस्मिक प्रभाव हुआ है। मुद्रा बाज़ारों ने वैश्विक गतिविधयों के परिणाम स्वरूप हाल के सप्ताहों में चलनिधि की असामान्य कमी का अनुभव किया है जो अग्रिम कर भुगतान जैसे अल्पकालिक स्थानीय कारकों द्वारा बढ़ गए थे। विदेशी मुद्रा बाज़ार ने विदेशी संस्थागत निवेश पोर्टफोलियो बहिर्वाह तथा तेल और उर्वरक कंपनियों की बढ़ी हुई विदेशी मुद्रा अपेक्षाओं के कारण दबाव अनुभव किया है। बाह्य वित्तीय सहायता तक पहुँच में बाध्यता तथा जोखिमों के पुर्नमूल्यांकन और उच्चतर कीमत लागत अंतरों के परिणामस्वरूप भी इस समूचे परिदृश्य में ब्याज दरों की आवश्यक कड़ाई के साथ घरेलू बैंक ऋण के लिए अतिरिक्त माँग हुई है। चूँकि वैश्विक चलनिधि संकट पिछले दो महीनों के दौरान गहरा हो गया है, पूँजी अंतर्वाह बंद हो चुके हैं तथा घरेलू बैंकिंग प्रणाली से ऋण के लिए माँग में बढ़ोतरी हुई है जिसके द्वारा चलनिधि दबावों में तेजी आयी है।

4. वैश्विक वित्तीय संकट के परिणामस्वरूप हमारे वित्तीय बाज़रों पर दबावों के कारण रिज़र्व बैंक ने घरेलू और विदेशी मुद्रा चलनिधि दोनों को सहज बनाने के लिए सितंबर 2008 के मध्य से ही उपायों की एक श्रृंखला घोषित की है। उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण उपाय निम्नप्रकार हैं :

  • 11 अक्तूबर से प्रारंभ होनेवाले पखवाड़े से आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में 250 आधार बिंदुओं तक एक संचयी कमी की गई।
  • तदर्थ तथा अस्थायी उपाय के रूप में बैंकों को अनुमति दी गई कि वे चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत अपनी निवल माँग और मीयादी देयताओं के एक प्रतिशत तक अतिरिक्त चलनिधि सहायता का लाभ उठाएं।
  • पारस्परिक निधियों द्वारा सामना किए जा रहे चलनिधि दबाव को दूर करने के लिए 20,000 करोड़ रुपए की एक अधिसूचित राशि के लिए एक विशेष 14 दिवसीय रिपो सुविधा लागू की गई और बैंकों को विशेष रूप से इस प्रयोजन के लिए निवल माँग और मीयादी देयताओं के एक अतिरिक्त 0.5 प्रतिशत तक सांविधिक चलनिधि अनुपात के लिए पात्र प्रतिभूतियों तक अस्थायी पहुँच की अनुमति दी गई।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय संस्थाओं को कृषि ऋण माफी और ऋण सहायता योजना के लिए सरकार द्वारा राशि के लंबित निर्गम के अंतर्गत वित्तीय संस्थाओं को 25,000 करोड़ रुपए की एक राशि अग्रिम के रूप उपलब्ध कराया।
  • अनिवासी विदेशी मुद्रा (बी) और अनिवासी (बाह्य) रुपया खाता मीयादी जमाराशियों प्रत्येक के लिए ब्याज दर सीमा को 100 आधार बिंदुओं तक बढ़ाया गया।
  • रिज़र्व बैंक ने यह घोषणा भी की कि ऑयल बाँडों के उपलब्ध होने पर उनके बदले सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों की विदेशी मुद्रा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वह विशेष बाज़ार परिचालन लागू करेगा।

5. वैश्विक चलनिधि बाध्यता के अप्रत्यक्ष प्रभाव द्वारा घरेलू ऋण बाज़ारों पर आये दबावों को दूर करने और विशेष रूप से वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए 20 अक्तूबर 2008 को यह निर्णय लिया गया कि चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रिपो दर में तत्काल प्रभाव से 100 आधार बिंदुओं तक कमी करते हुए इसे 8.0 प्रतिशत किया जाए।

6. ऊपर निर्दिष्ट उपायों ने आवश्यक रूप से घरेलू वित्तीय बाज़ारों में चलनिधि दबाव को शांत किया है। आरक्षित नकदी निधि अनुपात में कमी के माध्यम से उपलब्ध कराई गई कुल चलनिधि सहायता, साविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) के अंतर्गत अस्थायी सहायता तथा कृषि ऋण माफी और ऋण राहत योजना के अंतर्गत सहायता को मिलाकर 1,85,000 करोड़ रुपए की राशि प्रदान की गई है। अंतर-बैंक माँग मुद्रा बाज़ार में दरें कम होकर रिपो दर से काफी अधिक होते हुए प्रत्यावर्तनीय रिपो दर से कुछ अधिक के स्तर पर आ गई हैं। चलनिधि समायोजन सुविधा विण्डो में 1 अक्तूबर 2008 को 90,000 करोड़ रुपए से अधिक की निवल राशि डाले जाने से 23 अक्तूबर 2008 को 35,000 करोड़ रुपए के प्रत्यावर्तनीय रिपो के माध्यम से एक निवल अवशोषण के कारण इसके स्वरूप में प्रत्यावर्तन दिखाई दिया है। सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में प्रतिलाभों से चलनिधि स्थितियों में सुधार हुआ है जो 3 अक्तूबर 2008 को 8.30 प्रतिशत के 10-वर्षीय बेंच-मार्क प्रतिलाभ से नीचे गिरकर 23 अक्तूबर 2008 को 7.58 प्रतिशत हो गया है। इसके अतिरिक्त यह आशा की जाती है कि 20 अक्तूबर 2008 को रिपो दर में की गई कमी मुद्रा और ऋण बाज़ारों में बाध्यताओं में और कमी लाएगी।

7. मौद्रिक प्रबंध का कार्य मूल्य स्थिरता, वृद्धि की गति को बनाए रखने और वित्तीय स्थिरता कायम रखने के बीच एक बुद्धिमतापूर्ण संतुलन स्थापित करने के प्रति सर्वदा केंद्रित रहा है। इन उद्देश्यों का सापेक्ष दबाव अंतर्निहित समष्टि आर्थिक स्थितियों के आधार पर समय-समय पर बदलता रहा है। विवेकपूर्ण विनियामक निगरानी और प्रभावी पर्यवेक्षण ने यह सुनिश्चित किया है कि हमारा वित्तीय क्षेत्र सुदृढ़ रहा है और सुदृढ़ रहेगा। तथापि, वैश्विक वित्तीय हलचल ने वित्तीय स्थिरता सुरक्षित रखने पर डाले जानेवाले विशेष ज़ोर के महत्त्व को बढ़ाया है। उसी समय मुद्रास्फीति जो अभी भी दुहरे अंकों में है तथा वृद्धि में सुधार महत्त्वपूर्ण नीति चिंता बने हुए हैं। परिणामत: मौद्रिक नीति संचालित करने का केंद्रीय कार्य वित्तीय स्थिरता को प्राथमिकता दिए जाने में बढ़ोतरी के साथ पहले से अधिक जटिल हो गया है। तदनुसार, वर्तमान चुनौती यह है कि वित्तीय स्थिरता सुरक्षित रखने, मूल्य स्थिरता बनाए रखने, मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को व्यवस्थित रखने और वृद्धि की गति को कायम रखने के बीच एक इष्टतम संतुलन बनाया जाए।

8. वैश्विक गिरावट गहरी हो सकती है और पहले से प्रत्याशित स्थिति की अपेक्षा इससे उबरने में समय लग सकता है। इसके परिणामस्वरूप भारत सहित उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए व्यापार और वित्तीय माध्यमों के कारण प्रतिकूल प्रभाव बढ़ गए हैं। इन प्रतिकूल गतिविधियों ने वर्ष 2008-09 की पहली छमाही में औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में वृद्धि के सुधार को प्रभावित किया है। इन गतिविधियों और संभावनाओं पर विचार करते हुए रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2008-09 के लिए समग्र वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि के अनुमान को संशोधित करते हुए इसे 7.5 - 8.0 प्रतिशत की सीमा में रखा है।

9. वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल सहित पण्य वस्तु कीमतों से दबाव कम होते दिखाई दे रहे हैं यद्यपि, वे बढ़े हुए स्तरों पर कायम है। घरेलू स्तर पर खाद्य वस्तुओं की कीमतों में सुधार हो रहा है तथा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के लाभकारी प्रभाव आनेवाले महीनों में और सुधार ला सकते हैं। कुछ विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों में सुधार के ये कुछ प्रारंभिक संकेत भी हैं। सरकार द्वारा शुरू किए गए आपूर्ति प्रबंध उपायों तथा पिछले एक वर्ष के दौरान रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू किए गए मौद्रिक नीति के लिए माँग पर देरी से की गई कार्रवाई को ध्यान में रखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक मार्च 2009 के अंत तक 7.0 प्रतिशत की मुद्रास्फीति के पूर्व अनुमान को कायम रखेगा।

10. खाद्येतर ऋण ने 10 अक्तूबर 2008 तक वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 29 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है जो वर्ष 2008-09 के लिए 20 प्रतिशत के अनुमानित स्तर से बहुत अधिक है। बैंकों को चाहिए कि वे उत्पादक प्रयोजनों के लिए उधार देना जारी रखें और विशेष रूप से अपने सामान्य वाणिज्यिक निर्णय द्वारा निर्देशित होते हुए संस्वीकृत सीमाओं तक आहरण की अनुमति दें। बैंक गुणदोष के आधार पर लघु और मध्यम उद्यमों के बकायों की पुनर्संरचना पर भी विचार करें। इसी के साथ-साथ उन्हें ऋण गुणवत्ता बनाए रखने पर भी ध्यान देना होगा। इस उद्देश्य के अनुपालन में बैंक क्षेत्रवार आधार पर ऋण मूल्यांकनों की कड़ाई पर ध्यान दें, अनुपातों के मूल्यांकन के लिए ऋण की निगरानी करें और अपने आस्ति देयता अनुमानों के अनुरूप अपने ऋण संविभाग के लिए प्रयास करें। रिज़र्व बैंक ऋण वृद्धि की दर और ऋण गुणवत्ता की निकट से निगरानी करेगा और यथाआवश्यक रूप से उन चयनित बैंकों को शामिल करेगा जो इन मानदण्डों से बाहर हैं।

11. भारत का भुगतान संतुलन भारी अव्यवस्थित अंतर्राष्ट्रीय वातावरण में मज़बूती और अनुकूलन को दर्शा रहा है। पूँजी खाते में जारी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जारी अंतर्वाह तथा भारी अनिवासी प्रवाह ने विदेशी संस्थागत निवेश बहिर्वाह को अंशत: संतुलित किया है। समग्र रूप से चालू खाता घाटा पिछले वर्ष की अपेक्षा वर्ष 2008-09 में कुछ अधिक हो सकता है लेकिन यह प्रत्याशित है कि निवल पूँजी प्रवाह वर्ष 2008-09 में बाह्य वित्तीय आवश्यकता को पूरा करेगा।

12. वैश्विक वित्तीय स्थिति में अनिश्चितताओं को देखते हुए घरेलू वित्तीय स्थिरता की निगरानी और इसे बनाए रखने के लिए निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता है। रिज़र्व बैंक वित्तीय बाज़ारों में उभरते हुए दबावों को रोकने के लिए समस्त वित्तीय प्रणाली पर अत्यंत सतर्कता बरतेगा। इसमें दबाव यदि जारी रहते हैं तो चलनिधि को बढ़ाना भी शामिल होगा। इसका अर्थ यह भी है कि चलनिधि सहज बनाने के हाल के उपायों से यदि अत्यधिक चलनिधि दिखाई देती है और उसके द्वारा मुद्रास्फीतिकारी दबाव उभरते हैं तो चलनिधि में कटौती की जा सकती है।

13. वैश्विक वित्तीय स्थिति को सबसे बड़ी मंदी के बाद से इसे सबसे खराब रूप में वर्णित किया गया है और यह अभी भी अनिश्चित और अव्यवस्थित बनी हुई है। इस अनुपात में संकट से कोई भी देश बचा नही रह सकता है। यह एक बिना सनद का क्षेत्र है और आज की तारीख तक के अनुभव ने यह साबित किया है कि मानकों से अथवा पारंपरिक समाधानों से आगे जाने की आवश्यकता है। रिज़र्व बैंक ने पूर्वकृत कार्रवाई करने का प्रयास किया है और तीव्र गतिविधियों का प्रबंध करने तथा वैश्विक संकट से उत्पन्न दबावों को कम करने के लिए उपाय किया है। रिज़र्व बैंक पुन: यह दुहराता है कि वह स्थिति का प्रबंध करने और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इस वैश्विक संकट के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के प्रति विश्वस्त है। हमारी वित्तीय प्रणाली मज़बूत और व्यवस्थित है तथा हमारी आर्थिक मौलिकताएं सुदृढ़ हैं। एक बार वैश्विक स्थिति का प्रबंध हो जाने पर तथा व्यवस्था और विश्वास स्थापित हो जाने पर हम अपने उच्चतर वृद्धि पथ की ओर लौटेंगे।

14. समष्टि आर्थिक स्थिति के उपर्युक्त समग्र आकलन के आधार पर वर्ष 2008-09 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति का रुझान निम्नप्रकार होगा :

  • एक मौद्रिक और ब्याज दर वातावरण सुनिश्त किया जाए जो वित्तीय स्थिरता, मूल्य स्थिरता और सुव्यवस्थित मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं तथा वृद्धि के बीच इष्टतम संतुलन स्थापित कर सके।
  • वित्तीय बाज़ारों में व्यवस्थित स्थितियाँ बनाए रखने के लिए आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) खुले बाज़ार परिचालनों (ओएमओ), बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) और चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) सहित सभी लिखतों के समुचित उपयोग के माध्यम से चलनिधि की सक्रिय माँग प्रबंध नीति को जारी रखा जाए।
  • अनिश्त और अव्यवस्थित वैश्विक स्थिति तथा सामान्य रूप में घरेलू अर्थव्यवस्था और विशेष रूप में वित्तीय बाज़ारों पर इसके अप्रत्यक्ष प्रभाव के संदर्भ में स्थिति की निकट से तथा निरंतर निगरानी की जाए तथा गतिविधियों के प्रति पारंपरिक और गैर-पारंपरिक दोनों उपायों सहित तेजी से और प्रभावी रूप में कार्रवाई की जाए।
  • वित्तीय समावेशन का पालन करते समय विशेष रूप से रोज़गार संवेदी क्षेत्रों में ऋण गुणवत्ता और ऋण वितरण पर ज़ोर दिया जाए।

15. हाल की वैश्विक और घरेलू गतिविधियों के जबाब में तथा पिछले महीने के दौरान रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू किए गए उपायों के आलोक में हमने बैंक दर, रिपो दर और प्रत्यावर्तनीय रिपो दर को चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत रखा है एवं वर्तमान में आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में कोई परिवर्तन नहीं किया है। रिज़र्व बैंक निकट से और लगातार वैश्विक और घरेलू स्तर पर उभरती हुई वित्तीय स्थितियों की निगरानी कर रहा है और उभरती हुई परिस्थितियों के प्रति सक्रियता के साथ एवं तेजी से कार्रवाई करेगा"।

जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2008-2009/560

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