भारत में बैंको और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की अंतर सहबद्धता : मुद्दे और नीति प्रभाव: आरबीआइ वर्किंग पेपर श्रृंखला सं. 21 - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारत में बैंको और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की अंतर सहबद्धता : मुद्दे और नीति प्रभाव: आरबीआइ वर्किंग पेपर श्रृंखला सं. 21
2 जनवरी 2012 भारत में बैंको और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की अंतर सहबद्धता: भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर ए. करुणागरन की "भारत में बैंको और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की अंतर सहबद्धता: मुद्दे और नीति प्रभाव" शीर्षक आरबीआइ वर्किंग पेपर श्रृंखला सं. 21 जारी किया। हाल के वैश्विक वित्तीय संकट (2007-2009) ने स्पष्ट रूप से वित्तीय प्रणाली के भीतर उच्चतर वित्तीय अंतर सहबद्धता की गंभीरता को प्रदर्शित किया है। भारत में, खासकर नब्बे के दशक में गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के बीच की विभाजक रेखा को धीरे-धीरे धुँधला करना शुरु कर दिया था। एक अवधि के दौरान बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ दोनों भारत में व्यापक आधारित मजबूत वित्तीय प्रणाली के मुख्य तत्व बन गई हैं। तथापि, हाल के वैश्विक वित्तीय संकट के संदर्भ में बैंकिंग प्रणाली और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं के बीच संबंध ने समस्त वित्तीय प्रणाली को संवेदनशील बनाते हुए अत्यधिक अंतर-सांस्थिक एक्सपोज़र के रूप में गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं के साथ बैंकिंग प्रणाली की वित्तीय अंतर-सहबद्धता पर ध्यान केंद्रित करने वाली व्यापक चर्चा में डाल दिया है। इस पेपर में यह प्रकाशित है कि भारत में गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ अपने संसाधनों के लिए पूरी तरह बैंकिंग प्रणाली पर निर्भर हैं। चूँकि गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को आम जनता से जमा राशियाँ प्राप्त करने के लिए हतोत्साहित किया गया है, ये कंपनियाँ लगातार बैंकिंग प्रणाली से उधार लेते हुए आम जनता से जमाराशि की भरपाई कर रही हैं। अतः बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के बीच एक सुदृढ़ प्रण्लीगत वित्तीय अंतर-सहबद्धता बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा आम जनता से सीधे जमाराशियाँ प्राप्त करने के अलावा इसके लिए अधिक प्रणालीगत चिंताएँ हैं। निधियाँ प्राप्त करने में गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की बैंकों पर अत्यधिक निर्भरता का परिणाम अल्पकालिक स्रोतों से मध्यावधि से दीर्घावधि आस्तियों को निधियाँ प्रदान करने में हुआ है। अध्ययन यह प्रस्तावित करता है कि किसी सटीक नीति मिश्रण में बैंकिंग और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के अनुपूरक विकास को प्रोत्साहित करने हेतु एक संतुलित सेट के साथ अर्थव्यवस्था की ज़रूरत को वित्त प्रदान करने वाले माध्यमों विविधता की समुचित मात्रा को प्रोत्साहित किया जाना शामिल रहना चाहिए। प्रतिबंधित नीति दृष्टिकोण की अपेक्षा नियंत्रित दृष्टिकोण को देखते हुए गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ उन आर्थिक गतिविधियों को और अधिक सकारात्मक रूप में प्रोत्साहित कर सकेंगी जो बैंकिंग प्रणाली द्वारा नहीं की जा सकी हैं। उदाहरण के लिए गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ कंपनी ऋण बाजार से संसाधन प्राप्त कर सकती हैं और इसके लिए जैसाकि पेपर प्रस्तावित करता है एक मजबूत नीति सहायता की ज़रूरत होगी। बैंकिंग प्रणाली से उधार लेने के लिए जमाराशि स्वीकार नहीं करने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए एक अलग सीमा निर्धारित करने की संभावना भी दिखाई पड़ती है। यह नीति छोटी-छोटी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के बीच अधिक समेकन को प्रोत्साहित कर सकती है ताकि समस्त गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी क्षेत्र को बैंकिंग प्रणाली के अनुरूप समान नियंत्रण ढाँचे के अंतर्गत लाया जा सके। आगे जाकर `प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण जमाराशि स्वीकार नहीं करने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों' को पुनः पारिभाषित करना अपेक्षित है। थोक अल्पकालिक निधि सहायता पर अत्यधिक निर्भरता के बदले उच्चतर चलनिधि अपेक्षाएँ और अंतर-वित्तीय क्षेत्र तथा आंतर-वित्तीय क्षेत्र एक्सपोजरों के लिए उच्चतर पूँजी अपेक्षाएँ कुछ मुख्य विवेकपूर्ण अपेक्षाएँ हैं जिन पर विचार करने की ज़रूरत है। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/1054 |