RbiSearchHeader

Press escape key to go back

पिछली खोज

थीम
थीम
टेक्स्ट का साइज़
टेक्स्ट का साइज़
S1

Press Releases Marquee

आरबीआई की घोषणाएं
आरबीआई की घोषणाएं

RbiAnnouncementWeb

RBI Announcements
RBI Announcements

असेट प्रकाशक

80048098

निकट भविष्य में हम प्रत्येक इच्छुक भारतीय के लिए औपचारिक वित्तीय सेवाएं लाएंगेः भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर

18 जुलाई 2016

निकट भविष्य में हम प्रत्येक इच्छुक भारतीय के लिए औपचारिक वित्तीय सेवाएं लाएंगेः
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर

“निकट भविष्य में हम प्रत्येक इच्छुक भारतीय के लिए औपचारिक वित्तीय सेवाएं लाएंगे। वित्तीय समावेशन पहुंच और इक्विटी सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण तत्व होगा – ये दोनों हमारे देश की संधारणीय वृद्धि के लिए आवश्यक निर्माण ब्लाक हैं।” हैदराबाद में राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान द्वारा आयोजित इक्विटी, पहुंच और समावेशन पर राष्ट्रीय सम्मेलन में भाषण देते हुए डॉ. रघुराम जी. राजन ने आज यह कहा।

यह कहते हुए कि वित्तीय समावेशन की अनिवार्यता नैतिक और आर्थिक सक्षमता पर आधारित है, गवर्नर ने पूछा कि आखिरकार, क्या हमें प्रत्येक व्यक्ति को उन सेवाओं की पहुंच प्रदान करनी चाहिए जिनका हम इस कमरे में बैठकर आनन्द उठा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यदि प्रत्येक व्यक्ति के पास अपनी बेहतरी के साधन और संसाधन होंगे तो इससे उत्पादन, वृद्धि और आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी।

अपने भाषण में गवर्नर ने वित्तीय समावेशन के तीन तत्वों पर ध्यानकेंद्रित किया जैसे (क) उन लोगों और उद्यमियों के लिए वित्तीय सेवाओं का विस्तार जिनकी वित्तीय सेवा क्षेत्र में पहुंच नहीं है, (ख) उन लोगों के लिए वित्तीय सेवाओं को गहन बनाना जिनके पास न्यूनतम वित्तीय सेवाएं हैं और (ग) ज्यादा वित्तीय साक्षरता और उपभोक्ता संरक्षण जिससे कि जिन्हें वित्तीय उत्पाद प्रदान किए जाते हैं, वे उचित विकल्प देख सकें।

उन्‍होंने संक्षेपाक्षरों आईआईटी अर्थात सूचना, प्रोत्साहन, और लेनदेन की लागत के माध्यम से अधिक वित्तीय समावेशन के लिए आर्थिक बाधाओं का वर्णन किया। इन पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, बैंकर, खासकर अगर वह उस क्षेत्र से नहीं है, तो बाहर के व्‍यक्तियों को वित्तीय उत्पादों की पेशकश करने के लिए पर्याप्त जानकारी प्राप्त करने में कठिनाई नहीं होगी। एक ऋणदाता के रूप में, वह बाहर के व्‍यक्तियों को उधार देने के लिए प्रोत्साहित नहीं हो सकता है क्‍योंकि कानूनी प्रणाली भी जल्दी या सस्‍ती चुकौती लागू नहीं करती है। इसके अलावा, ऋणकर्ता के पास गिरवी रखने के लिए कोई जमानत भी नहीं है जि‍ससे ऋणदाता को विश्वास हो जाता है कि ऋण चुकाना मुश्किल हो जाएगा। गवर्नर ने तीसरी बाधा बताई लेनदेन की लागत की। क्‍योंकि गरीब या सूक्ष्म किसानों या उद्यमों द्वारा लेनदेन का आकार छोटा रहता है लेनदेन में निर्धारित लागत अपेक्षाकृत अधिक है। उदाहरण के लिए 10,000 और 10 लाख ऋण लेने वाले ग्राहक के लिए एक फार्म भरने में और दस्‍तावेजीकरण के लिए लगनेवाला समय और लागत एक होगी तो एक बैंकर जो नीचे की रेखा के प्रति जागरूक हैं स्वाभाविक रूप से बड़े ग्राहक पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

एक साहूकार इनमें से किसी भी बाधा से ग्रस्त नहीं है। बैंकिंग सेवा के अभाव वाले क्षेत्रों में जहां साहूकार से कुछ अधिक आसानी से उपलब्ध विकल्पों की संख्‍या कम हैं, वह कई लोगों को अपने चंगुल में ले लेता है। वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के पीछे देश की प्राथमिक मंशा वंचितों को साहूकार के चंगुल से मुक्त करने की है। गवर्नर ने इस समस्या को दूर करने के लिए तीन सार्वजनिक नीति दृष्टिकोणों का प्रस्ताव रखा : अधिदेश और अनुदान, संस्थाओं में बदलाव और ऋण से दूर रहना । उन्होंने उदाहरण के साथ विस्तार से प्रत्येक विषय में बताया। अधिदेश, गवर्नर ने कहा, एक सामाजिक दृष्टिकोण से उचित हैं, लेकिन बैंक इस लाभ का मुद्रीकरण नहीं कर सकते हैं; केवल एक सरकार तय कर सकती है कि अधिदेश लाभ पैदा करने के लायक है अथवा नहीं। इसी तरह से सार्वभौमिक पहुँच से नेटवर्क लाभ हो सकता है। गवर्नर ने कहा अधिदेश से जोखिम भी उत्पन्न हो सकती हैं, अत: उनका मूल्य समझकर सबसे कुशल व्‍यक्तियों द्वारा उनका वितरण सही मायने में वास्‍तविक अभावग्रस्‍तों को संकीर्ण रूप से लक्षित करके और स्पष्ट भुगतान करने के लिए किया जाना चाहिए।

एक और दृष्टिकोण संस्थानों को बदलने का हो सकता है। साहूकार जोकि पास-पड़ोस और अपने लोगों को जानता है, और उनकी ऋणयोग्‍यता का एक अच्छा मूल्यांकन कर सकता है, जो विशेष रूप से प्रभावी है, से सीखते हुए गवर्नर ने कहा कि स्थानीय वित्तीय संस्थानों, स्थानीय नियंत्रण और स्‍टाफ के रूप में जानकार स्थानीय लोगों के साथ, वंचितों के लिए प्रभावी वित्तीय सेवाएं प्रदान की जा सकती हैं। इसी तरह, सूक्ष्म वित्त संस्थान, लघु वित्त बैंक, क्रेडिट सूचना ब्यूरो और व्यक्तियों के लिए 'आधार' और छोटे व्यवसायों के लिए “उद्योग आधार" अन्य संस्थाएं हैं जो क्रेडिट संस्कृति में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती हैं और इस प्रकार उपेक्षित क्षेत्रों में ऋण का प्रवाह सुगम कर सकते हैं। इसके अलावा, राज्य सरकार द्वारा अंतिम स्वामित्व के प्रमाण पत्र की गारंटी के साथ भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण और आंध्र प्रदेश में राज्य सरकार द्वारा पंजीकृत पट्टे के रूप में बटाईदारी फसल समझौतों को औपचारिक मान्यता और व्यापारिेक प्राप्‍य राशियां भुनाई प्रणाली जिसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने लाइसेंस प्राप्त किया है, बंटाईदारों के लिए ऋण के प्रवाह को सुगम कर सकते हैं।

गवर्नर के अनुसार तीसरा दृष्टिकोण यह हो सकता है कि क्रेडिट नेतृत्व नहीं अनुगमन करें। सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक लाभकारी बचत साधनों के विस्तार से या फसल विफलताओं के खिलाफ आसानी से बीमा उपलब्ध कर के भुगतान और धन प्रेषण की सहजता को प्रोत्साहित कर के ऐसा कर रहे हैं। गवर्नर ने कहा कि एक बार बचत करने की आदत हो जानेपर, ग्राहक न केवल पुनर्भुगतान के बोझ को बेहतर तरीके से संभालने लगेंगे, बल्कि इससे बेहतर क्रेडिट आवंटन करने के लिए दिशा प्राप्‍त हो जाएगी। आसान भुगतान और नकदी प्राप्ति औपचारिक बचत को और अधिक आकर्षक बनाएंगे। वंचितों के लिए वित्तीय सेवाएं पहुंचाने के लिए बैंकिंग संवाददाताओं के नेटवर्क को मजबूत बनाने, बैंकिंग संवाददाताओं की एक रजिस्ट्री बनाने, उन्हें आधार समर्थित भुगतान प्रणाली के माध्यम से किसी भी बैंक की ओर से नकदी प्राप्‍त करने और देने के लिए सक्षम बनाते हुए और वित्तीय सेवाएं प्रदान करने में पर्याप्त रूप से उन्हें प्रशिक्षित करने का एक लंबा रास्ता तय करना होगा। इसके अलावा, गवर्नर ने पुष्टि की कि "जल्द ही शुभारंभ होने वाले डाक भुगतान बैंक और दूरसंचार से संबद्ध भुगतान बैंकों के माध्यम से नकदी-जमा और नकदी-भुगतान के स्‍थानों के विस्तार और एकीकृत भुगतान इंटरफेस के माध्यम से मोबाइल द्वारा बैंक खाते से बैंक खाते में आसानी से अंतरण के साथ, हम अंतिम समस्या को सुलझाने के कगार पर पहुंच गए हैं ।"

अंतत: गवर्नर ने उन पांच मुद्दों पर बात की जो इस प्रक्रिया के प्रबंधन में उत्‍पन्‍न हुए थे जैसेकि 1) अपने ग्राहकों की आवश्यकताओं का पता करना 2) शोषण को रोकने के लिए प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करना 3) वित्तीय व्यवस्था में कुछ लचीलापन और माफी सुनिश्चित करना 4) कौशल और समर्थन की जरूरत 5) वित्तीय साक्षरता को प्रोत्साहित और उपभोक्ता संरक्षण को सुनिश्चित करना और कैसे भारतीय रिजर्व बैंक इन्‍हें सरल बनाने की कोशिश कर रहा था।

उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि "देश ने वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया में एक लंबा सफर तय किया है, लेकिन अभी भी सफर बाकी है । हम तेजी से अधिदेश, अनुदान और समावेशन के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर निर्भरता से एक ऐसे सक्रिय ढ़ांचे के निर्माण की ओर बढ़ रहे हैं जो वंचितों को लक्षित करने के लिए सभी वित्तीय संस्थानों को आकर्षित करें यद्यपि शिक्षा, प्रतियोगिता और विनियमन के माध्यम से वंचितों के हितों को संरक्षित करें।"

अल्पना किल्लावाला
प्रधान परामर्शदाता

प्रेस प्रकाशनी: 2016-2017/154

RbiTtsCommonUtility

प्ले हो रहा है
सुनें

संबंधित एसेट

आरबीआई-इंस्टॉल-आरबीआई-सामग्री-वैश्विक

RbiSocialMediaUtility

आरबीआई मोबाइल एप्लीकेशन इंस्टॉल करें और लेटेस्ट न्यूज़ का तुरंत एक्सेस पाएं!

Scan Your QR code to Install our app

RbiWasItHelpfulUtility

क्या यह पेज उपयोगी था?