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तिमाही के मध्य में मौद्रिक नीति की समीक्षा: दिसंबर 2010

16 दिसंबर 2010

तिमाही के मध्य में मौद्रिक नीति की समीक्षाः दिसंबर 2010

मौद्रिक उपाय

यह निर्णय लिया गया है कः

  • रिज़र्व बैंक की चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रिपो दर 6.25 प्रतिशत तथा प्रत्यावर्तनीय रिपो दर 5.25 प्रतिशत बनाए रखी जाए।

  • प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) वाणिज्यिक बैंकों की निवल माँग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) का 6.0 प्रतिशत बनाए रखा जाए।

चलनिधि उपाय

यह निर्णय लिया गया है कि :

  • पहला, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) को 18 दिसंबर 2010 से उनकी निवल माँग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 25 प्रतिशत से घटाकर 24 प्रतिशत किया जाए।

  • दूसरा, अगले एक महीने में 48,000 करोड़ की सकल राशि के लिए सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद हेतु खुले बाजार परिचालन (ओएमओ) नीलामियाँ आयोजित की जाएँ जिसकी समय-सारणी अलग से जारी की जा रही है।

उपर्युक्त दोनों उपायों से 48,000 करोड़ की राशि की चलनिधि सहनीय आधार पर डाले जाने की आशा की जाती है।

निवल माँग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) की एक प्रतिशत तक सांविधिक चलनिधि अनुपात में स्थायी कमी को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 29 नवंबर 2010 को घोषित चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत अतिरिक्त चलनिधि सहायता अब 18 दिसंबर 2010 से 28 जनवरी 2011 तक अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की निवल माँग और मीयादी देयताओं के 1.0 प्रतिशत तक की सीमा तक (2.0 प्रतिशत के बदले) उपलब्ध होगी।

वैश्विक अर्थव्यवस्था

2 नवंबर 2010 को घोषित मौद्रिक नीति की द्वितीय तिमाही समीक्षा से उल्लेखनीय वैश्विक और घरेलू समष्टि आर्थिक गतिविधियाँ हुई हैं। धीमे सुधार और जारी बेरोज़गारी ने अमरीका में परिणात्मक सरलता के दूसरे दौर को प्रोत्साहित किया तथापि हाल के आँकड़े विशेष रूप से वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद और उपभोक्ता विश्वास के संबंध में सुधार के कुछ संकेत दर्शाते हैं यद्यपि बेरोज़गारी दर बढ़ी है। यद्यपि, आर्थिक सुधार यूरोप में उन्नति पर है, वित्तीय स्थिरता चिंताएं पुन: प्रकट हुई हैं क्योंकि सार्वभौम ऋण समस्या और व्यापक हो गई है। उभरती हुई प्रमुख बाज़ार अर्थव्यवस्थाएं (इएमइ) मज़बूत वृद्धि अनुभव कर रही है।

उल्लेखनीय रूप से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में धीमे सुधार और मंद क्षमता के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय पण्य वस्तु कीमतें जैसेकि तेल, खाद्यान्न, औद्योगिक इनपुट और धातुओं की कीमतों में पिछले सप्ताह में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई हैं। माँग और उच्चतर पण्य वस्तु कीमतों में मज़बूती को दर्शाते हुए अधिकांश उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति बढ़ने लगी है।

घरेलू अर्थव्यवस्था

वृद्धि

वर्ष 2010-11 की दूसरी तिमाही में 8.9 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि यह प्रस्तावित करती है कि घरेलू गतिविधि मज़बूत बनी हुई है। अच्छे मानसून के सहयोग से कृषि वृद्धि में सुधार हुआ है। अगस्त-सितंबर के दौरान स्थिर रहने के बाद औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) अक्टूबर 2010 में 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया। क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआइ) सहित औद्योगिक गतिविधि के विभिन्न संकेतक भी एक मज़बूत अंतर्निहित गतिविधि प्रस्तावित करते हैं। सेवा क्षेत्र गतिविधि के अग्रणी संकेतक मज़बूत गति से बढ़ते रहे हैं। इन गतिविधियों ने वर्ष 2010-11 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि हेतु रिज़र्व बैंक को 8.5 प्रतिशत के अनुमान को बल प्रदान किया जिसकी समीक्षा 25 जनवरी 2011 को निर्धारित तीसरी तिमाही समीक्षा में की जाएगी।

मुद्रास्फीति

क्रमिक पाँच महीनों तक दुहरे अंकों में बने रहने के बाद वर्ष-दर-वर्ष हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति अगस्त 2010 में गिरकर 8.8 प्रतिशत और नवंबर 2010 में पुन: कम होकर 7.5 प्रतिशत हो गई। औद्योगिक मज़दूरों और ग्रामीण/कृषि मज़दूरों के लिए उपभोक्ता मूल्य (सीपीआइ) मुद्रास्फीति लगभग एक वर्ष तक दुहरे अंकों में बने रहने के बाद अगस्त 2010 से नरम होकर एकल अंक दरों में आ गई। मुद्रास्फीति में समग्र कमी एक अनुकूल मानसून के बाद खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति में नरमी को दर्शाती है। खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही में औसतन 15.7 प्रतिशत से सुधरकर दूसरी तिमाही में 12.3 प्रतिशत, अक्टूबर 2010 में 10.0 प्रतिशत और पुन: नवंबर 2010 में 6.1 प्रतिशत तक आ गई है। खाद्य मदों के बिच अनाज़ों और दालों के लिए मुद्रास्फीति में नरमी प्रोटिन्स से संबंधित खाद्य मदों जैसेकि अण्डे, मछली, माँस और दुध की मुद्रास्फीति की तुलना में अधिक रही है जो खाद्य मुद्रास्फीति की संरचनात्मक प्रकृति को दर्शाती है। इसके अतिरिक्त गैर-खाद्य प्राथमिक वस्तुओं के लिए मुद्रास्फीति जैसेकि कच्चा कपास, कच्चा रबड़ और खनिज़ में तेज़ी से बढ़ी है। पिछले छह महीनों में गिरती हुई प्रवृति को उलटते हुए गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति नवंबर 2010 में 5.4 प्रतिशत तक आ गई है।

यद्यपि, मुद्रास्फीति सुधरी है, मुद्रास्फीतिकारी दबाव घरेलू माँग और उच्चतर वैश्विक पण्य वस्तु कीमतों दोनों में बने हुए हैं। खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति में गिरावट की गति संरचनात्मक कारकों के लिए व्यापक रूप से प्रत्याशित स्थिति की अपेक्षा कम रही है। यह जोखिम है कि बढ़ती हुई अंतर्राष्ट्रीय पण्य वस्तु कीमतें घरेलू मुद्रास्फीति में व्याप्त हो जाएंगी। आगे चलकर सकल माँग दबाव के साथ मिलकर विनिर्मित क्षेत्र के लिए बढ़ती हुई घरेलू इनपुट लागतें घरेलू मुद्रास्फीति पर बोझ बन सकती हैं। मार्च 2011 तक रिज़र्व बैंक के 5.5 प्रतिशत मुद्रास्फीति के अनुमान का जोखिम बढ़ोतरी की ओर है।

चलनिधि

जबकि नीति रूझान के अनुरूप प्रणाली में समग्र चलनिधि घाटा बना रहा, फिर भी सख्ती की मात्रा रिज़र्व बैंक के सुगमता के स्तर से अधिक रही। यह मुख्य रूप से व्यापक सरकारी नकदी शेषों के बने रहने के कारण हुई जो नवंबर की दूसरी तिमाही समीक्षा से 84,000 करोड़ के औसत तक पहुँच गयी जिससे औसत निवल चलनिधि समायोजन सुविधा रिपो 1,01,000 करोड़ की राशि का हो गया। इसके अलावा, 2010-11 में ऋण वृद्धि में बढ़ोतरी के बावजूद उल्लेखनीय उपर्युक्त प्रवृत्ति मुद्रा विस्तार और बैंक जमाराशियों में धीमी वृद्धि जैसे ढाँचागत घटकों के कारण चलनिधि घाटा बढ़ गया। जबकि चलनिधि घाटे में कई बैंकों द्वारा जमा और ऋण की ब्याज दरों को बढ़ा देने से मौद्रिक नीति के संकेतों के अंतरण में सुधार देखा गया अत्यधिक घाटे ने दोनों निधियों की उपलब्धता और लागत में असंभाव्यता ला दी जिससे बैंकिंग प्रणाली को ऋण सुपुर्दगी को बनाए रखने में कठिनाई हुई।

जारी चलनिधि दबावों को ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक ने नवंबर 2010 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को अपने निवल माँग और मीयादी देयताओं के 2.0 प्रतिशत तक चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत अतिरिक्त चलनिधि सहायता देने, द्वितीय चलनिधि समायोजन सुविधा जारी रखने और सरकारी प्रतिभूतियों की खुले बाजार परिचालन खरीद जैसे कुछ उपाय लागू किए। जबकि इन उपायों से ओवर-नाईट ब्याज दरों को स्थिर रखने में सहायता मिली, घाटे की मात्रा से अर्थव्यवस्था की उत्पादकता की आवश्यकताओं के अनुरूप बैंकों के अपने तुलनपत्रों के विस्तार की क्षमता में बाधा खड़ी कर सकती है। रिज़र्व बैंक द्वारा लागू किए गए अतिरिक्त चलनिधि उपाय इन चिंताओं को दूर करते हैं।

जैसे ही अर्थव्यवस्था में विस्तार होता है उसे प्राथमिक चलनिधि की आवश्यकता होगी जिसे मौद्रिक नीति रूझान के अनुरूप उपलब्ध कराना होगा। चलनिधि के ऐसे प्रावधानों को मौद्रिक नीति रूझान में परिवर्तन के रूप में नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि मुद्रास्फीति प्रमुख चिंता का कारण बनी हुई है। इस समीक्षा में किए गए उपायों की इस संदर्भ में प्रशंसा की जानी चाहिए।

निष्कर्ष

निष्कर्ष यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि की गति मज़बूत बनी हुई है। मुद्रास्फीति सामान्य हुई है, फिर भी यह रिज़र्व बैंक की सुगमता के स्तर से ऊपर है। तथापि, घरेलू माँग और उच्चतर वैश्विक पण्य मूल्य दोनों में मुद्रास्फीति जोखिम बढ़ रहा है। अत: बढ़ रहे माँग दबावों से मुद्रास्फीति पर सतर्कता बनाए रखने की आवश्यकता है। हाल की अवधि में रिज़र्व बैंक के लिए चलनिधि प्रबंधन एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है। रिज़र्व बैंक मुद्रास्फीति नियंत्रित रखने और मुद्रास्फीतिकारी अपेक्षाओं को रोकने के मौद्रिक नीति रूझान के अनुरूप चलनिधि दबाव को कम करने का प्रयास कर रही है।

अपेक्षित परिणाम

इस समीक्षा में की गई नीति कार्रवाईयों से यह अपेक्षित है कि :

  • अर्थव्यवस्था में उचित प्राथमिक चलनिधि डाली जाए;
  • प्रणाली में चलनिधि घाटे को रिज़र्व बैंक की सुगमता की स्तर तक लाया जाए; और
  • रिज़र्व बैंक की लागू नीति दरों के अनुरूप ओवर-नाईट अंतर-बैंक बाज़ार की ब्याज दरों को स्थिर रखा जाए।

आर.आर.सिन्हा
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/844

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