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मूलभूत सुविधा को वित्तीय सहायता : वैश्विक ढाँचा और भारतीय अनुभव : भारतीय रिज़र्व बैंक स्टाफ द्वारा अध्ययन

17 अगस्त 2010

मूलभूत सुविधा को वित्तीय सहायता : वैश्विक ढाँचा और भारतीय अनुभव :
भारतीय रिज़र्व बैंक स्टाफ द्वारा अध्ययन

साहित्य में इसे पूरी तरह मान्यता प्राप्त है कि किसी देश की आर्थिक प्रगति महत्त्वपूर्ण रूप से भौतिक मूलभूत सुविधा की पर्याप्त उपलब्धता पर निर्भर करती है। इस पृष्ठभूमि में वर्तमान अध्ययन यह सूचित करता है कि कुछ दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के वातावरण में परिवर्तन के पूर्व तथा बाद में भौतिक मूलभूत सुविधा में आवश्यक निवेशों का महत्त्व रहा है।

कुछ चयनित देशों में मूलभूत सुविधा को वित्तीय सहायता में प्रथाओं की जाँच से इन देशों द्वारा मूलभूत सुविधा उपलब्धता में अंतरों के समाधान हेतु स्वीकृत साधनों पर प्रकाश पड़ता है। उदाहरण के लिए चीन मूलभूत सुविधा विकास पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 20 प्रतिशत वार्षिक रूप से व्यय करता है और यह मूलत: भारत की तुलना में अधिक है जो भौतिक मूलभूत सुविधा के प्रावधानों पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 6 प्रतिशत मात्र व्यय करता है। इसके अतिरिक्त केनाड़ा ने सार्वजनिक निजी सहभागिता (पीपीपी) के लाभ को देखते हुए इसके प्रोत्साहन हेतु एक विशिष्ट सांस्थिक ढाँचे का सृजन किया है और इस अध्ययन में उनका विस्तृत विवरण दिया है। पुरानी मूलभूत सुविधा का रखरखाव भी केनाडा में एक गंभीर कारोबार है। ऑस्ट्रेलिया ने अस्सी के दशक की शुरुआत से ही मूलभूत सुविधा विकास में सक्रियता के साथ निजी क्षेत्र सहभागिता को प्रोत्साहन दिया है। आस्ट्रलियाई सरकार ने भी अपने भविष्य की भौतिक मूलभूत सुविधा जरूरतों के समाधान में सक्रियता दिखाई है। मलेशिया में मूलभूत सुविधा विकास के लिए थोक रूप में निजी वित्तीय सहायता जो भौतिक मूलभूत सुविधा के विकास में सार्वजनिक क्षेत्र के प्रयासों को पूरा करती है, घरेलू बाण्ड बाज़ारों से प्राप्त किया है।

मूलभूत सुविधा के विकास में भारत सरकार के प्रयासों को प्रतिबिंबित करते हुए यह अध्ययन 11वीं योजना में मूलभूत सुविधा के महत्त्व पर ध्यान कें द्रित करता है जो वार्षिक रूप में 9 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर बनाए रखने में समर्थ होने के लिए 514.04 बिलियन अमरीकी डॉलर की मूलभूत सुविधा के प्रावधान हेतु व्यय अपेक्षा को प्रस्तुत करता है। यह अध्ययन मूलभूत सुविधा के लिए पर्याप्त बैंक वित्त के प्रावधान सुनिश्चित करने में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए उपायों पर प्रकाश डालता है जिसमें अन्य बातों के साथ साथ विनियामक रियायत, नवोन्मेषी वित्तीय सहायता तकनीक लागू करना, मूलभूत सुविधा को वित्तीय सहायता में निवेश के लिए समूह/एकल उधारकर्ता सीमाओं में छूट के प्रावधान, इस प्रयोजन के लिए दीर्घावधि बाण्ड जारी करने हेतु बैंकों को अनुमति, बैंकों को अपनी बैंक दर जोखिम का सक्षम ढंग से प्रबंध करने के लिए ब्याज दर फ्युचर्स लागू करना, कंपनी बाण्डों में रिपो की अनुमति तथा अलग संस्थाओं के रूप में मूलभूत सुविधा गैर-बैंकिंग कंपनियों को लागू करना शामिल है।

इस अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार हैं :

  • निजी क्षेत्र को भारत में मूलभूत सुविधा के विकास को वित्तीय सहायता देने में सरकारी प्रयासों को पूरा करना होगा;

  • मूलभूत सुविधा सेवाओं को वाणिज्यिक सिद्धांतों पर परियोजनाओं को अर्थक्षम बनाने के लिए उपलब्ध कराना होगा और इस प्रकार समुचित उपयोगकर्ता प्रभारों को लागू करने के मामले पर गंभीर करना होगा;

  • बैंकों को मूलभूत सुविधा वित्तीय सहायता के कारण उत्पन्न आस्ति-देयता असंतुलनों का ट्रैक रखना होगा; वित्तीय परियोजनाओं के लिए मूल्यांकन और निगरानी व्यवस्था को कड़ा करने की ज़रुरत है;

  • मूलभूत सुविधा वित्तीय सहायता में डाकघर जमाराशियों और पेंशन निधियों के संसाधनों को माध्यम बनाने हेतु नवोन्मेषी साधनों का पता लगाना; और कई परियोजनाओं की सफलता के लिए मार्ग सुगम बनाने हेतु भूमि सुधार लागू करना;

  • यह अध्ययन मूलभूत सुविधा वित्तीय सहायता हेतु सार्वजनिक निजी सहभागिता (पीपीपी) प्रतिदर्श का समर्थन करता है तथा ऐसे प्रतिदर्श की सफलता के लिए कार्मिक क्षमता, प्रतिलाभों की पर्याप्तता, सक्षम बाज़ार व्यवस्था, सूचना तक पहुँच जैसे कुछ सुविधाप्रदाता कारकों की अपेक्षा होगी।

अजीत प्रसाद
प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/256

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