तिमाही के मध्य में मौद्रिक नीति की समीक्षा : मार्च 2013 - आरबीआई - Reserve Bank of India
तिमाही के मध्य में मौद्रिक नीति की समीक्षा : मार्च 2013
19 मार्च 2013 तिमाही के मध्य में मौद्रिक नीति की समीक्षा : मार्च 2013 मौद्रिक और चलनिधि उपाय वर्तमान समष्टि आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि :
परिणामस्वरूप चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर 6.5 प्रतिशत पर तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर तत्काल प्रभाव से 8.5 प्रतिशत पर समायोजित हो जाती है। परिचय 2. जनवरी 2013 में रिज़र्व बैंक की तीसरी तिमाही समीक्षा (टीक्यूआर) के बाद से वैश्विक वित्तीय बाज़ार स्थितियां सुधरी हैं लेकिन वैश्विक आर्थिक गतिविधि कमज़ोर हुई है। घरेलू मोर्चे पर भी वृद्धि में उल्लेखनीय गिरावट हुई है, यद्यपि मुद्रास्फीति उच्च बनी हुई है जो जारी आर्थिक वृद्धि के अनुकूल नहीं है। यद्यपि, गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय नरमी आई है, खाद्य मुद्रास्फीति उच्च बनी हुई है जिससे थोक मूल्य और उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति के बीच अंतर बना हुआ है और यह मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं को व्यवस्थित करने में मौद्रिक प्रबंध के लिए चुनौती को बढ़ा रहा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था 3. पिछले कुछ महीनों के दौरान वैश्विक आर्थिक गतिविधियां एक मिश्रित चित्र प्रस्तुत कर रही हैं। वर्ष 2012 की चौथी तिमाही के लिए अमरीकी सकल घरेलू उत्पाद आकलन आवास तथा वेतन वाले रोज़गार में सुधार के समर्थन से एक अस्थायी बदलाव का संकेत देता है तथापि अमरीकी समष्टि आर्थिक संभावनाएं अनिश्चितता सं घिरी हुई हैं जो अस्थायी विनिवेश और ऋण सीमा को प्रभावित कर रही हैं। यूरो क्षेत्र में राजनीतिक अनिश्चितता तथा समायोजन की थकान की आकस्मिक जोखिमों से प्रभावित होकर सकल घरेलू उत्पाद चौथी तिमाही में लगातार तीन तिमाहिनों तक सिकुड़ता गया है। जापान में भी उत्पादन चौथी तिमाही में संकुचित हुआ है और यह अभी तक अस्पष्ट है कि प्रोत्साहन उपायों का उभरता हुआ पैकेज कितना प्रभावी होगा और कितनी तेज़ी से वे अर्थव्यवस्था में बदलाव लाएंगे। जबकि चीन सहित कुछ उभरती हुई और विकासशील अर्थव्यवस्थाएं (ईडीई) धीरे-धीरे तेज़ वृद्धि की ओर लौट रही हैं, कमज़ोर बाह्य मांग और मंद घरेलू निवेश द्वारा बाधित होकर अन्यों में गतिविधि मंद हो रही है। अंतर्राष्ट्रीय गैर-ईंधन पण्य वस्तु कीमतें चौथी तिमाही में नरम हुई हैं लेकिन वृद्धि में मंदी के बावजूद ईंधन की कीमतें मज़बूत बनी हुई है जो खासकर निवल ऊर्जा आयातकों के लिए निरंतर मुद्रास्फीतिकारी दबाव को सूचित कर रही हैं। घरेलू अर्थव्यवस्था वृद्धि 4. वर्ष 2012-13 की तीसरी तिमाही में भारत की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि 4.5 प्रतिशत पर पिछली 15 तिमाहियों में सबसे कमज़ोर रही है। चिंताजनक बात यह है कि सेवा क्षेत्र वृद्धि अब तक समग्र वृद्धि का मुख्य आधार रही है। वह भी एक दशक में अपनी मंद गति से गिरावट को प्राप्त हुई है। जबकि समग्र औद्योगिक उत्पादन वृद्धि जनवरी में सकारात्मक हुई है, पूँजीगत वस्तु उत्पादन और खनन गतिविधि लगातार संकुचित हुई है। संयुक्त क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) सेवाओं में व्यापक रूप से मंद विस्तार को दर्शाते हुए फरवरी में गिरावट हुई है। कृषि क्षेत्र में खरीफ उत्पादन का दूसरा अग्रिम आकलन पिछले वर्ष के स्तर की तुलना में गिरावट का उल्लेख करता है। तथापि, रबी उत्पादन के द्वारा यह कम-से-कम आंशिक रूप में शुरूआती बात हो सकती है जिसके लिए बुआई संतोषप्रद रही है। मुद्रास्फीति 5. वर्ष-दर-वर्ष हेडलाईन थोक मूल्य सूचकांक पेट्रोलियम उत्पादों की लागू कीमतों को प्रभावित करते हुए बढ़ोतरी के संशोधनों को आवश्यक रूप से दर्शा रहा है जो जनवरी में 6.6 प्रतिशत से बढ़कर फरवरी में 6.8 प्रतिशत हो गया। दूसरी ओर गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति और इसकी गति उस सीमा के साथ-साथ धातुओं, कपड़े तथा रबड़ उत्पादों की कीमतों में नरमी की सहायता से लगातार बढ़ रही है जो सितंबर 2012 में शुरू हुई थी। चिंताजनक रूप से खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ोतरी के रास्ते पर बनी हुई है जो खाद्य मदों विशेषकर अनाज़ों और प्रोटिन के निरंतर मूल्य दबावों पर फरवरी 2013 में 10.9 प्रतिशत के उच्च स्तर पर नई संयुक्त (ग्रामीण और शहरी) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (आधार: 2010 = 100) मुद्रास्फीति के साथ अक्टूबर 2012 में शुरू हुई थी। इसके परिणामस्वरूप थोक मूल्य उपभेक्ता मूल्य मुद्रास्फीति के बीच विविधता पिछले वर्ष के दौरान व्यापक होती गई है। मौद्रिक और चलनिधि स्थितियां 6. मुद्रा आपूर्ति (एम3) और बैंक ऋण वृद्धि व्यापक रूप से अपने संशोधित सांकेतिक सीमाओं के अनुरूप रही है। सामान्य स्तर की अपेक्षा उच्च स्तर पर जारी रिज़र्व बैंक के पास सरकारी नकदी शेषों के साथ चलनिधि समायोजन सुविधा (एएलएफ) के अंतर्गत बैंकों द्वारा निवल आहरण से यथा प्रदर्शित चलनिधि घाटा सांकेतिक सुविधा क्षेत्र से ऊपर बना हुआ है। 25 आधार बिंदुओं तक बैंकों के आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में 9 फरवरी से लागू कमी तथा फरवरी से ₹ 200 बिलियन के खुले बाज़ार खरीद ने मुद्रा बाज़ार दरों को नीति रिपो दर तक व्यवस्थित रहने में सहायता की है। रिज़र्व बैंक खुले बाज़ार परिचालनों (ओएमओ) सहित विभिन्न लिखतों के माध्यम से सक्रियता के साथ चलनिधि का प्रबंध करना जारी रखेगा ताकि अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्र को ऋण का पर्याप्त प्रवाह सुनिश्चित किया जा सके। राजकोषीय स्थिति 7. वर्ष 2013-14 के केंद्रीय बज़ट ने राजकोषीय समेकन के लिए मज़बूत प्रतिबद्धता दिखाई है। वर्ष 2012-13 के लिए संशोधित बज़ट आकलन के अनुसार 5.2 प्रतिशत पर सकल राजकोषीय घाटा (जीएफडी)-सकल घरेलू उत्पाद अनुपात मुख्य रूप से योजना और पूंजी व्यय में क्रमिक कमी के द्वारा इसके बज़टीय स्तर के इर्द-गिर्द रोक रखा गया। सकल राजकोषीय घाटा (जीएफडी)-सकल घरेलू उत्पाद अनुपात का कार्यक्रम राजकोषीय समेकन की संशोधित रूपरेखा के अनुरूप वर्ष 2013-14 में 4.8 प्रतिशत तक नीचे लाने तथा वर्ष 2016-17 तक 3.0 प्रतिशत तक और नीचे लाने के लिए तैयार किया गया है। बाह्य क्षेत्र 8. व्यापारिक माल के फरवरी में दूसरी क्रमिक महीने के लिए सकारात्मक वृद्धि दर्ज करने तथा गैर-तेल आयात में कमी के साथ व्यापार घाटा उल्लेखनीय रूप से कम हुआ है। तथापि, अप्रैल-फरवरी 2012-13 के लिए व्यापार घाटा पहले से ही उल्लेखनीय वृद्धि पर चालू खाता घाटा (सीएडी) के लिए प्रतिकूल प्रभावों के साथ एक वर्ष पूर्व के अपने स्तर की तुलना में उच्चतर रहा है। यद्यपि, संविभाग निवेश और ऋण प्रवाहों के रूप में मुख्य रूप से पूंजी अंतर्वाहों ने पर्याप्त वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई है, भावनाओं में अचानक बदलाव से बाह्य क्षेत्र की बढ़ती हुई संवेदनशीलता एक मुख्य चिंता बनी हुई है। संभावना 9. वैश्विक संभावना के लिए कई जोखिमें हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था पर अमरीका में पृथक्करण का प्रभाव ऋण सीमा से बचने के लिए शुरू किए गए विधायीकरण की दृष्टि से शांत होना संभावित है। तो भी अग्रणी संकेतक मंद वैश्विक वृद्धि का उल्लेख करते हैं। राजनीतिक अर्थव्यवस्था जोखिमें जो उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में विश्वसनीय और निर्धारित नीति कार्रवाईयों को बाधित करती हैं अथवा उनमें देरी करती है, वे सुधार को अपना रही हैं। उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से प्रभाव का जोखिम उल्लेखनीय बना हुआ है। जबकि अभी तक भारी उत्पादन अंतरालों को देखते हुए वैश्विक मुद्रास्फीतिकारी दबावों में कमी संभावित है, कई उभरती हुई और विकासशील अर्थव्यवस्थाएं संभावित रूप से बढ़ी हुई ऊर्जा कीमतों के खतरे का सामना कर सकती हैं। 10. घरेलू मोर्चे पर मुख्य समष्टि आर्थिक प्राथमिकताएं वृद्धि दर को बढ़ाने वाली हैं, मुद्रास्फीतिकारी दबावों को रोकने वाली हैं तथा बाह्य क्षेत्र की संवेदनशीलता को कम करने वाली हैं। संक्षिप्त रूप में इन्हें निम्नलिखित पैराग्राफों में व्यक्त किया गया है। 11. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने वर्ष 2012-13 के लिए 5.0 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि अनुमानित की है जो उद्योग और सेवा दोनों में प्रत्याशित वृद्धि की अपेक्षा मंद वृद्धि को दर्शाते हुए तीसरी तिमाही समीक्षा में निर्धारित 5.5 प्रतिशत के रिज़र्व बैंक के बेसलाईन अनुमान से कम है। वृद्धि को दुबारा प्रोत्साहित करने की कुंजी निवेश को तेज़ करना है। सरकार को राजकोषीय समेकन हेतु प्रतिबद्ध बने रहने, आपूर्ति अवरोधों को दूर करने तथा परियोजना के कार्यान्वयन में व्याप्त अभिशासन में सुधार करने के द्वारा इस संबंध में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी है। 12. मुद्रास्फीति मोर्चे पर वैश्विक पण्य वस्तु कीमतों में कुछ नरमी तथा घरेलू स्तर पर कंपनियों की न्यूनतर मूल्यांकन शक्ति गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति में सुधार ला रही है। तथापि, खाद्य मुद्रास्फीति में नहीं थमने वाली बढ़ोतरी हेडलाईन थोक मूल्य मुद्रास्फीति को प्रारंभिक स्तर से अधिक तथा उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति को दुहरे अंकों में बनाए हुए है। इसके अलावा लागू कीमतों के संबंध में अभी भी कुछ दबी हुई मुद्रास्फीति है जो गुप्त मुद्रास्फीतिकारी दबावों को जारी रखे हुए हैं। ये सभी मिलकर मुद्रास्फीति प्रबंध के कार्य को जटिल बनाते हैं तथा आपूर्ति बाधाओं के समाधान की अनिवार्यता को रेखांकित करते हैं। मुद्रास्फीति परिदृश्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी के संशोधन हेतु समग्र मुद्रास्फीति के लिए उनके प्रभावों की दृष्टि से सतर्कता आवश्यक है। 13. बाह्य क्षेत्र मोर्चे पर मुख्य चुनौती चालू खाता घाटे में कमी करना है जो धारणीय प्रारंभिक स्तर से काफी अधिक है। यह समायोजन इसलिए अपेक्षित है क्योंकि यह निर्यात की प्रतिस्पर्धा में सुधारों का उपाय करता है तथा अनुत्पादक आयतों के लिए मांग को दूर रखता है। इसमें अनिवार्य रूप से समय लगेगा। इस बीच स्थायी प्रवाहों से चालू खाता घाटे को वित्तीय सहायता एक चुनौती बनी हुई है। 14. अर्थव्यवस्था को एक उच्च वृद्धि पथ पर लौटाने की सबसे पहली चुनौती निवेश को पुनर्ज्जीवित करना है। इसके लिए एक प्रतिस्पर्धी ब्याज दर आवश्यक है लेकिन वह पर्याप्त नहीं है। पर्याप्तता स्थितियों में आपूर्ति बाधाओं को हटाना, राजकोषीय समेकन पर गुणवत्ता और मात्रा दोनों के अनुसार सिलसिले को बनाए रखना तथा अभिशासन में सुधार शामिल है। मार्गदर्शन 15. गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति में नरमी के बावजूद हेडलाईन मुद्रास्फीति में क्षेत्र-वार मांग आपूर्ति असंतुलनों, लागू कीमतों में जारी सुधारों तथा उनके दूसरे दौर के प्रभावों की दृष्टि से वर्ष 2013-14 के दौरान वर्तमान स्तरों के आस-पास सीमाबद्ध रहने की आशा की जाती है। इसके अतिरिक्त न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से उत्पन्न दबावों सहित बढ़ी हुई खाद्य कीमतों तथा थोक और खुदरा मुद्रास्फीति के बीच अंतर से मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं पर प्रतिकूल प्रभाव होंगे। चालू खाता घाटा के कारण जोखिम वर्ष 2012-13 की तीसरी तिमाही में प्रत्याशित तेज़ गिरावट के दौरान चौथी तिमाही में संभावित सुधार के बावजूद उल्लेखनीय बना हुआ है। तदनुसार, वृद्धि जोखिम का समाधान करते हुए नीति रूझान के दबाव के बावजूद और मौद्रिक सहजता के लिए और संभावना काफी सीमित बनी हुई है। अल्पना किल्लावाला प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/1565 |