वार्षिक नीति 2006-07 की पहली तिमाही समीक्षा की मुख्य-मुख्य बातें - आरबीआई - Reserve Bank of India
वार्षिक नीति 2006-07 की पहली तिमाही समीक्षा की मुख्य-मुख्य बातें
25 जुलाई 2006
वार्षिक नीति 2006-07 की पहली तिमाही समीक्षा की मुख्य-मुख्य बातें
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने आज वर्ष 2006-07 की मौद्रिक नीति के संबंध में वार्षिक वक्तव्य की पहली तिमाही समीक्षा प्रस्तुत की।
मुख्य-मुख्य बातें
- रिवर्स रिपो दर बढ़ाकर 6.0 प्रतिशत और रिपो दर 7.0 प्रतिशत की गई।
- बैंक दर और नकदी आरक्षित अनुपात (सीआरआर) अपरिवर्तित रखा गया।
- वर्ष 2006-07 के लिए सदेउ (जीडीपी) में वृद्धि का अनुमान 7.5 से 8.0 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया।
- वर्ष 2006-07 के लिए मुद्रा स्फीति को 5.0 - 5.5 प्रतिशत के भीतर बनाए रखने के लिए नीतिगत प्रतिक्रियाओं में उचित प्राथमिकता को वरीयता।
- मुद्रा आपूर्ति, जमा और क्रेडिट में दर्शाए गए अनुमानों से अधिक वृद्धि सावधानी बरतने की आवश्यकता बताती है।
- मूल्य और वित्तीय स्थिरता के अनुरूप कानूनी ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उचित चलनिधि बनाए रखनी होगी।
- अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में किसी विपरीत और अप्रत्याशित गतिविधियों के उदय को छोडकर तथा मुद्रा स्फीति के दृष्टिकोण सहित अर्थव्यवस्था के मौजूदा आकलन को दृष्टिगत रखते हुए आने वाली अवधि में मौद्रिक नीति का समग्र दृष्टिकोण निम्नानुसार होगा :
- मुद्रा स्फीतिगत प्रत्याश्याओं को नियंत्रित रखने की दृष्टि से मूल्य स्थिरता पर जोर देते हुए एक मौद्रिक और ब्याज दर वातावरण सुनिश्चित करना जो वृद्धि की गति को जारी रखे।
- ऋण की गुणवत्ता और वित्तीय बाजार स्थितियों पर अपने फोकस को और मजबूत बनाना ताकि समष्टि आर्थिक और विशेष रूप से वित्तीयर् स्थिरता बानाये रखने हेतु अर्थव्यवस्था में निर्यात और निवेश की मांग को समर्थन मिलता रहे।
- ऐसे उपायों पर विचार करना जो मुद्रा स्फीति प्रत्याशाओं और वृद्धि की गति को प्रभावित करने वाली वैश्विक और देशी परिस्थितियों के संबंध में उचित हों।
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने आज वर्ष 2006-07 की मौद्रिक नीति के संबंध में वार्षिक वक्तव्य की पहली तिमाही समीक्षा प्रस्तुत की। इस समीक्षा के तीन भाग हैं: घ्. समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों का आकलन; घ्घ्. मौद्रिक नीति का दृष्टिकोण और घ्घ्घ्. मौद्रिक उपाय।
देशी गतिविधियां
- जनवरी-मार्च 2006 के दौरान वास्तविक सदेउ (जीडीपी) वृद्धि 9.3 प्रतिशत रखी गई है जबकि यह एक वर्ष पहले तदनुरूप तिमाही में 8.6 प्रतिशत थी और वर्ष 2005-06 के लिए वास्तविक सदेउ वृद्धि 8.1 प्रतिशत से संशोधित करके 8.4 प्रतिशत की गई है।
- वर्ष-दर-वर्ष आधार पर थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) में घट-बढ़ से मापी गई मुद्रा स्फीति मार्च 2006 के अंत में 4.1 प्रतिशत से बढ़कर 8 जुलाई 2006 को 4.7 प्रतिशत हो गई।
- भारतीय क्रूड बास्केट का औसत अंतर्राष्ट्रीय मूल्य जनवरी-मार्च 2006 के 60.1 अमरीकी डालर प्रति बैरल से बढ़कर अप्रैल-जून 2006 में 67.3 अमरीकी डालर प्रति बैरल हो गया तथा जुलाई 2006 (21 जुलाई तक) में और बढ़कर 71.4 अमरीकी डालर प्रति बैरल हो गया।
- 2006-07 के दौरान अब तक थोक मूल्यों से उपभोक्ता मूल्यों के पीछे रहने की घटना में विपरीत रुख रहा है जो खाद्यानों के मूल्यों में वृद्धि का सूचक है और यह उपभोक्ता मूल्य बास्केट में एक काफी बड़े हिस्से का निर्माण करता है।
- वर्ष-दर-वर्ष आधार पर मुद्रा आपूर्ति (श्3) में वृद्धि 7 जुलाई 2006 तक 18.8 प्रतिशत थी जोकि एक वर्ष पहले, परिवर्तन को घटाकर, 13.8 प्रतिशत से अधिक है तथा वर्ष 2006-07 के लिए वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में दर्शाए गए 15.0 प्रतिशत के अनुमानित निर्दिष्ट पथ (ट्रेजेक्ट्री) से अधिक है।
- वर्ष-दर-वर्ष आधार पर कुल जमाराशियों में वृद्धि एक वर्ष पहले के, परिवर्तन को घटाकर, 14.9 प्रतिशत (2,34,020 करोड़ रुपये) की तुलना में 20.7 प्रतिशत (3,72,977 करोड़ रुपये) पर महत्वपूर्ण रूप से अधिक थी।
- वर्ष-दर-वर्ष आधार पर खाद्येतर बैंक ऋण में वृद्धि 32.9 प्रतिशत (3,71,993 करोड़ रुपये) थी जो एक वर्ष पहले की, बैंकेतर से बैंक में निवल परिवर्तन को घटाकर, 31.0 प्रतिशत (2,60,164 करोड़ रुपये) की वृद्धि से अधिक है।
- प्रणाली में नकदी का ओवरहैंग जैसा कि चलनिधि समायोजन सुविधा, बाजार स्थिरीकरण योजना और रिज़र्व बैंक के पास केंद्र सरकार के नकद शेष में परिलक्षित है, को मिलाकर जनवरी-मार्च 2006 के दौरान औसत रूप से 65,174 करोड़ रुपये रहा और 20 जुलाई 2006 को यह 91,231 करोड़ रुपये रहा।
- बाजार स्पेक्ट्रम के अल्पावधि में आसान स्थितियों को दर्शाती हुई मांग मुद्रा, बाजार रिपो और मुद्रा बाजार के संपार्श्विक उधार तथा उधार देयता खंड (सीबीएलओ) में ब्याज दरें थोड़ी ढीली हुईं जबकि सरकारी प्रतिभूतियों के लिए द्वितीयक बाजार में श्रेष्ठ प्रतिभूतियों के मूल्यों में गिरावट आई।
- बैंकों ने मार्च 2006 और जुलाई 2006 के बीच विभिन्न परिपक्वताओं में अपनी जमा दरों को लगभग 25 - 100 आधार बिंदु बढ़ाया। सरकारी क्षेत्र के अधिकांश बैंकों ने अपनी जमा दरों का समायोजन 25 से 50 आधार बिंदु से तीन वर्ष की परिपक्वता तक किया है जबकि उसी अवधि के लिए तीन वर्ष से अधिक की जमाराशियों के लिए 6.00 - 7.25 प्रतिशत की सीमा को अपरिवर्तित रखा है। कुछ निजी क्षेत्र के और विदेशी बैंकों द्वारा जमा दरों में समायोजन कुछ अधिक था, 100 आधार बिंदु तक, विशेषकर एक वर्ष परिपक्वता की जमा दरों हेतु।
- एल ए एफ परिचालनों के अतिरिक्त, सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में बैंकों का निवेश वर्ष 2006-07 के दौरान 7 जुलाई तक 1,328 करोड़ रुपये तक कम हो गया जो एक वर्ष पहले 12,397 करोड़ रुपये अधिक था।
- केन्द्र सरकार के सकल बाजार उधार 2006-07 के दौरान अभी तक (17 जुलाई 2006 तक)69,533 करोड़ रुपये (एक वर्ष पहले 60,282 करोड़ रुपये) बजट अनुमानों का 38.2 प्रतिशत था जबकि 34,572 करोड़ रुपये (एक वर्ष पहले 39,234 करोड़ रुपये) बजट अनुमानों का 30.4 प्रतिशत था।
बाह्य गतिविधियां
- अमरीकी डॉलर में निर्यात वृद्धि एक वर्ष पहले के 35.4 प्रतिशत से कम होकर अप्रैल - जून 2006 में 16.9 प्रतिशत हो गया। व्यापारिक माल आयात भी 45.4 प्रतिशत से घट कर 17.7 प्रतिशत हो गयी।
- पैट्रोलियम, तेल और लुब्रिकैट (पीओएल) का आयात 31.0 प्रतिशत से बढ़कर 39.0 प्रतिशत हो गया कच्चे तेल की अन्तर्राष्ट्रीय कीमतों में अत्यधिक वृद्धि को दर्शाता है। तेल से इतर आयातों में पिछले वर्ष के 51.7 प्रतिशत की तुलना में 9.6 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई है।
- भारत के विदेशी मुद्रा भंडार मार्च 2006 के अन्त में 11.0 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़ कर 14 जुलाई 2006 को 162.7 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया।
- वर्ष 2006-07 के दौरान अभी तक (21 जुलाई 2006 तक) रुपए की विनिमय दर अमरीकी डॉलर की तुलना में 4.7 प्रतिशत, यूरो के मुकाबले 8.4 प्रतिशत पाउंड स्टर्लिंग के मुकाबले 10.2 प्रतिशत और जापानी येन के मुकाबले 5.1 प्रतिशत कम हुई है। इस अवधि के दौरान घरेलू विदेशी विनिमय बाजार में स्थिति व्यवस्थित रही है।
वैश्विक गतिविधियां
- अप्रैल 2006 में जारी अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइ एम एफ) के विश्व अर्थव्यवस्था परिदृश्य के अनुसार वैश्विक वृद्धि 2005 के 4.8 प्रतिशत से बढ़ कर 2007 में 4.7 प्रतिशत होने से पहले 2006 में 4.9 प्रतिशत होने की संभावना है।
- तेल के मूल्यों में वृद्धि होने के कारण प्रमुख अैद्योगिक देशों में मुद्रास्फीति बढ़ती हुई प्रतीत हो रही है। इसके अतिरिक्त, तेल की कीमतों में वृद्धि, भू-राजनैतिक तनाव, चालू खातों के असतुंलनों का समायोजन में संभावित रुकावटों तथा वैश्विक आवास बाजार की मंद गति के रूप में जोखिम अधिक हो सकते हैं
- बहुत से केन्द्रीय बैंकों ने अपनी औपचारिक ब्याज दरों में वृद्धि की है जैसे: यू एस फेडरल रिज़र्व, यूरोपियन सेन्ट्रल बैंक, बैंक ऑफ जापान, बैंक ऑफ कनाडा, रिज़र्व बैंक ऑफ आस्ट्रेलिया, पीपल्स बैंक ऑफ चाइना, बैंक ऑफ कोरिया तथा बांको सेन्ट्रल डी चिली। कुछ केन्द्रीय बैंकों अर्थात बैंक ऑफ इग्लैंड, बैंक नेगारा मलेशिया, बैंक ऑफ थाइलैंड और मोनेटेरी अथॉरिटी ऑफ सिंगापुर ने अपनी ब्याज दरें स्थिर रखी हैं। कुछ अन्य केन्द्रीय बैंकों यथा बांको डि मैक्सिको, बैंक ऑफ इंडोनेशिया और बांको सैन्ट्रल डी ब्राज़ील ने अपनी मौद्रिक नीति सरल की है।
- मुख्यत: जुड़वां अमरीकी घाटों से उत्पन्न और प्रमुख करेंसियों के मिसएलाइनमेंट में प्रतिबिंबित वैश्विक असंतुलन विश्व भर में बढ़ती ब्याज दरों तथा वैश्विक वित्तीय बाजारों में चलनिधि के संकुचन की संभावनाओं के वातावरण में 2006 के दौरान लगातार बढ़ता रहा।
समग्र आकलन
- अन्य बातों के साथ-साथ 2006-07 के दौरान अब तक देशी गतिविधियों में अनेक सकारात्मक कारक रहे हैं: काफी सुदृढ़ कंपनी कार्यनिष्पादन गतिविधि में जो बैंक ऋण की मजबूत मांग, नये ऑर्डरों में वृद्धि, क्षमता उपयोग में वृद्धि, पर्याप्त चलनिधि, मध्य जून से मुद्रा स्फीति का स्थिर होना और सुदृढ निर्यात वृद्धि।
- 2006-07 की पहली तिमाही में कुछ गतिविधियां उभरती जोखिमों से सावधान रहने की आवश्यकता बताती हैं: अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों के संभावित स्थायी घटक के साथ देशी पीओएल उत्पाद मूल्यों का अपूर्ण कैच-अप; खाद्येतर बैंक ऋण में वृद्धि और मौद्रिक समुच्चयों का अनुमानों से अधिक होना; और मुद्रा बाजारों की तुलना में सरकारी प्रतिभूति बाजार में चलनिधि स्थितियों में भारी अंतर।
- 2006 में विश्व अर्थव्यवस्था में वृद्धि की संभावनाएं निकट भविष्य में काफी उज्ज्वल मानी जा रही हैं जैसा कि कारोबारी विश्वास और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में बेकारी, आर्थिक दृष्टिकोण के प्रति जोखिमों का अधोगामी रुख भारी राजकोषरय घाटों के रूप में अंतर्राष्ट्रीय रूप से जारी है। कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में निम्न घरेलू बचतों और निम्न निवेश; अप्रत्याशित और बढ़ते चालू खाता असंतुलन; बहुत सी अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादन अंतरालों का घटना या समाप्त होना; तेल मूल्यों में रिकार्ड तेजी और उसके साथ उनके भावी मूल्यों में अनिश्चिताएं; मुद्रा स्फीति के प्रति दृष्टिकोण में कठोरता; मौद्रिक नीति निर्धारण में निर्देश के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय ब्याज दरों का बढ़ना और वित्तीय बाजारों द्वारा जोखिमों का पुर्नमूल्यन विशेष रूप से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में के सूचकों में प्रतिबिंबित है।
मौद्रिक नीति का दृष्टिकोण
- सदेउ वृद्धि के लिए पूर्वानुमान 2006-07 के दौरान 7.5 - 8.0 प्रतिशत के दायरे में रखा गया है जैसा कि वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में अनुमान लगाया गया है इसमें देशी या विदेशी आघातों को इसके दायरे से बाहर रखा गया।
- वर्ष 2006-07 के लिए वर्ष-दर-वर्ष मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रित करने वाले वास्तविक, मौद्रिक और वैश्विक कारकों को ध्यान में लेते हुए इसे 5.0 - 5.5 प्रतिशत की सीमा में रखने के प्रयास किए गए है जो मौद्रिक प्रतिक्रियाओं में उचित प्राथमिकता की आवश्यकता की मांग करते हैं।
- मौद्रिक नीति की निर्माण प्रयोजन हेतु श्3 में विस्तार 2006-07 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में लगभग 15.0 प्रति के आस-पास अनुमानित था। 2006-07 में सकल जमाराशियों में वृद्धि 3,30,000 करोड़ रुपये के आस-पास अनुमानित थी। खाद्येतर बैंक ऋण, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी कंपनी क्षेत्र के बांडों/डिबेंचरों/शेयरों तथा वाणिज्यिक पत्र में निवेश शामिल है, में लगभग 20 प्रतिशत के आस-पास वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया। 2006-07 की पहली तिमाही के दौरान गतिविधियां दर्शाती है कि मुद्रा आपूर्ति, जमा और क्रेडिट में वृद्धि सूचित अनुमानों से काफी अधिक है तथा ये इस संबंध में सभी संबंधितों द्वारा सावधानी अपनाने की आवश्यकता चाहते हैं।
- जहां देसी गतिविधियां हमारी अर्थव्यवस्था पर लगातार हावी हैं वहीं वैश्विक कारकों पर अब पहले से ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
- रिज़र्व बैंक यह सुनिश्चित करेगा कि प्रणाली में यथोचित चलनिधि बनी रहे ताकि क्रेडिट की कानूनी आवश्यकताएं पूरी होती रहें, विशेष रूप से मूल्य और वित्तीय स्थिरता के उद्देश्यों के अनुरूप उत्पादक प्रयोजनों हेतु। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए रिज़र्व बैंक खुला बाज़ार परिचालनों, जिसमें बाजार स्थिरीकरण योजना, चलनिधि और सीआरआर शामिल हैं, परिचालनों के माध्यम से चलनिधि की सक्रिय मांग का प्रबंध करने की अपनी नीति जारी रखेगा और अपने पास मौजूद सभी नीतिगत साधनों का जब भी आवश्यकता पड़े उपयोग करेगा।
- अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में किसी विपरीत और अप्रत्याशित गतिविधियों के उदय को छोडकर तथा मुद्रा स्फीति के दृष्टिकोण सहित अर्थव्यवस्था के मौजूदा आकलन को दृष्टिगत रखते हुए आने वाली अवधि में मौद्रिक नीति का समग्र दृष्टिकोण निम्नानुसार होगा :
- मुद्रा स्फीतिगत प्रत्याश्याओं को नियंत्रित रखने की दृष्टि से मूल्य स्थिरता पर जोर देते हुए एक मौद्रिक और ब्याज दर वातावरण सुनिश्चित करना जो वृद्धि की गति को जारी रखे।
- ऋण की गुणवत्ता और वित्तीय बाजार स्थितियों पर अपने फोकस को और मजबूत बनाना ताकि समष्टि आर्थिक और विशेाष रूप से वित्तीयर् स्थिरता बानाये रखने हेतु अर्थव्यवस्था में निर्यात और निवेश की मांग को समर्थन मिलता रहे।
- ऐसे उपायों पर विचार करना जो मुद्रा स्फीति प्रत्याशाओं और वृद्धि की गति पर पड़ने वाली वैश्विक और देशी परिस्थितियों के संबंध में उचित हों।
मौद्रिक उपाय
- बैंक दर 6.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखी गयी है।
- रिवर्स रिपो दर और रिपो दर, प्रत्येक में 25 आधार अंक बढ़ाकर क्रमश: 6.00 प्रतिशत और 7.00 प्रतिशत कर दी गई।
- सीआरआर 5.00 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया।
वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा 17 अक्तूबर 2006 के बजाए 31 अक्तूबर 2006 को की जाएगी और 23 जनवरी 2007 को होने वाली तीसरी तिमाही की समीक्षा जैसा कि अप्रैल 2006 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में सूचित किया गया था, अब 30 जनवरी 2007 को की जाएगी।
विनय प्रकाश श्रीवास्तव
प्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2006-07/114