तिमाही के मध्य में मौद्रिक नीति की समीक्षा : सितंबर 2011 - आरबीआई - Reserve Bank of India
तिमाही के मध्य में मौद्रिक नीति की समीक्षा : सितंबर 2011
16 सितंबर 2011 तिमाही के मध्य में मौद्रिक नीति की समीक्षा : सितंबर 2011 मौद्रिक उपाय वर्तमान समष्टि आर्थिक आकलन के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि :
रिपो दर में उपर्युक्त वृद्धि के परिणामस्वरूप चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर तत्काल प्रभाव से स्वत: 7.25 प्रतिशत तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर 9.25 प्रतिशत तक समायोजित हो जाएगी। परिचय 26 जुलाई को रिज़र्व बैंक की पहली तिमाही समीक्षा के बाद वैश्विक समष्टि आर्थिक संभावना अत्यंत खराब हो गई है। एकमत से यह स्वीकार किया जा रहा है कि यह मंदी पूर्व में अपेक्षित अवधि से अधिक दिनों तक व्याप्त रहेगी। यूरो क्षेत्र में सरकारी ऋण समस्या के ऊपर चिंताओं ने सुधार की संभावना के प्रति और अनिश्चितता प्रस्तुत की है। घरेलू स्तर पर सुधरती हुई वृद्धि के कई संकेतकों द्वारा उल्लेख किए जाने पर भी हेडलाईन और गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति दोनों असहज रूप से उच्चतर स्तर पर बनी हुई हैं। कच्चे तेल की कीमतें उच्चतर बनी हुई हैं। एक सामान्य मानसून के होते हुए भी खाद्यान्न मूल्य मुद्रास्फीति जारी है। मुद्रास्फीतिकारी दबावों के वर्ष 2011-12 की अंतिम अवधि में सामान्य होने की आशा की जाती है। ऊर्जा कीमतों के स्थिरीकरण और सुधरती हुई घरेलू मॉंग से इस प्रक्रिया को सुविधा मिलेगी। तथापि वर्तमान परिदृश्य में अगले कुछ महीनों तक मुद्रास्फीति को उच्चतर बने रहने की संभावना के साथ बढ़ती हुई मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाएं एक मुख्य जोखिम बनी हुई हैं। इससे यह अनिवार्य हो जाता है कि वर्तमान मुद्रास्फीति विरोधी रूझान को बनाया रखा जाए। वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्ष 2011 की दूसरी तिमाही (अप्रैल-जून) में वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी आई है। अग्रणी संकेतक जैसेकि क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआइ) तीसरी तिमाहीयों में आर्थिक गतिविधियों में वैश्विक विनिर्माण पीएमआइ के 50 के स्तर पर तटस्थ रहने के साथ और नरमी का प्रस्ताव करते हैं। हाल के सप्ताहों में वैश्विक वित्तीय बाज़ार यूरो क्षेत्र सरकारी ऋण समस्या के अपर्याप्त समाधान, यूरो क्षेत्र सरकारी ऋण के प्रति बैंकों का निवेश तथा मंदी पुन: पैदा होने का भय की अवधारणाओं द्वारा बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। वैश्विक सुधार भी कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में राजकोषीय समेकन उपायों द्वारा प्रभावित होगी। अमरीका में राजकोषीय चिंताओं के अलावा लगातार बढ़ती हुई बेरोज़गारी और कमज़ोर आवास बाज़ार निरंतर उपभोक्ता के विश्वास और निजी उपभोग पर निर्भर हो रहे हैं। आर्थिक गतिविधि के कमज़ोर होने की प्रतिक्रिया में अमरीकी संघीय खुले बाज़ार समिति ने अपने 9 अगस्त की बैठक में उल्लेख किया था कि वह संघीय नीति दर को वर्ष 2013 के मध्य तक कम-से-कम शून्य पर बनाए रखेगी। यूरो क्षेत्र में आथ्रिक गतिविधि में निजी और सरकारी उपभोग व्यय में गिरावट के साथ-साथ पूँजी निर्माण में गिरावट को दर्शाते हुए वर्ष 2011 की दूसरी तिमाही के दौरान उल्लेखनीय रूप से गिरावट हुई है। जापान में आथ्रिक गतिविधि भूकंप/सुनामी के प्रभाव को दर्शाते हुए संकुचित हो गई है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत वृद्धि उभरती हुई और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति को रोकने के लिए मौद्रिक कड़ाई की प्रतिक्रिया में कुछ नरमी के होते हुए भी सापेक्षिक रूप से अनुकूल बनी रही है। घरेलू अर्थव्यवस्था वृद्धि सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही में घटकर 7.7 प्रतिशत हो गई जो पिछली तिमाही में 7.8 प्रतिशत तथा एक वर्ष पूर्व की तदनुरूपी तिमाही में 8.8 प्रतिशत थी। कृषि वृद्धि में तेज़ी आई है लेकिन उपयोग और सेवाओं में गिरावट हुई है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) वर्ष-दर-वर्ष जून में 8.8 प्रतिशत से कम होकर जुलाई में 3.3 प्रतिशत हो गया है। तथापि, पूँजीगत वस्तुओं को छोड़कर आइआइपी की वृद्धि जुलाई में उच्चतर रहते हुए जून में 4.5 प्रतिशत की तुलना में 6.7 प्रतिशत थी। कुल मिलाकर अप्रैल-जुलाई 2011 के दौरान आइआइपी में 5.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में 9.7 प्रतिशत थी। विनिर्माण क्षेत्र के लिए एचएसबीसी क्रय प्रबंधक सूचकांक ने भी नरमी का प्रस्ताव किया है। वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही में कंपनी मार्जिन वर्ष 2010-11 की चौथी तिमाही में अपने स्तरों की तुलना में कई क्षेत्रों में समग्र रूप से नरमी दर्शाई है। तथापि कुछ क्षेत्रों को छोड़कर बढ़ते हुए इनपुट का उल्लेखनीय पास-थ्रू अभी भी दिखाई दे रहा है। मानसून की वर्षा अब तक सामान्य रही है। वर्ष 2011-12 के खरीफ मौसम के लिए पहला अग्रिम अनुमान चावल, तिलहन और कपास के उल्लेखनीय उत्पादन का संकेत करता है जबकि दालों के उत्पादन में गिरावट हो सकती है। मुद्रास्फीति हेडलाईन वर्ष-दर-वर्ष थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) मुद्रास्फीति जुलाई में 9.2 प्रतिशत से बढ़कर अगस्त 2011 में 9.8 प्रतिशत हो गई। प्राथमिक वस्तुओं और इंधन समूहों के संबंध में मुद्रास्फीति अगस्त में बढ़ी है। वर्ष-दर-वर्ष गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति जुलाई में 7.5 प्रतिशत से बढ़कर अगस्त 2011 में 7.7 प्रतिशत हो गई है जो अभी भी मॉंग दबावों के बने रहने का प्रस्ताव करती है। तेल विपणन कंपनियों ने पेट्रोल की कीमत को 16 सितंबर 2011 से प्रति लीटर ₹3.15 तक बढ़ा दिया है। इसका डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति में कुछ अंतरालों के बाद अप्रत्यक्ष प्रभाव के अतिरिक्त 7 आधार अंकों का प्रत्यक्ष प्रभाव होगा। नया संयुक्त (ग्रामीण और शहरी) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (आधार वर्ष : 2010 = 100) जून के 108.8 प्रतिशत से बढ़कर जुलाई में 110.4 प्रतिशत हो गया। अन्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों ने मुद्रास्फीति दरों में जुलाई में 8.4 से 9.0 प्रतिशत की श्रेणी में बढ़ोतरी दर्ज की। मौद्रिक, ऋण और चलनिधि स्थितियॉं वर्ष-दर-वर्ष मुद्रा आपूर्ति (एम3) वृद्धि अगस्त में 16.7 प्रतिशत थी जो सावधि जमाराशियों में उच्चतर वृद्धि और मुद्रा वृद्धि में नरमी को दर्शाने वाले वर्ष के लिए 15.5 प्रतिशत के अनुमान की अपेक्षा उच्चतर थी। उसी प्रकार वर्ष-दर-वर्ष गैर-खाद्य ऋण वृद्धि अगस्त 2011 में 20.1 प्रतिशत पर रही जो जुलाई की समीक्षा में निर्धारित 18 प्रतिशत के सांकेतिक अनुमान से अधिक थी। चलनिधि मौद्रिक नीति के रूझान के अनुरूप घाटे में रही है। चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत दैनिक औसत उधार सितंबर में (15 सितंबर 2011 तक) लगभग ₹40,000 करोड़ थे। मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाज़ार व्यवस्थित रहे। हाल के सप्ताह में वैश्विक जोखिम से बचने के परिणामस्वरूप रुपये में अवमूल्यन हुआ है जिसका मुद्रास्फीति के लिए प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है। मौद्रिक अंतरण में 25 अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा जुलाई की समीक्षा के बाद 25-100 आधार अंकों तक उनके आधार दरों में बढ़ोतरी से और मज़बूती आई है। परिणामत: बैंकों का आदर्श आधार दर जुलाई में 10.25 प्रतिशत से बढ़कर अगस्त में 10.75 प्रतिशत हो गया है। राजकोषीय स्थितियॉं केंद्र सरकार के राजकोषीय संतुलन प्राथमिक रूप से उच्चतर प्रेट्रोलियम और उर्वरक आर्थिक सहायता के कारण गैर-योजना राजस्व व्यय से दबावों के साथ मिलकर राजस्व प्राप्तियों में गिरावट के प्रभाव को दर्शाते हुए वर्ष 2011 के अप्रैल-जुलाई के दौरान बढ़ गए। वर्तमान राजकोषीय वर्ष के पहले चार महीनों में बजट अनुमानों का 55.4 प्रतिशत पर राजकोषीय घाटा उल्लेखनीय रूप से पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि (बजटीकृत स्पेक्ट्रम आय से अधिक को समायोजित किए जाने के बाद) में 42.5 प्रतिशत की अपेक्षा उच्चतर था। सारांश पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में गतिविधियों के सारांश गंभीर चिंता के विषय हैं। इन बढ़ी हुई चिंताओं के बीच उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि की गति कमज़ोर हो रही हैं कि सुधार में पूर्व प्रत्याशित अवधि की अपेक्षा अधिक समय लग सकता है। यद्यपि, भारत में निर्यात ने हाल की अवधि में बहुत अच्छा कार्यनिष्पादन किया है, इस प्रवृत्ति को कमज़ोर होती हुई वैश्विक मॉंग के समक्ष जारी रहने की संभावना है। यह घरेलू मॉंग में होती हुई कमी से जुड़कर जिसमें मौद्रिक नीति रूझान भी योगदान कर रहा है, प्रस्तावित करता है कि जुलाई की समक्षा में वर्ष 2011-12 के लिए किए गए वृद्धि अनुमान के प्रति जोखिम अवनतिशील हैं। इस बीच मुद्रास्फीति उच्चतर, सामान्यीकृत तथा रिज़र्व बैंक की सुविधा क्षेत्र से काफी ऊपर बनी हुई है। जुलाई में हल्की नरमी के बाद गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति जारी मॉंग दबावों का प्रस्ताव करते हुए अगस्त में फिर से बढ़ी है। वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें वैश्विक सुधार के कमज़ोर होने के बावजूद उच्च स्तरों पर बनी हुई हैं। इसके अतिरिक्त अभी भी दबी हुई मुद्रास्फीति का एक तत्व है। यद्यपि वैश्विक तेल की कीमतों में सुधार हुआ है घरेलू कीमतों में पास-थ्रू अपूर्ण बना हुआ है। वर्तमान लागू बिजली कीमतें भी इनपूट कीमतों में वृद्धि को अभी दर्शाने वाली हैं यद्यपि कई राज्यों ने वृद्धि के प्रयास शुरू कर दिए हैं। खाद्य मुद्रास्फीति सामान्य मानसून के बावजूद इस तथ्य को रेखांकित करते हुए दुहरे अंकों वाले स्तरों पर है कि यह संरचनात्मक मॉंग-आपूर्ति असंतुलनों द्वारा संचालित हो रहा है और एक अस्थायी परिदृश्य में इसे नकारा नहीं जा सकता है। गैर-मौसमीकृत क्रमबद्ध मासिक ऑंकड़ें में दर्शाये गए अनुसार मुद्रास्फीति की गति जारी है। प्रत्याशित परिणाम इस समीक्षा में नीति कार्रवाई से यह प्रत्याशित है कि :
मार्गदर्शन रिज़र्व बैंक द्वारा अब तक प्रभावित मौद्रिक कड़ाई ने मुद्रास्फीति को रोकने और मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं को व्यवस्थित करने में सहायता की है, यद्यपि दोनो रिज़र्व बैंक की सुविधा क्षेत्र के बाहर के स्तरों पर बने हुए हैं। चूँकि मौद्रिक नीति एक अंतराल के बाद परिचालित होती है, नीति कार्रवाईयों का संचयी प्रभाव अब लगातार मॉंग में और सुधार तथा वर्ष 2011-12 के अंतिम भाग में मुद्रास्फीति सीमा के प्रत्यावर्तन में महसूस किया जा सकता है। अत: नीति रूझान में कोई असामयिक परिवर्तन मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं को कड़ा कर सकता है जिसके द्वारा पिछली नीति कार्रवाईयों के प्रभाव विलीन हो सकते हैं। अत: यह आवश्यक है कि मुद्रास्फीति विरोधी वर्तमान रूझान को बनाए रखा जाए। आगे जाकर इन रूझानों पर मुद्रास्फीति सीमा में अवनतिशल गतिविधि के संकेतों के प्रभाव होंगे जिससे मॉंग में सुधार से योगदान तथा वैश्विक गतिविधियों के प्रभाव की आशा की जाती है। अल्पना किल्लावाला प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/423 |