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समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : मध्यावधि समीक्षा 2007-08

29 अक्तूबर 2007

समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : मध्यावधि समीक्षा 2007-08

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 30 अक्तूबर 2007 को घोषित की जानेवाली वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा की पृष्ठभूमि में आज "समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : मध्यावधि समीक्षा 2007-08" दस्तावेज़ जारी किया।

वर्ष 2007-08 के दौरान समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की मुख्य-मुख्य बातें इस प्रकार हैं :

वास्तविक अर्थव्यवस्था

  • विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में जारी कार्यनिष्पादन की सहायता से भारतीय अर्थव्यवस्था में वर्ष 2007-08 की पहली तिमाही के दौरान मजबूत विकास की गति कायम रही। केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) द्वारा अगस्त 2007 में जारी किए गए आकलन के अनुसार वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि 2007-08 की पहली तिमाही के दौरान 9.3 प्रतिशत थी जो वर्ष 2006-07 की उसी अवधि के दौरान 9.6 प्रतिशत थी।
  • दक्षिण पश्चिमी मानसून 2007 (जून से सितंबर) के दौरान संचयी वर्षा सामान्य से 5 प्रतिशत अधिक थी जो गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि में सामान्य से एक प्रतिशत कम थी। वर्ष 2007-08 के दौरान (12 अक्तूबर 2007 को) खरीफ फसल का विस्तार क्षेत्र बढ़कर रिपोर्ट की गई सामान्य बुआई क्षेत्र का 104.7 प्रतिशत था जो गत वर्ष की तुलना में 3.1 प्रतिशत अधिक था।
  • अप्रैल-अगस्त 2007 के दौरान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक बढ़कर 9.8 प्रतिशत हो गया जिसने गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 11.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की थी। विनिर्माण क्षेत्र ने अप्रैल-अगस्त 2007 के दौरान 10.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जो अप्रैल-अगस्त 2006 के दौरान सर्वाधिक 12.2 प्रतिशत था।
  • मूलभूत सुविधा क्षेत्र ने अप्रैल-अगस्त 2007 के दौरान 6.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जो छह में से पांच मूलभूत सुविधा क्षेत्रों में ह्रास दर्ज करने के साथ एक वर्ष पूर्व 8.3 प्रतिशत था। केवल विद्युत क्षेत्र ऐसा था जिसने पिछले एक वर्ष की तुलना में उच्चतर वृद्धि दर्ज की।
  • सेवा क्षेत्र ने अप्रैल-जून 2007 में दुहरे अंक में उल्लेखनीय वृद्धि (10.6 प्रतिशत) दर्ज करना जारी रखा। अप्रैल-अगस्त 2007 के लिए सेवा क्षेत्र गतिविधि के अग्रणी संकेतक दर्शाते हैं कि प्रमुख बंदरगाहों पर व्यवस्थित नौभार और नागरिक उड्डयन द्वारा व्यवस्थित आयात नौभार में मजबूत वृद्धि हुई। वाणिज्यिक वाहन उत्पादन, नए सेल फोन कनेक्शन्स, नागरिक उड्डयन द्वारा देखरेख किए जानेवाले यात्रियों और स्टील में वृद्धि दरों में वर्ष 2007-08 (अप्रैल-अगस्त) में सुधार हुआ, यद्यपि वह उच्च आधार स्तर पर था।

राजकोषीय स्थिति

  • वर्ष 2007-08 (अप्रैल-अगस्त) के लिए केंद्र सरकार वित्त पर उपलब्ध सूचना से यह संकेत मिलता है कि सकल राजकोषीय घाटा (बजट अनुमानों के समानुपात में) एक वर्ष पूर्व की तुलना में उच्चतर था। राजस्व घाटा (भारतीय स्टेट बैंक में रिज़र्व बैंक के स्टेक की बिक्री पर लाभ को समायोजित करते हुए) संपूर्ण वर्ष के बज़ट अनुमानों का 122.9 प्रतिशत था। कर राजस्व अप्रैल-अगस्त 2006 की तुलना में अधिक हो कर 22.0 प्रतिशत तक बढ़ते हुए उछाल पर रहा। गैर कर राजस्व (भारतीय स्टेट बैंक में रिज़र्व बैंक के स्टेक की बिक्री पर लाभ का निवल) ने उसी अवधि के दौरान 21.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। सकल व्यय में (भारतीय स्टेट बैंक में रिज़र्व बैंक के स्टेक के अधिग्रहण लागत को समायोजित करते हुए) मुख्यत: राजस्व व्यय और योजना पूंजी व्यय में तीव्र वृद्धि के कारण बढ़ोतरी हुई।
  • केंद्र सरकार के सकल और निवल बाज़ार उधार (364-दिवसीय खज़ाना बिलों सहित) वर्ष 2007-08 (22 अक्तूबर 2007 तक) के लिए अनुमानित उधारों का 66.7 प्रतिशत और 68.7 प्रतिशत रहते हुए क्रमश: 1,26,036 करोड़ और 75,363 करोड़ रुपए थे।
  • वर्ष 2007-08 (22 अक्तूबर 2007 तक) के दौरान राज्यों ने 20,362 करोड़ रुपये (सकल आबंटन का 50.1 प्रतिशत) राशि के बाज़ार ऋण नीलामियों के माध्यम से प्राप्त किए।

मूल्य स्थिति

  • हेडलाईन मुद्रास्फीति पिछली तिमाही की तुलना में सितंबर 2007 को समाप्त तिमाही के दौरान सामान्य रूप से प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ गई। कई केंद्रीय बैंकों ने मुख्य मुद्रास्फीति द्वारा उत्पन्न व्याप्त मुद्रास्फीतिकारी दबावों विषेशत: मांग, व्यापक चलनिधि और तेल तथा अन्य वस्तुओं की कीमतों में विगत और वर्तमान वृद्धि से संभावित प्रभाव-अंतरण की पृष्ठभूमि के विपरीत वर्ष 2007-08 की दूसरी तिमाही के दौरान मौद्रिक नीति को और कड़ा किया।
  • खाद्य और कच्चे तेल की कीमतों के कारण वर्ष 2007-08 की दूसरी तिमाही के दौरान वस्तुओं की वैश्विक कीमतें मजबूत बनी रहीं यद्यपि धातुओं की कीमतों में तिमाही के दौरान कुछ सुधार हुआ। अंतराष्ट्रीय कच्चे तेल (डब्लूटीआइ) की कीमतें सितंबर 2007 के मध्य तक प्रति बैरल 80 अमरीकी डॉलर से अधिक हो गईं और 18 अक्तूबर 2007 को अंशत: पश्चिमी एशिया में बढ़े हुए भौगोलिक तनावों और अमरीकी डॉलर के कमज़ोर होने के कारण ऐतिहासिक उचांई पर पहुंचकर प्रति बैरल 89.5 अमरीकी डॉलर हो गईं। गेंहू और तिलहन/खाद्य तेलों के कारण खाद्य कीमतें वैश्विक उत्पादन में कमी को दर्शाते हुए, भंडार में कमी और गैर-खाद्य उपयोगों की बढ़ती हुई मांग मे बढ़ोत्तरी के कारण और बढ़ गईं।
  • भारत में थोक मूल्य सूचकांक (डब्लूपीआई) आधारित मुद्रास्फीति जून 2007 के अंत में 4.4 प्रतिशत से कम होकर 13 अक्तूबर 2007 तक 3.1 प्रतिशत हो गई जो अंशत: आधारगत प्रभावों और इंधन की कीमतों के नकारात्मक सहयोग के कारण हुई।
  • तथापि, उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति वर्ष 2007-08 की दूसरी तिमाही के दौरान मजबूत बनी रही और मुख्यत: उच्चत्तर खाद्य मूल्यों के प्रभाव को दर्शाते हुए थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति से ऊपर बनी रही। उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति के विभिन्न उपाय अगस्त/सितंबर 2007 के दौरान 5.7 - 7.9 प्रतिशत की श्रेणी में रखे गए जो जून 2007 में 5.7 - 7.8 प्रतिशत (और मार्च 2007 में 6.7 - 9.5 प्रतिशत) की श्रेणी में थे।
  • इंघन समूह मुद्रास्फीति 9 जून 2007 को समाप्त सप्ताह की शुरुआत में नकारात्मक हो गई और 13 अक्तूबर 2007 को नवंबर 2006 और फरवरी 2007 में पेट्रौल, डीज़ल और अन्य इंधन उत्पादों की घरेलू कीमतों में कमी को दर्शाते हुए एक वर्ष पूर्व के 5.0 प्रतिशत से कम होकर उसी स्थिति में (-1.6 प्रतिशत) बनी रही। प्राथमिक वस्तुओं की मुद्रास्फीति जून 2007 के अंत में 9.3 प्रतिशत और एक वर्ष पूर्व के 8.1 प्रतिशत से कम होकर 13 अक्तूबर 2007 को 5.2 प्रतिशत हो गई। विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति जून 2007 के अंत के 4.9 प्रतिशत और एक वर्ष पूर्व के 4.6 प्रतिशत से कम होकर 13 अक्तूबर 2007 को 4.1 प्रतिशत हो गई।
  • राजकोषीय और आपूर्ति पक्ष उपायों के साथ वर्ष 2004 के मध्य से पूर्वकृत मौद्रिक उपायों ने मुद्रास्फीति को रोक रखने में सहायता की है।

मौद्रिक और चलनिधि स्थितियाँ

  • वर्ष-दर-वर्ष व्यापक मुद्रा (एम3) में वृद्धि 12 अक्तूबर 2007 को एक वर्ष पूर्व के 18.9 प्रतिशत (4,66,603 करोड़ रुपये) की तुलना में 21.8 प्रतिशत (6,41,464 करोड़ रुपये) थी।
  • बैंकों की सकल जमाराशियाँ, वर्ष-दर-वर्ष बढ़कर एक वर्ष पूर्व के 19.2 प्रतिशत (4,01,717 करोड़ रुपए) की तुलना में 12 अक्तूबर 2007 को 23.4 प्रतिशत (5,83,198 करोड़ रुपए) हो गईं।
  • पिछले तीन वर्षों में सुदृढ़ गति के बाद बैंक ऋण की वृद्धि में सुधार हुआ। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंको (एससीबी) द्वारा खाद्येतर ऋण वर्ष-दर-वर्ष एक वर्ष पूर्व के 30.0 प्रतिशत (3,70,226 करोड़ रुपए) से सुधरकर 12 अक्तूबर 2007 तक 23.5 प्रतिशत (3,77,759 करोड़ रुपए) हो गया।
  • प्रारक्षित मुद्रा में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि 19 अक्तूबर 2007 तक 24.4 प्रतिशत (नकदी आरक्षित निधि अनुपात में प्रथम दौर की वृद्धि को 14.9 प्रतिशत समायोजित किया गया) हुई जो एक वर्ष पूर्व 20.2 प्रतिशत थी।
  • पूँजी प्रवाहों और सरकारों के नकदी शेषों में उतार-चढ़ाव से चल-निध स्थितियाँ प्रभावित होती रहीं। रिज़र्व बैंक ने बाजार स्थिरीकरण योजना के अंतर्गत प्रतिभूतियाँ जारी करने, चल-निधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत परिचालन और आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में वृद्धि की सहायता से बाजार चल-निध को अनुकूल बनाया।

वित्तीय बाज़ार

  • वर्ष 2007-08 की दूसरी तिमाही के दौरान अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाज़ार उतार-चढ़ाव भरे रहे क्योंकि अमरीकी सब-प्राईम बंधक बाज़ार से हानि के आकार और वितरण के बारे में अनिश्चितताओं ने निवेशकर्ताओं को अपनी स्थितियों के समायोजन के लिए बाध्य किया। उभरती हुई बाज़ार अर्थव्यवस्थाएं उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की गतिविधियों द्वारा सामान्यत: कम प्रभावित हुई हैं।

  • भारतीय वित्तीय बाज़ार वर्ष 2007-08 की दूसरी तिमाही की अधिकांश अवधि में व्यवस्थित रहे।
  • मांग मुद्रा दर जो 3 अगस्त 2007 तक चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो परिचालनों के माध्यम से चलनिधि स्थितियों को सरल बनाने और आमेलन पर सीमा की सहायता से जून-जुलाई 2007 के दौरान प्रत्यावर्तनीय रिपो दर से नीचे बनी हुई थी, अगस्त-सितंबर 2007 में प्रत्यावर्तनीय रिपो और रिपो दरों द्वारा निर्धारित सीमा के अंदर आ गई। एक रात के लिए मुद्रा बाज़ार के संपार्श्वीकृत क्षेत्र में ब्याज दरें भी कड़ी हो गईं लेकिन तिमाही के दौरान मांग दर से नीचे बनी रहीं।
  • विदेशी मुद्रा बाजार में तिमाही के दौरान सभी प्रमुख मुद्राओं (अमरीकी डॉलर, यूरो, पाउंड स्टर्लिंग और जपानी येन) की तुलना में भारतीय रुपए में सामान्यत: मूल्य वृद्धि हुई।
  • सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में प्रतिफलों में नरमी आई।
  • दूसरी तिमाही के दौरान बैंकों की जमा और उधार दरों विशेषत: विभिन्न परिपक्वताओं अंतिम ऊपरी श्रेणी में कमी आई।

बाह्य अर्थव्यवस्था

  • वर्ष 2007-08 के दौरान भारत के भुगतान संतुलन की स्थिति अब तक सुविधाजनक रही है। भुगतान संतुलन आधार पर पण्य व्यापार घाटा अप्रैल-जून 2006 के 16.9 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर अप्रैल-जून 2007 में 21.6 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। अदृश्य खाते पर निवल अधिशेष ने सॉफ्टवेयर के निर्यात, कारोबारी सेवाएं और निजी विप्रेषणों के कारण वर्ष 2007-08 की पहली तिमाही के दौरान उछाल दर्शाया और पण्य व्यापार घाटे के एक बड़े हिस्से (78.2 प्रतिशत) को वित्तीय सहायता देना जारी रखा।
  • बड़े पण्य व्यापार घाटे के बावजूद उच्चतर निवल अदृश्य अधिशेष ने वर्ष 2007-08 की पहली तिमाही के दौरान चालू खाता घाटा (4.7 बिलियन अमरीकी डॉलर) को व्यापक रूप से उसी स्तर पर (4.6 बिलियन अमरीकी डॉलर) रोक रखा जैसा कि वर्ष 2006-07 की पहली तिमाही में था। चालू खाता घाटे को पूंजी प्रवाहों द्वारा वित्तीय सहायता मिली जो वर्ष 2007-08 के दौरान अब तक अधिक बने रहे।
  • वर्ष 2007-08 के दौरान (19 अक्तूबर 2007 तक) विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा निवल अंतर्वाह वर्ष 2006-07 की तदनुरूपी अवधि में 933 मिलियन अमरीकी डॉलर बहिर्वाह की तुलना में 21.2 बिलियन अमरीकी डॉलर था। अप्रैल-जुलाई 2007 के दौरान विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआइ) अंतर्वाह 6.6 बिलियन अमरीकी डॉलर (एक वर्ष पूर्व 3.7 बिलियन अमरीकी डॉलर) था। दूसरी ओर अनिवासी भारतीय जमाराशियों ने अप्रैल-जुलाई 2006 के दौरान 1.6 बिलियन अमरीकी डॉलर के निवल अंतर्वाह के बदले अप्रैल-जुलाई 2007 के दौरान 148 मिलियन अमरीकी डॉलर की राशि निवल बहिर्वाह के रूप में दर्ज की।
  • वर्ष 2007-08 के दौरान अब तक (अप्रैल-अगस्त) पण्य निर्यात की वृद्धि में सुधार हुआ है जबकि आयात ने उच्च वृद्धि दर दर्ज की है। गैर-तेल आयात ने पूंजीगत वस्तुओं में मजबूत वृद्धि के कारण उच्चतर वृद्धि दर्ज की। तेल आयात ने गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान दर्ज मजबूत वृद्धि से तेजी में ह्रास दर्ज किया।
  • भारत की प्रारक्षित विदेशी मुद्रा वर्ष 2007 के मार्च के अंत के स्तर से 62.0 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि दर्शाते हुए 19 अक्तूबर 2007 को 261.1 बिलियन अमरीकी डॉलर थी।

अल्पना किल्लावाला
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2007-2008/583

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