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समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ : पहली तिमाही समीक्षा - 2007-08

30 जुलाई 2007

समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ : पहली तिमाही समीक्षा - 2007-08

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज 2007-08 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक वक्तव्य की पहली तिमाही समीक्षा के परिप्रेक्ष्य में "समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधयाँ : पहली तिमाही समीक्षा - 2007-08" दस्तावेज़ जारी किया।

वर्ष 2007-08 के दौरान अब तक की समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की मुख्य-मुख्य बातें निम्नानुसार हैं :

वास्तविक अर्थव्यवस्था

  • वर्ष 2007 मानसून (25 जुलाई तक) के दौरान दर्ज की गई संचयी वर्षा एक वर्ष पूर्व के सामान्य से नीचे 14 प्रतिशत की तुलना में सामान्य से 4 प्रतिशत अधिक रही। 20 जुलाई 2007 तक खरीफ फासलों के अंतर्गत सामान्य क्षेत्र के प्राय: 54 प्रतिशत हिस्सों में बुआई का कार्य किया गया। बुआई का कुल क्षेत्र वर्ष 2006 की उसी अवधि के कुल क्षेत्र से 1.7 प्रतिशत अधिक था।
  • औद्योगिक उत्पादन वर्ष-दर-वर्ष 11.7 प्रतिशत का विस्तार दर्ज करते हुए अप्रैल-मई 2007 के दौरान सुदृढ़ रहा। विनिर्माण क्षेत्र 12.7 प्रतिशत की वृद्धि के साथ औद्योगिक गतिविधि का मुख्य संचालक बना रहा।
  • मूलभूत सुविधा क्षेत्र ने मुख्यत: विद्युत तथा पेट्रोलियम शोधक उत्पादों में सुधार के कारण एक वर्ष पूर्व के 7.2 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-मई 2007 के दौरान 8.1 प्रतिशत की उच्चतर वृद्धि दर्ज की।
  • पर्यटकों के आगमन, रेलवे के राजस्व अर्जक माल-भाडा शुल्क, नए सेल फोन कनेक्शन, नागरिक उड्डयन द्वारा संचालित निर्यात माल, नागरिक उड्डयन द्वारा संचालित यात्रियों, सिमेंट और स्टील सामान्य रहे। दूसरी ओर, विगत वर्ष की तुलना में प्रमुख बंदरगाहों पर संचालित जहाज में लदे माल में तेजी आई।

राजकोषीय स्थिति

  • अप्रैल-मई 2007 के लिए केंद्र सरकार वित्त पर उपलब्ध सूचना में यह उल्लिखित है कि निरपेक्षत: सभी मुख्य घाटा संकेतक एक वर्ष पूर्व की अपेक्षा कम थे। बजट आकलनों के प्रतिशत के रूप में सकल राजकोषीय घाटा भी अप्रैल-मई 2006 की अपेक्षा कम रहा। अप्रैल-मई 2007 के दौरान केंद्र सरकार वित्त में सुधार उच्चतर कर राजस्व, उच्चतर गैर-ऋण पूँजी प्राप्तियों और न्यूनतम योजना व्यय के द्वारा किया जा सका।
  • वर्ष 2007-08 (26 जुलाई 2007 तक) के दौरान केंद्र के सकल और निवल बाजार उधार (दिनांकित प्रतिभूतियों और 364-दिन ट्रेजरी बिलों सहित) की राशि वर्ष के लिए अनुमानित उधार के क्रमश: 45.3 प्रतिशत और 42.0 प्रतिशत के हिसाब से क्रमश: 85,628 करोड़ और 46,074 करो रुपये थी। पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान सकल और निवल उधार की राशि वर्ष 2006-07 के लिए वास्तविक उधार का क्रमश: 39.5 प्रतिशत और 31.3 प्रतिशत थी।
  • वर्ष 2007-08 (26 जुलाई 2007 तक) के दौरान केंद्र को 72 दिन के अर्थोपाय अग्रिम का सहारा लेना पड़ा जबकि वर्ष 2006-07 की उसी अवधि में अर्थोपाय अग्रिम 33 दिन का था।
  • वर्ष 2007-08 (26 जुलाई 2007 तक) के दौरान चौदह राज्य सरकारों ने 8,542 करोड़ रुपये की राशि (वर्ष के लिए सकल आबंटन का 25.6 प्रतिशत) बाजार उधार के रूप में प्राप्त किया।
  • राज्यों द्वारा अर्थोपाय अग्रिम और ओवरड्राफ्ट का औसत उपयोग पिछले वर्ष की उसी अवधि के 258 करोड़ रुपये की तुलना में वर्ष 2007-08 के दौरान (20 जुलाई 2007 तक) 694 करोड़ रुपये था। अप्रैल-जून 2007 के दौरान ट्रेजरी बिलों में राज्यों के औसत निवेश की राशि पिछले वर्ष की उसी अवधि के दौरान 52,876 करोड़ रुपये की तुलना में 68,800 करोड़ रुपये थी।

मौद्रिक और चल-निधि स्थितियाँ

  • वर्ष-दर-वर्ष स्थूल मुद्रा (एम3) में वृद्धि 6 जुलाई 2007 को एक वर्ष पूर्व के 19.0 प्रतिशत (4,51,636 करोड़ रुपये) की तुलना में 21.6 प्रतिशत (6,09,610 करोड़ रुपये) थी।
  • बैंकों की सकल जमाराशियाँ वर्ष-दर-वर्ष बढ़कर एक वर्ष पूर्व के 19.6 प्रतिशत (3,90,409 करोड़ रुपए) की तुलना में ं 6 जुलाई 2007 को 22.8 प्रतिशत (5,42,766 करोड़ रुपए) हो गईं।
  • पिछले तीन वर्षों में सुदृढ़ गति के बाद बैंक ऋण की वृद्धि में सुधार हुआ। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंको (एससीबी) द्वारा खाद्येतर ऋण वर्ष-दर-वर्ष एक वर्ष पूर्व के 32.8 प्रतिशत (3,70,899 करोड़ रुपए) से सुधरकर 6 जुलाई 2007 तक 24.4 प्रतिशत (3,67,258 करोड़ रुपए) हो गया।
  • प्रारक्षित मुद्रा में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि 20 जुलाई 2007 तक 29.1 प्रतिशत (नकदी आरक्षित निधि अनुपात में प्रथम दौर की वृद्धि को 21.7 प्रतिशत समायोजित किया गया) हुई जो एक वर्ष पूर्व 17.2 प्रतिशत थी।
  • पूँजी प्रवाहों और सरकारों के नकदी शेषों में उतार-चढ़ाव से चल-निध स्थितियाँ प्रभावित होती रहीं। रिज़र्व बैंक ने बाजार स्थिरीकरण योजना के अंतर्गत प्रतिभूतियाँ जारी करने, चल-निधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतग्रत परिचालन और आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में वृद्धि की सहायता से बाजार चल-निध को अनुकूल बनाया।

मूल्य स्थिति

  • वर्ष 2007-08 के दौरान प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में हेड-लाइन तथा स्थायी मुद्रास्फीति दोनों में दृढ़ता बनी रही जो उच्च पण्य मूल्यों और ज़ोरदार मांग स्थितियों के सामूहिक प्रभाव को दर्शाते है। कई केंद्रीय बैंकों ने मार्च-जून 2007 के दौरान अपनी मौद्रिक नीति को और आगे कठोर कर दी।
  • कच्चे तेल, धातु और खाद्य तेल की अगुआयी से वर्ष 2007-08 की पहली तिमाही में वैश्विक पण्य मूल्यों में और आगे दृढ़ता आई। डब्ल्यूटीआइ कच्चे तेल के मूल्यों में मार्च 2007 में लगभग 60 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल से 19 जुलाई 2007 को 76 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि हुई। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा संकलित समग्र खाद्य मूल्य सूचकांक में पिछले वर्ष की 12 प्रतिशत वृद्धि के ऊपर जून 2007 (वर्ष-दर-वर्ष) में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई। खाद्य मूल्यों में निरंतर वृद्धि को दर्शाते हुए जून 2007 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का खाद्य मूल्य सचकांक वर्ष 1981 से अब तक के अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच गया।
  • भारत में, थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) पर आधारित मुद्रास्फीति अप्रैल 2007 की शुरुआत में आरंभ में 6.0 प्रतिशत से अधिक बढ़ी किंतु 14 जुलाई 2007 को 4.4 प्रतिशत तक आ गई। विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति एक वर्ष पहले के 3.9 प्रतिशत की तुलना में 14 जुलाई 2007 को 4.6 प्रतिशत रही।
  • उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में भी मार्च 2007 में 7.6 से 9.2 प्रतिशत से जून 2007 तक कुछ 6.1 से 7.5 प्रतिशत की कमी आई। हालांकि यह प्रमुख रूप से उच्चतर खाद्य मूल्यों के प्रभाव को दर्शाते हुए वृद्धि जारी रही।
  • वर्ष 2004 के मध्य से ही पूर्वकृत मौद्रिक उपाय तथा राजकोषीय और आपूर्ति के उपाय मुद्रास्फीति को कम रखने में सहायक हुए।

वित्तीय बाजार

  • भारतीय वित्तीय बाजार वर्ष 2007-08 की प्रथम तिमाही के अधिकतर भाग में सामान्यत: सुव्यवस्थित बने रहे। वित्तीय बाजारों में चलनिधि स्थिति के प्रमुख कारक पूँजी प्रवाह और सरकारों के नकदी शेष में उतार-चढ़ाव है जिसने ओवर-नाइट ब्याज दरों को अस्थिरता प्रदान की।
  • अप्रैल-जून 2007 के दौरान मांग मुद्रा दरें कम हुई और आसान चलनिध व्यवस्थाओं के चलते कई अवसरों पर प्रत्यावर्तनीय रिपो दर से कम रहीं। ओवर-नाइट मुद्रा बाजार के संपार्श्विकीयकृत खण्ड में भी ब्याज दरें सुगम रही और तिमाही के दौरान मांग दर से कम रहीं।
  • विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रुपया प्रथम तिमाही के दौरान सभी प्रमुख करेंसी (अमरीकी डॉलर, यूरो, पाऊंड स्टर्लिंग और जापानी येन) की तुलना में वृद्धि हुई।
  • सरकारी प्रतिभूति बाजार में प्रतिलाभ जो मध्य जून 2007 तक कड़े थे इसके बाद सुगम बने।
  • बैंक की जमाराशियाँ और उधार दरें प्रथम तिमाही के दौरान और अधिक बढ़ी। तथापि, जुलाई 2007 में जमाराशि की दरों में कुछ कमी आई।

बाह्य अर्थव्यवस्था

  • वाणिज्यिक व्यापार घाटा, भुगतान संतुलन आधार पर वर्ष 2005-06 में 51.8 बिलियन अमरीकी डॉलर (सकल देशी उत्पाद का 6.4 प्रतिशत) से वर्ष 2006-07 में 64.9 बिलियन अमरीकी डॉलर (सकल देशी उत्पाद का 7.1 प्रतिशत) की वृद्धि हुई। निवल अदृश्य मदों में वर्ष 2005-06 के दौरान सकल देशी उत्पाद के 5.3 प्रतिशत से वर्ष 2006-07 के दौरान सकल देशी उत्पाद के 6.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई और वाणिज्यिक व्यापार घाटे के एक बडें हिस्से को वित्तपोषित करना जारी रखा। अत: चालू खाता घाटा, सकल देशी उत्पाद के समानुपातिक के रूप में वर्ष 2006-07 के दौरान पूर्ववर्ती वर्ष के 1.1 प्रतिशत के स्तर पर बना रहा। निवल विप्रेषण, चालू खाता घाटा वर्ष 2006-07 (वर्ष 2005-06 में 4.1 प्रतिशत और वर्ष 2004-05 में 3.3 प्रतिशत) में सकल देशी उत्पाद के 4.0 प्रतिशत था।
  • निवल पूँजी अंतर्वाह वर्ष 2005-06 की तुलना में पर्याप्त रूप से अधिक रहे जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) और बाह्य वाणिज्यिक उधार के अंतर्गत अत्यधिक प्रवाह को दर्शाते है। पूँजी प्रवाह (निवल) (46.2 बिलियन अमरीकी डॉलर) चालू खाता घाटा (9.6 बिलियन अमरीकी डॉलर) से काफी कम रहने से समग्र भुगतान संतुलन ने वर्ष 2006-07 के दौरान 36.6 बिलियन अमरीकी डॉलर का अधिशेष दर्ज किया जो वर्ष 2005-06 के दौरान दर्ज किया गया 15.1 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक था।
  • वाणिज्यिक निर्यातों और आयातों ने वर्ष 2007-08 के दौरान अब तक वृद्धि प्रदर्शित की है।
  • पूँजी प्रवाह में विदेशी संस्थागत निवेशकों के अंतर्वाह में उछाल बना रहा। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने वर्ष 2006-07 की तदनुरूपी अवधि में 2.0 बिलियन अमरीकी डॉलर के बाह्य प्रवाह की तुलना में 8.4 बिलियन अमरीकी डॉलर के निवल अंतर्वाह दर्ज किया। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अंतर्वाह अप्रैल 2007 के दौरान (एक वर्ष पहले के 0.7 बिलियन अमरीकी डॉलर) 1.6 बिलियन अमरीकी डॉलर थे। अनिवासी जमाराशियों ने अप्रैल 2006 के दौरान 253 मिलियन अमरीकी डॉलर के निवल अंतर्वाह की तुलना में अप्रैल 2007 के दौरान 274 मिलियन अमरीकी डॉलर का निवल प्रवाह दर्ज किया।
  • मार्च 2007 के अंत के स्तर से 22.9 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि के साथ भारत की विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधि 20 जुलाई 2007 तक 222.0 बिलियन अमरीकी डॉलर थी।
  • वर्ष 2000-2006 की अवधि के दौरान आरक्षित निधि धारण करनेवाले प्रमुख देशों की तुलना यह दर्शाती है कि क्रमश: जपान और रूस में आरक्षित निधियों में वृद्धि के साथ चालू खाता अतिरिक्त राशि 179 प्रतिशत और 138 प्रतिशत थी जो चीन और कोरिया प्रत्येक के मामले में 56 प्रतिशत थी। भारत में उसी अवधि के दौरान इसके विपरीत विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में वृद्धि प्राय: समस्त रूप से पूँजी प्रवाहों के कारण थी। वर्ष 2000-2006 के दौरान कुल आरक्षित निधि में वृद्धि 143.8 बिलियन अमरीकी डॉलर तक हुई; उसी अवधि में निवल पूँजी अंतर्वाह 143.9 बिलयिन तक बढ़ा।

जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2007-2008/152

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