गवर्नर का वक्तव्य: 7 जून 2024 - आरबीआई - Reserve Bank of India
गवर्नर का वक्तव्य: 7 जून 2024
1. हाल के वर्षों में, दुनिया एक के बाद एक संकटों से गुज़री है; और यह सिलसिला जारी है। इस पृष्ठभूमि के बावजूद, भारतीय अर्थव्यवस्था, वित्तीय स्थिरता और सकारात्मक संवृद्धि की गति के साथ, मजबूत बुनियादी ढांचे प्रदर्शित करती है। फिर भी, हमें इस अस्थिर वैश्विक माहौल में सतर्क रहने की आवश्यकता है। तकनीकी प्रगति; आपूर्ति शृंखला पुनर्गठन, व्यापार और वित्तीय विखंडन; तथा जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न नई वास्तविकताएं, अवसरों के साथ-साथ चुनौतियां भी प्रस्तुत करती हैं। इस परिस्थिति में, भारत अनुकूल जनसांख्यिकी1, बेहतर उत्पादकता और प्रौद्योगिकी तथा अनुकूल नीतिगत माहौल की सहायता से परिवर्तन के एक नए युग की शुरुआत करने के लिए तैयार है। इन कारकों का संगम आने वाले वर्षों में भारत में सतत उच्च संवृद्धि की संभावनाओं को उजागर करता है।2 2. जैसे-जैसे रिज़र्व बैंक अपने शताब्दी वर्ष, RBI@100 की ओर बढ़ रहा है, वह भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए पहले से ही और भी अधिक तैयार होगा। यह वैश्विक स्तर पर भारत की उपस्थिति को सुदृढ़ करने के लिए उपाय करेगा। अगले दशक के दौरान अपनी यात्रा के लिए, हमने रिज़र्व बैंक को दक्षिण विश्व के लिए एक आदर्श केंद्रीय बैंक के रूप में स्थापित करने की दिशा में नीतिगत कार्रवाइयों से युक्त कार्यनीतियां तैयार की हैं। RBI@100 तक पहुँचने के लिए एजेंडा इस वक्तव्य के अनुलग्नक में प्रलेखित है। मैं भारतीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली के उत्सुक पर्यवेक्षकों से आग्रह करता हूं कि वे इन कार्य योजनाओं पर बारीकी से नज़र डालें। यह एक स्थिर दस्तावेज़ नहीं है क्योंकि हम एक गतिशील दुनिया में रह रहे हैं। हमारा प्रयास इसे आवश्यकतानुसार लगातार अपडेट करना होगा। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के निर्णय और विचार-विमर्श 3. मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक 5, 6 और 7 जून 2024 को हुई। उभरती समष्टि- आर्थिक और वित्तीय गतिविधियों और संभावना के विस्तृत मूल्यांकन के बाद, इसने 4-2 की बहुमत से नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने का निर्णय लिया। परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.25 प्रतिशत और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत पर बनी हुई है। एमपीसी ने 6 में से 4 सदस्यों के बहुमत से निर्णय लिया कि वह निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संवृद्धि का समर्थन करते हुए मुद्रास्फीति उत्तरोत्तर लक्ष्य के साथ संरेखित हो। 4. अब मैं संक्षेप में इन निर्णयों के औचित्य को बताऊंगा। मुद्रास्फीति-संवृद्धि का संतुलन अनुकूल रूप से आगे बढ़ रहा है। संवृद्धि स्थिर बनी हुई है। मुद्रास्फीति में नरमी जारी है, जो मुख्य रूप से मूल घटक3 द्वारा संचालित है और यह अप्रैल 2024 की वर्तमान सीरीज में अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गया।4 ईंधन की कीमतों में अपस्फीति जारी है।5 हालांकि, खाद्य मुद्रास्फीति अभी भी उच्च बनी हुई है।6 5. एमपीसी ने अब तक संवृद्धि को हानि पहुंचाए बिना प्राप्त की गई अवस्फीति पर ध्यान दिया है, लेकिन यह मुद्रास्फीति से संबंधित किसी भी उर्ध्व्गामी जोखिम, खासकर खाद्य मुद्रास्फीति से, के प्रति सतर्क है, जो अवस्फीति का पथभ्रष्ट कर सकती है। अतः, मौद्रिक नीति को अवस्फीतिकारी बने रहना चाहिए और मुद्रास्फीति को टिकाऊ आधार पर 4.0 प्रतिशत के लक्ष्य के अनुरूप लाने की अपनी प्रतिबद्धता में दृढ़ रहना चाहिए। धारणीय मूल्य स्थिरता, उच्च संवृद्धि की अवधि के लिए मजबूत आधार तैयार करेगी। तदनुसार, एमपीसी ने इस बैठक में नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने का निर्णय लिया। एमपीसी ने निर्णय लिया कि वह निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति की संभावनाएं नियंत्रित हो और पूर्णतः नीतिगत संचरण हो।7 संवृद्धि और मुद्रास्फीति का आकलन वैश्विक संवृद्धि 6. वैश्विक संवृद्धि 2024 में अपनी गति बनाए रखेगी और वैश्विक व्यापार में उछाल के कारण इसके आघात-सह बने रहने की संभावना है।8 मुद्रास्फीति कम हो रही है, लेकिन इस अवस्फीति यात्रा का अंतिम चरण कठिन हो सकता है। मुद्रास्फीति के विरुद्ध अपनी लड़ाई में केंद्रीय बैंक दृढ़ और आंकड़ों पर निर्भर बने हुए हैं। प्राप्त आंकड़ों और केंद्रीय बैंक संचार के कारण ब्याज दरों में कटौती के समय और गति के बारे में बाजार की उम्मीदें भी बदल रही हैं।9 अमेरिकी डॉलर और सॉवरेन बॉण्ड के प्रतिफल सीमित दायरे में बनी हुई है। जबकि स्वर्ण की कीमतों में सुरक्षित स्थान की मांग के कारण उछाल आया है, पिछली एमपीसी बैठक के बाद से उन्नत और उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्थाओं दोनों में इक्विटी बाजारों में तेजी आई है। घरेलू संवृद्धि 7. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी अनंतिम अनुमानों में 2023-24 में भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।10 2024-25 के दौरान अब तक घरेलू आर्थिक गतिविधि आघात-सहनीय बनी हुई है। घरेलू मांग में मजबूती के कारण विनिर्माण गतिविधि में तेजी जारी है। अप्रैल 2024 में आठ मूल उद्योगों ने अच्छी वृद्धि दर्ज की। विनिर्माण में क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) मई 2024 में मजबूती दर्शाता रहा और यह वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक है।11 उपलब्ध उच्च आवृत्ति संकेतकों से स्पष्ट रूप से सेवा क्षेत्र में उछाल बना रहा।12 मई 2024 में पीएमआई सेवाएं 60.2 पर मजबूत बनी रहीं, जो गतिविधि में निरंतर और मजबूत विस्तार का संकेत है। 8. शहरी क्षेत्रों में स्थिर विवेकाधीन व्यय के कारण निजी खपत, कुल मांग का मुख्य आधार, में सुधार हो रहा है13। कृषि क्षेत्र की गतिविधि में सुधार से ग्रामीण मांग में सुधार को बढ़ावा मिल रहा है।14 खाद्य से इतर बैंक ऋण में चल रहे विस्तार15 के कारण निवेश गतिविधि में तेजी जारी है।16 वैश्विक मांग में सुधार के कारण अप्रैल में वस्तु निर्यात में वृद्धि हुई। तेल से इतर स्वर्ण से इतर आयात सकारात्मक क्षेत्र में प्रवेश कर गया।17 सेवाओं के निर्यात और आयात में उछाल आया और अप्रैल 2024 में मजबूत वृद्धि दर्ज की गई।18 9. आगे, भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी)19 द्वारा सामान्य से अधिक दक्षिण-पश्चिम मानसून के पूर्वानुमान से खरीफ उत्पादन को बढ़ावा मिलने और जलाशयों के स्तर में वृद्धि होने की उम्मीद है।20 कृषि क्षेत्र की गतिविधि को मजबूत करने से ग्रामीण खपत को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। दूसरी ओर, सेवा गतिविधि में निरंतर उछाल से शहरी खपत को समर्थन मिलना जारी रहना चाहिए। बैंकों और कॉरपोरेट्स के स्वस्थ तुलन-पत्र; पूंजीगत व्यय पर सरकार का निरंतर जोर; उच्च क्षमता उपयोग21; और व्यापार आशावाद निवेश गतिविधि के लिए शुभ संकेत हैं। वैश्विक व्यापार की संभावनाओं में सुधार से बाहरी मांग को बढ़ावा मिलना चाहिए। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2024-25 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जिसमें पहली तिमाही में 7.3 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 7.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 7.3 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं। मुद्रास्फीति 10. मार्च-अप्रैल के दौरान सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति में और नरमी आई, हालांकि खाद्य मुद्रास्फीति के सतत दबाव ने कोर में अवस्फीति और ईंधन समूहों में अपस्फीति के लाभ को संतुलित कर दिया।22 कुछ नरमी के बावजूद, दालों और सब्जियों की मुद्रास्फीति दोहरे अंकों में मजबूती से बनी रही। सर्दियों के मौसम में मामूली करेक्शन के बाद गर्मियों में सब्जियों की कीमतों में उछाल देखने को मिल रहा है।23 ईंधन में अपस्फीति की प्रवृत्ति मुख्य रूप से मार्च की शुरुआत में एलपीजी की कीमतों में कटौती से प्रेरित थी।24 जून 2023 के बाद से लगातार 11वें महीने कोर मुद्रास्फीति में नरमी आई है।25 सेवाओं की मुद्रास्फीति ऐतिहासिक रूप से कम हुई है और वस्तुओं की मुद्रास्फीति नियंत्रित रही।26 11. असाधारण रूप से गर्म ग्रीष्म ऋतु और जलाशयों का कम स्तर सब्जियों और फलों की ग्रीष्मकालीन फसल पर दबाव डाल सकता है। दालों और सब्जियों की रबी फसल पर सावधानीपूर्वक नज़र रखने की ज़रूरत है।27 वैश्विक खाद्य कीमतों में तेज़ी से वृद्धि शुरू हो गई है।28 चालू कैलेंडर वर्ष में अब तक औद्योगिक धातुओं की कीमतों में दोहरे अंकों की वृद्धि दर्ज की गई है।29 यदि ये रुझान बरकरार रहे तो फर्मों के लिए इनपुट लागत की स्थिति में हाल ही में आई तेजी और बढ़ सकती है।30 12. दूसरी ओर, सामान्य से अधिक मानसून का पूर्वानुमान खरीफ सीजन के लिए अच्छा संकेत है। गेहूं की खरीद पिछले वर्ष के स्तर से अधिक हो गई है। गेहूं और चावल के बफर स्टॉक मानक से काफी ऊपर हैं।31 ये घटनाक्रम खाद्य मुद्रास्फीति के दबावों, खासकर अनाज और दालों में राहत ला सकते हैं। भू-राजनीतिक तनाव के कारण कच्चे तेल की कीमतों से संबंधित संभावना अनिश्चित बनी हुई है। सामान्य मानसून को मानते हुए, 2024-25 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जिसका पहली तिमाही में 4.9 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 3.8 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं। मौद्रिक नीति के लिए मुद्रास्फीति और संवृद्धि की इन स्थितियों का क्या अर्थ है? 13. संवृद्धि और मुद्रास्फीति से संबंधित गतिविधियां हमारी उम्मीदों के अनुरूप ही सामने आ रहे हैं। जब 2024-25 के लिए 7.2 प्रतिशत की अनुमानित जीडीपी वृद्धि साकार होगी, तो यह लगातार चौथा वर्ष होगा जब संवृद्धि दर 7 प्रतिशत या उससे अधिक होगी। हेडलाइन सीपीआई लगातार अवस्फीतिकारी प्रक्षेप पथ पर है। मौद्रिक नीति ने इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह 2022-23 की पहली तिमाही और 2023-24 की चौथी तिमाही के बीच हेडलाइन मुद्रास्फीति में 2.3 प्रतिशत अंकों की गिरावट से स्पष्ट है।32 आपूर्ति पक्ष की गतिविधियां और सरकारी उपायों ने भी हेडलाइन मुद्रास्फीति को कम करने में योगदान दिया। हालांकि, बार-बार खाद्य कीमतों में उतार-चढ़ाव ने समग्र अवस्फीति प्रक्रिया को धीमा कर दिया।33 14. हमारे अनुमानों के अनुसार, 2024-25 की दूसरी तिमाही में हेडलाइन मुद्रास्फीति में कुछ सुधार होने की संभावना है, लेकिन अनुकूल आधार प्रभावों के कारण यह एकबारगी होने की संभावना है और तीसरी तिमाही में यह वापस लौट सकता है।34 वर्तमान समय में, खाद्य मूल्य संभावना से संबंधित अनिश्चितताओं पर कड़ी निगरानी की आवश्यकता है, विशेष रूप से हेडलाइन मुद्रास्फीति पर उनके प्रभाव-प्रसार के जोखिमों पर।35 इसके साथ ही, मूल घटक की गतिविधियों पर भी सावधानीपूर्वक नज़र रखने की ज़रूरत है। हमें संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए मुद्रास्फीति को टिकाऊ आधार पर 4 प्रतिशत के लक्ष्य तक कम करने की ज़रूरत है। 15. एक मत यह है कि मौद्रिक नीति के मामलों में, रिज़र्व बैंक ‘फेड का अनुसरण करने’ के सिद्धांत द्वारा निर्देशित होता है।36 मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगा कि हम इस बात पर नजर तो रखते हैं कि दूर क्षितिज पर बादल बन रहे हैं या छंट रहे हैं, लेकिन हम स्थानीय मौसम और पिच की स्थिति के अनुसार ही खेल खेलते हैं। दूसरे शब्दों में, यद्यपि हम उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति का भारतीय बाजारों पर पड़ने वाले प्रभाव पर विचार करते हैं, तथापि हमारी कार्रवाइयां मुख्य रूप से घरेलू संवृद्धि-मुद्रास्फीति की स्थितियों और संभावनाओं से निर्धारित होती हैं। चलनिधि और वित्तीय बाज़ार की स्थितियाँ 16. चालू वित्त वर्ष के दौरान अब तक प्रणालीगत चलनिधि अधिशेष से घाटे की स्थिति में पहुंच गई और जून की शुरुआत में फिर से अधिशेष में पहुंच गई है।37 अप्रैल की नीतिगत वक्तव्य में चलनिधि प्रबंधन के लिए सक्रिय और लचीला बने रहने की प्रतिबद्धता के अनुरूप और बदलती चलनिधि गतिकी को देखते हुए, रिज़र्व बैंक ने अप्रैल के पहले पखवाड़े में परिवर्ती दर प्रतिवर्ती रेपो (वीआरआरआर) नीलामियों के माध्यम से अधिशेष चलनिधि को वापस लिया, जबकि अप्रैल के उत्तरार्ध और मई में परिवर्ती दर रेपो (वीआरआर) परिचालनों के माध्यम से चलनिधि को निवेश किया।38 जून के पहले सप्ताह में वीआरआरआर नीलामी आयोजित की गई है।39 2024-25 के दौरान अब तक चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) के लिए बैंकों का सहारा कम रहा है।40 17. चलनिधि गतिकी को दर्शाते हुए, भारित औसत मांग दर (डब्ल्यूएसीआर) औसतन, कॉरिडोर के मध्य के करीब रही।41 मियादी मुद्रा बाजार खंड में, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफ़सी) द्वारा जारी किए गए जमा प्रमाणपत्र (सीडी), वाणिज्यिक पत्र (सीपी) और 3 महीने के ट्रेजरी बिल (टी-बिल) पर प्रतिफल में भी कमी आई।42 ऋण बाजार में, मौद्रिक संचरण जारी है।43 18. जैसा कि आपको विदित है, रिज़र्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड ने लेखा वर्ष 2023-24 के लिए केंद्र सरकार को अधिशेष के रूप में ₹2.11 लाख करोड़ अंतरित करने का निर्णय लिया है। चूंकि अर्थव्यवस्था मजबूत और आघात-सहनीय बनी हुई है, इसलिए बोर्ड ने इस अवसर का उपयोग करके आकस्मिक आरक्षित बफर (सीआरबी) के अंतर्गत जोखिम प्रावधान को 2022-23 में 6.0 प्रतिशत से बढ़ाकर 2023-24 के लिए रिज़र्व बैंक की तुलन-पत्र का 6.5 प्रतिशत करने का निर्णय लिया है।44 इससे रिज़र्व बैंक का तुलन-पत्र और मजबूत होगा। विवेकशीलता हमारी मानक परिचालन प्रक्रिया का मूल है। 19. विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) के बहिर्वाह के बीच दबाव में कारोबार करने के बावजूद, भारतीय रुपया (आईएनआर) 2024-25 के दौरान अब तक (5 जून तक) अल्प अस्थिरता के साथ एक संकीर्ण दायरे में चला गया।45 भारतीय रुपये की सापेक्षिक स्थिरता भारत की सुदृढ़ एवं आघात-सहनीय आर्थिक बुनियाद, समष्टि-आर्थिक एवं वित्तीय स्थिरता तथा बाह्य संभावना में सुधार का प्रमाण है। 20. आगे चलकर, रिज़र्व बैंक रेपो और प्रतिवर्ती रेपो दोनों में मुख्य और परिष्कृत कार्य परिचालन के माध्यम से अपने चलनिधि प्रबंधन में सक्रिय और आघात-सह बना रहेगा। हम घर्षण और टिकाऊ चलनिधि दोनों को नियंत्रित करने के लिए लिखतों का एक उपयुक्त मिश्रण नियोजित करेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रा बाजार की ब्याज दरें एक व्यवस्थित तरीके से विकसित हों जो वित्तीय स्थिरता को बनाए रखें। जैसा कि हाल की अवधि में हमारे कार्यों से पता चला है, भारतीय रिज़र्व बैंक अपने द्वारा विनियमित वित्तीय बाज़ारों और संस्थाओं के सभी क्षेत्रों में स्थिरता और सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। वित्तीय स्थिरता 21. 2023-24 के वार्षिक वित्तीय परिणाम संकेत देते हैं कि बैंकिंग प्रणाली, आस्ति गुणवत्ता में सुधार, खराब ऋणों के लिए बढ़ा हुआ प्रावधानीकरण, निरंतर पूंजी पर्याप्तता और लाभप्रदता में वृद्धि के कारण सुदृढ़ और आघात-सहनीय बनी हुई है।46 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) ने भी बैंकिंग क्षेत्र के अनुरूप मजबूत वित्तीय प्रदर्शन किया। उल्लेखनीय रूप से, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) और एनबीएफसी की सकल अनर्जक आस्तियां (जीएनपीए) मार्च 2024 के अंत तक कुल अग्रिमों के 3 प्रतिशत से कम हैं।47 यह महत्वपूर्ण है कि विनियमित संस्थाएं (आरई) अपने संगठन में अभिशासनिक मानकों, जोखिम प्रबंधन प्रथाओं और अनुपालन संस्कृति में सुधार जारी रखें। 22. पिछले वर्ष नवंबर में हमने असुरक्षित खुदरा ऋणों में अत्यधिक वृद्धि और बैंक वित्तपोषण पर एनबीएफसी की अत्यधिक निर्भरता पर कुछ चिंताएं जताई थीं। हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि इन ऋणों और अग्रिमों में कुछ कमी आई है।48 हम प्राप्त आंकड़ों पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं ताकि पता लगाया जा सके कि क्या आगे कोई उपाय करने की आवश्यकता है। आरई के बोर्ड और शीर्ष प्रबंधन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक कारोबार के लिए जोखिम सीमा और एक्सपोजर उनके संबंधित जोखिम क्षमता ढांचे के भीतर ही रखे जाएँ। ऋण और जमा संवृद्धि दरों के बीच लगातार अंतर, बैंकों के बोर्ड द्वारा अपनी व्यावसायिक योजनाओं पर फिर से कार्यनीति बनाने के लिए पुनर्विचार की मांग करता है। आस्तियों और देयताओं के बीच एक विवेकपूर्ण संतुलन बनाए रखना होगा। 23. ग्राहक सुरक्षा रिज़र्व बैंक की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर है। सामान्य तौर पर, हमने देखा है कि मुख्य तथ्य विवरण (केएफएस) पर दिशानिर्देशों49 का पालन किया जाता है, लेकिन कुछ आरई अभी भी ऐसे शुल्क आदि वसूलते हैं जो मुख्य तथ्य विवरण (केएफएस) में निर्दिष्ट या प्रकट नहीं किए गए हैं। कुछ व्यष्टि वित्त फाइनेंस संस्थानों और एनबीएफसी में यह भी देखा गया है कि छोटे मूल्य के ऋणों पर ब्याज दरें अधिक हैं और सूदखोरी होती हैं। ब्याज दरों और शुल्कों के संबंध में विनियमित संस्थाओं की विनियामक स्वतंत्रता का उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए ताकि उत्पादों और सेवाओं के उचित और पारदर्शी मूल्य निर्धारण को सुनिश्चित किया जा सके। रिज़र्व बैंक ग्राहकों के हितों की रक्षा करने और समग्र वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए ऐसी वित्तीय संस्थाओं के साथ अपनी रचनात्मक बात-चीत जारी रखता है। बाह्य क्षेत्र 24. कम व्यापार घाटे, मजबूत सेवा निर्यात वृद्धि50 और मजबूत प्रेषण के कारण, 2023-24 की चौथी तिमाही में चालू खाता घाटा कम होने की उम्मीद है।51 सेवा निर्यात मुख्य रूप से सॉफ्टवेयर निर्यात, अन्य कारोबारी सेवाओं और यात्रा निर्यात द्वारा संचालित था।भारत में वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) के अभूतपूर्व उदय ने भारत के सॉफ्टवेयर और कारोबारी सेवाओं के निर्यात को महत्वपूर्ण बढ़ावा दिया है।52 भारत - 2024 में विश्व के प्रेषण में 15.2 प्रतिशत की अपेक्षित हिस्सेदारी के साथ - वैश्विक स्तर पर प्रेषण का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता बना हुआ है। कुल मिलाकर, 2024-25 के लिए चालू खाता घाटा अपने धारणीय स्तर के भीतर रहने की उम्मीद है। 25. बाह्य वित्तपोषण के मामले में, 2023-24 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) प्रवाह में वृद्धि हुई, जिसमें निवल एफपीआई अंतर्वाह 41.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा। हालांकि, 2024-25 की शुरुआत से, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक घरेलू बाजार में 5.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवल बहिर्वाह के साथ निवल विक्रेता बन गए हैं (5 जून तक)। 2023 में, भारत ने एशिया प्रशांत क्षेत्र में ग्रीनफील्ड प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) के लिए सबसे आकर्षक गंतव्य के रूप में अपनी स्थिति बरकरार रखी।53 2023-24 में सकल एफ़डीआई मजबूत रहा, लेकिन निवल एफ़डीआई में कमी आई।54 बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) और गैर-निवासी जमाओं में पिछले वर्ष की तुलना में अधिक निवल अंतर्वाह दर्ज किया गया।55 वर्ष के दौरान ईसीबी करार की मात्रा में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई।56 26. एक नया मील का पत्थर छूते हुए, भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि 31 मई 2024 तक 651.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच गयी। भारत का बाह्य क्षेत्र आघात-सह बना हुआ है और प्रमुख बाह्य भेद्यता संकेतकों में सुधार जारी है। 57 कुल मिलाकर, हमें विश्वास है कि हम अपनी बाह्य वित्तपोषण आवश्यकताओं को आराम से पूरा कर लेंगे। अतिरिक्त उपाय 27. अब मैं कुछ अतिरिक्त उपायों की घोषणा करूंगा। बैंकों में थोक जमा की सीमा की समीक्षा 28. थोक जमा सीमा की समीक्षा करने पर, एससीबी (आरआरबी को छोड़कर) और एसएफबी के लिए थोक जमा की परिभाषा को ‘3 करोड़ रुपये और उससे अधिक की एकल रुपया सावधि जमा’ के रूप में संशोधित करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा, स्थानीय क्षेत्र के बैंकों के लिए थोक जमा सीमा को ‘एक करोड़ रुपये और उससे अधिक की एकल रुपया सावधि जमा’ के रूप में परिभाषित करने का भी प्रस्ताव है, जैसा कि आरआरबी के मामले में लागू है। विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा), 1999 के अंतर्गत वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात और आयात के लिए दिशानिर्देशों का युक्तिकरण 29. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती गतिशीलता को देखते हुए तथा विदेशी मुद्रा विनियमन के प्रगतिशील उदारीकरण के अनुरूप, वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात और आयात पर मौजूदा फेमा दिशानिर्देशों को युक्तिसंगत बनाने का प्रस्ताव है। इससे कारोबार करने में आसानी को बढ़ावा मिलेगा तथा प्राधिकृत डीलर बैंकों को अधिक परिचालनगत लचीलापन मिलेगा। हितधारकों की प्रतिक्रिया के लिए शीघ्र ही मसौदा दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। डिजिटल भुगतान इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म की स्थापना 30. भारतीय रिज़र्व बैंक ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने तथा उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पिछले कुछ वर्षों में अनेक उपाय किए हैं। इन उपायों से उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ा है। हालाँकि, डिजिटल भुगतान धोखाधड़ी के बढ़ते मामले, ऐसी धोखाधड़ी को रोकने और कम करने के लिए एक प्रणाली-व्यापी दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। अतः, डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में नेटवर्क स्तर की इंटेलिजेंस और वास्तविक समय डेटा साझा करने के लिए एक डिजिटल भुगतान इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म स्थापित करने का प्रस्ताव है। इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए, रिज़र्व बैंक ने प्लेटफॉर्म की स्थापना के विभिन्न पहलुओं की जांच के लिए एक समिति गठित की है। ई-मैन्डेट ढांचे के अंतर्गत स्व- पुनःपूर्ति (ऑटो-रिप्लेनिशमेंट) सुविधा के साथ आवर्ती भुगतान को शामिल करना 31. आवर्ती भुगतान लेनदेन के लिए ई-मैन्डेट का उपयोग बढ़ रहा है। अब फास्टैग, नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड (एनसीएमसी) आदि में शेष राशि की पुनःपूर्ति जैसे भुगतानों जो ई-मैन्डेट ढांचे में आवर्ती प्रकृति के हैं, लेकिन उनकी कोई निश्चित आवधिकता नहीं है, को भी शामिल करने का प्रस्ताव है। इससे ग्राहकों को फास्टैग, एनसीएमसी आदि में शेष राशि को स्वतः पुनःपूर्ति की सुविधा मिल जाएगी, यदि शेष राशि उनके द्वारा निर्धारित सीमा से कम हो जाती है। इससे यात्रा/गतिशीलता संबंधी भुगतान करने में सुविधा बढ़ेगी। यूपीआई लाइट वॉलेट के स्व- पुनःपूर्ति (ऑटो-रिप्लेनिशमेंट) की शुरूआत – ई-मैंडेट ढांचे के अंतर्गत समावेशन 32. यूपीआई लाइट की शुरुआत सितंबर 2022 में ऑन-डिवाइस वॉलेट के माध्यम से त्वरित और निर्बाध तरीके से छोटे मूल्य के भुगतान को सक्षम करने के लिए की गई थी। यूपीआई लाइट को व्यापक रूप से अपनाने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए, अब इसे ई-मैन्डेट ढांचे के अंतर्गत लाने का प्रस्ताव है, जिसके अंतर्गत ग्राहकों के लिए एक सुविधा शुरू की जाएगी, जिससे यदि उनके द्वारा निर्धारित सीमा से कम शेष राशि हो जाती है, तो उनके यूपीआई लाइट वॉलेट में स्वतः राशि जमा हो जाएगी। इससे छोटे मूल्य के डिजिटल भुगतान करने में आसानी होगी। HaRBInger 2024 – परिवर्तन के लिए नवाचार 33. रिज़र्व बैंक ने हाल के वर्षों में फिनटेक क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए कई अग्रणी पहल की हैं। ऐसी ही एक प्रमुख पहल है वैश्विक हैकाथॉन: ‘HaRBInger- परिवर्तन के लिए नवाचार’। हैकाथॉन के पहले दो संस्करण क्रमशः वर्ष 2022 और 2023 में पूरे हुए। वैश्विक हैकथॉन का तीसरा संस्करण, “HaRBInger 2024” का लोकार्पण दो थीमों, अर्थात् ‘शून्य वित्तीय धोखाधड़ी’ और ‘दिव्यांग अनुकूल होना’ के साथ शीघ्र ही किया जाएगा। निष्कर्ष 34. रिज़र्व बैंक में हमारा काम संतुलन, धैर्य और दृढ़ता की मांग करता है। भारत की हालिया आर्थिक प्रगति, आर्थिक गतिविधियों में निरंतर गति और समग्र आशाजनक संभावनाएं, नीति निर्माण के प्रति हमारे दृष्टिकोण को मान्य करती हैं। इस समय, भारतीय अर्थव्यवस्था, अपने पथ पर चयन बिंदु पर है जो अधिक परिवर्तनकारी बदलावों की ओर अग्रसर है, जो अधिक स्थिरता और विकास लाएंगे। 35. मुद्रास्फीति के मामले में हम सही रास्ते पर हैं, लेकिन अभी भी काम करना शेष है। वैश्विक स्तर पर, इस बात की चिंता है कि निरंतर भू-राजनीतिक संघर्षों, आपूर्ति में व्यवधानों और कमोडिटी की कीमतों में उतार-चढ़ाव के बीच, अवस्फीति की अंतिम मंजिल लंबी और कठिन हो सकती है। भारत में, संवृद्धि स्थिर रहने के कारण, मौद्रिक नीति के पास मूल्य स्थिरता को बनाए रखने के लिए अधिक गुंजाइश है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति टिकाऊ आधार पर लक्ष्य के अनुरूप बनी रहे। वर्तमान स्थिति में, मौद्रिक नीति, मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने तथा एक निश्चित समयावधि में सतत संवृद्धि के लिए आवश्यक आधार प्रदान करने के लिए मूल्य स्थिरता पर पूरी तरह केंद्रित है। महात्मा गांधी के शब्द यहां गूंजते हैं और मैं यह उद्धृत करता हूं, "यदि हम अपने मार्ग के बारे में निश्चित हैं... तो हमें इसके लिए निरंतर और बिना रुके प्रयास करते रहना चाहिए।"58 धन्यवाद। नमस्कार। (पुनीत पंचोली) प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/452 बहु-वर्षीय समय-सीमा में RBI@100 के लिए आकांक्षात्मक लक्ष्य 1. मौद्रिक नीति और चलनिधि प्रबंधन • रिज़र्व बैंक को वैश्विक दक्षिण के नेता के रूप में स्थापित करना • निम्नलिखित के लिए मौद्रिक नीति ढांचे की समीक्षा:
2. भारत के वित्तीय क्षेत्र का वैश्वीकरण • वित्तीय क्षेत्र में सुधार निम्नलिखित से संबंधित हैं:
3. रिज़र्व बैंक के पर्यवेक्षण को वैश्विक मॉडल बनाना • जोखिम केंद्रित पर्यवेक्षण:
• निरंतर क्षितिज स्कैनिंग और समग्र जोखिम मूल्यांकन द्वारा ‘चक्र के माध्यम से’ जोखिम मूल्यांकन ढांचे का निर्माण; • ग्राहक-केंद्रित पर्यवेक्षण: उचित पर्यवेक्षी फोकस के माध्यम से ग्राहकों के हितों की रक्षा और बढ़ावा देने के लिए एसई के आचरण में सुधार करना; • प्रभावी सुधारात्मक कार्रवाई: विवेकपूर्ण पर्यवेक्षी निर्णय और पर्यवेक्षी प्रभावशीलता के आकलन पर ध्यान केंद्रित करना; और • डेटा एनालिटिक्स यूनिवर्स का निर्माण करना। 4. डिजिटल भुगतान प्रणालियों का गहनीकरण और सार्वभौमिकरण – घरेलू और वैश्विक स्तर पर
5. वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना
6. ऋण उपलब्धता का विस्तार
7. पूंजी खाता उदारीकरण और भारतीय रुपया (आईएनआर) का अंतर्राष्ट्रीयकरण
8. जलवायु परिवर्तन से निपटना
9. रिज़र्व बैंक में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/मशीन लर्निंग (एआई/एमएल) को अपनाना • बैंक के लिए एआई नीति की अभिव्यक्ति। • एआई/एमएल का उपयोग:
10. वित्तीय क्षेत्र क्लाउड ढांचा (इंफ्रास्ट्रक्चर)
11. डेटा संग्रहण, प्रसंस्करण और भंडारण में परिवर्तनकारी बदलाव
12. भुगतान धोखाधड़ी से उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा
13. सुरक्षित वैश्विक वित्तीय संदेश हब विकसित करना
14. रिज़र्व बैंक के मानव संसाधन और बुनियादी ढांचे को भविष्य के लिए तैयार करना। 1 विश्व की शीर्ष 5 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल भारत की जनसंख्या अपेक्षाकृत युवा है, जिसकी 2021 में औसत आयु 28 वर्ष है, जबकि अमेरिका और चीन की औसत आयु 38, ब्रिटेन की 40, जर्मनी की 45 और जापान की 48 वर्ष है। 2 भारत में कॉर्पोरेट और बैंकिंग क्षेत्रों के तुलन पत्र मजबूत हुए हैं है और हमारे आर्थिक विस्तार का समर्थन करने के लिए पर्याप्त पूंजीकृत है। भारत वैश्विक संवृद्धि का नया इंजन बन गया है और विश्व मंच पर बड़ी भूमिका निभा रहा है। वैश्विक संवृद्धि में भारत का योगदान 2000 के पहले दशक में औसतन लगभग 7.0 प्रतिशत से बढ़कर अगले दशक 2010-11 से 2019-20 में 11.6 प्रतिशत हो गया और वर्तमान में 2023-24 में 18.5 प्रतिशत है। 3 खाद्य एवं ईंधन को छोड़कर सीपीआई 4 अप्रैल 2024 में 3.2 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) पर मूल मुद्रास्फीति वर्तमान सीपीआई सीरीज (2012=100) में सबसे कम थी। 5 ईंधन में अपस्फीति जो सितंबर 2023 से (-) 0.1 प्रतिशत से शुरू हुई थी, तब से अप्रैल 2024 में (-) 4.2 प्रतिशत तक बढ़ गई है। 6 अप्रैल 2024 में खाद्य मुद्रास्फीति 7.9 प्रतिशत थी और वित्त वर्ष 2023-24 में औसतन 7.0 प्रतिशत थी। 7 नीतिगत रेपो दर में 250 आधार अंकों (बीपीएस) की वृद्धि के जवाब में, नए रुपए ऋणों पर भारित औसत उधार दर (डब्ल्यूएएलआर) में 204 बीपीएस की वृद्धि हुई, जबकि बकाया ऋणों पर 111 बीपीएस (मई 2022 - अप्रैल 2024) की वृद्धि हुई । इसी अवधि के दौरान, नई जमाराशियों और बकाया जमाराशियों पर भारित औसत घरेलू मियादी जमा दरों (डब्ल्यूएडीटीडीआर) में क्रमशः 245 बीपीएस और 188 बीपीएस की वृद्धि हुई। 8 आईएमएफ के वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलूक (डब्ल्यूईओ) (अप्रैल 2024) के अनुसार, विश्व व्यापार संवृद्धि (वस्तुएं और सेवाएं) 2023 में 0.3 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में 3.0 प्रतिशत और 2025 में 3.3 प्रतिशत होने का अनुमान है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने अपने वैश्विक व्यापार संभावना और सांख्यिकी (अप्रैल 2024) में अनुमान लगाया है कि विश्व वस्तु व्यापार की मात्रा, जिसमें 2023 में 1.2 प्रतिशत की गिरावट आई, 2024 में 2.6 प्रतिशत और 2025 में 3.3 प्रतिशत बढ़ेगी। 9 स्विट्जरलैंड, स्वीडन, कनाडा और यूरो क्षेत्र जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के कुछ केंद्रीय बैंकों ने 2024 के दौरान अपनी दर सहजता चक्र शुरू कर दिया है। दूसरी ओर, अमेरिकी फेड द्वारा दर में कटौती की बाजार उम्मीदें, जो पहले अधिक थीं, बाद में कम हो गई हैं। 10 2023-24 की चौथी तिमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2023-24 की चौथी तिमाही में निजी उपभोग और सकल स्थिर पूंजी निर्माण (जीएफ़सीएफ़) में क्रमशः 4.0 प्रतिशत और 6.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। पूरे वर्ष 2023-24 के लिए, निजी निवेश और जीएफ़सीएफ़ में क्रमशः 4.0 प्रतिशत और 9.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आपूर्ति पक्ष पर, सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में 2023-24 की चौथी तिमाही में 6.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। चौथी तिमाही में विनिर्माण में 8.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई और सेवाओं में 7.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। 2023-24 के लिए, जीवीए में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में क्रमशः 9.9 प्रतिशत और 7.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 11 अप्रैल 2024 में आठ प्रमुख उद्योगों में 6.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई तथा मजबूत नए ऑर्डरों के कारण मई में पीएमआई विनिर्माण 57.5 पर मजबूत बना रहा। 12 अप्रैल/मई 2024 में ई-वे बिल और टोल संग्रह में क्रमशः 14.5 प्रतिशत और 3.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। मई में जीएसटी राजस्व में 10.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई। घरेलू एयर कार्गो और अंतर्राष्ट्रीय एयर कार्गो ने मई में क्रमशः 27.6 प्रतिशत और 26.4 प्रतिशत की अच्छी वृद्धि दर्ज की। अप्रैल में पेट्रोलियम की खपत में वर्ष-दर-वर्ष 6.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 13 अप्रैल-मई में यात्री वाहनों की खुदरा बिक्री में 7.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इस अवधि के दौरान घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो क्षमता की कमी और एक वर्ष पहले 19.0 प्रतिशत की उच्च वृद्धि के आधार पर संभव हुई। 14 अप्रैल-मई में खुदरा दोपहिया वाहनों की बिक्री में 16.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के अंतर्गत मांग मई 2024 में 14.3 प्रतिशत घटी, जो कृषि क्षेत्र में रोजगार में निरंतर सुधार को दर्शाता है। ट्रैक्टर की बिक्री में संकुचन अप्रैल में 3.0 प्रतिशत तक कम हुआ, जो कि 2023-24 की चौथी तिमाही में 22.9 प्रतिशत था। ग्रामीण एफ़एमसीजी वॉल्यूम वृद्धि जो शहरी मांग से पीछे चल रही थी, 2023-24 की दूसरी तिमाही के बाद से बढ़ी है और 2023-24 की चौथी तिमाही में इसे पीछे छोड़ दिया है। 15 17 मई 2024 तक खाद्येतर बैंक ऋण में वर्ष-दर-वर्ष 15.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। अप्रैल 2024 में खाद्य प्रसंस्करण, कपड़ा, रसायन, आधार धातु और इंजीनियरिंग वस्तुओं के लिए प्रदत्त बैंक ऋण में क्रमशः 17.9 प्रतिशत, 8.3 प्रतिशत, 13.4 प्रतिशत, 11.9 प्रतिशत और 9.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। अवसंरचना क्षेत्रों में, अप्रैल 2024 के दौरान बिजली, सड़क और दूरसंचार में बैंक ऋण में क्रमशः 3.0 प्रतिशत, 7.0 प्रतिशत और 7.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 16 निर्माण क्षेत्र की गतिविधि ने 2023-24 की चौथी तिमाही में 8.7 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि दर्ज की। मई में स्टील की खपत में 11.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई और अप्रैल में सीमेंट उत्पादन में 0.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। मार्च 2024 में पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में 6.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि अप्रैल में पूंजीगत वस्तुओं के आयात में 3.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सरकार के नेतृत्व में अवसंरचना विकास, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत निरंतर समर्थन और अन्य मेक-इन-इंडिया पहल सार्वजनिक निवेश का समर्थन कर रहे हैं। 17 अप्रैल 2024 में भारत का वस्तु निर्यात 1.1 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) बढ़कर 35.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, और आयात 10.3 प्रतिशत बढ़कर 54.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। वस्तु व्यापार घाटा अप्रैल 2024 में 19.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जबकि अप्रैल 2023 में यह 14.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। 18 अप्रैल 2024 में सेवाओं के निर्यात और आयात में क्रमशः 17.7 प्रतिशत और 19.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 19 भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने 27 मई को 2024 के दक्षिण-पश्चिम मानसून (एसडब्ल्यूएम) मौसमी वर्षा (जून से सितंबर) के लिए अद्यतित दीर्घकालिक पूर्वानुमान जारी किया। इस वर्ष एसडब्ल्यूएम मौसमी वर्षा (जून-सितंबर) सामान्य से अधिक रहने की संभावना है, जो दीर्घकालिक औसत (एलपीए) का 106 प्रतिशत है, जो अप्रैल 2024 में पहले से अनुमानित ±4 प्रतिशत की अल्प मॉडल त्रुटि के साथ है। 20 अखिल भारतीय स्तर पर, 150 प्रमुख जलाशयों में जल भंडारण स्तर 6 जून 2024 तक कुल क्षमता का 22 प्रतिशत था 21 प्रारंभिक परिणामों से पता चलता है कि विनिर्माण में क्षमता उपयोग 2023-24 की चौथी तिमाही में 76.5 प्रतिशत तक बढ़ गया, जो पिछली तिमाही में 74.7 प्रतिशत था, जो 73.8 प्रतिशत की दीर्घकालिक औसत से काफी ऊपर पहुंच गया। 22 हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति मार्च में 4.9 प्रतिशत और फरवरी में 5.1 प्रतिशत से कम होकर अप्रैल 2024 में 4.8 प्रतिशत हो गई। हालांकि, सीपीआई खाद्य मुद्रास्फीति मार्च में 7.7 प्रतिशत से बढ़कर अप्रैल में 7.9 प्रतिशत हो गई। सीपीआई ईंधन में अपस्फीति मार्च में (-) 3.4 प्रतिशत से बढ़कर अप्रैल में (-) 4.2 प्रतिशत हो गई। खाद्य और ईंधन (कोर मुद्रास्फीति) को छोड़कर सीपीआई मुद्रास्फीति मार्च में 3.3 प्रतिशत और फरवरी में 3.4 प्रतिशत से कम होकर अप्रैल में 3.2 प्रतिशत हो गई। 23 सर्दियों के मौसम में सब्जियों की कीमतों में गिरावट 2023-24 के दौरान लगभग (-) 9 प्रतिशत रही (लगभग 41 प्रतिशत की कीमत वृद्धि के बाद), जबकि पिछले वर्ष यह लगभग (-) 25 प्रतिशत थी (लगभग 19 प्रतिशत की कीमत वृद्धि के बाद)। 2020-21 से 2022-23 के बीच नवंबर-दिसंबर से मार्च के दौरान सर्दियों का औसत करेक्शन लगभग (-) 28 प्रतिशत रहा है, जबकि इन वर्षों के लिए गर्मियों की औसत कीमत वृद्धि लगभग 29 प्रतिशत रही है। 24 9 मार्च 2024 से घरेलू तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) की कीमतों में प्रति सिलेंडर ₹100 की कमी के परिणामस्वरूप, सीपीआई एलपीजी, वर्ष-दर-वर्ष आधार पर, फरवरी में (-) 13.3 प्रतिशत से घटकर अप्रैल 2024 में (-) 24.9 प्रतिशत हो जाएगी। 25 कोर मुद्रास्फीति क्रमिक रूप से मई 2023 में 5.2 प्रतिशत से घटकर अक्टूबर 2023 में 4.2 प्रतिशत और अप्रैल 2024 में 3.2 प्रतिशत हो गई, जिसमें लगभग 2 प्रतिशत अंकों की गिरावट दर्ज की गई। 26 अप्रैल में कोर सीपीआई सेवा मुद्रास्फीति ऐतिहासिक रूप से कम होकर 2.8 प्रतिशत पर आ गई (2012=100 सिरीज में) जबकि मार्च में यह 3.0 प्रतिशत और फरवरी में 3.1 प्रतिशत थी। अप्रैल में कोर वस्तुओं की मुद्रास्फीति 3.6 प्रतिशत रही, जबकि मार्च में यह 3.5 प्रतिशत और फरवरी में 3.6 प्रतिशत थी। 27 दालों में, खरीफ तुअर में मूल्य दबाव के अलावा, उपभोक्ता मामले विभाग (डीओसीए) के उच्च आवृत्ति डेटा भी रबी चना में मूल्य दबाव की ओर इशारा करते हैं। सब्जियों में, मध्य अप्रैल से आलू की कीमत में भी तेज उछाल दिख रहा है। 28 खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के खाद्य मूल्य सूचकांक में मई 2023 से फरवरी 2024 तक गिरावट के बाद, मार्च और अप्रैल 2024 के दौरान क्रमशः 1.1 प्रतिशत और 0.7 प्रतिशत की माह-दर-माह वृद्धि दर्ज की गई। मई 2024 में, विश्व बैंक के खाद्य मूल्य सूचकांक में माह-दर-माह 1.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। 29 विश्व बैंक के अनुसार, 2024 में अब तक (मई 2024 तक) एल्यूमीनियम, तांबा, निकल, सीसा और जस्ता की कीमतों में 10 से 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 30 मई 2024 के पीएमआई डेटा के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र की इनपुट लागत में वृद्धि पिछले 21 महीनों में सबसे अधिक थी। सेवा क्षेत्र में भी मई 2024 में इनपुट लागत में तेज वृद्धि दर्ज की गई। 31 16 मई 2024 तक चावल और गेहूं का बफर स्टॉक क्रमशः 501.6 लाख टन (मानक से 3.7 गुना) और 291.7 लाख टन (मानक से 3.9 गुना) था। 32 हेडलाइन मुद्रास्फीति 2022-23 की पहली तिमाही में 7.3 प्रतिशत के हालिया शिखर से घटकर 2023-24 की चौथी तिमाही में 5.0 प्रतिशत हो गई। 33 नीतिगत रेपो दर में वृद्धि (मई 2022 और फरवरी 2023 के बीच 250 बीपीएस तक) के निरंतर संचरण के साथ-साथ आपूर्ति पक्ष के झटकों में कमी ने 2022-23 की पहली तिमाही से 2023-24 की चौथी तिमाही के बीच मुद्रास्फीति में 2.3 प्रतिशत अंकों की गिरावट में योगदान दिया। कोर मुद्रास्फीति में निरंतर नरमी प्रतिकूल लागत-प्रेरित कारकों के घटने के अलावा अंतर्निहित मुद्रास्फीति प्रवृत्तियों के लिए अवस्फीतिकारी मौद्रिक नीति रुख के संचरण को दर्शाती है। दूसरी ओर, मांग की स्थिति और ग्रामीण मज़दूरी में सुधार ने कुछ उर्ध्व्गामी दबाव डाला। 2023-24 की दूसरी तिमाही से, कई खाद्य मूल्य आघातों की घटना के कारण, हेडलाइन मुद्रास्फीति में आपूर्ति-पक्ष के आघातों का योगदान, हालांकि कम हो रहा है, सकारात्मक बना हुआ है, जिससे अवस्फीति की गति धीमी हो गई है (मौद्रिक नीति रिपोर्ट, अप्रैल 2024 से अद्यतन)। 34 पिछले वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही के दौरान गति (कीमतों में महीने-दर-महीने बदलाव) 3.4 प्रतिशत पर मजबूत थी, जिसके परिणामस्वरूप उसी अवधि के दौरान वर्ष-दर-वर्ष मुद्रास्फीति 6.4 प्रतिशत अधिक रही। परिणामस्वरूप, इस वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में 3.4 प्रतिशत का अनुकूल आधार प्रभाव है, जो वर्ष-दर-वर्ष अनुमानित मुद्रास्फीति को 3.8 प्रतिशत कम करने में सहायक है। 35 सीपीआई बास्केट में खाद्य एवं पेय पदार्थों की हिस्सेदारी 45.9 प्रतिशत है। 36 क्या अधिकांश केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने या पूंजी बहिर्वाह को रोकने के लिए यूएस फेड के निर्णयों पर प्रतिक्रिया करते हैं, इस पर व्यापक रूप से बहस हुई है [अधिक जानकारी के लिए, ह्यूर्टस, गोंज़ालो (2022) देखें। "व्हयाई फॉलो द फेड? मोनेटरी पालिसी इन टाइम्स ऑफ़ यूएस टाइटनिंग", आईएमएफ वर्किंग पेपर सीरीज़, वॉल्यूम 2022, अंक 243, दिसंबर]। 37 चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत निवल स्थिति द्वारा मापी गई प्रणाली चलनिधि (निवल एलएएफ), 1-19 अप्रैल के दौरान औसतन लगभग ₹1.1 लाख करोड़ के अधिशेष में थी, लेकिन 20 अप्रैल - 31 मई 2024 के दौरान लगभग ₹1.22 लाख करोड़ की कमी में बदल गई। अप्रैल की शुरुआत में उच्च सरकारी व्यय ने चलनिधि को कम किया, लेकिन अग्रिम कर भुगतान तथा माल और सेवा कर (जीएसटी) से संबंधित बहिर्वाह के कारण सरकारी नकदी शेष का निर्माण, सरकारी उधार कार्यक्रम की शुरुआत और उच्च मुद्रा व्यय ने अप्रैल और मई के उत्तरार्ध में चलनिधि पर दबाव डाला। 2-5 जून 2024 के दौरान अधिशेष चलनिधि औसतन ₹0.35 लाख करोड़ रही। 38 1-19 अप्रैल के दौरान, एक मुख्य और 7 परिष्करण वीआरआरआर नीलामियों (1 से 3 दिन की परिपक्वता) से कुल मिलाकर ₹2.3 लाख करोड़ की अधिशेष चलनिधि को अवशोषित किया गया, जबकि 4 मुख्य और 13 परिष्करण वीआरआर परिचालनों (1 से 7 दिन की परिपक्वता) से अप्रैल के शेष भाग और मई 2024 के दौरान ₹12.0 लाख करोड़ की सीमा तक चलनिधि को अंतर्वेशित किया गया। तथापि, 6 मई को एक एक-दिवसीय वीआरआरआर नीलामी आयोजित की गई, जिससे ₹0.26 लाख करोड़ प्राप्त हुए। 39 4 जून को 3 दिन की परिपक्वता अवधि वाली दो वीआरआरआर नीलामियां आयोजित की गईं, जिनमें ₹0.44 लाख करोड़ अवशोषित हुए। 40 अप्रैल-जून (5 जून तक) के दौरान एमएसएफ के अंतर्गत औसत उधारी ₹8,928 करोड़ थी, जो फरवरी-मार्च 2024 के दौरान ₹23,861 करोड़ से कम थी। 41 भारित औसत मांग दर (डब्ल्यूएसीआर) सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ़) दर 6.75 प्रतिशत और स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ़) दर 6.25 प्रतिशत की सीमा के बीच पर रही। अप्रैल-जून (5 जून तक) के दौरान डब्ल्यूएसीआर औसतन 6.57 प्रतिशत रही, जबकि फरवरी-मार्च के दौरान यह 6.61 प्रतिशत थी। संपार्श्विक खंड में दरें - त्रिपक्षीय और बाज़ार रेपो दरें – यद्यपि अपेक्षाकृत कम थीं, लेकिन डब्ल्यूएसीआर के साथ अनुबद्ध रहीं। 42 सीडी, सीपी और खज़ाना-बिल पर औसत प्रतिफल फरवरी-मार्च में क्रमशः 7.76 प्रतिशत, 8.34 प्रतिशत और 6.96 प्रतिशत से घटकर अप्रैल-जून (5 जून तक) के दौरान क्रमशः 7.34 प्रतिशत, 7.75 प्रतिशत और 6.90 प्रतिशत हो गया। 44 यह भारतीय रिज़र्व बैंक के मौजूदा आर्थिक पूंजी ढांचे की समीक्षा के लिए विशेषज्ञ समिति (अध्यक्ष: डॉ. बिमल जालान) की सिफारिशों के अनुसार अगस्त 2019 में रिज़र्व बैंक द्वारा अपनाए गए आर्थिक पूंजी ढांचे (ईसीएफ) पर आधारित है। 45 मैक्सिकन पेसो, ब्राजीलियन रियल, फिलीपीन पेसो, अर्जेंटीना पेसो, इंडोनेशियाई रुपिया, वियतनामी डोंग, थाईलैंड बहत, चीनी युआन, तुर्की लीरा और दक्षिण अफ्रीका रैंड जैसे उभरते बाजार सहभागियों द्वारा देखी गई गिरावट की तुलना में भारतीय रुपया (आईएनआर) वित्तीय वर्ष के आधार पर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले स्थिर रहा। साथ ही, विभिन्नता का गुणांक वर्ष 2020-21, 2021-22, 2022-23, 2023-24 और 2024-25 (5 जून तक) के लिए क्रमशः 1.6 प्रतिशत, 1.2 प्रतिशत, 2.7 प्रतिशत, 0.6 प्रतिशत और 0.1 प्रतिशत था। 2023-24 और 2024-25 (5 जून तक) के दौरान, आईएनआर चीनी युआन, थाईलैंड बाट, मलेशियाई रिंगित, वियतनामी डोंग, इंडोनेशियाई रुपिया और फिलीपीन पेसो सहित विभिन्न सहभागी ईएमई मुद्राओं में सबसे कम अस्थिर (सीवी के संदर्भ में) था। 46 मार्च 2024 के लिए अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) से संबंधित अनंतिम डेटा से पता चलता है कि उनका जीएनपीए अनुपात घटकर 2.8 प्रतिशत रह गया है। इसी समय, एससीबी का निवल अनर्जक आस्ति अनुपात घटकर 0.6 प्रतिशत रह गया, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है, जो बैंकिंग प्रणाली द्वारा पर्याप्त ऋण हानि प्रावधान का संकेत देता है। एससीबी का प्रावधान कवरेज अनुपात (पीसीआर) (बट्टे खाते को समायोजित किए बिना) मार्च 2024 के अंत में बढ़कर 76.5 प्रतिशत हो गया, जबकि एक वर्ष पहले यह 75.0 प्रतिशत था। एससीबी का दबावग्रस्त आस्ति अनुपात अर्थात सकल अनर्जक आस्ति (जीएनपीए) अनुपात और पुनर्गठित अग्रिम अनुपात का योग 3.6 प्रतिशत पर था, जो मार्च 2008 के बाद सबसे निचला स्तर था। एससीबी का पूंजी से जोखिम-भारित आस्ति अनुपात 17.4 प्रतिशत पर रहा, जो विनियामक आवश्यकता से काफी ऊपर रहा। मार्च 2024 के अंत में उनके मुख्य लाभप्रदता संकेतक, अर्थात आस्तियों पर प्रतिलाभ (आरओए) और इक्विटी पर प्रतिलाभ (आरओई) क्रमशः 1.1 प्रतिशत और 12.3 प्रतिशत थे। एससीबी का एलसीआर 130.3 प्रतिशत पर पर्याप्त रहा, जो 100 प्रतिशत की न्यूनतम आवश्यकता से काफी अधिक है। 47 अनंतिम आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2024 के अंत तक बैंकों और एनबीएफसी का जीएनपीए अनुपात क्रमशः 2.8 प्रतिशत और 2.5 प्रतिशत रहा। 48 रिज़र्व बैंक ने 16 नवंबर 2023 को असुरक्षित उपभोक्ता ऋण और एनबीएफसी को बैंक ऋण पर, इन क्षेत्रों में किसी भी संभावित जोखिम के निर्माण को रोकने के लिए, जोखिम भार बढ़ा दिया। परिणामस्वरूप, 'क्रेडिट कार्ड बकाया' जैसे असुरक्षित व्यक्तिगत ऋणों में ऋण वृद्धि नवंबर 2023 में 34.2 प्रतिशत से घटकर अप्रैल 2024 में 23.0 प्रतिशत हो गई, जबकि एनबीएफसी को बैंक ऋण संवृद्धि नवंबर 2023 में 18.5 प्रतिशत से घटकर अप्रैल 2024 में 14.4 प्रतिशत हो गई। 49 मुख्य तथ्य विवरण में ऋण करार के मुख्य तथ्य सरल और समझने में आसान भाषा में होते हैं, तथा उधारकर्ता को एक मानकीकृत प्रारूप में प्रदान किए जाते हैं। इसमें वार्षिक प्रतिशत दर (एपीआर) की गणना शीट और ऋण अवधि के दौरान ऋण के परिशोधन अनुसूची शामिल होती है। उधारकर्ता से वास्तविक आधार पर वसूले गए सभी तृतीय-पक्ष प्रभार भी एपीआर का हिस्सा होते हैं और अलग से प्रकट किए जाते हैं। 50 अनंतिम आंकड़ों के अनुसार, 2023-24 की चौथी तिमाही में भारत के सेवा निर्यात में 4.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि इसी अवधि के दौरान सेवा आयात में 0.1 प्रतिशत की कमी आई। 2023-24 की चौथी तिमाही के दौरान निवल सेवा निर्यात में 9.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 51 वर्ष 2023-34 की चौथी तिमाही के लिए भारत के भुगतान संतुलन के आंकड़े इस महीने के अंत में जारी किए जाएंगे। 52 नास्काम के अनुसार, भारत में जीसीसी की संख्या 2022-23 में लगभग 1,580 से बढ़कर 2024-25 तक 1,900 तक पहुंचने की आशा है। 53 भारत ने 2023 में 1,006 एफडीआई परियोजनाओं में लगभग 84 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश गिरवी को आकर्षित किया, जो इस क्षेत्र को आवंटित कुल राशि का 18.6 प्रतिशत और एशिया प्रशांत के लिए घोषित परियोजनाओं की संख्या का 24.4 प्रतिशत है (स्रोत: “एफडीआई रिपोर्ट 2024: ग्लोबल ग्रीनफील्ड निवेश प्रवृत्तियाँ”, फाइनेंशियल टाइम्स)। 54 2023-24 में सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) 71.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो मोटे तौर पर एक वर्ष पहले के 71.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के समान था। उच्च प्रत्यावर्तन के कारण निवल एफ़डीआई 2023-24 में 10.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया, जो एक वर्ष पहले 28.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। प्रत्यावर्तन 2023-24 में 44.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जबकि 2022-23 में यह 29.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। निवल बाह्य एफ़डीआई 2023-24 में बढ़कर 16.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि एक वर्ष पहले यह 14.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। 55 भारत में बाह्य वाणिज्यिक ऋण में 2023-24 के दौरान 3.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवल अंतर्वाह के साथ सुधार देखा गया, जबकि एक वर्ष पहले यह 4.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर निवल बहिर्वाह था। अनिवासी जमाओं में 2023-24 में 14.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का उच्चतर निवल अंतर्वाह दर्ज किया गया, जबकि एक वर्ष पहले यह 9.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। 56 2023-24 के दौरान ईसीबी करारों की संख्या 1,221 रही, जबकि 2022-23 में यह 1,102 थी। 57 भारत का सीएडी/जीडीपी अनुपात अप्रैल-दिसंबर 2023 में 1.2 प्रतिशत हो गया, जो अप्रैल-दिसंबर 2022 के दौरान 2.6 प्रतिशत था। भारत का बाह्य ऋण/जीडीपी अनुपात मार्च 2023 के अंत में 19.0 प्रतिशत से कम होकर दिसंबर 2023 के अंत में 18.7 प्रतिशत हो गया। इसी अवधि के दौरान जीडीपी से निवल अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति अनुपात (-) 11.3 प्रतिशत से सुधरकर (-) 10.8 प्रतिशत हो गया। |