23 जनवरी 2012 समष्टि तौर से आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियॉं : तीसरी तिमाही समीक्षा 2011-12 भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज समष्टि तौर से आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियॉं - तीसरी तिमाही समीक्षा 2011-12 जारी किया। यह दस्तावेज़ 24 जनवरी 2012 को घोषित किए जानेवाले मौद्रिक नीति वक्तव्य की पृष्ठभूमि को दर्शाता है। समग्र संभावना जबकि वृद्धि संभावना कमज़ोर हुई, मुद्रास्फीति जोखिम बना रहा
-
प्रतिकुल वैश्विक और घरेलू घटकों के कारण वृद्धि संभावना कमज़ोर हुई। तथापि, मुद्रास्फीति और मुद्रास्फीति की प्रत्याशाएं उच्च बनी हुई हैं और विनिमय दर स्पष्ट होने, लागू मूल्यों में सुधार होने और सरकारी राजस्व खर्च प्रत्याशा से अधिक होने के कारण अधिक जोखिम बना हुआ है। इसके फलस्वरूप मौद्रिक कार्रवाईयों को वृद्धि को जोखिम और मुद्रास्फीति के बीच एक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।
-
वर्ष 2011-12 में वृद्धि में पहले की गई प्रत्याशा से अधिक सुधार हो रहा है। कारोबार वातावरण कमज़ोर हुआ है। निवेश और निवल बाह्य मॉंग में कमी वर्ष 2012-13 में सुधार की गति को धीमी रखेगा।
-
जबकि अल्पावधि में मुद्रास्फीति में सुधार आपूर्ति की रुकावटों को संबोधित करने ढॉंचागत उपायों के अभाव में वृद्धि चिंताओं को संबोधित करने में मौद्रिक नीति को कुछ समय मिलेगा। हालांकि यह अत्यंत अस्थायी मुहलत होगी। साथ ही, बढ़ता राजकोषीय रूझान मुद्रास्फीति के लिए अधिक जोखिम के रूप में उभरा है।
वैश्विक आर्थिक स्थितियॉं वैश्विक वृद्धि में सुधार हुआ, किंतु वित्तीय बाज़ार में तनाव बढ़ा
-
वैश्विक अर्थव्यवस्था केवल तीन वर्षों में ही और एक मंदी की ओर बढ़ती दिख रही है। यूरो क्षेत्र ऋण संकट जारी रहने के कारण सुधार में संभवत: खिंचाव है। जैसे-जैसे राजकोषीय मितव्ययिता आगे बढ़ रही है यूरो क्षेत्र मंदी में जा सकता है। उभरती और विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं (ईडीई) में भी वृद्धि में कमी के कारण यूरो क्षेत्र से फैल रही मंदी संभवत: वैश्विक वृद्धि को कम कर सकती है।
-
बैंक और सरकारी ऋण के बीच एक प्रतिकूल प्रतिसूचना के अंतर ने यूरो क्षेत्र को क्षेत्र भर में संक्रमण के नज़दीक ला दिया है। सख्त ऋण परिस्थितियॉं, बढ़ती जोखिम प्रिमिया, डिलिवरेजि़ंग, यूरो क्षेत्र में कमज़ोर हो रही वृद्धि ने वैश्विक वित्तीय बाज़ार को तनाव में रखा हुआ है। आगे चलकर, 2012-13 में कमज़ोर वैश्विक वृद्धि के चलते पण्य मूल्यों में और आगे सुगमता की संभावना है। तथापि, हाल की भौगोलिक-राजनैतिक अनिश्चितता सहित तेल मूल्य में उच्च जोखिम बनी हुई है।
भारतीय अर्थव्यवस्था उत्पादन वैश्विक सहबद्धता ने घरेलू घटकों को प्रभावित किया और अर्थव्यवस्था में मंदी आयी
-
कृषि संभावनाएं उत्साहवर्धक बनी हुई है किंतु औद्योगिक क्रियाकलापों और कुछ सेवाओं में सुधार दिखाई दे रहा है। आयात और घरेलू मॉंग में कमी होने के कारण औद्योगिक मंदी आयी है। घरेलू और वैश्विक आइआइपी श्रृंखला का मज़बूती से साथ-साथ चलना देखा गया। भारतीय रिज़र्व बैंक का सर्वेक्षण कुछ उद्योगों के लिए नए ऑडर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाते हैं किंतु 2011-12 की दूसरी तिमाही में उसका समतल क्षमता का उपयोग को दर्शाते हैं।
-
बाह्य परिस्थितियों, नम निवेश मॉंग और मुद्रास्फीति का मौजूदा उच्च स्तर को देखते हुए 2011-12 में वृद्धि में प्रवृत्ति से कम सुधार होने की संभावना है। वृद्धि संभावना वैश्विक परिस्थितियों और घरेलू नीति सुधारों पर निर्भर होगी।
सकल मॉंग बाह्य और निवेश मॉंग वृद्धि में बाधा डालेंगे
-
वृद्धि कम बाह्य और निवेश मॉंग से प्रभावित हुई है जो 2012-13 में भी रूकावट का काम करेगी। 2010-11 की दूसरी छमाही से कंपनी के योजनाबद्ध निर्धारित निवेश में तेज़ कमी आयी है और यह प्रवृत्ति 2011-12 की दूसरी तिमाही में और अधिक बढ़ गई है।
-
निजी उपभोग में सुधार जारी है। कंपनी की बिक्री वृद्धि में कुछ कमी आयी है जो धीमे-धीमे मॉंग में कमी को दर्शाते हैं। तथापि, 2011-12 की तीसरी तिमाही के लिए उपलब्ध पहले शुरूआती परिणाम मज़बूत बिक्री वृद्धि को दर्शाते हैं।
-
अत्यधिक आर्थिक सहायता और कर का कम संकट संग्रहण के कारण केंद्र सरकार का घाटा संकेतक संकट में है। 2011-12 के दौरान राजकोषीय कमी के कारण सकल मॉंग प्रबंधन का कार्य जटिल बन सकता है। अत: प्रत्यक्ष कर कोड़ और माल और सेवा कर सहित राजकोषीय सुधारों से 2012-13 में घाटे को नियंत्रित रखने की आवश्यकता है।
-
चालू खाता घाटा बढ़ने के कारण अधिक राजकोषीय खर्च अर्थव्यवस्था की वृद्धि और स्थिरता को प्रभावित कर सकते है। बढ़ रहा राजस्व घाटा पहले ही राजकोषीय स्थिति को तनावपूर्ण बना रहा है और सरकारी पूँजीगत खर्च की योग्यता को प्रभावित कर रहा है। अर्थव्यवस्था की संभाव्य वृद्धि दर को बढ़ाने के लिए बढ़ती आथिर्क सहायता प्रतिबद्धताओं के लिए बजट समाधान देने की आवश्यकता है और सरकारी खर्च को उपभोग्ता के बजाए निवेश में पुन: संतुलित करने की आवश्यकता है।
बाह्य क्षेत्र पूँजीगत प्रवाह में सुधार होने के कारण चालू खाता घाटा जोखिम बढ़ गया है
-
शुरूआती संकेतक यह दर्शाते हैं कि वर्ष 2011-12 की तीसरी तिमाही के दौरान चालू खाता पर दबाव बढ़ गया। रुपया मूल्यह्रास को गिनती में न लेते हुए निर्यात में कमी आयी किंतु तेल की अस्थायी मॉंग तथा बढ़ते स्वर्ण आयातों के कारण आयात मॉंग मज़बूत बनी रही। सॉफ्टवेयर आय में संभाव्य सुधार के कारण चालू खाता घाटा का जोखिम अत्यधिक हो गया है।
-
चूँकि अगस्त 2011 से पूँजी प्रवाह में भी सुधार हुआ चालू खाता घाटा पर वित्तपोषण दबाव विनियम दर दबावों में परिवर्तित हो गया। चालू खाता घाटा वाली अन्य उभरती और विकसित अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं भी इसी प्रकार के दबावों में आयीं। जनवरी 2012 में इक्विटी प्रवाह के पुनर्जीवन के चलते विनिमय दर दबाव कुछ हद तक कम हुआ।
-
पूँजी अंतर्वाह का संगठक अल्पावधि प्रवाह के हिस्से में बढ़ोतरी के चलते ऋण के अनुकूल परिवर्तीत हुआ। संवेदनशीलता संकेतक सामान्य रूप से कमज़ोर हुए हालांकि निवल अंतरर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति में सुधार हुआ। आगे चलकर निवेश वातावरण को सुधारने के नीति सुधार के लक्ष्यों को बढ़ाते हुए नवीकृत ईक्विटी प्रवाह को प्रोत्साहित करने के द्वारा ऋण प्रवाह पर निर्भरता को कम करने की आवश्यकता है।
मौद्रिक और चलनिधि परिस्थितियॉं मुद्रा बाज़ार चलनिधि सख्त होने के बावजूद मौद्रिक वृद्धि ने गति बनाए रखी है
-
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा डॉलर की बिक्री के कारण आंशिक रूप में नवंबर 2011 से मुद्रा बाज़ार चलनिधि उल्लेखनीय रूप से सख्त हुई है। तथापि, बढ़ते मुद्रा मल्टिप्लायर के चलते मौद्रिक वृद्धि ने प्रत्याशाओं के अनुरूप गति बनाए रखी है। रिज़र्व बैंक ने चलनिधि तनाव को चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत रिपो सहित खुले बाज़ार परिचालनों के माध्यम से अर्थव्यवस्था में चलनिधि डालते हुए उसे सुगम बनाए रखा।
-
ऋण वृद्धि मॉंग और आपूर्ति कारकों के कारण संकेतक प्रत्याशाओं से कम रही। वास्तविक क्रियाकलापों में मंदी के चलते ऋण की मॉंग कमज़ोर रही। मंद समष्टि तौर से आर्थिक परिस्थितियॉं और बढ़ते अनर्जक ऋणों से उभरे बढ़ते जोखिम को रोकने के कारण आपूर्ति भी कम रही।
-
फरवरी 2010 से नीति दरों में 525 आधार अंकों की और आरक्षित नकदी निधि अनुपात में 100 आधार अंकों की प्रभावी बढ़ोतरी के चलते मौद्रिक नीति उल्लेखनीय रूप से सख्त बनी रही। वृद्धि में कम हो रहा जोखिम और मुद्रास्फीति में अपेक्षित सुधार ने दिसंबर 2011 में नीति दरों को उसी स्तर पर बनाए रखा।
वित्तीय बाज़ार वैश्विक स्पिलोवर के कारण वित्तीय बाज़ार दबाव में आये
-
वैश्विक दुषप्रभाव और समष्टि तौर से आर्थिक कमी के कारण ईक्विटी और मुद्रा बाज़ारों पर दबाव पड़ा। अगस्त-दिसंबर 2011 के दौरान रुपया में तेज़ मूल्यह्रास के कारण विदेशी ईक्विटी अंतर्वाह में कमी आयी जिसके कारण रुपया और कमज़ोर हुआ। ईक्विटी अंतर्वाह अचानक रुक जाने के कारण निवेश वित्तपोषण भी प्रभावित हुआ1 यह प्रभाव प्राथमिक पूँजी बाज़ार में कमज़ोर संसाधन संग्रहण के कारण और अधिक बढ़ गया।
-
वित्तीय बाज़ार का तनाव नीति उपायों से कम किया गया जिसमें रुपया और डॉलर चलनिधि डालना शामिल है। इसके परिणामस्वरूप रुपया विनिमय दर में सुधार हुआ और जनवरी 2012 में ईक्विटी बाज़ार सुधरा। मॉंग मुद्रा दरें मुख्यत: ब्याज दर कोरिडोयर के भीतर बनी रही और बढ़ोतरी को प्रभावी रूप से काबू में रखा।
मूल्य स्थिति मुद्रास्फीति कम हो रही है किंतु बढ़ता जोखिम उल्लेखनीय रूप से बना हुआ है
-
खाद्य मुद्रास्फीति में तेज़ कमी के कारण मुद्रास्फीति सामान्य हुई है और यह मार्च 2012 के लिए प्रत्याशित 7 प्रतिशत की सीमा रेखा के अनुरूप है।
-
प्राथमिक खाद्य मुद्रास्फीति में तेज़ कमी आयी जो सब्ज़ि के मूल्यों और उच्च आधार दर में मौसमी कमी को दर्शाते हैं। तथापि, ढॉंचागत मॉंग-आपूर्ति असंतुलन के कारण प्रोटिन मुद्रास्फीति बनी हुई है। यह गिरावट कम समय के लिए बने रहने की संभावना है।
-
खाद्येतर विनिर्मित उत्पादों में मुद्रास्फीति निरंतर अधिक बनी हुई है जो इनपूट लागत को दर्शाते हैं, यह आंशिक रूप से रुपया के मूल्यह्रास के कारण हैं जिसने कुछ पण्यों के सुगम वैश्विक मूल्यों के प्रभाव को कम कर दिया है।
-
अपर्याप्त आपूर्ति प्रतिक्रियाओं, विनिमय दर पारदर्शिता, दबी हुई मुद्रास्फीति और एक विस्तारकारी राजकोषीय रूझान के कारण मुद्रास्फीति पर अत्यधिक जोखिम बना हुआ है।
अजीत प्रसाद सहायक महाप्रबंधक प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/1180 |