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23 अप्रैल 2007 को प्रकाशित
वर्ष 2006-07 में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ
23 अप्रैल 2007
वर्ष 2006-07 में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ
भारतीय रिज़र्व बैंक ने 24 अप्रैल 2007 को घोषित किए जानेवाले वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की पृष्ठभूमि को प्रस्तुत करने के लिए आज "वर्ष 2006-07 में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ" दस्तावेज़ जारी किया।
वर्ष 2006-07 के दौरान समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधयों की मुख्य-मुख्य बातें इस प्रकार हैं:
वास्तविक अर्थव्यवस्था
- भारतीय अर्थव्यवस्था ने क्रमिक रूप से लगातार चौर्थ वर्ष 2006-07 के दौरान सुदृढ़ विकास को परिलक्षित किया है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी अग्रिम अनुमान के अनुसार, वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि वर्ष 2005-06 के 9.0 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2006-07 में 9.02 प्रतिशत होने का अनुमान है। सेवाओं और विनिर्माण क्षेत्रों में जारी गतिशीलता के कारण वर्ष 2006-07 के दौरान विकास में बढ़ोतरी का अनुमान है जिसमें दोनों में दुहरे अंकों के उल्लेखनीय विकास अनुमानित हैं। तथापि, कृषि और सहबद्ध गतिविधियों में विकास वर्ष 2005-06 के 6.0 प्रतिशत की तुलना में कम होकर वर्ष 2006-07 में 2.7 प्रतिशत हो गया।
- तृतीय अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2006-07 के दौरान खाद्यान्नों का अत्पादन 211.8 मिलियन टन होने की संभावना है जो पिछले वर्ष की तुलना में 1.5 प्रतिशत अधिक है।
- औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि में तेजी अप्रैल-फरवरी 2006-07 के दौरान जारी रही जो एक वर्ष पहले के 8.1 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर 11.1 प्रतिशत हो गई।
- सेवा क्षेत्र, एक वर्ष पूर्व के 9.8 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-दिसंबर 2006 के दौरान 10.7 प्रतिशत की दृद्धि दर के साथ आर्थिक गतिविधियों का मुख्य संचालक बना रहा।
- भारतीय रिज़र्व बैंक प्रतिदर्श गैर-सरकारी गैर-वित्तीय कंपनियों के कर के बाद लाभ में वृद्धि अप्रैल-दिसंबर 2006 में बढ़कर 48.7 प्रतिशत हो गई जो वर्ष 2005-06 की उसी अवधि के दौरान दर्ज 36.8 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में सर्वाधिक रही। विक्रय में कर के बाद लाभ का अनुपात बढ़कर दिसंबर 2006 को समाप्त तिमाही के दौरान 11.0 प्रतिशत रहा जो एक वर्ष पूर्व 8.6 प्रतिशत था।
राजकोषीय स्थिति
- वर्ष 2006-07 के लिए संशोधित अनुमानों के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद के संबंध में केंद्रीय सरकार के मुख्य घाटा संकेतक यथा; राजस्व घाटे, सकल राजकोषीय घाटे जो अपने बज़ट स्तर से नीचे रखे गए थे, क्रमश: 2.0 प्रतिशत, 3.7 प्रतिशत और 0.1 प्रतिशत रहे।
- भारतीय रिज़र्व बैंक के अभिलेखों के अनुसार, केंद्रीय सरकार द्वारा दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से वास्तविक सकल बाज़ार उधार वर्ष 2006-07 के दौरान 1,46,000 करोड़ रुपये था। वर्ष 200-07 के दौरान जारी दिनांकित प्रतिभूतियों का भारित औसत प्रतिफल पिछले वर्ष के दौरान 7.34 प्रतिशत से बढ़कर 7.89 प्रतिशत हो गया। वर्ष के दौरान जारी दिनांकित प्रतिभूतियों की भारित औसत परिपक्वता वर्ष 2005-06 के दौरान 16.90 वर्ष से नीचे गिरकर 14.72 वर्ष हो गई।
- वर्ष 2006-07 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद में राज्य सरकारों के राजस्व घाटे और सकल राकोषीय घाटे का बज़ट क्रमश: 0.1 प्रतिशत और 2.7 प्रतिशत प्रस्तुत किया गया जो पिछले वर्ष की तुलना में क्रमश: 0.4 प्रतिशत बिन्दुओं और 0.5 प्रतिशत बिन्दुओं की कमी को दर्शाता है।
- वर्ष 2006-07 के दौरान राज्यों ने नीलामी के माध्यम से 7.65 - 8.68 प्रतिशत तक की निर्धारित दर श्रेणी में 20,825 करोड़ रुपये की राशि बाज़ार ऋण के रूप में प्राप्त की।
- राज्यों की चलनिधि स्थिति वर्ष 2006-07 के दौरान अनुकूल रही। यह राज्यों के 14-दिवसीय ट्रेज़री बिलों में साप्ताहिक औसत निवेश में प्रतिबिंबित था जो गत वर्ष के 35,378 करोड़ रुपये से पुन: बढ़कर वर्ष 2006-07 के दौरान 43,075 करोड़ रुपये हो गया। राज्यों द्वारा अर्थोपाय अग्रिम (डब्लयूएमए) और ओवरड्राफ्ट का साप्ताहिक औसत उपयोग वर्ष 2006-07 में 234 करोड़ रुपये रहा जो वर्ष 2005-06 के 482 करोड़ रुपये से कम था।
- वर्ष 2007-08 का केंद्रीय बज़ट में यह प्रस्तावित है कि सकल घरेलू उत्पाद के बज़ट के प्रतिशत के रूप में गत वर्ष की तुलना में वर्ष 2007-08 के दौरान मुख्य घाटा संकेतकों को कम रखते हुए राजकोषीय समेकन जारी रखा जाए। वर्ष 2007-08 में सकल घरेलू उत्पाद से संबंधित राजस्व घाटे में 0.5 प्रतिशत बिन्दुओं की कमी करते हुए बज़ट प्रावधान किया गया है जो एफआरबीएम नियमावली 2004 के अंतर्गत न्यूनतम निर्धारित प्रारंभिक सीमा है। अत: एफआरबीएम लक्ष्य को प्राप्त करने के अंतिम वर्ष, वर्ष 2008-09 में राजस्व घाटे में 1.5 प्रतिशत बिन्दुओं के मौलिक संशोधन की आवश्यकता होगी।
मौद्रिक और चलनिधि स्थितियाँ
- व्यापक मुद्रा में वृद्धि मार्च 2007 के अंत में (वर्ष-दर-वर्ष) बढ़कर 20.8 प्रतिशत (5,67,372 करोड़ रुपये) हो गई जो एक वर्ष पूर्व 17.0 प्रतिशत (3,96,861 करोड़ रुपये) थी।
- अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का खाद्येतर ऋण वर्ष-दर-वर्ष बढ़कर 30 मार्च 2007 तक 28.0 प्रतिशत (4,10,285 करोड़ रुपये) हो गया जो एक वर्ष पूर्व 31.8 प्रतिशत (3,54,193 करोड़ रुपये) था।
- जमाराशियों में तीव्र वृद्धि देखी गई जिससे ऋण के लिए लगातार भारी माँग को वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी जा सकी। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों(एससीबी) की जमाराशियाँ एक वर्ष पूर्व के 18.1 प्रतिशत (3,23,913 करोड़ रुपये) की तुलना में 30 मार्च 2007 तक (वर्ष-दर-वर्ष) बढ़कर 23.0 प्रतिशत (4,85,210 करोड़ रुपये) हो गईं।
- आरक्षित मुद्रा एक वर्ष पूर्व के 17.2 प्रतिशत (83,922 करोड़ रुपये) की तुलना में (वर्ष-दर-वर्ष) बढ़कर 31 मार्च 2007 तक 23.7 प्रतिशत (1,35,892 करोड़ रुपये) हो गई। आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में बढ़ोत्तरी के प्रथम दौर के प्रभावों के समायोजन के साथ आरक्षित मुद्रा 31 मार्च 2007 तक (वर्ष-दर-वर्ष) बढ़कर 18.9 प्रतिशत हो गई।
- रिज़र्व बैंक ने चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएफ) के अंतर्गत रिपो और प्रत्यावर्तनीय रिपो, बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) के अंतर्गत प्रतिभूतियों के निर्गम और आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) की सहायता से बाज़ार चलनिधि को अनुकूल बनाए रखना जारी रखा। चलनिधि प्रबंधन का कार्य सरकारों के नकदी के शेषों में परिवर्तन और पूंजी प्रवाहों के कारण बाज़ार चलनिधि में भारी उतार-चढ़ाव के रहते हुए वर्ष 2006-07 के दौरान जटिल बना रहा।
मूल्य स्थिति
- हेडलाईन और मुख्य मुद्रास्फीति, वस्तुओं की भारी कीमतों और मजबूत मांग स्थितियों को दर्शाते हुए कई अर्थव्यवस्थाओं में वर्ष 2006-07 की पहली छमाही के दौरान बढ़े हुए स्तरों पर कायम रही। यद्यपि, हेडलाईन मुद्रास्फीति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में राहत और अनुकूल आधार प्रभावों के अनुरूप अगस्त 2006 के स्तर से कुछ सुधरी लेकिन कई अर्थव्यवस्थाओं में यह मुद्रास्फीति लक्ष्यों/अनुकूल क्षेत्रों से ऊपर रही। कई केंद्रीय बैंकों ने विशेष रूप से जारी मज़बूत मांग के समक्ष दूसरे दौर के प्रभावों को कम करने के लिए पूर्वकृत मौद्रिक सुदृढ़ता को जारी रखा। ऊभरती हुई बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंकों ने विशेषकर भारी बाह्य प्रवाहों से उत्पन्न अधिक चलनिधि संबंधी चिंता को दूर करने हेतु नकदी आरक्षित निधि अपेक्षाओं को भी बढ़ाया।
- भारत में प्राथमिक खाद्य वस्तुओं और विनिर्मित उत्पादों की कीमतों ने वर्ष 2006-07 में डेडलाईन मुद्रास्फीति पर तेजी का दबाव बनाया। थोक मूल्य मुद्रास्फीति सामान्यत: नवंबर 2006 के मध्य तक रिज़र्व बैंक के सांकेतिक पूर्वानुमानों के 5.0 - 5.5 प्रतिशत के भीतर रही और उसके बाद इस सीमा के ऊपरी स्तर से अधिक हो गई। वर्ष-दर-वर्ष मुद्रास्फीति (वाइ-ओ-वाइ) 31 मार्च 2007 तक एक वर्ष पूर्व के 4.0 प्रतिशत की तुलना में 5.7 प्रतिशत थी।
- उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति के उपाय मुख्यत: उच्चतर खाद्य मूल्यों के प्रभाव को दर्शाते हुए पूरे वर्ष में थोक मूल्य सुककांक मुद्रास्फीति से ऊपर रहे।
- रिज़र्व बैंक ने लचीले ढंग से स्फीतिकारक अपेक्षाओं को स्थिर करने के लिए अपने निपटान के स्तर पर विभिन्न लिखतों का उपयोग करते हुए मौद्रिक सहायता को धीरे-धीरे वापस लेने की नीति को जारी रखा। सरकार ने भी मुद्रास्फीति को रोक रखने के लिए राजकोषीय तथा आपूर्ति से संबंधित उपाय किए।
वित्तीय बाज़ार
- भारतीय वित्तीय बाज़ार वर्ष 2006-07 की अधिकांश अवधि में सामान्यत: व्यवस्थित रहे। तथापि, वर्ष के दौरान पूंजी प्रवाहों तथा सरकारों के नकदी शेषों में भारी और अचानक बदलाव के कारण चलनिधि स्थितियों में गतिविधियों को दर्शाते हुए वर्ष के दौरान विभिन्न अंतरालों पर उतार-चढ़ाव की कुछ स्थितियाँ रहीं।
- माँग मुद्रा दर, वर्ष के दौरान नीति दरों में गतिविधियों के अरुकूल तेज हुई। माँग दर, अप्रैल-नवंबर 2006 के दौरान अधिकांशत: रिज़र्व बैंक के रिपो और प्रत्यावर्तनीय रिपो द्वारा निर्धारित सीमा के भीतर रही। बाद के महिनों में भारी उतार-चढ़ाव के कुछ अल्पकालिक परिदृश्य (दिसंबर 2006 कां अंतिम सप्ताह और मार्च 2007 का अंतिम पखवाड़ा) उपस्थित हुए जब माँग दर महत्त्वपूर्ण ढंग से रिपो दर से अधिक हो गई।
- विदेशी मुद्रा बाज़ार में भारतीय रुपये ने जुलाई 2006 के मध्य से सुदृढता की ओर बढ़ने के साथ दुहरी गतिविधियाँ प्रदर्शित की।
- वर्ष के दौरान सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में प्रतिफल कम हुए और प्रतिफल रेखा सीधी दिखाई दी।
- बैंक की जमाराशि और उधार दरें विशेषत: वर्ष की दूसरी छमाही में बढ़ीं।
बाह्य अर्थव्यवस्था
- वाणिज्यिक आसूचना और सांख्यिकी आंकड़े महानिदेशालय (डीजीसीआइएण्डएस) के अनुसार व्यापारिक माल के निर्यात में अप्रैल-फरवरी 2006-07 के दौरान 19.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई जो वर्ष 2005-06 की उसी अवधि में 26.3 प्रतिशत थी।
- गैर तेल आयातों में अप्रैल-फरवरी 2006-07 के दौरान 25.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो वर्ष 2005-06 की उसी अवधि में 26.4 प्रतिशत थी। तेल निर्यात में वृद्धि मात्रा में अंशत:वृद्धि को दर्शाते हुए उच्चत्तर रही।
- निवल अदृश्य अतिरिक्त राशि सेवाओं और परेषणों के निर्यात में जारी वृद्धि से लाभान्वित होकर वर्ष 2006-07 की पहली तीन तिमाहियों के दौरान (एक वर्ष पूर्व 28.1 बिलियन अमरीकी डॉलर से) बढ़कर 40.5 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई।
- निवल अदृश्य अतिरिक्त राशि ने व्यापारिक माल कारोबार खाते में घाटे के अधिकतर अंश को वित्तीय सहायता प्रदान की। चालू खाता घाटा अप्रैल-दिसंबर 2005 (11.9 बिलियन अमरीकी डॉलर) की तुलना में अप्रैल-दिसंबर 2006 के दौरान सीमांत रूप से कम रहते हुए 11.8 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा।
- पूंजी प्रवाह, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) प्रवाहों से प्रभावित होकर अनिवार्यत: उच्चत्तर रहे। विदेश में भारतीय कंपनियों द्वारा अधिग्रहण के सहयोग से जावक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ गए। पूंजी प्रवाह (निवल) अप्रैल-दिसंबर 2005 के 13.8 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर अप्रैल-दिसंबर 2006 के दौरान 28.0 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया।
- आरक्षित विदेशी मुद्रा वर्ष 2006-07 के दौरान 199.2 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर 47.6 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई। 13 अप्रैल 2007 तक भारत की आरक्षित विदेशी मुद्रा 203.1 बिलियन अमरीकी डॉलर थी।
अल्पना किल्लावाल
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2006-2007/1450
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