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समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ : पहली तिमाही समीक्षा 2009-10

27 जुलाई 2009

समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ : पहली तिमाही समीक्षा 2009-10

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 28 जुलाई 2009 को घोषित की जानेवाली वर्ष 2009-10 के लिए मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा 2009-10 की पृष्ठभूमि को दर्शाने वाला "समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ 2009-10" दस्तावेज आज जारी किया।

समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की मुख्य-मुख्य बातें इस प्रकार हैं :

वैश्विक आर्थिक स्थितियाँ

  • वैश्विक आर्थिक वातावरण अनिश्चित बना रहा। यद्यपि आर्थिक गतिविधियों में कमी की दर तथा वित्तीय प्रणालियों पर दबावों का विस्तार वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही में कुछ कम हो गया। नए-नए तथा वैश्विक स्थितियों में सुधार में छिट-फुट संकेत किसी स्पष्ट प्रवृत्ति का प्रस्ताव नहीं करते हैं और परिणामत: वैश्विक सुधार के समय और गति पर अनिश्चितता बरकरार है।

  • वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही में पायी गई वैश्विक वित्तीय स्थितियों में सुधार के संकेत आवश्यक है लेकिन वे विशेषकर दबी हुई माँग स्थितियों की दृष्टि से एक सुदृढ़ वैश्विक सुधार को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के वर्तमान उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार वैश्विक अर्थव्यवस्था में वर्ष 2009 में 1.4 प्रतिशत की कमी और वर्ष 2010 में इसमें बढ़ोतरी होकर 2.5 प्रतिशत की कमी का अनुमान है। तथापि, वर्ष 2009 के लिए भारत और चीन का वृद्धि दृष्टिकोण अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा समीक्षा के बाद वृद्धिगत रहा है।

उत्पादन

  • साथ-साथ घटित वैश्विक मंदी से संक्रमण को दर्शाते हुए घरेलू वृद्धि आघात भारत में कम बने रहे जो वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही में वृद्धि की गिरावट से प्रत्यक्ष है। तथापि, वर्ष 2008-09 के लिए 6.7 प्रतिशत पर सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि (जीडीपी) अच्छी थी जैसाकि अधिकांश लोगों ने आशा की थी। यद्यपि, इसमें वर्ष 2003-04 से वर्ष 2007-08 के उच्चतर वृद्धि चरण के दौरान औसत 8.8 प्रतिशत की दर दर्ज किए जाने की तुलना में गिरावट देखी गई।

  • वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही में समग्र सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि उसी स्तर पर बनी रही जैसाकि इसके पूर्व की तिमाही में कृषि और सहबद्ध गतिविधियों में वृद्धि में मुख्यत: सुधार के कारण था तथापि, वर्ष की क्रमिक चार तिमाहियों के दौरान उद्योग और सेवाओं में निरंतर गिरावट का प्रदर्शन वैश्विक मंदी के साथ-साथ होने से संक्रमण को दर्शाते हुए दूसरी छमाही में गिरावट की दर बढ़ने के साथ जारी रहा।

कृषि उद्योग और सेवाएं

  • चतुर्थ अग्रिम अनुमान ने कुल खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2008-09 के दौरान 235.9 प्रतिशत मिलियन टन के उल्लेखनीय स्तर पर रखा है।

  • जून 2009 के अंत तक मानसून की धीमी प्रगति में खरीद की बुआई को प्रभावित किया है जिसका प्रभाव कृषि उत्पादन पर पड़ेगा तथापि अब तक जुलाई में वर्षा में सुधार हुआ है जिससे दालों, तिलहनों और मोटे खाद्यानों के लिए पिछले वर्ष के स्तर के निकट 17 जुलाई 2009 तक बुआई की स्थिति बेहतर बनी है। यद्यपि, धान की बुआई अनिवार्यत: पिछले वर्ष के स्तर से नीचे है। वर्ष 2008-09 के दौरान न्यूनतम खरीप उत्पादन की भरपाई रबी उत्पादन द्वारा की गई और इसके परिणामस्वरूप समग्र कृषि उत्पादन ने वर्ष की चौथी तिमाही में सुधार को दर्शाया।

  • प्रमुख मूलभूत सुविधा क्षेत्र में गत वर्ष की तदनुरूपी तिमाही के 3.5 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही के दौरान 4.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो विद्युत, सिमेंट और कोयला में वृद्धि के कारण थी। सिमेंट क्षेत्र में निर्माण गतिविधि के सुधार का उल्लेख करते हुए वृद्धि दर्ज हुई।

  • औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक (आइआइपी) जिसने वर्ष 2008-09 की अंतिम तिमाही में वृद्धि में 0.1 प्रतिशत की उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की थी उसने अप्रैल-मई 2009 के दौरान 1.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाई यद्यपि, उसने अप्रेल-मई 2008 के दौरान दर्ज 5.3 प्रतिशत वृद्धि की तुलना में गिरावट दर्शाई। तथापि, 2 अंक वाले 17 विनिर्माण उद्योग समूहों में से 10 समूहों ने पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में 11 उद्योग समूहों द्वारा दर्ज सकारात्मक वृद्धि की तुलना में अप्रैल-मई 2009-10 के दौरान सकारात्मक वृद्धि दर्ज की।

  • रेल भाड़ा और नए सेल फोन कनेक्शन जैसे सेवा क्षेत्र गतिविधि के अग्रणी संकेतकों ने सकारात्मक संकेत दर्शाया। पर्यटकों के आगमन में भी जून 2009 में सुधार हुआ, वाणिज्यिक वाहकों के उत्पादन,प्रमुख बंदरगाहों पर व्यवस्थित माल तथा घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय टर्मिनलों पर व्यवस्थित यात्रियों ने वर्ष 2009-10 के पहले दो महीनों के दौरान गिरावट दर्शाई।

सकल माँग

  • सकल माँग में कमज़ोरी वर्ष 2008-09 में वृद्धि के लिए प्रमुख बाध्यता के रूप में उभरी। निजी उपभोग व्यय में उल्लेखनीय गिरावट के साथ-साथ निवेश माँग में सुधार के लिए व्यापक राजकोषीय नीति वृद्धि में मंदी को रोकने के लिए अपेक्षित थी। अत: सरकारी उपभोग व्यय वर्ष 2008-09 की तीसरी और चौथी तिमाही में तेज़ी से बढ़ा और पिछले पाँच वर्षों में औसत 5.9 प्रतिशत के औसत योगदान के बदले वास्तवितक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि (बाज़ार मूल्य पर) ने 32.5 प्रतिशत का योगदान किया।

  • वृद्धि में मंदी की राजाकषीय प्रतिक्रिया को दर्शाते हुए केंद्र सरकार के मुख्य घाटा संकेतक अर्थात् वर्ष 2008-09 के लिए संशोधित अनुमान में राजस्व घाटा और सकल राजकोषीय घाटा उल्लेखनीय रूप से बज़ट स्तरों तथा पूर्ववर्ती वर्षों के स्तरों की अपेक्षा उच्चतर रहे।

  • कंपनी कार्यनिष्पादन धीमा रहा तथा माँग में सुधार का प्रभाव वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही में विक्रय वृद्धि में आवश्यक गिरावट में दिखाई पड़ा। कंपनी लाभप्रदता ने भी वर्ष की लगातार तीन पिछली तिमाहियों में नकारात्मक वृद्धि दर्शाई।

  • निरंतर वैश्विक आर्थिक मंदी तथा इससे सहबद्ध रुकी हुई घरेलू माँग की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत वर्ष 2009-10 के लिए केंद्रीय बज़ट ने माँग को आवश्यक प्रोत्साहन उपलब्ध कराने तथा उसके द्वारा एक तेज़ सुधार की सहायता की दृष्टि से वर्ष 2009-10 में सकल घरेलू उत्पाद के 6.8 प्रतिशत पर राजकोषीय घाटे को रखा है। वृद्धि में मंदी के प्रति एक व्यापक राजकोषीय प्रतिक्रिया के होते हुए भी यथाशीघ्र उच्चतर वृद्धि पथ पर लौटने की दृष्टि से राजकोषीय समेकन के लिए चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है।

बाह्य अर्थव्यवस्था

  • वैश्विक मंदी के बने रहने के कारण वैश्विक माँग में कमी को दर्शाते हुए निर्यातों में अक्तूबर 2008 तक लगातार आठ महीनों में गिरावट दर्शाई है। आयात वृद्धि में भी अक्तूबर-नवंबर 2008 के दौरान तथा उसके बाद नकारात्मक रूप में बदलने के पूर्व गिरावट देखी गई। व्यापारिक माल व्यापार घाटे में भी वर्ष 2009-10 के दौरान गिरावट देखी गई जो गतवर्ष की तदनुरूपी अवधि में निर्यात की अपेक्षा आयातों में तीव्र गिरावट को दर्शाते हुए बनी हुई थी।

  • तेल की कीमतों में सुधार से उत्पन्न न्यूनतम व्यापार घाटे में सात लगातार तिमाहियों घाटा दर्ज करने के बाद वर्ष 2008-09 की चौथी तिमाही के दौरान एक सुविधायुक्त अधिशेष के रूप में चालू खाते में सुधार के रूप में प्रतिफलित हुआ।

  • संपूर्ण वर्ष के लिए निवल पूँजी प्रवाह वर्ष 2007-08 में 108.0 बिलियन अमरीकी डॉलर से वर्ष 2008-09 में 9.1 बिलियन अमरीकी डॉलर तक गिरा जबकि चालू खाता घाटा उसी अवधि के दौरान सकल घरेलू उत्पाद के 1.5 से बढ़कर 2.6 प्रतिशत हो गया। भारत के भुगतान संतुलन पर बाह्य आघात के गंभीर प्रभाव को कोई असाधारण उपाय किए बिना केवल 20.1 बिलियन (मूल्यांकन का निवल) अमरीकी डॉलर की प्रारक्षित निधि की हानि के साथ व्यवस्थित किया गया।

  • पूँजी खाते के कतिपय संकेतकों पर अग्रणी सूचना वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही की क्रमिक दो तिमाहियों में निवल बहिर्वाह के बाद वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही के दौरान भारत में पूँजी प्रवाहों में सुधार का सुझाव देती है। तथापि, निर्यात और आयात में कमी बनी हुई है। भारत की विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधि वर्ष 2009 के मार्च के अंत में 252 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर 17 जुलाई 2009 तक 266 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई। ऋण निरंतरता संकेतक मार्च 2009 के अंत में सुविधाजनक स्तर पर बने रहे।

मौद्रिक परिस्थितियाँ

  • मौद्रिक नीति का आयोजन वास्तविक, वित्तीय और विश्वसनीय चैनलों के माध्यम से बाह्य आघातों और उससे सबद्ध प्रभावों की मात्रा और गति से सीमित रहा। विभिन्न नीति प्रयास यह रहे कि पर्याप्त रुपया चलनिधि उपलब्ध कराई जाए, यह सुनिश्चित किया जाए कि अमरीकी डॉलर चलनिधि सुगम बनी रहे और उत्पादक क्षेत्रों को ऋण प्रवाह बनाए रखने के लिए अनुरूप बाज़ार वातावरण बनाए रखा जाए।

  • सितंबर 2008 के मध्य से नीति रिपो दर को 425 आधार अंकों से घटाया गया, प्रत्यावर्तनीय रिपो दर को 275 आधार अंकों से कम किया गया और अर्थव्यवस्था में वास्तविक/सक्षम चलनिधि डालना/उसकी उपलब्धता लगभग 5,61,700 करोड़ रुपए (सांविधिक चलनिधि अनुपात कटौती के अंतर्गत 40,000 करोड़ रुपए को छोड़कर) है। रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए इन उपायों ने यह सुनिश्चित किया कि बैंकिंग प्रणाली में पर्याप्त चलनिधि उपलब्ध रहे। यह रिज़र्व बैंक द्वारा चलनिधि समायोजन सुविधा के माध्यम से प्रणाली में से व्यापक और नियमित रूप से अधिशेष को अवशोषित करने से परिलक्षित होता है।

  • व्यापक मुद्रा वृद्धि (वर्ष-दर-वर्ष) 20.0 प्रतिशत (3 जुलाई 2009 तक) पर उच्च बनी रही। ऐसा घटकों की ओर से जमाराशियों (21.0 प्रतिशत) में तेज़ वृद्धि और संसाधनों की ओर से बैंकिंग प्रणाली से सरकार को ऋण (48.0 प्रतिशत) में उल्लेखनीय वृद्धि के कारण हुआ। सरकार उधार कार्यक्रम के बाज़ार अवशोषण में उच्च जमाराशियों की वृद्धि के चलते निजी क्षेत्र से ऋण की माँग कम होने से सुविधा रही।

वित्तीय बाज़ार

  • वर्ष 2009-10 की प्रथम तिमाही में भारतीय वित्तीय बाज़ार सामान्य रूप से कार्य करते रहे और कम उतार-चढ़ाव और अधिक मात्रा के साथ स्थिरता दर्शाई । माँग दरें प्रत्यावर्तनीय रिपो दर के आस-पास बनी रहीं। वाणिज्यिक पेपर बाज़ार ने बेहतर क्रियाकलाप दर्शाया। सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में सरकार के व्यापक उधार कार्यक्रम को प्रतिबिंबित करते हुए प्राथमिक भाग में मात्रा में वृद्धि दिखाई दी। प्रतिलाभ वक्र सीधा हो गया है खासकर अल्प छोर की ओर जो पर्याप्त चलनिधि और सरकार के व्यापक उधार कार्यक्रम की कार्रवाई को दर्शाता है।

  • वर्ष 2009-10 के दौरान केंद्र सरकार की दिनांकित प्रतिभूतियों के सकल और निवल निर्गम का बज़ट वर्ष 2008-09 के ऊपर क्रमश: 65.2 प्रतिशत और 83.4 प्रतिशत उच्चतर रखा गया। वर्ष 2009-10 (22 जुलाई 2009 तक) के दौरान केंद्र सरकार ने निवल उधार कार्यक्रम (364 दिवसीय खज़ाना बिलों और बाज़ार स्थिरीकरण योजना खाता के पुन: श्जरू होने  के माध्यम से प्राप्त की गई राशि सहित) के बज़ट का अधिकतर भाग (45.4 प्रतिशत) पूरा कर लिया था। प्रणाली में पर्याप्त चलनिधि की उपलब्धता ने उधार कार्यक्रम को सुविधा उपलब्ध कराई।

  • ऋण बाज़ार जब विश्व के बाज़ार जब अत्यधिक निक्रीयता का अनुभव कर रहे थे तब भी सामान्य रूप से कार्य कर रही थी में मौद्रिक नीति दरों का बेहतर अंतरण दिखाई दिया। ऐसा जमाराशियों और उधार दरों दोनों का वर्ष 2008-09 की चौथी तिमाही में सामान्य हो जाने और वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही में और अधिक सामान्य हो जाने के कारण हुआ। खाद्येतर ऋण में वृद्धि जिसने अक्तूबर 2008 से कमी दर्शाई थी उसमें भी जून 2009 से बदलाव आया जो ऋण के लिए माँग में सुधार होने के संकेत दर्शाता है।

मुद्रास्फीति परिस्थिति

  • थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्पीति में तेज़ कमी आयी जो अगस्त 2008 को उच्चतम स्तर पर रही थी और जून 2009 में नकारात्मक हो गई और तब से नकारात्मक मुद्रास्फीति जारी है (11 जुलाई 2009 से - 1.2 प्रतिशत)। वर्ष-दर-वर्ष मुद्रास्फीति में कमी उच्च आधार के सांख्यिकीय घटकों को दर्शाता है जो वर्ष 2008-09 की पहली छमाही के दौरान पण्य मूल्यों में तेज़ वृद्धि के कारण उभरे थे।

  • नकारात्मक थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति को शामिल न करते हुए बिना खाद्य वस्तु मुद्रास्फीति (अर्थात् प्राथमिक तथा विनिर्मित दोनों) 8.9 प्रतिशत (11 जुलाई 2009 को) पर उच्च बनी रही। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) के अनुसार मुद्रास्फीति भी उच्चतर स्तर पर(मई/जून 2009 में विभिन्न उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के लिए 8.6 प्रतिशत से 11.5 प्रतिशत के स्तर में) बनी रही ।

विकास और मुद्रास्फीति दृष्टिकोण

  • अप्रैल-मई 2009 में रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित औद्योगिक दृष्टिकोण सव&ज्i्ा;क्षण में कारोबार संवेदना ने एक संपूर्ण बदलाव दर्शाया है। निजी क्षेत्र में विनिर्माण कंपनियों के लिए "अप्रैल-जून 2009 के लिए मूल्यांकन" और "जुलाई-सितंबर 2009 के लिए प्रत्याशाएं" पर आधारित कारोबार प्रत्याशाओं के सूचकांक ने पूर्ववर्ती तिमाही में क्रमश: 20.3 और 14.0 प्रतिशत का तेज़ सुधार दर्शाया है जब इन सूचकांकों ने सव&ज्i्ा;क्षण के शुरू होने तक अपने न्यूनतम स्तर को दर्ज किया था। जून 2009 में रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित व्यावसायिक पूर्वानुमानकर्ताओं के सव&ज्i्ा;क्षण के अंतिम दौर के परिणाम यह दर्शाते हैं कि 6.5 प्रतिशत पर वर्ष 2009-10 के लिए समग्र (मीडियम) वृद्धि दर के संकेत जो मार्च 2009 में आयोजित पूर्व सव&ज्i्ा;क्षण के निष्कर्षों के माध्यम से दर्ज की गई 5.7 प्रतिशत से उच्चतर है। यह सव&ज्i्ा;क्षण वर्ष 2009-10 की चौथी तिमाही में औसत मुद्रास्फीति लगभग 5.4 प्रतिशत पर रहने का संकेत देते हैं।

  • अब तक के अग्रणी संकेतों से उभरने वाले संकेतों के संदर्भ में वर्ष 2009-10 के लिए वृद्धि दृष्टिकोण का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है जबकि वे संकेतक जैसेकि प्रमुख मूलभूत सुविधा क्षेत्र में उच्चतर वृद्धि, आइआइपी में सकारात्मक वृद्धि, खाद्येतर ऋण के लिए माँग की धीमी गति से पुनरूजीवन, कंपनी क्षेत्र में बिक्री और लाभप्रदता दोनों के आधार पर कार्यनिष्पादन में सुधार, पूंजी बाज़ार में जोखिम उठाने की धीमी गति से वापसी, अधिक समारात्मक कारोबार प्रत्याशाएं और रिज़र्व बैंक के सर्वेंक्षण में दर्शाए गए पूर्वानुमान को मंदी से उबरने के संकेत माने जा सकते हैं। अन्य घटक ऐसे हैं जो विकास के दृष्टिकोण को मंद कर सकते हैं जैसेकि मानसून के आने में विलंब, वैश्विक मंदी के जारी रहने के कारण निर्यातों में कमी, सेवा माँग में वर्ष 2008-09 की अंतिम तिमाही में विनिर्माण में नकारात्मक वृद्धि, पूंजीगत माल में नकारात्मक वृद्धि, वाणिज्यिक वाहनों के उत्पादन में कमी और आयात वृद्धि में बढ़ती हुई मंदी माँग परिस्थिति में कमी का सुझाव देते हैं।

  • मुद्रास्फीति की ओर पिछले वर्ष के घटते आधार प्रभाव,पण्य मूल्यों में वृद्धि,मानसून में विलंब जिससे खाद्य मूल्य में बढोतरी,विस्तारित राजकोषीय नीति और समायोजित मौद्रिक नीति,उपभोक्ता मूल्यसूचकांक मुद्रास्फीति सुदृढ़ बने रहने से मुद्रास्फीति प्रत्याशाएं थोक मूल्य सूचकांक के अनुरूप कम न होने के कारण वर्ष के अंत तक मुद्रास्फीति के सुदृढ़ होने के संकेत हैं। मुद्रास्फीतिकारी दबाब सामान्य बने रहेंगे यदि दीर्घकालिक मंदी के चलते पण्य मूल्यों में कमी आएगी,मानसून में विलंब के बावजूद कृषि वृद्धि अप्रभावित रहेगी और समायोजित मौद्रिक नीति रूझान का सामान्य स्तर पुन: लौट आएगा।

  • भारत के ढाँचागत विकास की गति उच्च घरेलू बचत दर, सुदृढ़ वित्तीय प्रणाली और विकास समर्थित समष्टि आर्थिक नीति वातावरण के चलते मज़बूत बनी रहेगी। तथापि, माँग में घरेलू कमी और वैश्विक परिस्थितियों में निरंतर अनिश्चितता तेज़ी से ठीक होने में प्रमुख रुकावट है। भारत के लिए शुरुआत के संकेत यह सुझाव देते है कि पुनरूजीवन की गति को उपभोक्ता और निवेशकों के विश्वास को बढ़ावा देने के लिए और अधिक मज़बूत होने की आवश्यकता है ताकि वे आने वाले समय में विकास की गति को बढ़ाने में एक सकारात्मक फीडबैक दे सकें।

अजीत प्रसाद
प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/149

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