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भारतः वित्तीय प्रणाली स्थिरता आकलन

16 जनवरी, 2013

भारतः वित्तीय प्रणाली स्थिरता आकलन

आईएमएफ बोर्ड के निर्णय को 21 सितंबर, 2010 को अपनाने के परिणामस्वरूप प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण वित्तीय क्षेत्रों के सदस्यों के लिए वित्तीय स्थिरता आकलन कार्यक्रम (एफएसएपी) के तहत भारत सहित 25 प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं को शामिल करने का निर्णय लिया गया। भारत के लिए संयुक्त अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ)- विश्व बैंक वित्तीय स्थिरता आकलन कार्यक्रम (एफएसएपी) आयोजित किया गया। अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष ने अब भारत के लिए वित्तीय क्षेत्र स्थिरता आकलन पर अपनी रिपोर्ट जारी की है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) और बीमा विनियामक और विकास प्राधिकार  (आईआरडीए) संयुक्त आईएमएफ-विश्व बैंक टीम द्वारा भारतीय वित्तीय प्रणाली की व्यापक समीक्षा का स्वागत करते हैं। भारतीय वित्तीय प्रणाली का आकलन उच्च अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप किया गया है।

2.    आकलन में माना गया है कि भारतीय वित्तीय प्रणाली अच्छी विनियामक और पर्यवेक्षक व्यवस्था के कारण अत्यधिक स्थाई रही। तथापि, आकलन कुछ अंतरालों की पहचान करता है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू पर्यवेक्षक सूचना आदान-प्रदान और सहयोग, वित्तीय कम्पनी संगठनों का समेकित पर्यवेक्षण और विनियामकों (आरबीआई और आईआरडीए) की विधित: स्वतंत्रता पर कुछ सीमाएं शामिल हैं।

3.    आरबीआई ने उनके महत्व की पहचान करते हुए विभिन्न अधिकार क्षेत्रों जिनमें भारतीय बैंक परिचालनरत हैं, के साथ सूचना का आदान-प्रदान तंत्र स्थापित करने का प्रयास किया है । भारतीय रिज़र्व बैंक अब तक 12 अधिकार क्षेत्रों के साथ सूचना के आदान-प्रदान समझौता-ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर चुका है। 2 अतिरिक्त समझौता ज्ञापनों पर शीघ्र ही हस्ताक्षर किए जाने हैं। इसके अतिरिक्त, आरबीआई ने यूके, यूएसए, बहरीन, हांगकांग और सिंगापुर में भारतीय बैंक शाखाओं का निरीक्षण किया है, जिसमें उनकी कुल विदेशी आस्तियों के 60 प्रतिशत को कवर किया गया है। पर्यवेक्षक महाविद्यालय स्थापित करने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। बीमा विनियामक विकास प्राधिकार (आईआरडीए), अंतर्राष्ट्रीय बीमा पर्यवेक्षक संघ (आईएआईएस) के संरक्षण में बहुपक्षीय समझौता ज्ञापन (एमएमओयू) के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सूचना के आदान-प्रदान से संबंधित मुद्दों का भी समाधान कर रहा है।

4.    भारी निवेश सीमाओं के मुद्दे के संबंध में यह सत्य है कि समूह उधारकर्ता सीमा अंतर्राष्ट्रीय मानकों से अधिक है। कुछ प्रमुख कारपोरेट समूह भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के मुख्य संचालक हैं। समूह उधारकर्ता सीमा को एकल उधारकर्ता सीमा के स्तर पर रखने से बैंक वित्त की उपलब्धता गंभीर रूप से बाधित होगी, जिससे अर्थव्यवस्था का विकास अवरूद्ध हो जाएगा।

5.    भारतीय रिज़र्व बैंक मानता है कि बैंकों के बोर्ड में भारतीय रिज़र्व बैंक के अधिकारियों की नामांकित निदेशक के रूप में नियुक्ति से नैतिक जोखिम संबंधी मुद्दे हो सकते हैं। तथापि, इस व्यवस्था ने भारत की अच्छी तरह से सेवा की है और बैंकों की तरफ से भारतीय रिज़र्व बैंक के  विनियमों का अधिक प्रभावी अनुपालन सुनिश्चित किया है। फिर भी, भारतीय रिज़र्व बैंक इस मुद्दे पर संवेदनशील है और समर्थक विधिक प्रावधानों में संशोधन के लिए भारत सरकार के साथ इस मामले को उठाया है।

6.    मौद्रिक परिवर्तन व्यवस्था को बाधित करने वाले सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) के संबंध में यह देखा गया है कि बैंकों की एसएलआर धारित राशि विगत समय में नीचे आ गई है। चूंकि सरकारी बाजार उधार  बाजार द्वारा निर्धारित ब्याज दरों पर होता है, इसलिए मौद्रिक नीतिगत परिवर्तन एसएलआर धारित राशियों से बाधित नहीं होता है। सरकारी बांड की होल्डिंग चलनिधि के प्रति अधिक पहुंच मुहैया कराकर वित्तीय तनाव वाली परिस्थितियों से बेहतर ढ़ंग से निपटने में बैंकों की सहायता कर सकती है। जबकि वित्तीय प्रणाली स्थिरता आकलन संकट के समय में बैंकों को चलनिधि उपलब्ध कराने में आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर)/एसएलआर के लाभ की पहचान करता है, उनके द्वारा वित्तीय स्थिरता संवर्धन भूमिका भी महत्वपूर्ण है। फिर भी, सरकारी प्रतिभूति बाजार में चलनिधि के संवर्धन के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।

7.    प्रतिभूति बाजार विनियमन के मामले में, सेबी के पास सभी बाजार खंडों और उत्पादों के लिए स्पष्ट विनियामक ढ़ांचा है जिसमें सामूहिक निवेश योजनाओं की संरचना और परिचालन शामिल हैं। सेबी ने विशेषकर लघु नगरों/शहरों में उत्पाद बढ़ाने के लिए म्युचअल फंड उद्योग को क्रियाशील करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं: वितरकों, सलाहकारों और निवेशक रक्षा से संबंधित मुद्दों का विनियमन, दीर्घावधि नीति का विकास और म्युचअल फंड के माध्यम से परिवार बचत बढ़ाना।

8.    प्रतिभूति बाजार में बेहतर लेखा परीक्षा और लेखाकरण मानकों के संबंध में, कंपनी अधिनियम और सनदी लेखाकार अधिनियम लेखाकरण और लेखा परीक्षा की वास्‍तविकता  और निष्ठा को कायम रखने के लिए एक ढांचा उपलब्ध कराते हैं। भारत सरकार ने लेखा परीक्षकों की गुणवत्ता की समीक्षा करने के लिए गुणवत्ता समीक्षा बोर्ड (क्यूआरबी) स्थापित किया है। लोकसभा द्वारा पारित कंपनी विधेयक 2012 में लेखा परीक्षकों के कार्यों का अवलोकन करने और लेखाकरण और लेखा परीक्षा मानकों की संवीक्षा और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र अर्ध-न्यायिक एजेंसी, राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण स्थापित करने के प्रावधान किए हैं। सेबी ने प्रकट वित्तीय सूचना की गुणवत्ता में सुधार करने और वित्तीय अनियमितताओं का पता लगाने में सहायता करने के लिए 7 फरवरी, 2012 को एक न्‍यायिक  लेखाकरण प्रकोष्ठ स्थापित किया है। सूचीबद्ध संस्थाओं द्वारा की गई वित्तीय रिपोर्टिंग की गुणवत्ता के संवर्धन के लिए सेबी ने योग्य रिपोर्ट समीक्षा समिति (क्यूएआरसी) का गठन किया है जिसमें आईसीएआई, स्टॉक बाजार और अन्यों का प्रतिनिधित्व है।

9.    जहां तक केन्द्रीय काउंटर पार्टियों (सीसीपी) में स्वतंत्र जोखिम समितियां स्थापित करने के लिए आकलनकर्ता की सिफारिशों का संबंध है, सेबी बाजार मूलभूत सुविधा संस्‍थाओं (एमआईआई) के स्वामित्व और अभिशासन की समीक्षा करते हुए अप्रैल 2012 में पहले ही निर्णय ले चुका है कि सीसीपी एक जोखिम समिति का गठन करेगी जिसमें स्वतंत्र सदस्य होंगे जो अब तक पहचान किए गए और निर्धारित किए गए मुद्दों और मामलों पर सीसीपी के बोर्ड और सीधे सेबी को रिपोर्ट करेंगे।

10.    मध्‍यवर्ती संस्‍थाओं  के पर्यवेक्षण को सुदृढ़ करने के संबंध में सेबी द्वारा की गई प्रवर्तन कार्रवाई का स्तर बहुत ऊंचा है। सेबी ने निरीक्षण रिपोर्टों के निष्कर्षों के समाधान  करने के लिए चेतावनी और त्रुटि संबंधी पत्रों का उपयोग किया है, यद्यपि कुछ मामलों में अधिनिर्णय और सहमति कार्यवाहियों में प्रतिकूलता और पैसे के भुगतान जैसे सख्त कदम उठाए गए हैं। बाजार मध्यस्थों, म्युचअल फंडों, निक्षेपागारों, शेयर बाजारों आदि के मामले में सेबी द्वारा विषय आधारित निरीक्षण कराए गए हैं।

11.    वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद् (एफएसडीसी) उप समिति के अंतर्गत वित्तीय बाजारों के लिए हाल में गठित अंतर विनियामक शीघ्र चेतावनी समूह (ईडब्ल्यूजी) के ढांचे के तहत सेबी ने एक शीघ्र चेतावनी टीम गठित की है, जो निगरानी का कार्य करती है और सेबी की संकट बचाव और प्रबंधन योजना के अनुसार विभिन्न संभाव्य संकट परिदृश्यों के समाधान के लिए कदम उठाती है।

12.    सेबी ने म्युचअल फंडों के लिए दो टीयर वाली पर्यवेक्षण प्रणाली निर्धारित की है। प्रथम स्तर पर, म्युचअल फंडों के न्यासी म्युचअल फंडों के दैनिक परिचालनों का निरीक्षण करते हैं। इसके अतिरिक्त, म्युचअल फंडों के लिए आवश्यक है कि वे अपने परिचालनों/कार्यकलापों की आवधिक रिपोर्ट सेबी को प्रस्तुत करें। इसके लिए जोखिम आधारित दृष्टिकोण अपनाया जाता है।

13.    बीमा उद्योग के विनियमन के संबंध में आईआरडीए का मानना है कि भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) का बाजार व्यवहार और विवेकपूर्ण विनियमन दोनों के संबंध में पूर्ण निरीक्षण किया जाता है। जबकि भारतीय तृतीय पक्षकार मोटर पूल को वर्ष 2012 में समाप्त कर दिया गया है, इसके स्थान पर मोटर तृतीय पक्षकार कम जोखिम बीमा पूल शुरू किया गया है। आरक्षित निधियों की पर्याप्तता से संबंधित मुद्दों को भी इस खंड में प्रीमियम बढ़ाने के लिए जारी दिशानिर्देशों के माध्यम से सुलझाया गया है। प्रवर्तन शक्तियों को प्रस्तावित बीमा कानून (संशोधन) विधेयक में मजबूत किया जा रहा है। आईआरडीए जीवन और गैर-जीवन दोनों बीमा कंपनियों के लिए व्यापक जालसाजी निगरानी नीति पर कार्य कर रहा है। इसके अतिरिक्त, आईआरडीए शोधक्षमता के जोखिम आधारित दृष्टिकोण से संबंधित विभिन्न मुद्दों की भी जांच कर रहा है।

14.    सूचना को साझा करने और घरेलू विनियामक प्राधिकरणों के बीच समन्वय के संबंध में यह नोट किया जाए कि वित्त मंत्री की अध्यक्षता में एफएसडीसी प्रभावी विनियामक समन्वय का प्रावधान करता है।

15.    विनियामक निकायों की विधित: स्वायत्तता के संबंध में यह विचार करना महत्‍वपूर्ण  है कि भारत में वित्तीय क्षेत्र के विनियामक सांविधिक ढ़ांचों के अंदर कार्य करते हैं जो सांविधिक शक्तियों के उपयोग के माध्यम से पारदर्शिता के साथ विनियामक कार्य करने के लिए विनियामक निकायों हेतु स्‍वायत्‍तता और स्‍वतंत्रता के साथ भारत सरकार के नीति निर्माण की भूमिका में विवेकपूर्ण संतुलन स्थापित करते हैं। वास्तविक स्थिति भी विनियामकों के कार्यकरण में किसी हस्तक्षेप को उजागर नहीं करती है। पेंशन विनियामक को भी सांविधिक आधार प्रदान करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। वर्ष 1930 से लागू कानूनों वाले सांविधिक ढ़ांचे को सरल बनाने और अधिक सुदृढ़ करने तथा विनियामक अतिव्‍याप्ति  का समाधान करने के लिए सरकार द्वारा वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (एफएसएलआरसी) का गठन किया गया है जिससे यह आशा की जाती है कि वह मार्च 2013 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

16.    कुछ मुद्दों पर सुरक्षित अधिकार होने के बावजूद समग्र रूप से भारतीय प्राधिकरी यह आशा करते हैं कि एफएसएपी उभरती अंतर्राष्ट्रीय सहमति और भारत-विशिष्ट संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता की सावधानी से जांच के आधार पर विनियामक और पर्यवेक्षण ढांचे को सुदृढ़ करने के लिए हमारे संकट के बाद के प्रयासों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। एफएसबी, बीसीबीएस और आईएमएफ के सदस्य के रूप में भारत जी20 के संरक्षण में अंतर्राष्ट्रीय विनियामक और पर्यवेक्षण ढांचे में संकट के बाद के सुधारों में सक्रिय रूप से भाग ले रहा है। भारत एक चरणबद्ध तरीके से अंतर्राष्ट्रीय मानक और सर्वोत्तम पद्धतियों को अपनाने और जहां आवश्यकता हुई है, वहां स्थानीय परिस्थितियों के प्रति अनुकूल होने में वचनबद्ध रहा है, क्योंकि यह जटिल और विविध सामाजिक-राजनैतिक और आर्थिक परिस्थितियों वाला देश है।

आर. आर. सिन्‍हा
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/1194

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