समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : मध्यावधि समीक्षा - 2006-07 - आरबीआई - Reserve Bank of India
81681400
30 अक्तूबर 2006 को प्रकाशित
समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : मध्यावधि समीक्षा - 2006-07
30 अक्तूबर 2006
समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : मध्यावधि समीक्षा - 2006-07
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज 31 अक्तूबर 2006 को घोषित की जानेवाली 2006-07 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा के परिप्रेक्ष्य में "समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : मध्यावधि समीक्षा - 2006-07" दस्तावेज जारी किया।
वर्ष 2006-07 के दौरान अब तक की समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की मुख्य-मुख्य बातें निम्नानुसार हैं:
वास्तविक अर्थव्यवस्था
- भारतीय अर्थव्यवस्था ने वर्ष 2006-07 की पहली तिमाही के दौरान निरंतर जोरदार वृद्धि दर्ज की। केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) के अनुसार वास्तविक सकल देशी उत्पाद में वृद्धि वर्ष 2005-06 की तदनुरूपी अवधि में 8.5 प्रतिशत की तुलना में जोरदार विनिर्माण और सेवा क्षेत्र गतिविधियों के योगदान से वर्ष 2006-07 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में 8.9 प्रतिशत रही।
- औद्योगिक उत्पाद में, अपने विस्तार के पाँचवे वर्ष में, वर्ष 2006-07 के प्रथम पांच महीनों के दौरान उछाल रहा है। अप्रैल-अगस्त 2006 के दौरान औद्योगिक उत्पाद में वृद्धि वर्ष 2005 की तत्संबंधित अवधि में 8.7 प्रतिशत की तुलना में 10.6 प्रतिशत दर्ज की गयी जोकि वर्ष 1995-96 से अप्रैल-अगस्त की अवधि में दर्ज की गयी अधिकतम वृद्धि है। विनिर्माण क्षेत्र 11.8 प्रतिशत की वृद्धि के साथ, जोकि वर्ष 1996-97 से अब तक की अधिकतम वृद्धि है, लगातार औद्योगिक गतिविधि का मुख्य संचालक बना रहा।
- मूलभूत सुविधा क्षेत्र में अप्रैल-अगस्त 2006 के दौरान (पूर्ववर्ती वर्ष की तुलनात्मक अवधि में 6.1 प्रतिशत की तुलना में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि) कच्चे पेट्रोलियम और पेट्रोलियम रिफाइनरी उत्पादों में बेहतर कार्य-निष्पादन के चलते कुछ सुधार दिखाई दिया।
- सेवा क्षेत्र अपनी द्विअंकीय वृद्धि (अप्रैल-जून 2005 में 10.1 प्रतिशत के उपर अप्रैल-जून 2006 में 10.5 प्रतिशत) के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था का अग्रणी क्षेत्र बना रहा।
- हालांकि कुछ सर्वेक्षण कारोबारी विश्वास और प्रत्याशाओं में कुछ कमी दर्शाते है, विनिर्माण और सेवा क्षेत्र गतिविधियों में उछाल तथा उसके साथ ही देशी स्टॉक बाज़ारों की स्थिति में सुधार तथा सकारात्मक निवेश परिस्थितियां यह बताती है कि 2006-07 में भारतीय अर्थव्यवस्था में हाल ही की वृद्धि की गति बनी रहने की संभावना है जैसा कि विभिन्न एजेंसियों द्वारा भी अनुमान लगाया गया है।
राजकोषीय स्थिति
- वर्ष 2006-07 (अप्रैल-अगस्त) के प्रथम पांच महीनों के लिए केंद्र सरकार वित्त पर जानकारी यह दर्शाती है कि सभी मुख्य घाटा संकेतक (बजट अनुमानों के अनुपात के रूप में) अपनी पूर्ववर्ति वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान से उंचे स्तर पर रहे। जबकि कर-राजस्व में लगातार उछाल बना रहा सकल व्यय पर्याप्त रूप से अधिक रहा। कर-राजस्व में वृद्धि मुख्यत: वैयक्तिक आयकर, कोर्पोरेशन कर और सीमा शुल्क के अंतर्गत अधिक उगाही के कारण रही। सकल व्यय में वृद्धि केवल राजस्व व्यय में हुई तेज बढ़ोतरी के कारण रही जबकि पूंजी व्यय में कमी दर्शायी गयी।
- वर्ष 2006-07 के दौरान (23 अक्तूबर 2006 तक) केंद्र द्वारा जुटाए गये सकल और निवल बाज़ार उधार (दिनांकित प्रतिभूतियों और 364-दिवसीय खज़ाना बिलों सहित) बजट अनुमानों के 64.1 प्रतिशत और 58.0 प्रतिशत रहे जबकि ये एक वर्ष पहले क्रमश: 61.4 प्रतिशत और 51.7 प्रतिशत थे।
- वर्ष 2006-07 के दौरान अब तक (23 अक्तूबर 2006 तक) राज्यों ने बाज़ार से 8595 करोड़ रुपये (अथवा सकल आबंटन का 36.1 प्रतिशत) जुटाए हैं।
मौद्रिक और चलनिधि स्थितियां
- मौद्रिक और चलनिधि स्थितियां 2006-07 के दौरान अब तक सुगम बनी रहीं।
- जमाराशियों की वृद्धि में जोरदार बढ़त ने बैंक ऋण में निरंतर वृद्धि को बनाए रखा। खाद्येतर ऋण में वृद्धि वर्ष दर वर्ष आधार पर 30 प्रतिशत से उपर बनी रही।
- स्थूल मुद्रा में वृद्धि एक वर्ष पहले के 16.8 प्रतिशत की तुलना में 13 अक्तूबर 2006 को वर्ष दर वर्ष आधार पर 19.0 प्रतिशत रही।
- बैंकों ने वर्ष 2005-06 की दूसरी छमाही में जब उन्होंने अपने गिल्ट निवेशों का समापन किया था, उसकी तुलना में वर्ष 2006-07 की पहली छमाही में सरकारी प्रतिभूतियों में अपने निवेशों में वृद्धि दर्ज की।
- रिज़र्व बैंक ने चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएफ) के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो परिचालनों और बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) के अंतर्गत प्रतिभूतियों के निर्गम के माध्यम से चलनिधि का अवशोषण जारी रखा।
- प्रारक्षित मुद्रा में वृद्धि एक वर्ष पहले के 14.0 प्रतिशत की तुलना में 20 अक्तूबर 2006 को वर्ष दर वर्ष आधार पर 20.4 प्रतिशत रही।
मूल्य स्थिति
- कच्चे तेल के काफी भारी अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों की परिप्रेक्ष्य में प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं में अगस्त 2006 तक हेडलाइन मुद्रास्फीति अपने उँचे स्तर पर बनी रही। तेल मूल्यों में कमी के कारण सितंबर 2006 के दौरान मुद्रास्फीति कुछ कम रही; तथापि, मूल मुद्रास्फीति स्थायी रही। कई केंद्रीय बैंकों ने ऊंचे तेल मूल्यों, खासकर जोरदार मांग के कारण उसके प्रभाव के दूसरे दौर से बचने के लिए पूर्वक्रय मौद्रिक कठोरता जारी रखी। अगस्त 2006 में, दि यूरोपियन सेंट्रल बैंक (इसीबी), दि बैंक ऑफ इंग्लैण्ड, दि रिज़र्व बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया, दि बैंक ऑफ कोरिया और दि साउथ ऑफ्रिकन रिज़र्व बैंक ने अपनी नीति दरें बढ़ायी। दि यूरोपियन सेंट्रल बैंक और दि साउथ ऑफ्रिकन रिज़र्व बैंक ने अक्तूबर 2006 में पुन: अपनी नीति दरें बढ़ायी। तथापि, दि यूएस फेड ने जून 2006 के अंत से अपनी दरें अपरिवर्तित रखी।
- भारत में, हेडलाइन मुद्रास्फीति में वर्ष 2006-07 के दौरान अब तक काफी हद तक स्थिरता बनी रही। प्राथमिक खाद्य वस्तुओं के मूल्य वर्ष 2006-07 के दौरान अब तक मुद्रास्फीति के प्रमुख कारक के रूप में उभरे है। पूर्वक्रय मौद्रिक और राजकोषीय उपायों ने स्फीति कारक प्रत्याशाओं को कम रखने में सहायक रहे जबकि स्फीतिकारक दबाव के प्रमुख कारण बने रहे।
- थोक मूल्य स्फीति मार्च 2006 के अंत में 4.1 प्रतिशत की तुलना में 14 अक्तूबर 2006 को 5.3 प्रतिशत थी।
- उपभोग मूल्य स्फीति नवंबर 2005 से थोक मूल्य स्फीति से उपर बनी रही यह उपभोग मूल्य स्फीति में खाद्य मूल्यों में वृद्धि के उच्चतर स्तर तथा खाद्य वस्तुओं के उच्चतर भार को दर्शाते है। उपभोग मूल्य स्फीति के विभिन्न उपाय सितंबर 2006 में 6.6 - 7.3 प्रतिशत की सीमा में रखे गये।
वित्तीय बाजार
- मांग मुद्रा दरें दूसरी तिमाही के दौरान सितंबर 2006 के अंतिम पखवाड़े को छोड़कर सामान्यत: प्रत्यावर्तनीय रिपो दर के समीप रहीं। मांग दारों में सितंबर 2006 की दूसरी छमाही से अग्रिम कर बाह्य प्रवाहों और त्यौहार के मौसम में मुद्रा की मांग के बीच उच्च ऋण मांग के चलते चलनिधि दबावों के फलस्वरूप वृद्धि दर्शायी गयी।
- विदेशी मुद्रा बाज़ार में भारतीय रुपया ने द्वि-मार्गीय चाल दर्शायी।
- सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में प्रतिफल में अमरिकी प्रतिफल के प्रवाह और कच्चे तेल मूल्यों में भारी गिरावट के कारण मध्य जुलाई 2006 से कमी आयी।
- ऋण की मजबूत मांग के चलते तिमाही के दौरान जमा और उधार दरों में मामूली वृद्धि हुई।
बाह्य अर्थव्यवस्था
- भारत के भुगतान संतुलन की स्थिति वर्ष 2006-07 के दौरान अब तक निरंतर सामान्य बनी रही।
- व्यापारिक माल के निर्यातों ने जोरदार वृद्धि दर्ज की हालांकि यह पिछले वर्ष से कम रही।
- तेल से इतर वस्तुओं के आयातों की वृद्धि में आंशिक रूप से स्वर्ण और चांदी के आयातो में कमी के कारण तेज मंदी रही। पूंजीगत माल के आयातों के उच्चे स्तर की कुछ मंदी के बावजूद निवेश मांग के परिप्रेक्ष्य में वृद्धि दर्ज की। अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल मूल्यों में और अधिक तेजी के मद्देनज़र तेल आयात अधिक बने रहे।
- अदृश्य लेखे के अधिशेष में साफ्टवेयर और अन्य कारोबारी सेवाओं के निर्यात तथा निजी विप्रेषणों और व्यापार घाटे की दो तीहाई के वित्तपोषण के फलस्वरूप 2006-07 की पहली तिमाही में उछाल जारी रहा।
- चालू खाता घाटे में उच्चतर व्यापार घाटा को दर्शाते हुए पिछले एक वर्ष की तुलना में वर्ष 2006-07 की पहली तिमाही के दौरान विस्तार हुआ।
- उच्चतर चालू खाता घाटे को आसानी से पूंजी प्रवाह द्वारा वित्तपोषित किया गया जो वर्ष 2006-07 के दौरान अब तक अधिक बना रहा।
- भारत के विदेशी मुद्रा भंडार 20 अक्तूबर 2006 को 166.2 बिलियन अमरिकी डॉलर थी जो मार्च 2006 के अंत के स्तर से 14.5 बिलियन अमरिकी डॉलर की वृद्धि दर्शाती है।
अल्पना किल्लावाला
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2006-07/584
प्ले हो रहा है
सुनें
क्या यह पेज उपयोगी था?