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समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां मध्यावधि समीक्षा - 2005-06

24 अक्तूबर 2005

समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां मध्यावधि समीक्षा - 2005-06

रिज़र्व बैंक ने आज वार्षिक नीतिगत वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा का परिप्रेक्ष्य प्रदान करने वाला "समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : मध्यावधि समीक्षा-2005-06" दस्तावेज़ जारी किया।

2005-06 के दौरान अब तक की समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की मुख्य-मुख्य बातें निम्नानुसार हैं:

I. वास्तविक अर्थव्यवस्था

  • भारतीय अर्थव्यवस्था ने 2005-06 की पहली तिमाही के दौरान जोरदार निष्पादन दर्ज किया। केंद्रीय सांख्यिव ीय संगठन के अनुसार 2005-06 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में वास्तविक सकल देशी उत्पाद (सदेउ) में वास्तविक वफ्द्धि पिछले वर्ष की तदनुरूप अवधि के 7.6 प्रतिशत से बढ़कर 8.1 प्रतिशत हो गयी।
  • दक्षिणी-पश्चिमी मानसून (1 जून से 30 सितम्बर 2005) के दौरान कुल वर्षा पिछले वर्ष दर्ज की गयी सामान्य से 13 प्रतिशत कम की तुलना में इस वर्ष सामान्य से एक प्रतिशत कम थी।
  • औद्योगिक गतिविधि ने 2005-06 के पहले पांच महीनों के दौरान ज्यादा जोर पकड़ा, हालांकि जुलाई-अगस्त 2005 के दौरान इस तेजी में कुछ गिरावट रही। अप्रैल-अगस्त 2005 के दौरान औद्योगिक उत्पादन में 8.8 प्रतिशत की वफ्द्धि हुई और इसमें विनिर्माण क्षेत्र सबसे आगे था।
  • सेवा क्षेत्र के संकेतकों के प्रमुख संकेतकों के संबंध में प्राप्त अग्रणी सूचना 2005-06 की दूसरी तिमाही में सतत उछाल दर्शाती है।
  • दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के फिर से रास्ते पर आ जाने, औद्योगिक गतिविधि में तेजी, सेवाओं में उछाल और सकारात्मक कारोबारी विश्वास और प्रत्याशाओं ने 2005-06 के लिए वफ्द्धि की संभावनाएं बढ़ा दी हैं।

II. राजकोषीय स्थिति

  • 2005-06 (अप्रैल-अगस्त) के पहले पांच महीनों के लिए उपलब्ध सूचना दर्शाती है कि केंद्रीय सरकार की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ है जो भारी कर वसूली और योजनेतर व्यय पर नियंत्रण के माध्यम से व्यय प्रबंध द्वारा हासिल हुआ है।
  • 2005-06 के दौरान अब तक केंद्र द्वारा जुटाये गये सकल और निवल बाजार उधार क्रमश: बज़ट अनुमानों के 60.1 प्रतिशत और 50.0 प्रतिशत रहे हैं।
  • राज्यों ने 2005-06 के दौरान अब तक 14265 करोड़ रुपये की राशि जुटायी है जो 2005-06 के लिए उनके सकल आबंटन का 63.6 प्रतिशत है।
  • राज्यों द्वारा अर्थोपाय अग्रिम और ओवरड्राफ्ट का साप्ताहिक औसत उपभोग एक वर्ष पहले की तुलना में महत्त्वपूर्ण रूप से कम था।

III. मौद्रिक और चलनिधि स्थितियां

  • वाणिज्यिक क्षेत्र से ऋण की मांग में सतत जोर के बावजॅूद वर्ष 2005-06 के दौरान अब तक मौद्रिक स्थितियां सुगम रही हैं। बैंक सरकारी प्रतिभूतियों में अपने वफ्द्धिशील निवेश में कटौती करके वाणिज्यिक ऋण हेतु बढ़ती मांग का वित्तपोषण करने में सक्षम रहे।
  • वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में निर्दिष्ट किये गये मुद्रा आपूर्ति के सूचक पथ (ट्रेजेक्ट्री) (14.5 प्रतिशत वफ्द्धि) की तुलना में 30 सितम्बर 2005 तक 16.6 प्रतिशत तक का विस्तार हुआ है।
  • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के खाद्येतर ऋण ने वर्ष-दर-वर्ष आधार पर एक वर्ष पहले के 24.9 प्रतिशत के ऊपर रह कर 30 सितम्बर 2005 को 31.5 प्रतिशत की वफ्द्धि दर्ज की।
  • प्रारक्षित मुद्रा में वफ्द्धि 14 अक्तूबर 2005 को 17.9 प्रतिशत थी जोकि एक वर्ष पहले (18.0 प्रतिशत) की वफ्द्धि के लगभग बराबर है।

IV. मूल्य स्थिति

  • मुद्रा स्फीति का दबाव 2005-06 की पहली तिमाही में अनेक अर्थव्यवस्थाओं में बना रहा जो अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के मूल्य जोकि 30 अगस्त 2005 को 70.8 अमरीकी डालर प्रति बैरल की नयी उंचाईयों पर पहुंच गये, में वफ्द्धि के प्रभावों को प्रतिबिंबित करता है। मुद्रा स्फीति में वफ्द्धि की प्रत्याशाओं का मुा िहाल ही के सप्ताहों में फिर से वैश्विक रूप से पुर्नजीवित हो गया है।
  • भारत में वर्ष दर-वर्ष मुद्रा स्फीति मार्च 2005 के अंत के 5.1 प्रतिशत से गिरकर 27 अगस्त 2005 को 3.0 प्रतिशत हो गयी है। अब यह 8 अक्तूबर 2005 से बढ़कर 4.6 प्रतिशत हो गयी है।
  • देशी मुद्रा स्फीति पर आयातित मूल्यों के दबाओं का असर घटाने और मुद्रा स्फीति की प्रत्याशाओं को आधारभूत प्रभावों और मानसून के फिर से पटरी पर आ जाने के साथ वर्ष 2004 के मध्य से स्थिरता लाने के लिए उठाये गये राजकोषीय और मौद्रिक उपायों ने पिछले वर्ष के इसके 8.7 प्रतिशत के उच्च स्तर से सुर्खियों में रही मुद्रा स्फीति को घटाने में मदद की।
  • तथापि, तेल मूल्य वफ्द्धि के स्थायी घटक के रूप में समझे जाने वाले महत्त्वपूर्ण भाग को आगे पास करने से पहले दो कारकों पर विचार करना जरूरी है; पहला, तेल मूल्य वफ्द्धि को सापेक्ष कीमतों में स्थायी रूप से जोड़ने के बजाय इसे आघात के तौर पर मानने के प्रश्न पर विचार करना और दूसरा मुद्रास्फीति पर द्वितीय चरण के प्रभावों की अपरिहार्यता को भी ध्यान में रखना जरूरी है।

V. वित्तीय बाजार

  • चलनिधि स्थितियों ने वर्ष के दौरान अब तक विभिन्न मुद्रा बाजार खण्डों में ब्याज दरों को सामान्यत: रिवर्स रेपो के आसपास रखा है।
  • विदेशी मुद्रा बाजार कमोबेश सुव्यवस्थित रहा। वायदा प्रीमिया का अमरीकी ब्याज दरों में उछाल के अनुसरण में कम होते जा रहे ब्याज दर विभेदक के साथ घटना जारी रहा।
  • सरकारी प्रतिभूति बाजार में मई 2005 से प्रतिफल अधिकांश रूप से देशी चलनिधि स्थितियों से प्रभावित अंतर-वर्ष गतिविधियों के साथ अपनी सीमा से बंधे रहे।
  • ऋण बाजार में वाणिज्यिक ऋण उठाव में लगातार मजबूती और व्यापक-आधार वाला बना रहने के कारण मुख्य ब्याज दरों में अंतर मामूली रह गया।

VI. बाह्य अर्थव्यवस्था

  • अप्रैल-सितम्बर 2005 के दौरान व्यापारिक निर्यात वफ्द्धि 20.5 प्रतिशत रही, जो भारत सरकार द्वारा राजकोषीय वर्ष के लिए निर्धारित 16 प्रतिशत के वार्षिक लक्ष्य से उच्चतर रही।
  • उछाल भरी अर्थव्यवस्था के वातावरण में तेल और तेल से इतर आयातों के कारण, आयातों ने अपनी उच्च वफ्द्धि की गति बरक़रार रखी। अप्रैल-सितम्बर 2005 में पेट्रोलियम, तेल और लुब्रीकेंट के आयात में वफ्द्धि (42.9 प्रतिशत) अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में तीव्र वफ्द्धि के कारण रही। गैर-तेल आयातों ने औद्योगिक गतिविधि में तेजी के साथ सामंजस्य रखते हुए उच्च वफ्द्धि (28.8 प्रतिशत) बरक़रार रखी।
  • वाणिज्यिक आसूचना और अंक संकलन महानिदेशालय (डीजीसीआइ एंड एस) पर आधारित व्यापार घाटा अप्रैल-सितम्बर 2005 के दौरान 71 प्रतिशत बढ़कर 20.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
  • व्यापारिक घाटा व्यापक होने के कारण वर्ष 2005-06 की पहली तिमाही के दौरान भुगतान संतुलन गतिविधियां चालू खाता शेष में तीव्र पलट (टर्नअराउंड) दर्शाती है।
  • फिर भी, पूंजी प्रवाहों की मजबूत स्थिति - जिसमें विदेशी निवेश प्रवाह, प्रत्यक्ष एवं निवेश दोनों ही सबसे आगे थे - तथा चालू खाता घाटा से अधिक थे, के साथ भुगतान संतुलन की स्थिति सुगम रही तथा समग्र शेष राशि में एक संतुलित वफ्द्धि दर्ज की गई।
  • जून 2005 को समाप्त तिमाही के दौरान बाह्य ऋण ने साधारण गिरावट दर्ज की।
  • विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के चालू राजकोषीय वर्ष में 1.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर बढ़कर 14 अक्तूबर 2005 को 143.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।

 

 

अल्पना किल्लावाला

मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2005-2006/498

 

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