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निजी क्षेत्र में नये बैंकों के प्रवेश के लिए दिशानिर्देश

3 जनवरी 2001

निजी क्षेत्र में नये बैंकों के प्रवेश के लिए दिशानिर्देश

निजी क्षेत्र में नये बैंकों को लाइसेंस देने के लिए दिशानिर्देश भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 22 जनवरी, 1993 को जारी किये गये थे। प्राप्त विभिन्न आवेदन पत्रों में से रिज़र्व बैंक ने 10 बैंकों को लाइसेंस मंजूर किये थे। निजी क्षेत्र में नये बैंकों के कामकाज़ से मिले अनुभव की समीक्षा के बाद सरकार के परामर्श से अब यह निर्णय लिया गया है कि लाइसेंस संबंधी दिशानिर्देशों को संशोधित किया जाये।

निजी क्षेत्र में नये बैंकों के प्रवेश के लिए संशोधित दिशानिर्देश नीचे दिये जा रहे हैं। दिशानिर्देश संकेतात्मक हैं और आवेदन पत्र पर विचार करते समय किसी अन्य संबंधित तथ्य अथवा परिस्थिति को ध्यान में रखा जायेगा। संशोधित दिशानिर्देशों के जारी होने के साथ रिज़र्व बैंक के पास लम्बित आवेदनपत्र अवधि समाप्त (लैप्स्ड) माने जायेंगे।

2. दिशानिर्देश

  1. नये बैंक के लिए प्रारंभिक न्यूनतम चुकता पूंजी 200 करोड़ रुपये होगी। कारोबार के शुरू होने के 3 वर्ष के भीतर ही प्रारंभिक पूंजी बढ़ा कर 300 करोड़ रुपये कर दी जायेगी।प्रस्तावित निजी बैंक का प्राधिकृत पूंजी सहित समग्र पूंजी का ढांचा रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित किया जायेगा।
  2. प्रोन्नतकर्ता का अंशदान किसी भी समय बैंक की चुकता पूंजी का न्यूनतम 40 प्रतिशत रहेगा। प्रोन्नतकर्ता के अंशदान के अलावा प्रारंभिक पूंजी सार्वजनिक निर्गम अथवा निजी प्लेसमेंट के ज़रिए जुटायी जा सकती है। यदि प्रारंभिक पूंजी में प्रोन्नतकर्ता का अंशदान 40 प्रतिशत के न्यूनतम अनुपात से अधिक है तो वे बैंक के परिचालनों के एक वर्ष के भीतर ही अपने अतिरिक्त अंशदान को कम (डाइल्यूट) करेंगे। (यदि विनिवेश को एक वर्ष के बाद पूरी अवधि के लिए फैलाये जाने का प्रस्ताव है तो इसके लिए रिज़र्व बैंक के विशिष्ट अनुमोदन की आवश्यकता होगी)। प्रारंभिक पूंजी में प्रोन्नतकर्त्ता का 40 प्रतिशत का अंशदान बैंक को लाइसेंस दिये जाने की तारीख से 5 वर्ष की अवधि के लिए रोक लिया (लॉक) जायेगा।
  3. कारोबार के शुरूआत के 3 वर्ष के भीतर पूंजी को बढ़ाकर 300 करोड़ रुपये करते हुए, प्रोन्नतकत्ताओं को अतिरिक्त पूंजी जुटानी होगी जोकि जुटायी गयी नयी पूंजी का कम से कम 40 प्रतिशत होगी। बाकी हिस्सा सार्वजनिक निर्गम अथवा निजी प्लेसमेंट के ज़रिये जुटाया जा सकता है। प्रोन्नतकर्त्ताओं का अतिरिक्त पूंजी के 40 प्रतिशत का न्यूनतम अंशदान भी बैंक द्वारा प्राप्त पूंजी प्राप्त होने की तारीख से 5 वर्ष की न्यूनतम अवधि के लिए लॉक किया जायेगा।
  4. नये बैंक की प्रारंभिक ईक्विटी में अनिवासी भारतीय सहभागिता अधिकतम 40 प्रतिशत की सीमा तक होगी। तकनीकी सहयोगी अथवा सह-प्रोन्नतकर्त्ता के रूप में किसी विदेशी बैंकिंग कंपनी अथवा वित्तीय कंपनी (बहु-पक्षीय संस्थाओं सहित) के मामले में ईक्विटी सहभागिता उपर्युक्त 40 प्रतिशत की अधिकतम सीमा के भीतर 20 प्रतिशत तक सीमित रहेगी। अनिवासी भारतीयों द्वारा विदेशी ईक्विटी अंशदानों में कमी के मामले में पदनामित बहुपक्षीय संस्थाओं को ईक्विटी में अनिवासी भारतीय अंशदान में कमी की सीमा तक विदेशी ईक्विटी का अंशदान करने की अनुमति होगी। प्रस्तावित बैंक भारत सरकार के विदेशी निवेश प्रोन्नत बोड़ तथा रिज़र्व बैंक के विदेशी मुद्रा नियंत्रण विभाग से आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करेगा।
  5. नया बैंक बड़े औद्योगिक घरानों द्वारा प्रोन्नत नहीं किया जाना चाहिए। अलबत्ता, बड़े औद्योगिक घरानों से सीधे अथवा परोक्ष रूप से जुड़ी अलग-अलग कंपनियों को नये निजी क्षेत्र के बैंकों की की ईक्विटी में सहभागिता करने की अनुमति दी जा सकती है। वे 10 प्रतिशत की अधिकतम सीमा तक सहभागिता कर सकती हैं। लेकिन बैंक पर उनका नियंत्रण हित नहीं रहेगा। 10 प्रतिशत की यह सीमा बड़े औद्योगिक घरानों से संबंधित सभी अंतर:संबंधित (इंटर कनेक्टेड) कम्पनियों पर लागू होगी। इस बात को देखने में, कि क्या ऐसी कंपनियाँ प्रोन्नतकर्ताओं अथवा निवेशकों के रूप में बड़े औद्योगिक घरानों या बड़े औद्योगिक घरानों से संबंधित कंपनियों से ताल्लुक रखती हैं, रिज़र्व बैंक का निर्णय अंतिम रहेगा।
  6. प्रस्तावित बैंक प्रोन्नतकर्त्ता समूह से तथा ऊपर निर्धारित ईक्विटी के 10 प्रतिशत तक निवेश करने वाली अलग-अलग कंपनी/कंपनियों की कारोबारी इकाइयों से यथोचित दूरी बनाये रखेंगे। बैंक प्रोन्नतकर्त्ता तथा ईक्विटी में 10 प्रतिशत तक निवेश करनेवाली कंपनी/कंपनियों को कोई ऋण सुविधा नहीं देगा। प्रोन्नतकर्त्ता समूह की कारोबारी इकाइयों तथा प्रस्तावित बैंक में संबंध ठीक वैसा ही होगा जैसा दो स्वतंत्र तथा असंबंधित इकाइयों में होता है। यह बात देखने के लिए कि क्या कंपनी किसी खास प्रोन्नतकर्त्ता समूह से ताल्लुक रखती है अथवा नहीं रिज़र्व बैंक का निर्णय अंतिम होगा।
  1. गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का निजी क्षेत्र के बैंकों में परिवर्तन

अच्छा टै्रक रिकॉड़ रखने वाली ऐसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी, जो बैंक में परिवर्तित होना चाहती है, को निम्नलिखित मानदंड पूरे करने होंगे :

  •  गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के अद्यतन तुलन-पत्र में 200 करोड़ रुपये की न्यूनतम निवल राशि होना जरूरी है, जो परिवर्तन की तारीख से तीन वर्षों के भीतर 300 करोड़ रुपये तक बढ़नी चाहिए।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी किसी बड़े औैद्यौगिक द्वारा प्रोन्नत नहीं होनी चाहिए या सार्वजनिक प्राधिकरण -जिनमें स्थानीय राज्य या केंद्र सरकार भी शामिल हैं के स्वामित्त्व के अधीन/नियंत्रण में नहीं होनी चाहिए।
  • पूर्ववर्ती वर्ष के दौरान गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी को एएए (या उसके समतुल्य) ऋण पात्रता मूल्यांकन मिला हुआ होना चाहिए।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी का रिज़र्व बैंक विनियम/दिशा निर्देश के अनुपालन में तथा सार्वजनिक जमाराशियों के भुगतान में दोषरहित ट्रॅक रेकाड़ होना चाहिए और किसी चूक की रिपोर्ट उनके खिलाफ नहीं होनी चाहिए।
  • जो गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी, बैंक में परिवर्तित हो जाना चाहती है, उसके पास कम से कम 12 प्रतिशत पूंजी पर्याप्तता और 5 प्रतिशत से अनधिक निवल अनर्जक परिसंपत्ति होनी चाहिए।
  • बैंक में परिवर्तन होने के बाद गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी को पूंजी पर्याप्तता अनुपात तथा अन्य बैंकों पर लागू होने वाली सभी अपेक्षाओं, जैसे प्राथमिकता क्षेत्र को उधार, प्रोन्नतकर्त्ताओं का अंशदान, प्रोन्नतकर्त्ता के अंशदान के लिए निश्चित अवरुद्धता अवधि (लॉकिंग पीरियड), न्यूनतम से अधिक अवधि के लिए प्रोन्नतकर्त्ता का हिस्सा कम करना, अनिवासी भारतीय और विदेशी कंपनी का सहभाग, यथोचित दूरी बनाये रखते हुए रिश्ते आदि का अनुपालन करना होगा।

3. अन्य अपेक्षाएं

i. बैंक को परिचालन के प्रारंभ से न्यूनतम 10 प्रतिशत का पूंजी पर्याप्तता अनुपात निरंतर आधार पर बरकरार रखना होगा।

 ii. जिस स्तर पर काम करना है उस स्तर को बनाये रखना सुनिश्चित करने के लिए

(क) अन्य देशी बैंकों पर लागू की ही तरह नये बैंक को निवत्म बैंक ऋण के 40 प्रतिशत का प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार का लक्ष्य सामने रखना होगा।

(ख) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जनवरी 1993 में निर्धारित और दिशानिर्देशों के अनुसार स्थापित नये निजी क्षेत्र के बैंकों की तरह अपनी 25 प्रतिशत शाखाएं ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में खोलनी होंगी ताकि महानगरीय क्षेत्रों और शहरों में स्थित उनकी शाखाओं के अधिक संकेंद्रीकरण से बचा जा सके।

 iii. प्रोन्नतकर्त्ता, उनकी समूह कंपनियां और प्रस्तावित बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा की जानेवाली समेकित पर्यवेक्षण प्रणाली अपनायेंगे।

 iv. कारोबार प्रारंभ किये जाने की तारीख से कम से कम तीन वर्ष नये बैंक को सहायक कंपनी या पारस्परिक निधि कंपनी का गठन करने की अनुमति नहीं होगी।

 v. प्रस्तावित नये बैंक का मुख्यालय प्रोन्नतकर्त्ताओं के निर्णय के अनुसार भारत में कहीं भी स्थित होगा।

 vi. किफायती ग्राहक सेवा प्रदान करने की दृष्टि से नया बैंक कार्यालयीन उपकरण, कंप्यूटर, टेलीकम्युनिकेशन आदि में आधुनिक बुनियादी सुविधाओं का पूर्णत: इस्तेमाल करेगा। उसके पास ग्राहक की शिकायतों के निवारण के लिए उच्चस्तरीय ग्राहक निवारण कक्ष का होना भी जरूरी है।

 vii. नया बैंक बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अन्य संबंधित कानून और निदेश, विवेकशील विनियमों (और अन्य दिशानिर्देशों) अनुदेशों तथा सार्वजनिक निर्गमों और सूचीबद्ध बैंकिंग कंपनियों पर लागू अन्य दिशानिर्देशों के संबंध में सेबी के विनियमों के नियंत्रण के अधीन होगा।

4 आवेदन पत्रों के लिए क्रियाविधि

i. बैंककारी विनियमन (कंपनी नियमावली, 1949 के नियम 11 के अनुसार आवेदनपत्र निर्धारित फॉर्म (फॉर्म III) में प्रस्तुत करने होंगे। इसके अलावा आवेदनपत्रों में प्रस्तावित बैंक की कारोबार सक्षमता और संभाव्यता दर्शानेवाली परियोजना रिपोर्ट, कारोबार का केंद्रबिंदु, उत्पादन, प्रस्तावित क्षेत्रीय या स्थानीय व्याप्ति, सूचना प्रौद्यागिकी क्षमता का स्तर और ऐसी अन्य जानकारी जो वे उचित समझते हों, का उल्लेख किया जाना चाहिए। परियोजना रिपोर्ट में सभी संभावित ब्यौरों को शामिल किया जाना होगा जो पर्याप्त मूल जानकारी पर आधारित हों। अवास्तविक या अनुचित महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों से बचा जाये। आवेदनपत्रों में प्रोन्नतकर्त्ताओं की पृष्ठभूमि की विस्तृत जानकारी, उनकी विशेषता, कारोबार और वित्तीय स्थिति का ट्रैक रिकॉड़, विभिन्न कंपनियों/उद्योगों में प्रोन्नतकर्त्ताओं का प्रत्यक्ष अौर परोक्ष हित प्रोन्नत कंपनी (कंपनियाें) बैंकों/वित्तीय संस्थाओं के साथ अन्य समूह कंपनी अन्य सुविधाएं तथा विदेशी बैंकों/ अनिवासी भारतीय /विदेशी कंपनी निकायों द्वारा प्रस्तावित सहभागिता के विवरण भी होने चाहिए.

ii. निजी क्षेत्र में नये बैंकों की स्थापना के आवेदनपत्र, उपर उल्लिखित अन्य विवणों के साथ निम्नलिखित पते पर 31 मार्च 2001 से पहले प्राप्त हो जाने चाहिये।

प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक
बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग
भारतीय रिज़र्व बैंक
वल्ड़ ट्रेड सेंटर, सेंटर I
कफ परेड, कोलाबा
मुंबई 400 005

5.
रिज़र्व बैंक निर्णयों के लिए क्रियाविधि

 i. अत्यंत कड़े विवेकशील मानदंडों/पारदर्शिता पर कठिन अपेक्षाओं तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी पर बढ़ते हुए जोर को देखते हुए नये बैंकों के लिए इस बात की जरूरत होगी कि वे अत्यंत प्रतिस्पर्धात्मक परिवेश में लाभप्रद रूप से काम करने के लिए सशक्त और कुशल हों। चूंकि पहले ही बहुत अधिक संख्या में बैंक काम कर रें हैं, लाइसेंस उपर्युक्त शर्तों को पूरा करने वाले बैंकों में से बहुत चयनात्मक आधार पर ऐसे बैंकों को दिये जायेंगे जो ग्राहक सेवा तथा कुशलता के बेहतरीन अंतर्राष्ट्रीय तथा घरेलू मानकों को पूरा करते हाें। अलबत्ता, ऐसे प्रोन्नतकर्त्ताओं को वरीयता दी जायेगी जो प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों के वित्तपोषण करने वाले तथा ग्रामीण तथा कृषि आधारित उद्योगों के वित्तपोषणकरने वाले बैंक स्थापित करने में विशेषज्ञता रखने वाले प्रोन्नतकर्त्ताओं को दी जायेगी। अगले तीन वर्षों के दौरान जारी कर दिये जानेवाले लाइसेंसों की संख्या बेहतरीन स्वीकार्य प्रस्तावों में से 2 या 3 तक सीमित हो सकती है। इस संख्या के अंतर्गत किसी गैर बैंकिंग वित्तीय संस्था को बैंक में बदलने के लिए मंजूर की गयी अनुमति भी शामिल होगी (यदि चयनात्मक मानकों के स्वीकार्य प्रस्तावों की संख्या 3 से अधिक है तो इस सीमा को सलाहकार समिति की सिफारिशों पर उदार भी बनाया जा सकता है। (नीचे देखें)। ऐसी स्थिति में नये लाइसेंस जारी करने की अवधि 4 या 5 वर्ष तक बढ़ायी जा सकती है।

ii. पहले चरण में रिज़र्व बैंक आवेदकों की प्रथम दृष्ट्या पत्रों को जांच करने के लिए रिजॅर्व बैंक द्वारा जांच पड़ताल की जायेगी। इसके बाद आवेदनपत्र रिज़र्व बैंक द्वारा गठित निम्नलिखित सदस्यों वाली उच्चस्तरीय सलाहकार समिति को भेजे जायेंगे।

डॉ. आइ.जी पटेल,

अध्यक्ष

पूर्व गवर्नर,

 

भारतीय रिज़र्व बैंक

 

श्री सी.जी. सोमय्या,

सदस्य

भारत के पूर्व महानियंत्रक

 

और महालेखा परीक्षक

 

श्री दीपंकर बसु,

सदस्य

पूर्व अध्यक्ष,

 

भारतीय स्टेट बैंक

 

 रिज़र्व बैंक के बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग के मुख्य महाप्रबंधक सलाहकार समिति के सचिव होंगे।

iii. आवेदन पत्रों की जांच पड़ताल के लिए समिति अपने स्वयं की क्रियाविधि तय करेगी। समिति को यह अधिकार होगा कि वे और अधिक जानकारी मंगा सकती हैं और किसी आवेदक/आवेदकों के साथ चर्चा कर सकती है तथा उसके द्वारा अपेक्षित किसी मामले पर और अधिक स्पष्टीकरण मांग सकती है। समिति अपनी सिफारिशें रिजॅर्व बैंक द्वारा आवेदन पत्र प्राप्त करने की अंतिम तारीख (30 जून 2001) की समाप्ति से 3 महीने के भीतर दे देगी। बैंक स्थापित करने के लिए ‘सिद्धांत रूप में अनुमोदन’ जारी करने का निर्णय रिज़र्व बैंक का होगा। रिज़र्व बैंक का निर्णय अंतिम होगा।

iv. ‘रिज़र्व बैंक द्वारा जारी सिद्धांत रूप में अनुमोदन’ की वैधता सिद्धांत रूप में अनुमोदन मंजूर किये जाने की तारीख से एक वर्ष की होगी और उसके बाद वह स्वत: समाप्त हो जायेगी।

v. निजी क्षेत्र में बैंक स्थापित किये जाने के लिए ‘सिद्धांत रूप में अनुमोदन’ जारी हो जाने के बाद यदि प्रोन्नतकर्ताओं अथवा ऐसी कंपनियों, फर्मों, जिनके साथ प्रोन्नतकर्ता जुड़े हुए हैं और ऐसे समूह, जिसमें उनका हित है, के संबंध में कोई प्रतिकूल लक्षण पाया जाता है तो रिज़र्व बैंक अतिरिक्त शर्तें लगा सकता है और जरूरत पड़ने पर ‘सिद्धांत रूप में अनुमोदन’ वापिस ले सकता है।

अल्पना किल्लावाला
महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2000-2001/963

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