भारत में मुद्रास्फीति की सीमा रेखा : एक अनुभवजन्य जॉंच - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारत में मुद्रास्फीति की सीमा रेखा : एक अनुभवजन्य जॉंच
10 अक्टूबर 2011 भारत में मुद्रास्फीति की सीमा रेखा : एक अनुभवजन्य जॉंच रिज़र्व बैंक ने आज दीपक मोहंती, ए.बी.चक्रबर्ती, अभिमान दास और जॉइस जॉन द्वारा लिखित ''भारत में मुद्रास्फीति की सीमा रेखा : एक अनुभवजन्य जॉंच:: विषय पर एक कार्य पेपर जारी किया। पेपर में केंद्रीय बैंक द्वारा मुद्रास्फीति प्रबंधन के बढ़ते महत्व को ध्यान में रखते हुए भारत के लिए मुद्रास्फीति की सीमा रेखा स्तर का पता करने का प्रयास किया है। समष्टि रूप से आर्थिक नीति के महत्वपूर्ण उद्देश्यों में उच्च आऊट-पूट वृद्धि और निम्न मुद्रास्फीति है। किंतु मुद्रास्फीति कम करने और उच्च विकास प्राप्त करने में दुविधा है। अनुभवजन्य साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि विकास-मुद्रास्फीति का संबंध मुद्रास्फीति के स्तर पर निर्भर होता है - कुछ निम्न स्तरों पर मुद्रास्फीति सक्रिय रूप से विकास से संबंधित हो सकती है किंतु उच्चतर स्तरों पर मुद्रास्फीति संभवत: विकास के लिए हानिकारक हो सकती है। अन्य शब्दों में, मुद्रास्फीति और आऊट-पूट विकास के बीच सीधा संबंध नहीं है। इस संदर्भ में लेखकों ने तीन विभिन्न दृष्टिकोणों का प्रयोग करते हुए भारत में मद्रास्फीति दर और वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद विकास के बीच संबंध में सीमा रेखा प्रभाव होने के विषय की जॉंच की है। अर्थव्यवस्था को ढॉंचेगत परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए अनुभवजन्य विश्लेषण में विकास मुद्रास्फीति में संबंध की हाल की स्थिति को पकड़ने के लिए तिमाही 1 : 1996-97 से तिमाही 3 : 2010-11 की अवधि के ऑंकड़ों का प्रयोग किया है। साथ ही इस पेपर में एक विशिष्ट प्रश्न ''क्या विकास का प्रभाव प्रतिकूल होने से पहले भारत में मुद्रास्फीति को न्यूनतम ''सीमा रेखा'' पर पहुँचाना जरूरी है'' विषय को संबोधित किया गया। पेपर के निष्कर्ष ये सुझाव देते हैं कि भारत के लिए ढॉंचागत ब्रेक-पाइंट के रूप में मुद्रास्फीति सीमा रेखा है और यह मुद्रास्फीति और विकास के बीच सीधा संबंध नहीं होने को दर्शाते हैं। मुद्रास्फीति के 4.0 और 5.5 प्रतिशत के बीच आऊट-पूट विकास और मुद्रास्फीति के बीच सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण ढॉंचागत ब्रेक-इन संबंध है जिसके ऊपर मुद्रास्फीति सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर कम होती है और सीमा रेखा के नीचे का स्तर पर मुद्रास्फीति दर और विकास के बीच सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण सक्रिय संबंध है। अत: यदि मुद्रास्फीति सीमा रेखा से कम रखी जाती है तो उल्लेखनीय लाभ होगा। लेखकों ने यह तर्क दिया है कि मुद्रास्फीति लक्ष्य और मुद्रास्फीति सीमा रेखा भिन्न-भिन्न है। मुद्रास्फीति लक्षित करना मौद्रिक नीति तैयार करने का एक भाग है जिसमें केंद्रीय बैंक एक 'लक्ष्य' की घोषणा करती है और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपने नीति उपायों चलित करते हैं। मुद्रास्फीति सीमा रेखा विकास-मुद्रास्फीति दुविधा के लिए विभक्ति बिंदु है। अत: लेखकों ने यह उल्लेख किया है कि मुद्रास्फीति सीमा रेखा आवश्यक रूप से मौद्रिक नीति का 'लक्ष्य' नहीं होता है। उनके अनुसार मौद्रिक नीति उपायों के अंतरण और मुद्रास्फीति लागत में उल्लेखनीय अंतराल को ध्यान में रखते हुए मौद्रिक नीति के लिए मुद्रास्फीति उद्देश्य अथवा मुद्रास्फीति का लक्ष्य स्तर मुद्रास्फीति सीमा रेखा से कम होनी चाहिए। भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस वर्ष अप्रैल में ''भारतीय रिज़र्व बैंक कार्यकारी पेपर श्रृंखला (आरबीआइ-डब्ल्यूपी) शुरू की ताकि रिज़र्व बैंक के स्टाफ को अपने अनुसंधान अध्ययन को प्रस्तुत करने के लिए एक मंच मिले और जानकार अनुसंधानकर्ताओं से प्रतिसूचना प्राप्त हो सकें। आरबीआइ वर्किंग पेपर श्रृंखला सहित रिज़र्व बैंक के सभी अनुसंधान प्रकाशनों में व्यक्त विचार आवश्यक रूप से रिज़र्व बैंक के विचारों को नहीं दर्शाते हैं और इस प्रकार भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों के प्रतिनिधित्व के रूप में उनकी रिपोर्ट नहीं की जानी चाहिए। इन पेपरों पर प्रतिसूचना यदि है, तो उसे अनुसंधान अध्ययनों के संबंधित लेखकों को भेजी जा सकती है। आर.आर.सिन्हा प्रेस प्रकाशनी: 2011-2012/552 |