भारत का वित्तीय क्षेत्र तनाव-मुक्त रहा; लेकिन समष्टि आर्थिक के कमज़ोर बिन्दुओं और वैश्विक विकास की असमानताओं से उत्पन्न जोखिमें बनी हुई है: भारतीय रिज़र्व बैंक की द्वितीय वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारत का वित्तीय क्षेत्र तनाव-मुक्त रहा; लेकिन समष्टि आर्थिक के कमज़ोर बिन्दुओं और वैश्विक विकास की असमानताओं से उत्पन्न जोखिमें बनी हुई है: भारतीय रिज़र्व बैंक की द्वितीय वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट
30 दिसंबर 2010 भारत का वित्तीय क्षेत्र तनाव-मुक्त रहा; लेकिन समष्टि आर्थिक के कमज़ोर बिन्दुओं और भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज यहाँ जारी द्वितीय वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) में भारत के वित्तीय क्षेत्र के सुदृढ़ता का आकलन प्रस्तुत किया। यह रिपोर्ट वित्तीय क्षेत्र स्थिरता में बनी हुई जोखिम के अपने आकलन की जानकारी देने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा किए जा रहे प्रयासों को दर्शाती है। पहली वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट मार्च 2010 में जारी की गई थी। द्वितीय वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट समग्र रूप से प्रणालीगत जोखिम परिदृश्य से वित्तीय क्षेत्र पर्यावरण संरचना के समग्र तत्वों- समष्टि आर्थिक ढाँचे, नीतियों, बाज़ारों, संस्थाओं तक का आकलन करती है। मार्च और दिसंबर 2010 के बीच विभिन्न संवेदनशीलताओं की गति तथा वित्तीय प्रणाली के अनुकूलन के आकलन इस रिपोर्ट में प्रस्तुत किए गए हैं। यह प्रणालीगत वित्तीय स्थिरता के प्रति संभावित जोखिमों की पहचान और विश्लेषण में वित्तीय प्रणाली की सुदृढ़ता का आकलन करने के लिए पद्धतियों और तकनीक का उन्नयन करने हेतु रिज़र्व बैंक के भीतर किए गए व्यापक प्रयासों को भी दर्शाती है। रिपोर्ट के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास मज़बूती के साथ वापस आया है जबकि मार्च 2010 में प्रथम वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) प्रकाशन के बाद से वित्तीय स्थितियाँ स्थिर बनी रही हैं। भारत में वित्तीय क्षेत्र खासकर इक्विटी और विदेशी मुद्रा बाज़ारों में निरंतर उतार-चढ़ाव के होते हुए भी तनावमुक्त बना रहा। यह भारत के लिए वित्तीय तनाव संकेतकों द्वारा भी प्रदर्शित है जिसे प्रथम वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में लागू किया गया था। वित्तीय संस्थाएं मज़बूत बनी रहीं, ऋण सुपूर्दगी में उसी प्रकार तेज़ी आयीं जैसेकि लाभप्रदता में खासकर वर्ष 2010-11 की पहली छमाही में तेज़ी आयी थी। बैंकिंग स्थिरता सूचकांक पिछले कुछ वर्षों के दौरान बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता में मज़बूत सुधार का संकेत देते हैं। यह रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू किए गए तनाव जाँच की कई श्रेणियों के परिणामों में भी शामिल है। यह रिपोर्ट कुछ स्पष्ट कमज़ोर बिन्दुओं पर संकेत करती है। चालू खाता घाटा बढ़ रहा है जबकि पूँजी प्रवाहों पर अस्थिर संघटकों का आधिपत्य जारी है। बाह्य क्षेत्र अनुपात में कमी आयी है, राजकोषीय स्थितियाँ अभी भी दबाव में हैं और मुद्रास्फीतिकारी दबाव बने हुए हैं। रिज़र्व बैंक की सुविधा स्तर के बाद भी चलनिधि स्थितियाँ कड़ी हैं और इस तनाव से बचने के लिए हाल में कुछ नीति उपाय किए गए हैं। वित्तीय बाज़ार माइक्रो संरचना में कुछ मामलों का समाधान करने की ज़रूरत होगी। बैंकों की आस्ति-गुणवत्ता और उनकी आस्ति-देयता प्रबंध स्थिति में निगरानी आवश्यक है। गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में विनियामक अंतरों को रोकने की ज़रूरत होगी। प्रणालीगत जोखिमों की पहचान के लिए एक मज़बूत समष्टि विवेकपूर्ण ढाँचें की ज़रूरत होगी। उभरते अंतर्राष्ट्रीय सुधार कार्य के साथ संकेंद्रन चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं और उनके लिए सतर्कता अपेक्षित है। वित्तीय स्थिरता से जुड़ी कुछ जोखिमों का संदर्भ देते हुए रिपोर्ट यह बताती है कि वैश्विक वृद्धि के साथ भारत सहित उभरती हुई बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के बीच बढ़ते हुए परस्पर संबंध को देखते हुए वे व्यापक रूप से बाहर से संबंधित हैं। रिपोर्ट यह बताती है कि वित्तीय माध्यम ने बाहर की अस्थिरता से संक्रामकता की गति और मात्रा को बढ़ाते हुए भारी महत्व प्राप्त कर लिया है। उसी प्रकार अधिकांश उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और अन्य उभरती हुई बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की कारोबारी सहक्रिया बढ़ गई है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में वित्तीय और वास्तविक क्षेत्र दोनों के अभी तक तनाव में रहने के कारण भारत को वैश्विक विकास और वित्तीय स्थिरता के प्रति जोखिमों से उत्पन्न संवेदनशीलताओं के समक्ष अपनी रक्षा करनी होगी। नवंबर 2010 में मौद्रिक नीति 2010-11 की दूसरी तिमाही समीक्षा में यह घोषित किया गया था कि रिज़र्व बैंक शीघ्र ही वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जारी करेगा। मुख्य-मुख्य बातें
घरेलू दृष्टिकोण और आकलन
वित्तीय बाज़ार
अल्पना किलावाला प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/921 |