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समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : तीसरी तिमाही समीक्षा - 2006-07

29 जनवरी 2007

समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : तीसरी तिमाही समीक्षा - 2006-07

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज 31 जनवरी 2007 को घोषित की जानेवाली 2006-07 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की तीसरी तिमाही समीक्षा के परिप्रेक्ष्य में "समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियांतीसरी तिमाही समीक्षा - 2006-07" दस्तावेज जारी किया।
वर्ष 2006-07 के दौरान अब तक की समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की मुख्य-मुख्य बातें निम्नानुसार है :

वास्तविक अर्थव्यवस्था

  • भारतीय अर्थव्यवस्था का जोरदार कार्य-निष्पादन वर्ष 2006-07 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के दौरान जारी रहा। केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) के अनुसार वास्तविक घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के योगदान से पूर्ववर्ती तिमाही में 8.9 प्रतिशत से और एक वर्ष पूर्व के 8.4 प्रतिशत से दूसरी तिमाही में 9.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी। वर्ष 2005-06 की तदनुरूपी तिमाहियों की तुलना में वर्ष 2006-07 की दोनों पहली और दूसरी तिमाहियों में उच्चतर वृद्धि दर्ज करने से वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि पिछले वर्ष की 8.5 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2006-07 की पहली छमाही में 9.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी।
  • कृषि और संबद्ध क्रियाकलापों में वृद्धि पिछले वर्ष की 3.7 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-सितंबर 2006 के दौरान 2.6 प्रतिशत की कमी दर्शायी गयी।
  • औद्योगिक उत्पाद में वृद्धि पिछले वर्ष की 8.3 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-नवंबर 2006 के दौरान 10.6 प्रतिशत की वृद्धि में बढ़ोतरी से वर्ष 2006-07 के दौरान वृद्धि की गति जारी रही। विनिर्माण क्षेत्र अपनी द्विअंकीय वृद्धि (11.5 प्रतिशत) के साथ औद्योगिक गतिविधि का अग्रणी क्षेत्र बना रहा। इस क्षेत्र ने उद्योग की वृद्धि में लगभग 91.2 प्रतिशत का योगदान दिया।
  • मूलभूत सुविधा उद्योग में वृद्धि वर्ष 2005 की तदनुरूपी अवधि के दौरान 5.2 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-नवंबर 2006 के दौरान 7.8 प्रतिशत की वृद्धि बिजली, कच्चे पेट्रोलियम और पेट्रोलियम रिफाइनरी उत्पादों में बेहतर कार्य-निष्पादन के चलते सुधार हुआ।
  • वर्ष 2006-07 की पहली छमाही के दौरान सेवा क्षेत्र में वृद्धि वर्ष 2005-06 की पहली छमाही के दौरान 10.2 प्रतिशत की तुलना में 10.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
  • उद्योग और सेवा क्षेत्र वर्ष 2006-07 के दौरान अबतक जोरदार रहे। कारोबारी विश्वास सर्वेक्षण भी यह सुझाव देते है कि आर्थिक गतिविधि में निकट अवधि में उछाल रहने की संभावना है। अतः आर्थिक वृद्धि में जारी गति वर्ष 2006-07 की शेष अवधि में जोरदार रहने की संभावना है।
  • चयनित गैर-सरकारी गैर-वित्तीय कंपनियों के कर घटाने के बाद के लाभ में वृद्धि पूववर्ती तिमाही में 34.7 प्रतिशत की तुलना में सितंबर 2006 को समाप्त तिमाही के दौरान 49.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। चयनित गैर-सरकारी गैर-वित्तीय कंपनियों की बिक्री के कर को घटाने के बाद के लाभ में अनुपात में पूववर्ती तिमाही में 10.6 प्रतिशत और पिछले वर्ष में 8.5 प्रतिशत की तुलना में सितंबर 2006 को समाप्त तिमाही के दौरान 11.0 प्रतिशत का सुधार हुआ।

राजकोषीय स्थिति

  • राजकोषीय वर्ष 2006-07 के प्रथम आठ महीनों (अप्रैल-नवंबर) के लिए केंद्र सरकार वित्त यह दर्शाते है कि राजकोषीय घाटा संपूर्ण वर्ष के बजट अनुमान के प्रतिशत के रूप में पूववर्ती वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान निम्न स्तर पर रहे। तथापि, राजस्व घाटा बजट अनुमान के प्रतिशत के रूप में गैर-योजना व्यय में वृद्धि जिससे कर राजस्व उछाल हटने के कारण पूर्ववर्ती वर्ष से उच्च स्तर पर रहा। तथापि, गैर-रक्षा पूंजी लागत और ऋण तथा अग्रिमों में कमी के कारण राजकोषीय घाटे पर प्रभाव कम रहा।
  • वर्ष 2006-07 के दौरान 22 जनवरी 2007 तक केंद्र द्वारा जुटाए गये सकल और निवल बाज़ार उधार (दिनांकित प्रतिभूतियों और 364-दिवसीय खज़ाना बिलों सहित) बजट अनुमानों के 83.1 प्रतिशत और 80.4 प्रतिशत रहे जबकि ये एक वर्ष पहले क्रमश: 84.9 प्रतिशत और 82.7 प्रतिशत थे।
  • वर्ष 2006-07 के दौरान अब तक (22 जनवरी 2007 तक) राज्यों ने बाज़ार से 14,204 करोड़ रुपये (अथवा सकल आबंटन का 54.9 प्रतिशत) अनन्य रूप से जुटाए हैं।
  • राज्यों द्वारा अर्थोपाय अग्रिम तथा ओवरड्राफ्ट का साप्ताहिक औसत उपयोग अप्रैल-दिसंबर 2006 के दौरान 256 करोड़ रुपये था जो वर्ष 2005 की उसी अवधि के दौरान 639 करोड़ रुपये की तुलना में कम था। अब तक वर्ष 2006-07 के दौरान राज्य सरकारों की अतिरिक्त नकदी स्थिति में और सुधार हुआ है। यह अप्रैल-दिसंबर 2006 के दौरान 14-दिवसीय ट्रेजरी बिलों में 41,567 करोड़ रुपये (सप्ताहिक औसत) के उनके निवेश में वृद्धि को दर्शाता है जो पिछले वर्ष की उसी अवधि में 32,789 करोड़ रुपये था। राज्य सरकारों के अतिरिक्त नकदी शेष 14-दिवसीय ट्रेजरी बिलों में स्वत: निवेशित हो जाते हैं।

मौद्रिक और चलनिधि स्थितियाँ

  • बैंक ऋण वर्ष 2006-07 के दौरान मज़बूती से बढ़ता रहा। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के खाद्यतर ऋण में वृद्धि एक वर्ष पूर्व 31.2 प्रतिशत (3,11,013 करोड़ रुपये) की तुलना में 5 जनवरी 2007 तक वर्ष-दर-वर्ष बढ़कर (वाइ-ओ-वाइ), 31.2 प्रतिशत (4,07,735 करोड़ रुपये) हो गई।
  • बैंक ऋण में लगातार वृद्धि को अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की 6 जनवरी 2006 तक 2,85,182 करोड़ रुपये से (17.2 प्रतिशत) वर्ष-दर-वर्ष (वाइ-ओ-आइ) 5 जनवरी 2007 तक 4,38,037 करोड़ रुपये (22.5 प्रतिशत) की जमाराशि में वृद्धि की तेजी के द्वारा समायोजित किया जा सका।
  • इसके साथ-साथ स्थूल मुद्रा वृद्धि निर्दिष्ट सीमा से ऊपर रही। स्थूल मुद्रा वृद्धि एक वर्ष पूर्व 3,50,747 करोड़ रुपये (16.0 प्रतिशत) की तुलना में 5 जनवरी 2007 तक 5,17,318 करोड़ रुपये (20.4 प्रतिशत) (वर्ष-दर-वर्ष) थी।
  • अपनी निवल मांग और मीयादी देयताओं के अनुपात के रूप में बैंकों का सांविधिक चलनिधि अनुपात निवेश मार्च 2006 के अंत के स्तर से और नीचे गिरा।
  • रिज़र्व बैंक ने चलनिधि समायोजन सुविधा रिपो और प्रत्यावर्तनीय रिपो तथा बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) के अंतर्गत प्रतिभूतियों के निर्गम की सहायता से बज़ार चलनिधि को नियंत्रित करना जारी रखा। इसके अतिरीक्त 23 दिसंबर 2006 से प्रारंभ होनेवाले पखवाड़े से रिज़र्व बैंक ने दो चरणों में 50 आधार बिन्दुओं द्वारा नकदी आरक्षित अनुपात को बढ़ाया। सरकारों के नगदी शेष तथा पूंजी प्रवाहों में अधिकांशत: उतार-चढ़ाव को दर्शाते हुए बाज़ार चलनिधि में भारी चढ़ाव-उतार के साथ पिछले वर्ष चलनिधि प्रबंध अधिक जटिल रूप में सामने आया।
  • प्रारक्षित मुद्रा वृद्धि एक वर्ष पूर्व 69,213 करोड़ रुपये (14.9 प्रतिशत) की तुलना में 19 जनवरी 2007 तक 1,06,846 करोड़ रुपये
    (20.0 प्रतिशत) (वर्ष-दर-वर्ष) थी।

मूल्य स्थिति

  • प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं में हेडलाइन मुद्रास्फीति सितंबर-अक्तूबर 2006 के दौरान आधारगत प्रभावों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कप्मतों में तेजी से कमी के कारण स्थिर रही लेकिन नवंबर-दिसंबर 2006 के दौरान पुन: बढ़ गई। मुख्य मुद्रास्फीति दृढ़ रही। यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी), बैंक ऑफ इंग्लैंड, रिज़र्व बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया और साउथ आफ्रिकन रिज़र्व बैंक जैसे कई केंद्रीय बैंको ने दूसरे दौर के प्रभावों को कम करने के लिए पहले से ही मौद्रिक सुदृढ़ीकरण को जारी रखा।
  • भारत में वर्ष 2006-07 में मुद्रास्फीति गतिविधियाँ प्राथमिक खाद्य वस्तुओं और निर्मित उत्पाद मूल्यों के द्वारा संचालित होती रही हैं। थोक मूल्य सुचकांक (डब्ल्यूपीआइ) में उतार-चढ़ाव पर आधारित हेडलाइन मुद्रास्फीति मार्च 2006 के अंत तक 4.1 प्रतिशत तथा एक वर्ष पूर्व 4.2 प्रतिशत से बढ़कर 13 जनवरी 2007 तक 6.0 प्रतिशत हो गई। इंधन समूहों को छोड़कर वर्ष-दर-वर्ष मुद्रास्फीति 6.6 प्रतिशत रही जो 13 जनवरी 2007 तक 6.0 प्रतिशत के हेडलाईन मुद्रास्फीति से अधिक थी।
  • उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति, खाद्यान्न मूल्यों में उच्चतर वृद्धि के साथ-साथ उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में खाद्यान्न मदों के उच्चतर भार को दर्शाते हुए नवंबर 2005 से थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति से अधिक रही है। औद्योगिक कामगारों के लिए उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति नवंबर 2006 में 6.3 प्रतिशत रही जबकि शहरी गैर-श्रमिक कर्मचारियों, कृषि मजदूरों और ग्रामीण मजदूरों के लिए दिसंबर 2006 में क्रमश: 6.9 प्रतिशत, 8.9 प्रतिशत और 8.3 प्रतिशत रही।

वित्तीय बज़ार

  • अल्पकालिक मुद्रा दरें दिसंबर 2006 के मध्य तक सामान्यत: प्रत्यावर्तनीय रिपो दर और रिपो दर की स्वीकार्य सीमा के भीतर बनी रहीं। तथापि, दिसंबर 2006 के अंतिम पखवाड़े से मांग दरें तेजी से बढ़ीं।
  • विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रुपये के मूल्य में अमेरिकी डॉलर की तुलना में वर्ष 2006-07 की तीसरी तिमाही के दौरान (अक्तूबर-दिसंबर 2006) मूल्य वृद्धि हुई।
  • सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में दीर्घावधि परिपक्वता बाण्डों पर आय अक्तूबर-नवंबर 2006 के दौरान कम रही लेकिन दिसंबर 2006 तथा जनवरी 2007 में बढ़ गई।
  • बैंकों की जमा और उधार दरें मजबूत ऋण मांग के कारण तीसरी तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर 2006) के दौरान और बढ़ गईं।

बाह्य अर्थव्यवस्था

  • भारत का बाह्य क्षेत्र अब तक वर्ष 2006-07 के दौरान मजबूत कार्य निष्पादन दर्ज करता रहा है।
  • वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यात ने कुछ मंदी (एक वर्ष पूर्व 29.9 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-दिसंबर 2006 के दौरान 22.0 प्रतिशत) के होते हुए भी सुदृढ वृद्धि दर्शायी है। गैर तेल आयात ने मुख्यत: सोने और चांदी तथा मोती, मूल्यवान और अर्धमूल्यवान रत्नों के आयात में मंदी दर्ज की है तथापि, पूंजीगत वस्तुओं के आयात में उछाल रहा। तेल के आयात में वृद्धि उच्चतर मात्रा के कारण अधिक रही।
  • सेवाओं और परेषणों के निर्यात में लगातार वृद्धि अदृश्य लेखा में अतिरिक्त राशि में उछाल को उपलब्ध कराने के लिए जारी रही जिससे वाणिज्यिक वस्तु व्यापार लेखा पर घाटे के एक बड़े हिस्से को वित्तीय सहायता दी जा सकी।
  • चालू खाता घाटा अप्रैल-सितंबर 2005 के दौरान बढ़कर 7.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर अप्रैल-सितंबर 2006 के दौरान 11.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
  • उच्चतर चालू खाता घाटे को भारी पूंजी प्रवाहों के बने रहने के द्वारा सहजता से वित्तीय सहायता दी गई। पूंजी प्रवाह, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाहों द्वारा संचालित हो कर अप्रैल-सितंबर 2005 के दौरान 13.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर अप्रैल-सितंबर 2006 के दौरान 20.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया जो एक वर्ष पूर्व अप्रैल-नवंबर 2006 में 8.6 बिलियन अमरिकी डॉलर का लगभग दुगुना था।
  • विदेशी प्रारक्षित मुद्रा में वर्ष 2006-07 के दौरान अबतक 26.5 बिलियन अमरिकी डॉलर तक वृद्धि हुई है जो 19 जनवरी 2007 को 178.1 बिलियन अमरिकी डॉलर है।

अल्पना किल्लावाला
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2006-2007/1023

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