मैक्रोइकॉनॉमिक और मौद्रिक गतिविधियां पहली तिमाही समीक्षा 2005-06 - आरबीआई - Reserve Bank of India
मैक्रोइकॉनॉमिक और मौद्रिक गतिविधियां पहली तिमाही समीक्षा 2005-06
25 जुलाई 2005
मैक्रोइकॉनॉमिक और मौद्रिक गतिविधियां पहली तिमाही समीक्षा 2005-06
वर्ष 2005-06 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य में यह सूचित किया गया था कि मध्यावधि समीक्षा के अलावा, वक्तव्य के भाग घ् की पहली तिमाही की समीक्षा और तिसरी तिमाही की समीक्षा की जाएगी। तदनुसार, हम वार्षिक नीति वक्तव्य की पहली तिमाही समीक्षा की पफ्ष्ठभूमि के रूप में "मैक्रोइकॉनॉमिक और मौद्रिक गतिविधियां: पहली तिमाही समीक्षा 2005-06" आज जारी कर रहे हैं।
पहली तिमाही या क्यू1 (अप्रैल-जून) 2005-06 में मैक्रोइकॉनॉमिक और मौद्रिक गतिविधियों की मुख्य-मुख्य बातें इस तरह हैं :
घ् वास्तविक अर्थव्यवस्था
- पहली जून से 13 जुलाई 2005 के दौरान रिकाड़ की गयी संचयी वर्षा सामान्य से उपर एक प्रतिशत रही, जो एक वर्ष पहले सामान्य से 10 प्रतिशत नीचे थी।
- अप्रैल-मई 2005 में विनिर्माण क्षेत्र में शीघ्र वफ्द्धि के साथ औद्योगिक उत्पादन उत्साहजनक और व्यापक आधारवाला रहा।
- अग्रणी संकेतक, क्यू1, 2005-06 में संतुलित सेवा क्षेत्र कार्यनिष्पादन दर्शाते हैं।
- वफ्षि, उद्योग और सेवाओं में बढ़ गये कारोबारी विश्वास से सामान्य रूप से सकारात्मक गतिविधियों ने वर्ष 2005-06 के लिए वफ्द्धि आसारों के संबंध में आशावाद दिखाया।
घ्घ् राजकोषीय स्थिति
- अप्रैल-मई 2005-06 में केंद्र का राजस्व घाटा और प्राथमिक घाटा बजट अनुमानों के अनुपात में एक वर्ष पहले के उनके स्तरों से न्यूनतम रहा।
- वर्ष 2005-06 (अप्रैल-जून) की पहली तिमाही के दौरान केंद्र द्वारा जुटाये गये सकल और निवल बाज़ार उधार बजट अनुमानों के 29.7 प्रतिशत और 30.9 प्रतिशत रहे।
- राज्यों ने 10,245 करोड़ रुपये की राशि जुटायी (निरंतर बिक्री के माध्यम से 7,554 करोड़ रुपये और नीलामियों के माध्यम से 2,691 करोड़ रुपये)।
- राज्यों द्वारा अर्थोपाय अग्रिम और ओवरड्राफ्ट का साप्ताहिक औसत उपयोग एक वर्ष पहले से उल्लेखनीय रूप से न्यूनतम रहा।
घ्घ्घ् मौद्रिक और चलनिधि स्थितियां
- दिनांक 8 जुलाई 2005 तक 13.9 प्रतिशत मुद्रा आपूर्ति विस्तार, वार्षिक नीति वक्तव्य में निर्धारित निर्देशक ट्रैजेक्टरी (14.5 प्रतिशत वफ्द्धि) की संतोषजनक सीमा में रहा।
- बैंकों द्वारा चलनिधि समायोजन सुविधा स्थितियों का प्रबंध करने और ऋण की उच्चतर मांग के वित्तपोषण के लिए चलनिधि का आहरण किये जाने से 15 जुलाई 2005 तक आरक्षित मुद्रा 18.1 प्रतिशत बढ़ी।
घ्ङ मूल्य स्थिति
- वर्ष 2005-06 के क्यू1 में विश्वभर में मुद्रास्फीति स्थिर रही, जो उच्च और अस्थिर अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों से संचालित थी।
- अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादक कीमतों ने उपभोक्ता कीमतों को प्रेरित करना जारी रखा, जो मुद्रास्फीति की आपूर्ति पक्ष की विशेषता प्रतिबिंबित करती है।
- अंतर्राष्ट्रीय तेल कीमतें नयी उँचाइयों पर पहुंचीं, जिन्होंने 7 जुलाई 2005 को प्रति बैरल 62 अमेरिकी डॉलर की कीमत पार की।
- अप्रैल 2005 में भारत में मुद्रास्फीति स्थितियों पर आपूर्ति पक्ष के दबाव मई और जून में हलके रहे, जो पिछले वर्ष के उच्चतर मूल्यों के आधार प्रभाव, साथ ही मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को स्थिर बनाने के लिए उठाये गये विभिन्न मौद्रिक और राजकोषीय उपायों के कारण घटे।
- जून 2005 के दौरान बिजली, पेट्रोल और डिज़ेल के मूल्यों में वफ्द्धियों के बावजूद वर्ष-दर-वर्ष थोक मूल्य मुद्रास्फीति मार्च 2006 के अंत तक के 5.1 प्रतिशत से 9 जुलाई 2005 तक 4.1 प्रतिशत तक कम हुई।
ङ वित्तीय बाज़ार
- तिमाही की अधिकांश अवधि के दौरान अच्छी चलनिधि ने मुद्रा बाज़ार खंडों को प्रत्यावर्तनीय पुनर्खरीद दर से बांध रखा।
- विदेशी मुद्रा बाज़ार सुव्यवस्थित रहा और वायदा प्रीमिया, हाज़िर बाज़ार खंड में रुपये के उतार-चढ़ाव के आगे-पीछे तीव्रता से गिरा।
- सरकारी प्रतिभूति बाज़ार के प्रतिफल, अप्रैल 2005 के बाद मुद्रास्फीतिकारी दबावों की कमी के कारण धीमे पड़े।
- ऋण बाज़ार में वाणिज्यिक ऋण ऑफटेक मज़बूत और व्यापक आधार वाले होने के कारण मूल ब्याज दरें प्रेरित हुईं।
- ईक्विटी बाज़ार मज़बूतता से एकत्रित हो जाने के कारण उसने बीएसई सूचकांक को जुलाई 2005 में 7300 के स्तर से उपर की नयी ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
ङघ् बाह्य अर्थव्यवस्था
- वर्ष 2004-05 में भारत के भुगतान संतुलन ने तीन वर्ष के बाद संतुलित चालू खाता घाटा रिकाड़ किया। आयातों में भारी विस्तार, अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल मूल्यों के बढ़ने तथा भारी देशी मांग के कारण व्यापारिक निर्यातों में आधिक्य और अदृश्य अर्जन बढ़ गये।
- व्यापारिक निर्यात वफ्द्धि 19.5 प्रतिशत पर अप्रैल-जून 2005 के दौरान मज़बूत बनी रही।
- गैर-तेल आयातों ने 40.2 प्रतिशत की तीव्र वफ्द्धि रिकाड़ की, जो अर्थव्यवस्था में बढ़ती हुई निवेश मांग की द्योतक है।
- उच्च और अस्थिर अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों ने पेट्रोलियम तेल और चिकनाई के पदार्थ आयात बिल में बड़े पैमाने पर वफ्द्धि करा दी।
- व्यापार घाटा करीब-करीब दुगुना हुआ, अर्थात् अप्रैल-जून 2004 के दौरान 6.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अप्रैल-जून 2005 के दौरान वह 11.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्रवाहों ने विभिन्न प्रकारों के ऋण प्रवाहों को साथ-साथ ले लिया, जबकि संस्थागत संविभाग प्रवाह अन्य उभरते बाज़ारों की तरह अप्रैल-मई 2005 में उल्लेखनीय रूप से धीमे रहे।
- भारत की 15 जुलाई 2005 की 137.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधियां 14 महीनों की आयातों का वित्तपोषण करने के लिए पर्याप्त थीं।
जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2005-2006/113