गवर्नर का वक्तव्य: 7 फरवरी 2025 - आरबीआई - Reserve Bank of India
गवर्नर का वक्तव्य: 7 फरवरी 2025
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक इस महीने की 5, 6 और 7 तारीख को संपन्न हुई। आपको यह विदित हैं कि एमपीसी की बैठक के पश्चात गवर्नर के वक्तव्य में न केवल नीतिगत दर और रुख के संबंध में एमपीसी का संकल्प शामिल होता है, बल्कि अन्य घोषणाएं और उपाय भी शामिल होते हैं, जिनका मौद्रिक और विनियामक नीतियों पर असर पड़ता है। एमपीसी का संकल्प निश्चित रूप से विभिन्न क्षेत्रों के लोगों की रुचि का विषय है, क्योंकि यह देश के लगभग सभी नागरिकों के जीवन को प्रभावित करता है। यह संकल्प एमपीसी के औचित्य और विचार प्रक्रिया को भी परिलक्षित करता है, और यह व्यवसायों, अर्थशास्त्रियों, शिक्षाविदों और वित्त जगत के लिए प्रासंगिक होता है। एमपीसी से संबंधित इन घोषणाओं के अलावा, गवर्नर का वक्तव्य रिज़र्व बैंक के लिए अपनी प्राथमिकताओं को उजागर करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया है, जिस पर वह चाहता है कि विनियमित संस्थाएं अपना ध्यान केंद्रित करें। यह हितधारकों के लिए समस्या और चुनौतियों के क्षेत्रों को इंगित करने का अवसर है, जिस पर वे अपना ध्यान केंद्रित कर सकें। यह रिज़र्व बैंक के लिए महत्वपूर्ण रुचिकर क्षेत्रों पर अपने विचार व्यक्त करने का अवसर है। मैं विस्तृत वक्तव्य की इस प्रथा को जारी रखूँगा। 2. एमपीसी के संकल्प पर बोलने से पहले, मैं लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (एफआईटी) ढांचे के अनुभव पर अपने विचार प्रकट करना चाहूँगा, जिसे वर्ष 2016 में आरंभ किया गया था और 2021 में इसकी समीक्षा की गई। मेरा मानना है कि इन वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए इसका प्रदर्शन बेहतर रहा है, जिसमें महामारी के बाद की चुनौतीपूर्ण अवधि भी शामिल है। एफआईटी की शुरूआत के बाद से औसत मुद्रास्फीति कम रही है। इसके अलावा, सीपीआई मुद्रास्फीति अपनी शुरुआत से ही ऊपरी सहन-सीमा बैंड को पार करने के कुछ अवसरों को छोड़कर, ज्यादातर लक्ष्य के अनुरूप ही रही है। हम उभरती हुई संवृद्धि-मुद्रास्फीति गतिकी का प्रतिउत्तर देते हुए, ढांचे में निहित लचीलेपन का उपयोग करके अर्थव्यवस्था के सर्वोत्तम हित में समष्टिआर्थिक परिणामों में सुधार करना जारी रखेंगे। इसके अलावा, हम नए डेटा का और अधिक उपयोग करके, प्रमुख समष्टिआर्थिक चरों के तात्कालिक पूर्वानुमान और भावी अनुमान में सुधार करके तथा अधिक मजबूत मॉडल विकसित करके इस ढांचे के आधारभूत संरचना को और अधिक समृद्ध करने का प्रयास करेंगे। 3. विनियामक पक्ष पर, मैं यह उल्लेख करना चाहूँगा, विशेष रूप से चलनिधि कवरेज अनुपात (एलसीआर), बैंकों द्वारा प्रावधानीकरण के लिए अपेक्षित ऋण हानि (ईसीएल) ढांचा और कार्यान्वयन के तहत परियोजनाओं को नियंत्रित करने वाले विवेकपूर्ण मानदंडों से संबंधित कुछ प्रस्तावित विनियामक परिवर्तनों के संदर्भ में, कि हम अर्थव्यवस्था के समग्र हित में विवेकपूर्ण और आचरण-संबंधी विनियामक ढांचे को मजबूत, युक्तिसंगत और समृद्ध करना जारी रखेंगे। अर्थव्यवस्था के हित में वित्तीय स्थिरता और उपभोक्ता संरक्षण आवश्यक है। हमारा काम दोनों को बढ़ाना है। साथ ही, आर्थिक हित के लिए कौशल विकास भी आवश्यक है, जो हमारा कर्तव्य भी है। हम मानते हैं कि जिस तरह भोजन मुफ्त में नहीं मिलता, उसी तरह स्थिरता और उपभोक्ता संरक्षण बढ़ाने के लिए विनियमन भी लागत से रहित नहीं है। स्थिरता और दक्षता के बीच एक समझौता होता है। हम विनियमन तैयार करते समय इस समझौता को ध्यान में रखेंगे। हमारा प्रयास प्रत्येक विनियमन के लाभ और लागत को ध्यान में रखते हुए सही संतुलन बनाना होगा। मैं सभी हितधारकों को यह भी आश्वस्त करना चाहता हूं कि हम विनियमन बनाने में परामर्शी प्रक्रिया जारी रखेंगे। हितधारकों के सुझाव मूल्यवान हैं और हम कोई भी बड़ा निर्णय लेने से पहले उन पर गंभीरता से विचार करेंगे। हम यह भी सुनिश्चित करेंगे कि ऐसे विनियमों का कार्यान्वयन सुचारू रूप से हो; हम परिवर्तन के लिए पर्याप्त समय देंगे और जहां विनियमों का बड़ा प्रभाव पड़ता है, वहां कार्यान्वयन चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा। 4. वैश्विक आर्थिक पृष्ठभूमि चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था ऐतिहासिक औसत1 से निम्न गति से बढ़ रही है, भले ही उच्च आवृत्ति संकेतक व्यापार में निरंतर विस्तार2 के साथ आघात-सहनीयता3 का संकेत देते हैं। वैश्विक अवस्फीति संबंधी प्रगति रुक रही है, जो सेवाओं की मूल्य मुद्रास्फीति से बाधित है। 5. अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती के आकार और गति पर उम्मीदें कम होने के साथ, अमेरिकी डॉलर मजबूत हुआ है और बॉण्ड प्रतिफल में भी तेजी आई है। उभरते बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में बड़े पैमाने पर पूंजी का बहिर्वाह देखा गया है, जिससे उनकी मुद्राओं का मूल्य तेजी से कम हुआ है और वित्तीय स्थिति सख्त हुई है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति के अलग-अलग प्रक्षेपवक्र, भू-राजनीतिक तनाव और उच्च व्यापार एवं नीतिगत अनिश्चितताओं ने वित्तीय बाजार में अस्थिरता को बढ़ा दिया है। इस तरह के अनिश्चित वैश्विक माहौल ने ईएमई के लिए मुश्किल नीतिगत ट्रेड-ऑफ उत्पन्न कर दिया है। 6. भारतीय अर्थव्यवस्था, हालांकि मजबूत और आघात-सह बनी हुई है, लेकिन इन वैश्विक चुनौतियों से भी अछूती नहीं रही है, क्योंकि हाल के महीनों में भारतीय रुपया मूल्यह्रास दबाव में रहा है।4 रिज़र्व बैंक में, हम बहुआयामी चुनौतियों का सामना करने के लिए अपने पास उपलब्ध सभी टूल्स का उपयोग कर रहे हैं। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के निर्णय 7. इस पृष्ठभूमि में, उभरती हुई समष्टिआर्थिक और वित्तीय गतिविधियों तथा आर्थिक संभावना के विस्तृत मूल्यांकन के बाद, एमपीसी ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत से 25 आधार अंक घटाकर 6.25 प्रतिशत करने का निर्णय लिया। परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.00 प्रतिशत तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.50 प्रतिशत होगी। एमपीसी ने सर्वसम्मति से ‘तटस्थ’ रुख जारी रखने तथा संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए मुद्रास्फीति को लक्ष्य के साथ टिकाऊ आधार पर संरेखित करने पर स्पष्ट रूप से ध्यान केंद्रित करने का भी निर्णय लिया। 8. मैं संक्षेप में इस निर्णय के औचित्य को बताऊंगा। एमपीसी ने इस बात को ध्यान में रखा कि मुद्रास्फीति में गिरावट आई है। खाद्य पदार्थों पर अनुकूल संभावना और पिछले मौद्रिक नीति कार्रवाइयों के निरंतर प्रसारण के समर्थन से, 2025-26 में इसके और कम होने की उम्मीद है, जो धीरे-धीरे लक्ष्य के अनुरूप हो जाएगा। एमपीसी ने यह भी कहा कि हालांकि 2024-25 की दूसरी तिमाही के निचले स्तर से संवृद्धि में सुधार की उम्मीद है, लेकिन यह पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम है। ये संवृद्धि-मुद्रास्फीति गतिकी, एमपीसी के लिए संवृद्धि को समर्थन देने हेतु नीतिगत अवसर प्रदान करती है, जबकि मुद्रास्फीति को लक्ष्य के साथ संरेखित करने पर ध्यान केंद्रित करती है। तदनुसार, एमपीसी ने नीतिगत रेपो दर को 25 आधार अंकों से घटाकर 6.25 प्रतिशत करने का निर्णय लिया। 9. साथ ही, वैश्विक वित्तीय बाजारों में अत्यधिक अस्थिरता और वैश्विक व्यापार नीतियों के बारे में निरंतर अनिश्चितताओं के साथ-साथ प्रतिकूल मौसम की घटनाओं ने संवृद्धि और मुद्रास्फीति की संभावना के लिए जोखिम उत्पन्न किया है। इसके लिए एमपीसी को सतर्क रहने की आवश्यकता है। तदनुसार, तटस्थ रुख जारी रखने का निर्णय लिया। इससे एमपीसी को उभरते समष्टिआर्थिक माहौल पर प्रतिक्रिया करने के लिए लचीलापन मिलेगा। संवृद्धि और मुद्रास्फीति का आकलन संवृद्धि 10. पहले अग्रिम अनुमानों के अनुसार, चालू वर्ष के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष 8.2 प्रतिशत की मजबूत संवृद्धि के बाद सौम्य वृद्धि है। 5 आगे चलकर, आने वाले वर्ष में आर्थिक गतिविधि में सुधार की उम्मीद है। जलाशयों के बेहतर स्तर 6 और बेहतर रबी संभावनाओं 7 के कारण कृषि गतिविधि में तेजी बनी हुई है। इस वर्ष की दूसरी छमाही में और उसके बाद विनिर्माण गतिविधि में धीरे-धीरे सुधार होने की उम्मीद है।8 तीसरी तिमाही के शुरुआती कॉर्पोरेट नतीजों से विनिर्माण क्षेत्र में हल्की बहाली का संकेत मिलता है।9 खनन और बिजली क्षेत्र दूसरी तिमाही में मानसून संबंधी व्यवधानों से उबर रहे हैं। पीएमआई विनिर्माण भावी उत्पादन सूचकांक से पता चलता है कि व्यावसायिक उम्मीदें आशावादी बनी हुई हैं।10 सेवा क्षेत्र की गतिविधि आघात-सह बनी हुई है।11 हालाँकि, पीएमआई सेवाओं में अपने हाल के शिखर से गिरावट आई है।12 11. मांग पक्ष पर, ग्रामीण मांग में लगातार वृद्धि हो रही है, जबकि शहरी खपत में कमी बनी हुई है, तथा उच्च आवृत्ति संकेतक मिश्रित संकेत दे रहे हैं।13 आगे चलकर, रोजगार की स्थिति में सुधार,14 केंद्रीय बजट में कर राहत, तथा मुद्रास्फीति में कमी,15 साथ ही स्वस्थ कृषि गतिविधि घरेलू खपत के लिए शुभ संकेत हैं। सरकारी उपभोग व्यय के सौम्य बने रहने की उम्मीद है।16 उच्च क्षमता उपयोग स्तर,17 मजबूत कारोबारी अपेक्षाएँ18 और सरकारी नीति समर्थन निश्चित निवेश में वृद्धि के लिए शुभ संकेत हैं। 19 सेवा निर्यात में निरंतर उछाल वृद्धि को समर्थन देगा। 20 हालांकि, वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण संभावना में अनिश्चितता बनी हुई है और इससे गिरावट का जोखिम बना हुआ है। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, अगले वर्ष के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जिसमें पहली तिमाही में 6.7 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 7.0 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.5 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं। मुद्रास्फीति 12. अक्तूबर में ऊपरी सहन-सीमा बैंड से ऊपर जाने के बाद, हेडलाइन मुद्रास्फीति ने नवंबर और दिसंबर में क्रमिक रूप से नरमी दर्ज की है। 21 आगे चलकर, खाद्य मुद्रास्फीति के दबाव, आपूर्ति पक्ष के किसी भी आघात के अभाव में, अच्छे खरीफ उत्पादन,22 सर्दियों में सब्जियों की कीमतों में कमी23 और अनुकूल रबी फसल की संभावनाओं के कारण उल्लेखनीय सौम्यता देखने को मिलेगी। मूल मुद्रास्फीति में वृद्धि की उम्मीद है, लेकिन यह मंद रहेगी। वैश्विक वित्तीय बाजारों में बढ़ती अनिश्चितता के साथ-साथ ऊर्जा की कीमतों में निरंतर उतार-चढ़ाव और प्रतिकूल मौसम की घटनाओं ने मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र के लिए ऊर्ध्वगामी जोखिम को बढ़ा दिया है।24 इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, चालू वित्त वर्ष के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति चौथी तिमाही में 4.4 प्रतिशत के साथ 4.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है। सामान्य मानसून को मानते हुए, वित्त वर्ष 2025-26 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 4.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जिसमें पहली तिमाही में 4.5 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 4.0 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 3.8 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं। बाह्य क्षेत्र 13. बाहरी क्षेत्र के संबंध में, भारत का चालू खाता घाटा (सीएडी) पिछले वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी के 1.3 प्रतिशत से घटकर इस वर्ष की दूसरी तिमाही में 1.2 प्रतिशत रह गया।25 विश्व बैंक के अनुसार, 129.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुमानित अंतर्वाह के साथ भारत 2024 में वैश्विक स्तर पर धन प्रेषण का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता बना रहेगा।26 इस वर्ष के लिए सीएडी का धारणीय स्तर के भीतर रहने की उम्मीद है। इस वर्ष 31 जनवरी तक, भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि 630.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो 10 महीने से अधिक के आयात को कवर प्रदान करता है।27 कुल मिलाकर, भारत का बाह्य क्षेत्र आघात-सह बना हुआ है क्योंकि प्रमुख संकेतक मजबूत बने हुए हैं।28 14. मैं यहाँ यह उल्लेख करना चाहूँगा कि रिज़र्व बैंक की विनिमय दर नीति पिछले कई वर्षों से एक समान रही है। हमारा घोषित उद्देश्य बाजार की कार्यकुशलता से समझौता किए बिना, व्यवस्था और स्थिरता बनाए रखना है। तदनुसार, विदेशी मुद्रा बाजार में हमारा हस्तक्षेप किसी विशिष्ट विनिमय दर स्तर या बैंड को लक्षित करने के बजाय अत्यधिक और विघटनकारी अस्थिरता को कम करने पर केंद्रित है। भारतीय रुपये की विनिमय दर बाजार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। चलनिधि और वित्तीय बाज़ार की स्थितियाँ 15. जुलाई से नवंबर 2024 तक अधिशेष में रहने के बाद, प्रणालीगत चलनिधि - जैसा कि चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत औसत शुद्ध स्थिति द्वारा मापा जाता है - दिसंबर 2024 और जनवरी 2025 के दौरान घाटे में बदल गई। चलनिधि की निकासी मुख्य रूप से दिसंबर 2024 में अग्रिम कर भुगतान, पूंजी बहिर्वाह, विदेशी मुद्रा परिचालन और इस वर्ष जनवरी में प्रचलन में मुद्रा में उल्लेखनीय वृद्धि के कारण हुई है। 16. यह देखा गया है कि कुछ बैंक गैर-संपार्श्विक मांग मुद्रा बाजार में ऋण देने के प्रति अनिच्छुक हैं; इसके बजाय, वे अपनी निधियों को भारतीय रिज़र्व बैंक के पास निष्क्रिय रूप से जमा कर रहे हैं। हम बैंकों से आग्रह करते हैं कि वे गैर-संपार्श्विक मांग मुद्रा बाजार में आपस में सक्रिय रूप से व्यापार करें, ताकि भारित औसत मांग मुद्रा दर (डबल्यूएसीआर) से बेहतर संकेत प्राप्त करने के लिए इसे अधिक गहरा और जीवंत बनाया जा सके। 17. रिज़र्व बैंक प्रणाली में पर्याप्त प्रणालीगत चलनिधि उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। हमने इस संबंध में कई कदम उठाए हैं।29 हम उभरती हुई चलनिधि और वित्तीय बाजार स्थितियों पर नजर रखना जारी रखेंगे तथा व्यवस्थित चलनिधि स्थिति सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से उचित कदम उठाएंगे। वित्तीय स्थिरता 18. अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के लिए प्रणाली-स्तरीय वित्तीय मापदंड स्वस्थ बने हुए हैं।30 जनवरी 2025 के अंत में बैंकिंग प्रणाली के लिए ऋण जमा अनुपात (सीडी अनुपात) 80.8 प्रतिशत था, जो मोटे तौर पर 30 सितंबर 2024 के समान था। बैंक के चलनिधि बफर्स पर्याप्त हैं। यद्यपि शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) में कमी आई है, तथापि परिसंपत्तियों पर रिटर्न (आरओए) और इक्विटी पर रिटर्न (आरओई) मजबूत हैं। एनबीएफसी के लिए प्रणाली -स्तरीय मापदंड भी स्वस्थ हैं।31 19. रिज़र्व बैंक वित्तीय शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 2016 से प्रत्येक वर्ष वित्तीय साक्षरता सप्ताह मना रहा है। पिछले वर्ष, इस अभियान का उद्देश्य युवाओं को सशक्त बनाना था। इस वर्ष, समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण और बहुमुखी भूमिका को मान्यता देते हुए, अभियान में वित्तीय निर्णय लेने और घरेलू बजट बनाने में महिलाओं की भूमिका पर जोर दिया जाएगा। मैं सभी बैंकों से आग्रह करता हूं कि वे इस महीने की 24 तारीख से शुरू होने वाले "वित्तीय साक्षरता: महिला समृद्धि" विषय पर अभियान में सक्रिय रूप से भाग लें। अतिरिक्त उपाय 20. अब मैं कुछ अतिरिक्त उपायों की घोषणा करूंगा। उनके कार्यान्वयन के लिए आवश्यक निदेश और परिपत्र अलग से जारी किए जाएंगे। डिजिटल सुरक्षा 21. सबसे पहले, वित्तीय सेवाओं के तेजी से डिजिटलीकरण ने सुविधा और दक्षता ला दी है, लेकिन साइबर खतरों और डिजिटल जोखिमों के प्रति जोखिम भी बढ़ा है, जो दिन-प्रतिदिन परिष्कृत होते जा रहे हैं। डिजिटल धोखाधड़ी में वृद्धि चिंता का विषय है, जिसके लिए सभी हितधारकों द्वारा कार्रवाई की आवश्यकता है। 22. रिज़र्व बैंक बैंकिंग और भुगतान प्रणाली में डिजिटल सुरक्षा बढ़ाने के लिए विभिन्न उपाय कर रहा है। घरेलू डिजिटल भुगतान के लिए प्रमाणीकरण का अतिरिक्त कारक (एएफ़ए) की शुरूआत ऐसा ही एक उपाय है। एएफए को उन अपतटीय व्यापारियों को किए जा रहे ऑनलाइन अंतर्राष्ट्रीय डिजिटल भुगतानों तक विस्तारित करने का प्रस्ताव है , जो इस प्रकार के प्रमाणीकरण के लिए सक्षम हैं। 23. दूसरा, भारतीय रिज़र्व बैंक भारतीय बैंकों के लिए 'bank.in' नामक विशेष इंटरनेट डोमेन लागू करेगा। इस डोमेन नाम का पंजीकरण इस वर्ष अप्रैल से शुरू होगा। इससे बैंकिंग धोखाधड़ी से बचने में मदद मिलेगी। इसके बाद वित्तीय क्षेत्र के लिए ‘fin.in’ डोमेन बनाया जाएगा। 24. बैंकों और एनबीएफसी को साइबर जोखिमों को कम करने के लिए निवारक और जासूसी नियंत्रण में निरंतर सुधार करना चाहिए। उन्हें परिचालनगत आघात सहनीयता के लिए, समय-समय पर परीक्षण के माध्यम से सुदृढ़, मजबूत घटना प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति तंत्र विकसित करना होगा। सरकारी प्रतिभूतियों में अग्रिम संविदाओं का शुभारंभ 25. तीसरा, पिछले कुछ वर्षों में, हमने बाजार सहभागियों के लिए उपलब्ध ब्याज दर डेरिवेटिव उत्पादों के समूह का विस्तार किया है ताकि वे अपने ब्याज दर जोखिमों का प्रबंधन कर सकें। अब हम इस समूह में सरकारी प्रतिभूतियों में वायदा संविदा को शामिल करेंगे। इससे बीमा निधियों जैसे दीर्घकालिक निवेशकों को ब्याज दर चक्रों में अपने ब्याज दर जोखिम का प्रबंधन करने में सुविधा होगी। इससे उन डेरिवेटिव्स का कुशल मूल्य निर्धारण भी संभव होगा जो अंतर्निहित लिखतों के रूप में सरकारी प्रतिभूतियों का उपयोग करते हैं। सेबी-पंजीकृत गैर-बैंक दलालों की एनडीएस-ओएम तक पहुंच 26. चौथा, सरकारी प्रतिभूतियों तक खुदरा निवेशकों की पहुंच बढ़ाने के लिए, रिज़र्व बैंक, सरकारी प्रतिभूतियों में द्वितीयक बाजार लेनदेन के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म एनडीएस-ओएम की पहुंच को सेबी के साथ पंजीकृत गैर-बैंक दलालों तक विस्तारित करेगा। विभिन्न बाजार खंडों में व्यापार और निपटान समय की समीक्षा 27. पांचवां, पिछले कुछ वर्षों में वित्तीय बाजारों और बाजार बुनियादी ढांचे में हुए विभिन्न विकासों को देखते हुए, हम विभिन्न हितधारकों के प्रतिनिधित्व के साथ एक कार्य दल का गठन करेंगे, जो भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित बाजारों के व्यापार और निपटान समय की व्यापक समीक्षा करेगा। दल इस वर्ष 30 अप्रैल तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। समापन टिप्पणी 28. निष्कर्ष के तौर पर, मौजूदा संवृद्धि-मुद्रास्फीति गतिशीलता को देखते हुए, एमपीसी ने तटस्थ रुख जारी रखते हुए महसूस किया कि वर्तमान समय में कम प्रतिबंधात्मक मौद्रिक नीति अधिक उपयुक्त है। एमपीसी अपनी प्रत्येक भावी बैठक में समष्टि आर्थिक संभावना के नए मूल्यांकन के आधार पर निर्णय लेगी। 29. हम मौद्रिक नीति का संचालन करने तथा ऐसे उपाय करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो समय पर, सावधानीपूर्वक मापे गए हों तथा स्पष्ट रूप से संप्रेषित किए गए हों, ताकि अनुकूल समष्टि आर्थिक स्थितियां बनाई जा सकें, जिससे मूल्य स्थिरता, सतत आर्थिक संवृद्धि तथा वित्तीय स्थिरता को बल मिले। धन्यवाद। नमस्कार और जय हिन्द। (पुनीत पंचोली) प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/2095 1 वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलुक अपडेट, आईएमएफ (जनवरी 2025) के अनुसार, 2025 और 2026 दोनों में वैश्विक संवृद्धि दर 3.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो ऐतिहासिक (2000-19) औसत 3.7 प्रतिशत से कम है। 2 सीपीबी नीदरलैंड्स, वर्ल्ड ट्रेड मॉनिटर के अनुसार नवंबर में विश्व वस्तु व्यापार की मात्रा में 3.6 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) की वृद्धि हुई। 3 जनवरी 2025 में 51.8 पर वैश्विक समग्र पीएमआई , सेवा क्षेत्र की गतिविधि में कमी के बावजूद विस्तार क्षेत्र में बनी रही। वैश्विक विनिर्माण पीएमआई 50.1 पर रहा, जो छह महीने के संकुचन के बाद विस्तार क्षेत्र में वापस आ गया। 4 6 नवंबर 2024, जिस दिन अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम घोषित किए गए थे, से लेकर अब तक भारतीय रुपये (आईएनआर) में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 3.2 प्रतिशत की गिरावट आई है, जो मोटे तौर पर इसी अवधि के दौरान डॉलर सूचकांक में 2.4 प्रतिशत की वृद्धि को प्रतिबिंबित करता है। 5 खनन एवं उत्खनन, विनिर्माण, तथा बिजली, गैस एवं जलापूर्ति के जीवीए में 2024-25 में क्रमशः 2.9 प्रतिशत, 5.3 प्रतिशत तथा 6.8 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। वास्तविक निवेश के प्रमुख घटक, सकल स्थायी पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) में पिछले वर्ष की 9.0 प्रतिशत वृद्धि की तुलना में 6.4 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। निजी अंतिम उपभोग व्यय (पीएफसीई) में 2024-25 में 7.3 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष यह 4.0 प्रतिशत थी। कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों का जीवीए पिछले वर्ष के 1.4 प्रतिशत से बढ़कर 2024-25 में 3.8 प्रतिशत हो गया। अप्रैल-दिसंबर 2024 के दौरान, थोक दोपहिया वाहनों की बिक्री में 11.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। अप्रैल-जनवरी 2024-25 के दौरान मनरेगा के तहत काम की मांग में 9.2 प्रतिशत की कमी आई। 6 30 जनवरी, 2025 तक 155 प्रमुख जलाशयों में अखिल भारतीय जल भंडारण कुल क्षमता का 64 प्रतिशत है, जबकि एक वर्ष पहले यह 52 प्रतिशत था और दशकीय औसत 55 प्रतिशत था। 7 31 जनवरी 2025 तक रबी की बुवाई पिछले वर्ष के स्तर के साथ-साथ सामान्य बुवाई क्षेत्रफल से क्रमशः 1.5 प्रतिशत और 4.1 प्रतिशत अधिक हो चुकी है। 8 पेट्रोलियम उत्पादों, लोहा एवं इस्पात तथा सीमेंट कंपनियों के कमजोर परिणामों के कारण 2024-25 की दूसरी तिमाही में विनिर्माण जीवीए वृद्धि में कमी आई। 9 393 सूचीबद्ध निजी विनिर्माण कंपनियों के परिचालन लाभ में 2024-25 की तीसरी तिमाही के दौरान 0.9 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) की मामूली वृद्धि हुई, जबकि 2024-25 की दूसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत की गिरावट देखी गई थी। 10 जनवरी 2025 में पीएमआई विनिर्माण भावी उत्पादन सूचकांक दिसंबर 2024 में 62.5 से बढ़कर 65.1 हो गया। अप्रैल 2023 से भावी उत्पादन सूचकांक 60.0 से ऊपर रह रहा है। 11 दिसंबर 2024 में ई-वे बिल में 17.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जनवरी 2025 के दौरान जीएसटी राजस्व में 12.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई और टोल संग्रह में 14.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। दिसंबर 2024 में पेट्रोलियम उत्पादों की खपत में 2.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 24 जनवरी 2025 तक कुल बैंक ऋण और जमाराशियों में क्रमशः 12.5 प्रतिशत और 10.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।. 13 दिसंबर 2024 में घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या में 10.8 प्रतिशत और जनवरी 2025 में अब तक 14.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 14 त्रैमासिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के अनुसार, शहरी बेरोजगारी दर पिछले वर्ष की इसी तिमाही के 6.6 प्रतिशत से घटकर 2024-25 की दूसरी तिमाही में 6.4 प्रतिशत हो गई। 15 संयुक्त उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति अक्तूबर 2024 में 6.2 प्रतिशत से घटकर दिसंबर 2024 में 5.2 प्रतिशत हो गई। 16 केंद्र सरकार के राजस्व व्यय (ब्याज भुगतान और सब्सिडी को छोड़कर) में 2025-26 में 5.0 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है, जबकि 2024-25 में 7.9 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है (संशोधित अनुमान)। 17 आरबीआई के तिमाही आदेश बही, माल सूची और क्षमता उपयोग (ओबीआईसीयूएस) सर्वेक्षण के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र का मौसमी रूप से समायोजित क्षमता उपयोग (सीयू) 2024-25 की दूसरी तिमाही में 74.7 प्रतिशत पर है, जो दीर्घकालिक औसत 73.8 प्रतिशत से अधिक है। 18 आरबीआई के औद्योगिक संभावना सर्वेक्षण (आईओएस) के अनुसार, विनिर्माण फर्मों ने 2024-25 की तीसरी तिमाही में मांग की स्थिति में मामूली सुधार का अनुमान लगाया है। इसके अलावा, फर्मों को 2024-25 की चौथी तिमाही में मामूली सुधार और 2025-26 की पहली छमाही में उल्लेखनीय सुधार की उम्मीद है। 19 केंद्रीय बजट 2025-26 के अनुसार, केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में 2025-26 के दौरान 10.1 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। प्रभावी पूंजीगत व्यय (पूंजीगत व्यय के लिए राज्य सरकारों को अनुदान सहायता सहित) का वित्तीय वर्ष के दौरान 17.4 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है। 20 अप्रैल-दिसंबर 2024 के दौरान सेवा निर्यात में 13.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में 5.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। 22 5 नवंबर 2024 को जारी 2024-25 के लिए खरीफ उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमानों के अनुसार, चावल उत्पादन में 5.9 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है, जबकि 2023-24 की तुलना में 2024-25 में अरहर और मूंग दाल का उत्पादन क्रमशः 2.5 प्रतिशत और 19.8 प्रतिशत अधिक होने की उम्मीद है। 23 उपभोक्ता मामला विभाग (डीसीए) के उच्च आवृत्ति वाले खाद्य मूल्य आंकड़े जनवरी 2025 में टमाटर, प्याज और आलू की कीमतों में माह-दर-माह महत्वपूर्ण सुधार का संकेत देते हैं। 24 नवंबर 2024 में भारतीय बास्केट कच्चे तेल की कीमतों में माह-दर-माह लगभग (-) 2.8 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जबकि दिसंबर में इसमें 0.4 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई। जनवरी 2025 में, 80 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर भारतीय बास्केट कच्चे तेल की कीमतों में दिसंबर 2024 की तुलना में 9.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। 25 भारत का चालू खाता घाटा (सीएडी) 2023-24 की दूसरी तिमाही के 11.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 1.3 प्रतिशत) से मामूली रूप से कम होकर 2024-25 की दूसरी तिमाही में 11.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 1.2 प्रतिशत) हो गया। 26 https://blogs.worldbank.org/en/peoplemove/in-2024--remittance-flows-to-low--and-middle-income-countries-ar 27 चार तिमाहियों की अवधि (2023-24 की तीसरी तिमाही से 2024-25 की दूसरी तिमाही) के दौरान वास्तविक वस्तु आयात (बीओपी आधार पर) के आधार पर। 28 जीडीपी की तुलना में भारत का बाह्य ऋण अनुपात सितंबर 2024 के अंत में 19.4 प्रतिशत (जून 2024 के अंत में 18.8 प्रतिशत) रहा, जबकि निवल अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति (आईआईपी) जून 2024 के अंत में जीडीपी के (-) 10.3 प्रतिशत से घटकर सितंबर 2024 के अंत में जीडीपी के (-) 9.6 प्रतिशत पर आ गई। 29 इनमें 16 जनवरी 2025 से दैनिक परिवर्ती दर रेपो नीलामी और जनवरी में खुले बाजार परिचालन (ओएमओ) के माध्यम से 58,835 करोड़ रुपये की सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद शामिल थी। इसके अतिरिक्त, 27 जनवरी 2025 को ओएमओ, विदेशी मुद्रा खरीद-बिक्री स्वैप और आज बाद में आयोजित होने वाले 56-दिवसीय परिवर्ती दर रेपो के माध्यम से टिकाऊ चलनिधि डालने के लिए उपायों के एक पैकेज की घोषणा की गई। 30 एससीबी मापदंड : 24 जनवरी 2025 तक बकाया ऋण और जमा में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर क्रमशः 11.4 प्रतिशत और 10.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सितंबर 2024 में 16.7 प्रतिशत का प्रणाली -स्तरीय सीआरएआर, विनियामक न्यूनतम स्तर से काफी ऊपर था। सितंबर 2024 में जीएनपीए अनुपात 2.5 प्रतिशत पर सितंबर 2023 की तुलना में 72 बीपीएस से बेहतर है। सितंबर 2024 में एसएमए-2 अनुपात 0.8 प्रतिशत था। सितंबर 2024 तक एलसीआर 128.6 प्रतिशत था। सितंबर 2024 में आरओए 1.4 प्रतिशत और आरओई 14.6 प्रतिशत था। सितंबर 2024 में एनआईएम 3.5 प्रतिशत थी, जबकि सितंबर 2023 में यह 3.7 प्रतिशत थी। 31 एनबीएफसी मापदंड: 30 सितंबर 2024 तक एनबीएफसी का कुल सीआरएआर 26.5 प्रतिशत और टियर I सीआरएआर 24.4 प्रतिशत है। जीएनपीए अनुपात सितंबर 2023 में 2.9 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2024 में 2.6 प्रतिशत हो गया। सितंबर 2023 में 2.9 प्रतिशत से सितंबर 2024 में आरओए सुधरकर 3.2 प्रतिशत हो गया। सितंबर 2023 में 22.5 प्रतिशत की तुलना में सितंबर 2024 में अग्रिमों में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर संवृद्धि 16.4 प्रतिशत रही। |