2008-09 की दूसरी तिमाही (जुलाईद-सितंबर 2008) के दौरान भारत की भुगतान संतुलन संबंधी गतिविधियां तथा 2006-07, 2007-08 और 2008-09 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2008) में संशोधन - आरबीआई - Reserve Bank of India
2008-09 की दूसरी तिमाही (जुलाईद-सितंबर 2008) के दौरान भारत की भुगतान संतुलन संबंधी गतिविधियां तथा 2006-07, 2007-08 और 2008-09 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2008) में संशोधन
31 दिसंबर 2008 2008-09 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर 2008) के दौरान भारत की वित्तीय वर्ष 2008-09 की दूसरी तिमाही (ति2) अर्थात जुलाई-सितंबर 2008 के भारत के भुगतान संतुलन के प्रारंभिक आंकड़े अब उपलब्ध हैं। वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली छमाही अर्थात् अप्रैल-सितंबर 2008 की अवधि के भुगतान संतुलन के आंकड़ों का समेकन करते समय, इन प्रारंभिक आंकड़ों और पहली तिमाही (ति1) अर्थात अप्रैल-जून 2008 के आंशिक रूप से संशोधित आंकड़ों को ध्यान में रखा गया है। इन आंकड़ों के पूरे ब्यौरे भुगतान संतुलन के प्रस्तुतीकरण संबंधी विवरण 1 और 2 के मानक फार्मेट में दिए गए हैं। संशोधन संबंधी नीति के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2006-07, 2007-08 और 2008-09 की पहली तिमाही के लिए भुगतान संतुलन के आंकड़ों के संशोधनों को भी ध्यान में रखा गया है।
2008-09 की दूसरी तिमाही (ति2) के भुगतान संतुलन की प्रमुख मदें सारणी 1 में नीचे दी गई हैं
पण्य व्यापार (i)भुगतान संतुलन के आधार पर, भारत के पण्य निर्यात में 2008-09 की दूसरी तिमाही में 24.6 प्रतिशत वृद्धि हुई, जबकि 2007-08 की दूसरी तिमाही में 17.0 प्रतिशत वृद्धि हुई थी। (ii)भुगतान संतुलन के आधार पर, आयात भुगतान में 2008-09 की दूसरी तिमाही में 45.0 प्रतिशत वृद्धि हुई, जबकि 2007-08 की दूसरी तिमाही में 22.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। (iii)वाणिज्यिक आसूचना और अंक संकलन महानिदेशालय (डीजीसीआई एण्ड एस) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 2008-09 की दूसरी तिमाही के दौरान तेल आयात और तेल से इतर आयात दोनों काफी अधिक अर्थात क्रमश: 45.1 प्रतिशत (2007-08 की दूसरी तिमाही में 11.3 प्रतिशत) और 37.6 प्रतिशत (2007-08 की दूसरी तिमाही में 22.4 प्रतिशत) थे। 2008-09 दूसरी तिमाही में तेल आयात कुल आयातों का लगभग 33.2 प्रतिशत था (2007-08 की दूसरी तिमाही में 32.0 प्रतिशत)। पूंजीगत माल, रसायन और उर्वरक तेल से इतर आयात के प्रमुख प्रेरक थे। व्यापार घाटा (i)निर्यात की तुलना में आयात में सापेक्षिक रूप से अत्यधिक वृद्धि के फलस्वरूप, भुगतान संतुलन के आधार पर व्यापार घाटा 2008-09 की दूसरी तिमाही में 38.6 बिलियन अमरीकी डॉलर अधिक था (2007-08 की दूसरी तिमाही में 21.2 बिलियन अमरीकी डॉलर)। अदृश्य मदें (i)अदृश्य मदें, जिसमें सेवाएं, वर्तमान अंतरण और आय शामिल है, 2008-09 की दूसरी तिमाही में 33.9 प्रतिशत (2007-08 की दूसरी तिमाही में 36.8 प्रतिशत) बढ़ीं, जो मुख्य रूप से सॉफ्टवेयर सेवाओं के निर्यात, कारोबार और पेशेवर सेवाओं, यात्रा और परिवहन में निरंतर वृद्धि के साथ-साथ निजी अंतरण की प्राप्तियों में बढ़ोतरी के कारण थी। (ii)अदृश्य मदों के भुगतान भारत से बहिर्वाहगामी पर्यटक यात्रा, परिवहन के प्रति बढ़ते भुगतान, कारोबार संबंधित सेवाओं के लिए घरेलू मांग और ब्याज भुगतान तथा लाभांश के रूप में निवेश आय भुगतान में परिलक्षित हुए। (iii)जुलाई-सितंबर 2008 में निवल अदृश्य मदों (अदृश्य मदों की प्राप्तियों से घटाया अदृश्य मदों के भुगतान) की राशि 26.1 बिलियन अमरीकी डालर थी (जुलाई-सितंबर 2007 में 16.9 बिलियन अमरीकी डालर) (सारणी 2) ।इस स्तर पर, निवल अदृश्य मदों के अधिशेष ने 2008-09 की दूसरी तिमाही में व्यापार घाटे के 67.5 प्रतिशत का वित्त पोषण किया (2007 की दूसरी तिमाही में 79.8 प्रतिशत)।
चालू खाता घाटा (i)मुख्य रूप से निजी अंतरण और साफ्टवेयर निर्यात से होने वाले निवल अदृश्य मदों के अधिशेष के अत्यधिक होने के बावजूद, मुख्य रूप से अत्यधिक आयात के कारण बढ़ते व्यापार घाटे ने 2008-09 की दूसरी तिमाही में चालू खाते को 12.5 बिलियन अमरीकी डालर (2007-08 की दूसरी तिमाही में 4.3 बिलियन अमरीकी डालर) बढ़ाया। पूंजी खाता और विदेशी मुद्रा भण्डार (i)वैश्विक वित्तीय उथल-पुथल के प्रभाव को दर्शाते हुए, भारत के प्रति सकल पूंजी अन्तर्वाहों में कमी दिखी, जबकि सकल पूंजी बहिर्वाह पिछले वर्ष की तदनुरूप अवधि की तुलना में जुलाई-सितंबर 2008 के दौरान स्थिर रहे। (ii)2008-09 की दूसरी तिमाही के दौरान भारत के प्रति सकल पूंजी अन्तर्वाह 85.7 बिलियन अमरीकी डालर थे (2007-08 की दूसरी तिमाही में 95.0 बिलियन अमरीकी डालर) जबकि भारत से सकल बहिर्वाह 77.5 बिलियन अमरीकी डालर थे (2007-08 की दूसरी तिमाही में 61.9 बिलियन अमरीकी डालर)। (iii)पूंजी प्रवाह की अस्थिर घट-बढ़ को दर्शाते हुए, निवल पूंजी प्रवाह 2007-08 की दूसरी तिमाही के 33.2 बिलियन अमरीकी डालर की तुलना में 2008-09 की दूसरी तिमाही में काफी कम अर्थात् 8.2 बिलियन अमरीकी डालर थे। (iv)पूंजी प्रवाह (निवल) के अन्तर्गत, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआइ) में निरंतर वृद्धि दिखी, जबकि पोर्टफोलियो निवेश में निवल बहिर्वाह दिखे (सारणी 3)। (v)एफडीआर में व्यापक रूप से इक्विटी, पुनर्निवेश आय और अंतर-कंपनी ऋण शामिल हैं। निवल एफडीआइ प्रवाह (निवल आवक एफडीआइ से घटाया निवल जावक एफडीआइ) 2008-09 की दूसरी तिमाही में अधिक अर्थात 5.6 बिलियन अमरीकी डालर थे जबकि 2007-08 की दूसरी तिमाही में 2.1 बिलियन अमरीकी डालर थे। 2008-09 की दूसरी तिमाही के दौरान निवल आवक एफडीआइ अधिक बने रहे अर्थात 8.8 बिलियन अमरीकी डालर थे (2007-08 की दूसरी तिमाही में 4.7 बिलियन अमरीकी डालर) जो सापेक्षिक रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ मूलभूत तत्वों और एफडीआइ आकर्षित करने के लिए भारत सरकार द्वारा किए गए उदारीकरण के निरंतर उपायों को दर्शाता है। 2008-09 की दूसरी तिमाही में निवल जावक एफडीआइ 3.2 बिलियन अमरीकी डालर थे (2007-08 की दूसरी तिमाही में 2.6 बिलियन अमरीकी डालर)। (vi)पोर्टफोलियो निवेश, जिसमें मुख्य रूप से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) के निवेश और अमरीकी निक्षेपागार रसीदें (एफडीआर)/वैश्विक निक्षेपागार रसीदें (जीडीआर) शामिल थीं, में 2008-09 की दूसरी तिमाही में 1.3 बिलियन अमरीकी डालर के निवल बहिर्वाह दिखने जारी रहे (2007-08 की दूसरी तिमाही में 10.9 बिलियन अमरीकी डालर के निवल अन्तर्वाह के विपरीत)। पोर्टफोलियो निवेश के अन्तर्गत बहिर्वाह, भारतीय शेयर बाजार में एफआइआइ द्वारा इक्विटी की भारी बिक्री और विदेशी बाजार में चलनिधि के शुष्क होने के कारण एडीआर/जीडीआर के अन्तर्गत निवल अन्तर्वाह में मंदी के कारण, थे। (vii)भुगतान संतुलन आधार पर (अर्थात मूल्यन को छोड़कर) विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट 2008-09 की दूसरी तिमाही में 4.7 बिलियन अमरीकी डालर विदेशी मुद्रा थी जबकि 2007-08 की दूसरी तिमाही में विदेशी मुद्रा भंडार में 29.2 बिलियन अमरीकी डालर की वृद्धि हुई थी। एफआइआइ द्वारा पूंजी प्रवाह में कमी के साथ-साथ बढ़ते व्यापार घाटे के कारण विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई।
2. अप्रैल-सितंबर 2008 के लिए भुगतान संतुलन (i)जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, 2008-09 की पहली तिमाही के आंशिक रूप से संशोधित आंकड़ों तथा 2008-09 की दूसरी तिमाही के प्रारंभिक आंकड़ों के आधार पर, वित्तीय वर्ष 2008-09 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) के भुगतान संतुलन के आंकड़े संकलित किए गए हैं। भुगतान संतुलन से संबंधित विस्तृत आंकड़े बीओपी के मानक फार्मेट में विवरणी 1 तथा 2 में दिए गए हैं, जबकि प्रमुख मदों की जानकारी सारणी 4 में दी गई है।
पण्य व्यापार (i)भुगतान संतुलन आधार पर,भारत के पण्य निर्यात में अप्रैल-सितंबर 2008 में 33.2 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई (पिछले वर्ष की इसी अवधि में 16.5 प्रतिशत)। (ii)वाणिज्यिक आसूचना और अंक संकलन महानिदेशालय (डीजीसीआइ एंड एस) से प्राप्त अप्रैल-जुलाई 2008 के उपलब्ध पण्यवार आंकड़ों के अनुसार कृषि और संबद्ध उत्पाद, वॉा उत्पाद, अयस्क तथा खनिज, अभियांत्रिकी माल, पेट्रोलियम उत्पाद ने उच्च वृद्धि दर्ज की। (iii)भुगतान संतुलन आधार पर, आयात भुगतान काफी बढ़ गया और उसमें अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान 43.2 प्रतिशत वृद्धि हुई जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में 21.5 प्रतिशत वृद्धि हुई थी। (iv)डीजीसीआइ एंड एस के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-सितंबर 2008 में तेल आयात में 59.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई ( पिछले वर्ष की इसी अवधि में 17.0 प्रतिशत) जबकि तेल से इतर आयातों में 29.4 प्रतिशत की तुलनात्मक रूप से कम वृद्धि हुई (पिछले वर्ष की इसी अवधि में 33.3 प्रतिशत)। समग्र रूप से, अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान कुल आयात में तेल आयात का हिस्सा लगभग 35.6 प्रतिशत था (पिछले वर्ष की इसी अवधि में 31.0 प्रतिशत)। (v)डीजीसीआइ एंड एस के आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में अप्रैल-सितंबर 2008 में 43.1 बिलियन अमरीकी डालर के आयात में कुल वृद्धि में तेल आयात का हिस्सा 20.5 बिलियन अमरीकी डालर की वृद्धि का था (अप्रैल-सितंबर 2007 के 20.7 प्रतिशत की तुलना में 47.5 प्रतिशत) जबकि तेल से इतर आयातों ने 22.6 बिलियन अमरीकी डालर की वृद्धि का योगदान दिया (अप्रैल-सितंबर 2007 के 79.3 प्रतिशत की तुलना में 52.5 प्रतिशत)। (vi)अप्रैल- जुलाई 2008 के लिए उपलब्ध डीजीसीआइ एंड एस के पण्यवार आंकड़ों के अनुसार तेल से इतर आयात के अंतर्गत की मदों, जिन्होंने उच्च वृद्धि दर्शायी, वे उर्वरक, पूंजीगत माल और रसायन थे जबकि खाद्य तेल, दलहन और मोती और अर्ध-मूल्यवान पत्थरों जैसी मदों के आयात में गिरावट आई। (vii)तेल आयात में तेज वृद्धि ने अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल के भारतीय समूह (ओमान, दुबई,और ब्रेंट किस्मों का संमिश्रण) के मूल्यों में वृद्धि का प्रभाव दर्शाया जो अप्रैल-सितंबर 2008 के 116.5 प्रति बैरल अमरीकी डालर के औसत तक बढ़ गया था जबकि यह पिछले वर्ष की इसी अवधि में 69.3 प्रति बैरल अमरीकी डालर था (चार्ट 1)। चार्ट 1 : भारत का पीओएल आयात और कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्य व्यापार घाटा भुगतान संतुलन आधार पर पण्य व्यापार घाटा अप्रैल-सितंबर 2007 के 43.2 बिलियन अमरीकी डालर से बढ़कर अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान 69.2 बिलियन अमरीकी डालर हो गया जिसका कारण आयात में काफी वृद्धि होना था (चार्ट 2)। अदृश्य मदें अदृश्य प्राप्तियां (i)अदृश्य प्राप्तियां, जिनमें सेवाएं, चालू अंतरण और आय शामिल होती है, अप्रैल-सितंबर 2008 में 29.8 प्रतिशत बढ़ी (पिछले वर्ष की इसी अवधि में 28.3 प्रतिशत) जिसका मुख्य कारण सॉफ्टवेयर सेवा निर्यात, कारोबार सेवाएं, यात्रा और परिवहन में लगातार वृद्धि के साथ ही निजी अंतरणों के तहत प्राप्तियों में वृद्धि होना था (सारणी 5 और चार्ट 3)।
(ii)निजी अंतरण मुख्यत:निम्न रूप में होते हैं (i) विदेश में रहनेवाले भारतीयों द्वारा परिवार निर्वाह के लिए भेजे जानेवाले विप्रेषण, (ii) अनिवासी भारतीय रुपया जमा राशियों से स्थानीय आहरण, (iii) यात्री सामान के माध्यम से लाया जानेवाला सोना और चांदी तथा (iv) धर्मादा/धार्मिक संस्थाओं को दिए गए व्यक्तिगत उपहार/दान शामिल हैं। (iii)निजी अंतरण प्राप्तियों में मुख्यत: विदेश में कार्यरत भारतीयों द्वारा भेजे जानेवाले विप्रेषणों का समावेश है। ये प्राप्तियां अप्रैल-सितंबर 2008 में बढ़कर 27.0 बिलियन अमरीकी डालर हो गई जोकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में 18.0 बिलियन अमरीकी डालर थी। निजी अंतरण प्राप्तियां अप्रैल-सितंबर 2008 में चालू प्राप्तियों के 15.1 प्रतिशत थीं (पिछले वर्ष की इसी अवधि में 13.2 प्रतिशत)। चार्ट 3 :अदृश्य मद प्राप्तियों के मुख्य घटक (iv)अनिवासी भारतीय जमाराशियां जब घरेलू रूप से आहरित की जाती हैं तब ये निजी अंतरणों का अंग बन जाती हैं क्योंकि स्थानीय उपयोग के लिए आहरित किये जाने पर ये एक पक्षीय अंतरण हो जाती हैं और उनके बदले में कुछ नहीं मिलता। अनिवासी भारतीय जमाराशियों से ऐसे स्थानीय आहरण/चुकौतियां भुगतान संतुलन के पूंजी खाते में देयताएं नहीं रह जाती और निजी अंतरण बन जाती हैं जो भुगतान संतुलन के चालू खाते में शामिल की जाती है। (v)अनिवासी भारतीय जमाराशियों के अंतर्गत के अंतर्वाह और बहिर्वाह दोनों हाल के वर्षों में स्थिर बने रहे। अनिवासी जमाराशियों से हुए बहिर्वाह का बड़ा हिस्सा स्थानीय आहरण के रूप में है। किंतु ये आहरण वास्तव में प्रत्यावर्तित नहीं हुए हैं बल्कि स्थानीय तौर पर उपयोग में लाए गए हैं। अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान अनिवासी भारतीय जमाराशियों से हुए कुल बहिर्वाह में स्थानीय आहरणों का हिस्सा 65.4 प्रतिशत था जबकि अप्रैल-सितंबर 2007 में यह 64.1 प्रतिशत था (सारणी 6)।
vi)अप्रैल-सितंबर 2008 में निजी अंतरण के तहत परिवार के पोषण के लिए आवक विप्रेषण का हिस्सा कुल निजी अंतरण प्राप्तियों के लगभग 52.8 प्रतिशत था और स्थानीय आहरणों का हिस्सा लगभग 41.5 प्रतिशत था जबकि अप्रैल-सितंबर 2007 में यह क्रमश: 50.2 प्रतिशत और 43.8 प्रतिशत था (सारणी 7)।
(vii)अप्रैल-सितंबर 2008 में सॉफ्टवेयर प्राप्तियां 21.9 बिलियन अमरीकी डालर थीं जो अप्रैल-सितंबर 2007 के 26.3 प्रतिशत की तुलना में 22.3 प्रतिशत की कम वृद्धि थी। (viii)विविध प्राप्तियां, सॉफ्टवेयर प्राप्तियां छोड़कर, अप्रैल-सितंबर 2008 में 14.3 बिलियन अमरीकी डालर थीं (अप्रैल-सितंबर 2007 में 12.3 बिलियन अमरीकी डालर) । इन आंकड़ों का ब्यौरा सारणी 8 में दिया गया है।
(ix)कारोबारी सेवा प्राप्तियों और भुगतानों के मुख्य घटक मुख्यत: व्यापार संबंधी सेवाएं, कारोबार और प्रबंधन परामर्शी सेवाएं, वास्तुशाॉााय, अभियांत्रिकी और अन्य तकनीकी सेवाएं तथा कार्यालय रखरखाव संबंधी सेवाएं हैं। ये व्यावसायिक और प्रौद्योगिकी संबंधी सेवाओं के व्यापार की निहित गति दर्शाते हैं (सारणी 9)। (x)निवेश आय प्राप्तियां अप्रैल-सितंबर 2007 के 5.9 बिलियन अमरीकी डालर की तुलना में अप्रैल-सितंबर 2008 में 7.3 बिलियन अमरीकी डालर थीं।
अदृश्य भुगतान (i)अदृश्य भुगतानों ने अप्रैल-सितंबर 2008 में 14.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्शायी (अप्रैल-सितंबर 2007 में 17.1 प्रतिशत)। अदृश्य भुगतानों ने मुख्यत: यात्रा भुगतान, परिवहन, कारोबार और प्रबंधन परामर्श, अभियांत्रिकी और अन्य तकनीकी सेवाओं, लाभांश, लाभ और ब्याज भुगतान संबंधी भुगतानों में गति दर्शायी। अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान अदृश्य भुगतानों की वृद्धि दर में कमी का मुख्य कारण अनेक कारोबारी और व्यावसायिक सेवाओं संबंधी भुगतानों में कमी था। (ii)अप्रैल-सितंबर 2008 में उच्च परिवहन भुगतानों (39.1 प्रतिशत) ने मुख्यत: आयातों की बढ़ती मात्रा की गति दर्शायी। इसके अलावा, उच्च भुगतानों का कारण अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण अंतरराष्ट्रीय नौवहन भाड़े की दर में वृद्धि भी हो सकता है। (iii)निवेश आय भुगतान, जो मुख्यत: वाणिज्यिक उधारों पर ब्याज भुगतान, बाह्य सहायता और अनिवासी जमाराशियां और भारत में कार्यरत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश उद्यमों की पुनर्निवेशित आय दर्शाते हैं, अप्रैल-सितंबर 2008 में 8.8 बिलियन अमरीकी डालर थे जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के जैसे ही थे (सारणी 10)।
अदृश्य मदशेष (i)निवल अदृश्य मदें (अदृश्य मद भुगतान घटाकर अदृश्य मद प्राप्तियां) अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान 46.8 बिलियन अमरीकी डालर थीं (अप्रैल-सितंबर 2007 के दौरान 32.3 बिलियन अमरीकी डालर) जिनमें निजी अंतरण में उच्चतर वृद्धि और सॉफ्टवेयर निर्यात में स्थिर वृद्धि मुख्य थी। इस स्तर पर, अदृश्य मद अधिशेष ने अप्रैल-सितंबर 2007 के 74.5 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान व्यापार घाटे का लगभग 67.7 वित्तपोषण किया। चालू खाते का घाटा (i)उच्च निवल अदृश्य अधिशेष के बावजूद मुख्यत: अधिक आयातों के कारण बढ़े व्यापार घाटे के से चालू खाते का घाटा अप्रैल-सितंबर 2008 में बढ़कर 22.3 बिलियन अमरीकी डालर हो गया (अप्रैल-सितंबर 2007 में 11.0 बिलियन अमरीकी डालर) (चार्ट 4) पूंजी खाता (i)अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान भारत में हुए सकल पूंजी अंतर्वाह 176.3 बिलियन अमरीकी डालर थे (अप्रैल-सितंबर 2007 में 164.5 बिलियन अमरीकी डालर) जबकि बहिर्वाह 156.4 बिलियन अमरीकी डालर थे (अप्रैल-सितंबर 2007 में 113.6 बिलियन अमरीकी डालर) (सारणी 11) (ii)तथापि, निवल पूंजी प्रवाह अप्रैल-सितंबर 2007 के 50.9 बिलियन अमरीकी डालर की तुलना में अप्रैल-सितंबर 2008 में काफी कम होकर 19.9 बिलियन अमरीकी डालर हुआ। निवल पूंजी प्रवाह के अंतर्गत एफडीआइ तथा एनआरआइ जमाराशियों को छोड़कर सभी घटकों ने अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि से अपने स्तर से गिरावट दर्शाई (सारणी 12)। (iii)विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआइ) में मुख्यत: इक्विटी, पुनर्निवेशित आय और अंतर-कंपनी ऋण शामिल हैं। अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान भारत में आए निवल अंतर्वाह 20.7 बिलियन अमरीकी डालर पर तेज रहे (अप्रैल-सितंबर 2007 में 12.2 बिलियन अमरीकी डालर) जिन्होंने एफडीआइ को आकर्षित करने के लिए घरेलू गतिविधि में विस्तार की निरंतरता, सकारात्मक निवेश वातावरण और उदारीकरण के निरंतर उपाय दर्शाएं। एफडीआइ सर्वाधिक विनिर्माण (20.8 प्रतिशत) में लगाए गए जिसके बाद निर्माण क्षेत्र (13.6 प्रतिशत) और वित्तीय क्षेत्र (12.2 प्रतिशत) का स्थान था। अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान भारत के निवल बहिर्वाही एफडीआइ कम होकर 6.1 बिलियन अमरीकी डालर (अप्रैल-सितंबर 2007 में 7.3 बिलियन अमरीकी डालर) रह गए जो वैश्विक कारोबारी गतिविधियों में मंदी दर्शाते हैं। अप्रैल-सितंबर 2007 के दौरान बड़े आवक एफडीआइ के कारण निवल एफडीआइ (आवक एफडीआइ से जावक एफडीआइ घटाकर) अप्रैल-सितंबर 2007 के 4.9 बिलियन अमरीकी डालर की तुलना में अप्रैल-सितंबर 2008 में बढ़कर 14.6 बिलियन अमरीकी डालर हो गए।
(iv)पोर्टफोलियो निवेश, जिसमें मुख्यत: विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश और अमरीकी डिपाजिटरी रसीद (एडीआर) / वैश्विक डिपाजिटरी रसीद (जीडीआर) होते हैं, ने अप्रैल-सितंबर 2008 में भारी निवल बहिर्वाह (5.5 बिलियन अमरीकी डालर) दर्शाया (अप्रैल-सितंबर 2007 में 18.4 बिलियन अमरीकी डालर का निवल अंतर्वाह) जिसका कारण भारतीय शेयर बाजार में एफआइआइ द्वारा भारी इक्विटी बिक्री था जो शेयर बाजार में मंदडिया स्थिति और वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी दर्शाता है। अप्रैल-सितंबर 2008 में एडीआर/जीडीआर के अंतर्गत अंतर्वाह घटकर 1.1 बिलियन अमरीकी डालर हो गया (अप्रैल-सितंबर 2007 में 2.8 बिलियन अमरीकी डॉलर)
(v)अप्रैल-सितंबर 2008 में निवल बाहय वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) घटकर 3.3 बिलियन अमरीकी डालर हुआ (अप्रैल-सितंबर 2007 में 11.2 बिलियन अमरीकी डालर)। निवल ईसीबी अंतर्वाह अप्रैल-सितंबर 2007 के 21.9 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान 16.8 प्रतिशत पर कम थे। (vi)बैंकिंग पूंजी (निवल) अप्रैल-सितंबर 2007 के 5.7 बिलियन अमरीकी डालर की तुलना में अप्रैल-सितंबर 2008 में 4.8 बिलियन अमरीकी डालर थीं। बैंकिंग पूंजी घटकों में अनिवासी भारतीय (एनआरआइ) जमाराशियों में अप्रैल-सितंबर 2008 में 1.1 बिलियन अमरीकी डालर का निवल अंतर्वाह हुआ जो अप्रैल-सितंबर 2007 के 78 मिलियन अमरीकी डालर के निवल बहिर्वाह की तुलना में भारी परिवर्तन है। (vii)अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान अल्पावधि व्यापार ऋण का 21.8 बिलियन अमरीकी डालर तक कुल संवितरण हुआ (अप्रैल-सितंबर 2007 में 20.2 बिलियन अमरीकी डालर)। निवल अल्पावधि व्यापार ऋण पिछले वर्ष की इसी अवधि की 6.6 बिलियन अमरीकी डालर की तुलना में अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान 3.2 बिलियन अमरीकी डालर रहा (180 दिवसीय आपूर्तिकर्ता सहित) (viii)‘अन्य पूंजी’ के अंतर्गत निर्यात में कमीबेशी, विदेशी में धारित निधियां, एफडीआइ के अंतर्गत शेयर जारी होने तक प्राप्त अग्रिम और अन्यत्र शामिल न की गई पूंजी प्राप्तियां शामिल हैं। अप्रैल-सितंबर 2008 में अन्य पूंजी में 1.3 बिलियन अमरीकी डालर का निवल बहिर्वाह दर्ज किया। अन्य पूंजी का ब्यौरा सारणी 13 में दिया गया है।
विदेशी मुद्रा भंडार में अभिवृद्धि (i) अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान बीओपी आधार पर (अर्थात मूल्यांकन को छोड़कर) विदेशी मुद्रा भंडार में कमी की राशि 2.5 बिलियन अमरीकी डालर थी (अप्रैल-सितंबर 2007 के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में 40.4 बिलियन अमरीकी डालर की अभिवृद्धि हुई थी)(सारणी 14 तथा चार्ट 5)। मूल्यांकन हानि को हिसाब में लेने के बाद अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में 23.4 बिलियन अमरीकी डालर की कमी आई (अप्रैल-सितंबर 2007 के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में 48.6 बिलियन अमरीकी डालर की अभिवृद्धि हुई थी) ढविदेशी मुद्रा भंडार में अभिवृद्धि के स्रोतों के संबंध में अलग से एक प्रेस प्रकाशनी जारी की जा रही हैज्। (ii) सितंबर 2008 के अंत में बकाया विदेशी मुद्रा भंडार 286.3 बिलियन अमरीकी डालर था।
(iii) निष्कर्ष के रूप में, अप्रैल - सितंबर 2008 के दौरान भारत के भुगतान संतुलन की प्रमुख विशेषताएं निम्नानुसार हैं (i) आयात के उच्च स्तर के कारण व्यापार घाटे में वृद्धि(69.2 बिलियन अमरीकी डालर), (ii) विदेश स्थित भारतीयों द्वारा विप्रेषणों तथा सॉप्टवेयर सेवा निर्यातों के कारण अदृश्य अधिशेष में उल्लेखनीय वृद्धि(46.8 बिलियन अमरीकी डालर), (iii) व्यापार घाटे के उच्च स्तर के कारण उच्चतर चालू खाता घाटा(22.3 बिलियन अमरीकी डालर), (iv) अप्रैल-सितंबर 2007 की तुलना में (50.9 बिलियन अमरीकी डालर) पूंजी अंतर्वाह में उतार-चढ़ाव तथा निम्नतर निवल पूंजी अंतर्वाह, तथा (v) विदेशी मुद्रा भंडार में 2.5 बिलियन अमरीकी डालर की कमी (अप्रैल-सितंबर 2007 के दौरान 40.4 बिलियन अमरीकी डालर की वृद्धि की तुलना में)। प्रमुख संकेतकों के ब्योरे सारणी 15 में दिए गए हैं।
2. आयात आंकड़ों का समायोजन (i)डीजीसीआईएंडएस के आयात अंकडे तथा बीओपी वणिक आयातों के आधार पर अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान आंकड़ों के दोनों सेट का अंतर लगभग 11.1 बिलियन अमरीकी डालर आता है(सारणी 16)।
3. 2006-07, 2007-08 तथा 2008-09 की पहली तिमाही के बीओपी आंकड़ों में संशोधन (i) 30 सितंबर 2004 में घोषित संशोधन नीति के अनुसार 2006-07, 2007-08 तथा 2008-09 की पहली तिमाही के आंकड़ों को रिपोर्ट करने वाली विभिन्न संस्थाओं द्वारा रिपोर्ट की गई अद्यतन सूचना के आधार पर संशोधित किया गया है। संशोधित आंकड़ों के अनुसार 2006-07 तथा 2007-08 का चालू खाता घाटा क्रमश: 9.6 बिलियन अमरीकी डालर (जीडीपी का 1.1 प्रतिशत) तथा 17.0 बिलियन अमरीकी डालर (जीडीपी का 1.5 प्रतिशत) है। संशोधित आंकड़े बीओपी के प्रस्तुतीकरण के मानक प्रपत्र विवरणी II में दिए गए हैं। 4. सितंबर 2008 को समाप्त होने वाली तिमाही का बाह्य ऋण (i) विद्यमान प्रथा के अनुसार मार्च तथा जून को समाप्त होने वाली तिमाहियों के बाह्य ऋण के आंकड़ों का संकलन तथा प्रकाशन भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाता है, जबकि सितंबर तथा दिसंबर को समाप्त होने वाली तिमाहियों के बाह्य ऋण के आंकड़ों का संकलन तथा प्रकाशन वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किया जाता है। तदनुसार, सितंबर 2008 को समाप्त तिमाही के आंकड़े वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी किए जा रहे हैं। ये आंकड़े http://finmin.nic.in. से प्राप्त किए जा सकते हैं। अल्पना किल्लावाला प्रेस प्रकाशनी : 2008-2009/995 |