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मार्च 2004 के अंत में भारत के बाह्य ऋण स्टॉक

30 जून 2004

मार्च 2004 के अंत में भारत के बाह्य ऋण स्टॉक

मार्च 2004 के अंत में भारत के बाह्य ऋण 112.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर थे। 2003-04 के दौरान बाह्य ऋणों के विकास की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:

बाह्य ऋणों की खास खास बातें (2003-04)

  • भारत के कुल बाह्य ऋण स्टॉक मार्च 2004 के अंत तक 7.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर (7.4 प्रतिशत) बढ़े।

  • बाह्य ऋणों में वफ्द्धि का प्रमुख हिस्सा अन्य प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर में गिरावट के कारण मूल्यन परिवर्तनों की वजह से रहा । मूल्यन प्रभावों के लिए समायोजित करके, मार्च 2004 के अंत में बाह्य ऋणों के स्टॉक कमोबेश मार्च 2003 के स्थर पर ही रहे। दरअसल, रुपये के रूप में गिनने पर, ऋणों के स्टॉक में मार्च 2003 की तुलना में 1.9 प्रतिशत की गिरावट आयी।
  • घटकों के रूप में देखने पर, अनिवासी जमाराशियां 2003-04 के दौरान बाह्य ऋण में वफ्द्धि की प्रमुख प्रेरक थीं।
  • इसका अनिवासी अप्रत्यावर्तनीय रुपया जमा योजना डएनआर(एनआर)आरडी के बंद हो गये प्रवाह का पुन:प्रत्यावर्तनीय अनिवासी बाह्य योजना पर प्रभाव पड़ा। इससे पहले डएनआर(एनआर)आरडी के अंतर्गत आनेवाली जमाराशियां, उनकी गैर-प्रत्यावर्तनीयता को ध्यान में रखते हुए बाह्य ऋण के स्टॉक के घटक के रूप में शामिल नहीं की गयी थीं। तदनुसार, बंद की गयी एनआरएनआर जमाराशियां बाह्य ऋण स्टॉक के अंतर्गत पहचानी जाने लगी।
  • अन्य ऋण घटकों में द्विपक्षीय ऋण और अल्पावधि व्यापार ऋणों ने वफ्द्धि दर्ज की।
  • अल्पावधि व्यापार ऋण में वफ्द्धि ने आयात मांग में उछाल दर्शाया।
  • बहुविध स्रोतों के भीतर सरकारी उधार में ढांचागत बदलाव आया है। यह आइबीआरडी और एडीबी के उच्च लागत ऋणों के पूर्व-भुगतान के साथ बहुत अ्य्धक ्य्रयायती आइडीए ऋणों के ओर झुकाव दर्शाता है।
  • बैंक ऋण, वाणिज्यिक उधारों में वफ्द्धि के समायोजन से अधिक रिसर्जंट इंडिया बांडों की बुलेट परिपक्वता-अवधि समाप्ति से प्रतिभूतिवफ्त उधार में आयी गिरावट, में भी विन्यासात्मक बदलाव आया। यह करीब उसी स्तर पर रही।

बाह्य ऋण के संकेतक

  • बाह्य ऋण के मुख्य संकेतक, अर्थात् सकल देशी उत्पाद को ऋण का अनुपात, अल्पावधि के कुल ऋण के साथ और अल्पावधि ऋण के विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियों के साथ अनुपात ने ्य्पछले वर्षों के दौरान निरंतर सुधार दर्शाया है। वर्ष 2003-04 में सुधार में यह मजबूती जारी रही।
  • पिछले तीन वर्षों के दौरान कुल ऋण के एक भाग के रूप में रियायती ऋण करीब 36.0 प्रतिशत पर स्थिर रहे।
  • वर्ष 2002-03 के दौरान के 15.1 प्रतिशत की तुलना में ऋण शोधन अनुपात में 2003-04 में 18.3 प्रतिशत तक वफ्द्धि हुई। इसके मुख्य कारण रिसर्जंट इंडिया बांडों का शोधन और 2003-04 के दौरान 3.8 बिलियन के बराबर के बहुविध और द्विपक्षी ऋण के पूर्व-भुगतान थे। इनकी रा्य्श 5.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर हुई। इन अपवादात्मक लेनदेनों को छोड़कर वर्ष 2003-04 में ऋण शोधन अनुपात में 11.0 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज हुई।
  • विदेशी मुद्रा भण्डार 31 मार्च 2004 तक के बकाया बाह्य ऋण स्टॉक से अधिक हो गये।

 

अजीत प्रसाद

प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2004-05/1521

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