तिमाही के मध्य में मौद्रिक नीति की समीक्षा : सितंबर 2010 मौद्रिक उपाय - आरबीआई - Reserve Bank of India
तिमाही के मध्य में मौद्रिक नीति की समीक्षा : सितंबर 2010 मौद्रिक उपाय
16 सितंबर 2010 तिमाही के मध्य में मौद्रिक नीति की समीक्षा : सितंबर 2010 मौद्रिक उपाय रिज़र्व बैंक की समष्टि अर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर यह निर्णय लिया गया है क: • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रिपो दर में तत्काल प्रभाव से 25 आधार बिन्दुओं की वृध्दि करते हुए इसे 5.75 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.0 प्रतिशत किया जाए। • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर में तत्काल प्रभाव से 50 आधार बिन्दुओं की बढ़ोतरी करते हुए इसे 4.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 5.0 प्रतिशत किया जाए। वैश्विक परिदृश्य रिज़र्व बैंक की 27 जुलाई 2010 को मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा में वैश्विक संभावनाओं पर चिंताएँ व्यक्त की गई थीं। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक गतिविधि के संकेतक लगातार यह सुझाव देते रहे हैं कि सुधार धीमा है और यह कि वर्ष 2010 की दूसरी छमाही पहले की अपेक्षा धीमी वृध्दि दर्ज करेगी, यद्यपि जुलाई के अंत से प्रत्याशाओं की अधोमुख समीक्षा नहें की गई है। पूर्व की आशंकाओं को नकारते हुए यूरोप ने सरकारी ऋण दबावों के समक्ष उल्लेखनीय अनुकूलन दर्शाया है जो कुछ महीनों पहले सुधार के लिए गंभीर खतरा बने हुए थे। यूरोपीय केंद्रीय बैंक ने आगे दूसरी छमाही में वृध्दि की संभावना की समीक्षा की है। वर्ष 2010 की दूसरी तिमाही में मंदी के कुछ संकेतों को दर्शाने के बाद चीन ने औद्योगिक उत्पादन तथा कारोबारी संख्याओं में तेजी से पुनर्जीवन पर पुन: जोर डाला है। समग्र रूप में, वैश्विक वातावरण के लगातार सतर्क रहने के कारण जुलाई से बड़े परिदृश्य उल्लेखनीय रूप से खराब नहीं हुए हैं। घरेलू परिदृश्य वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही में वृध्दि 8.8 प्रतिशत आकलित की गई थी। यद्यपि इनमें से कुछ का योगदान एक अनुकूल आधार प्रभाव के प्रति रहा है, वृध्दि यह संकेत देती है कि सुधार ठोस ढंग से हो रहा है तथा अर्थव्यवस्था तेजी से अपनी वृध्दि की प्रवृत्ति दर के प्रति संकेंद्रित हो रही है। औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक (आइआइपी) ने संशोधित संख्याओं के साथ पिछली तिमाही के अंतिम माह (जून 2010) में कुछ कमी दर्शायी जिसमें वृध्दि को सापेक्षत: 5.8 प्रतिशत पर कम दर्शाया गया था। जुलाई में यह प्रवृत्ति तेजी से बदल गयी जिसमें पूँजीगत वस्तुओं के कारण वृध्दि 63 प्रतिशत तक हो गई थी, वृध्दि उछलकर 13.8 प्रतिशत हो गई। यद्यपि वर्ष के पहले चार महीनों के लिए वर्ष-दर-वर्ष वृध्दि दर 11.4 प्रतिशत पर मजबूत बनी हुई है, पिछले दो महीनों के दौरान उच्चतर अस्थिरता इस बारे में कुछ संदेह पैदा करती है कि, ओद्योगिक क्षेत्र में अंतर्निहित गतिशीलता को सूचकांक कितने प्रभावी रूप में दर्शाते हैं। कृषि में वृद्धि संभावनाओं में मानसून के कारण स्पष्ट तेजी आयी जो जल-संग्रहण स्थलों और भ्झा-जल की बेहतर सहायता से रबी की अच्छी फसल में योगदान करेगी। वास्तव में सेवा क्षेत्र क्रियाकलाप के सभी अग्रणी संकेतक सामान्य वृद्धि का संकेत देते हैं। समष्टिआर्थिक प्रबंधन में मुद्रास्फीति प्रमुख चिंता का विषय बनी हुई है। अगस्त 2010 के लिए प्रकाशित थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) मुद्रास्फीति दर पहली बार नई श्रृंखला (आधार वर्ष2004-05=100) पर आधारित थी। नई श्रृंखला में मदों को बेहतर तरीके से शामिल किया गया है और विनिर्माण उत्पाद समूह का थोड़ा उच्च भार है। तथापि, पुरानी और नई दोनों श्रृंखलाएँ एक ही प्रकार की मुद्रास्फीति की व्यापक श्रृंखलाएँ दर्शाती हैं। उदाहरण के लिए दोनों में से किसी भी श्रृंखला पर आधारित वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही के लिए औसत मासिक थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति दुहरे अंकों में है। तथापि, 10.6 प्रतिशत की दर नई श्रृंखला के अंतर्गत वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही के लिए थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति की मासिक औसत पुरानी श्रृंखला के अंतर्गत 11.1 प्रतिशत की दर से 50 आधार बिन्दुओं तक कम थी। जुलाई 2010 में दोनों श्रृंखला के अंतर्गत प्रावधानीकृत थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति थोड़ी सामान्य रही। प्रावधानीकृत थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति नई श्रृंखला के अनुसार जुलाई 2010 में 9.8 प्रतिशत से अगस्त में 8.5 प्रतिशत और आगे सामान्य रही। मुद्रास्फीति दर की गति की दिशा रिज़र्व बैंक द्वारा की गई जुलाई की समीक्षा की प्रत्याशाओं के अनुरूप रही, हालाँकि उसकी मात्रा अलग हो सकती है। दोनों श्रृंखलाओं से संदर्भ एक ही प्रकार के हैं। आवश्यक रूप से मुद्रास्फीति दरें एक ही धरातल पर हैं किंतु कुछ महीनों के लिए उनके उच्च स्तरों पर बने रहने की संभावना है। जबकि खाद्य पदार्थों का मूल्य जो नई श्रृंखला के अनुसार अगस्त में 14 प्रतिशत तक बढ़ा था, वह अभी भी दबाव पर असर बनाए हुए है। अगस्त में हुई मुद्रास्फीति का लगभग दो तिहाई हिस्सा खाद्य पदार्थों और उत्पादों के अन्य मदों के कारण हुआ। अगस्त 2010 में बहुत कम सुधार के होते हुए भी हेडलाइन मुद्रास्फीति उल्लेखनीय रूप से वर्ष 2000 के दशक में 5.0 से 5.5 प्रतिशत की प्रवृत्ति से ऊपर बनी रही। अत: मुद्रास्फीति और मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को रोकने के लिए नीति प्रक्रियाओं की निरंतर आवश्यकता है। मुद्रास्फीति के साथ चिंता का दूसरा पहलू वास्तविक ब्याज दरों पर इसका प्रभाव है। पिछली तीन तिमाहियों के दौरान की गई नीति कार्रवाईयाँ अंशत: नकारात्मक वास्तविक ब्याज दरों की पूर्वव्यापकता को समाप्त करने की ज़रूरत द्वारा प्रोत्साहित हैं। इसको पूरा करने की माँग अबाधित रूप में बढ़ती हुई माँग दरों और गिरती हुई मुद्रास्फीति दरों के संयोजन द्वारा की गई थी। दोनों कारक काम कर रहे हैं लेकिन प्रक्रिया अभी भी अधूरी है। नकारात्मक वास्तविक दरों का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह है कि जहाँ कहीं भी जमाकर्ताओं ने उच्चतर प्रतिलाभ देखा है, बैंकों ने जमा वृद्धि में गिरावट को देखा है। यदि बैंक ऋण वृद्धि के लिए एक बाध्यता नहीं बनता है तो वास्तविक दरों को बैंक जमा को प्रोत्साहित करने की दिशा में बढ़ने की ज़रूरत है। सरकारी वित्त के संदर्भ में राजकोषीय घाटा वर्ष 2010-11 के केंद्रीय बज़ट में किए गए आकलन के अनुरूप प्रतीत होता है। अस्थिर कर राजस्व के साथ मिलकर 3ज्जी और ब्रॉडबैंक वायरलेस एक्सेस (बीडब्ल्यूए) नीलामियों पर प्रत्याशित संग्रह से अधिक संग्रहण ने अनुदानों के लिए अनुपूरक माँग को गणना में शामिल किए जाने के बाद भी 5.5 प्रतिशत के लक्ष्य से अधिक बढ़ते हुए राजकोषीय घाटे के जोखिम को वस्तुत: समाप्त कर दिया है। इससे चलनिधि और ब्याज दर गतिविधियों की बाजार प्रत्याशाओं को स्थिर करने में सहायता मिलेगी। हाल के महीनों में मौद्रिक नीति की चर्चा में चलनिधि एक उल्लेखनीय कारक रही है। जुलाई में नीति समीक्षा की अग्रणी स्थिति ने चलनिधि स्थिति को एक भारी अधिशेष से एक मुख्य घाटे में अंतरित होते हुए देखा जिससे रिपो दर परिचालनात्मक नीति दर बन गई। इस अंतरण के परिणामस्वरूप नीति दरों से बाजार दरों में अंतरण 40 बैंकों द्वारा अपनी जमा दरों में बढ़ोतरी और 26 बैंकों द्वारा अपने उधार दरों में बढ़ोतरी के साथ मजबूत हुआ है। रिपो दर को एक प्रभावी नीति दर के रूप में बने रहने तथा अंतरण व्यवस्था की मजबूती को बनाए रखते हुए ऐसी परिस्थितियों के बने रहने की आशा है। बाहरी मार्चे पर वैश्विक अर्थव्यवस्था की जारी मंदी निर्यात वृध्दि को रोकती है जबकि मजबूत घरेलू सुधार ने आयातों की माँग को बढ़ा दिया है। परिणामत: व्यापार घाटे और इसी के साथ चालू खाता घाटे बढ़ रहे हैं। जुलाई की अपनी नीति समीक्षा में रिज़र्व बैंक ने निरंतर अस्थिर पूँजी अंतर्वाहों के समक्ष चालू खाता घाटे से जड़े जोखीवमों का उल्लेख किया है। अर्थव्यवस्थाओं में पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान दिखाई देने वाले प्रत्यक्ष स्थिरीकरण ने वैश्विक निवेशक भावना में सुधार किया है जिसके परिणामस्वरूप भारत सहित उभरती हुई बर्थव्यवस्थाओं में पूँजी अंतर्वाहों में तीव्र वृध्दि हुई है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है तो बाहरी मोर्चे पर जोखीम निर्यात में मंदी के बावजूद स्पष्टत: कम हो जाएगा। समग्र रूप में हमारी अनुमान है कि वृध्दि में तेजी बनी रहेगी यद्यवि औद्योगिक उतपदन में हाल की अस्थिरता कुछ चिंताएं पैदा करती है। मुद्रास्फाति का लगातार बढ़ना भी रूक गया प्रतीत होता है यद्यपि दरें कुछ महीनों तक उच्चतर रह सकी है। गैर-खाद्य विनिर्माण मुद्रास्फाति में शुरूआती दासोन्मुख संकेत यह प्रस्तावित करते हैं कि हाल की मौद्रिक कार्रवायों का अबाधित स्वरूप में प्रत्याशओं और माँग दोनों पर प्रभाव पड़ा है। यदि वैश्विक स्थिति स्थिर होती है, तो इससे पूँजी प्रवाहों में स्थिरता को रोकने में सहायता मिलेगी। लेकिन इसके झटके पण्य वस्तु कीमतों के सुदृढ़ होने तथा परिणामी मुद्रास्फातिकारी दबावों के रूप में संभव होंगे। प्रत्याशित परिणाम इस समीक्षा में किए गए उपायों से • वृध्दि में कोई अवरोध पैदा किए बिना मुद्रास्फाति और मुद्रास्फातिकारी प्रत्याशाओं को रोका जा सकेगा। • ओवरनाइट माँग मुद्रा दरों में अस्थिरता में कमी आएगी जिससे मौद्रिक अंतरण व्यवस्था को मजबूत किया जा सकेगा। • मौद्रिक नीति लिखतों के सामान्यीकरण की प्रक्रिया जारी रहेगी। अक्तूबर 2009 से रिज़र्व बैंक की दर और चलनिधि कार्रवाइयाँ दो मुद्दों पर की गईं: जैसे-जैसे संकट कम हुआ मौद्रिक नीति रूझान का सामान्यीकरण तथा मुद्रास्फीति प्रबंधन। रिज़र्व बैंक का मानना है कि इस अवधि के दौरान जो मजबूती आयी उसने मौद्रिक परिस्थिति को लगभग सामान्य कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप और आगे की कार्रवाइयों के लिए प्रोत्साहन के रूप में सामान्यीकरण की भूमिका संभवत: कम महत्वपूर्ण है। चालू और प्रत्याशित समष्टिआर्थिक व्यवस्था परिस्थितियाँ आगे चलकर अधिक महत्वपूर्ण मुद्दे बनेंगे। रिज़र्व बैंक इन परिस्थितियों पर निगरानी रखेगा, खासकर मूल्य स्थिति को और जब आवश्यक होगा अगली कार्रवाई करेगा। अल्पना किल्लावाला प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/389 |