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गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी विनियमावली आशोधित

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी विनियमावली आशोधित

29 मार्च 2003

तुलनपत्र फार्मेट

रिज़र्व बैंक ने आज समस्त गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से कहा कि वे 31 मार्च 2003 को समाप्त होनेवाले वित्तीय वर्ष से प्रभावी एक अनुसूची तुलन-पत्र के साथ लगायें और कुछेक अतिरिक्त ब्यौरे दें। रिज़र्व बैंक ने अनुसूची के लिए एक फार्मेट निर्धारित किया है। इसमें संबंधित पार्टियों को दिये गये उधारकर्ता-वार तथा निवेशक-वार ऋण, अनर्जक आस्तियों की स्थिति तथा लीजॅ और किराया खरीद एवं अन्य गतिविधियों के बारे में जानकारी शामिल होगी। ये ब्यौरे अब तक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के तुलन-पत्र में उपलब्ध नहीं थे। ये अनुदेश निम्नलिखित गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, उदाहरण के लिए उपस्कर लीज़िंग, किराया खरीद वित्त, ऋण, निवेश तथा अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियों पर लागू होंगे। इस जानकारी से विनियामकों, जमाकर्ताओं तथा तुलन-पत्र के अन्य उपयोगकर्ताओं को सुविज्ञ निर्णय लेने में मदद मिलेगी। रिज़र्व बैंक ने तुलन-पत्र का मूल ढांचा नहीं बदला है। यह कंपनी अधिनियम, 1956 की अनुसूची 6 के अनुसार तैयार किया जाता रहेगा।

अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियों द्वारा निवेश

रिज़र्व बैंक ने यह भी उल्लेख किया है कि पहली अप्रैल 2003 से अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियों पर लागू म्युचअल निधियों की यूनिटों में दो प्रतिशत सकल जमा देयता की अलग-अलग उच्चतम सीमा द्वारा भारतीय यूनिट ट्रस्ट की यूनिटों में निवेश के लिए भी लागू होगी। अलबत्ता, अवशिष्ट गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा सभी म्युच्युअल निधियों में सकल निवेश कुल जमा देयता के 10.0 प्रतिशत से अनधिक बना रहेगा। अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियों द्वारा 31 मार्च 2003 की स्थिति के अनुसार यूटीआइ की योजनाओं में निवेश, उनका विनिवेश किये जाने तक अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनी निदेशों के पैरा 6 के अंतर्गत प्रतिभूतियों का हिस्सा बने रहेंगे। रिज़र्व बैंक ने यह सूचित किया है कि अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनी निदेशों के प्रावधानों को तद्नुसार आशोधित किया गया है।

पृष्ठभूमि

रिज़र्व बैंक ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के वित्तीय विवरणी का डिज़ाइन बदलने पर कार्यदल की सिफारिशों के आधार पर आवश्यकता महसूस किये गये कुछेक परिवर्तनों के अनुसरण में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की गतिविधियों को विनियमित करने वाले निदेशों को संशोधित करने का निर्णय लिया है। इन सिफारिशों पर प्राप्त अभिमतों तथा वित्तीय प्रणाली में अन्य गतिविधियों, उदाहरण के लिए कंपनी अधिनियम, 1956 में आशोधन, इन्स्टिट्यूट ऑफ चार्टड़ एकाउंटेंट्स द्वारा नये लेखाकरण मानक जारी किया जाना आदि को देखते हुए रिज़र्व बैंक ने यह निर्णय लिया है कि 31 मार्च 2003 के बाद के तुलन-पत्र से प्रभावी समस्त अवशिष्ट गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (भले ही वे सार्वजनिक जमाराशियां रखती हों अथवा नहीं) अपने तुलन-पत्र में एक अतिरिक्त अनुसूची लगायेंगी जिसमें बैंक द्वारा निर्धारित फार्मेट के अनुसार अतिरिक्त ब्यौरे दिये जायेंगे।

रिज़र्व बैंक के निदेशों के अनुसार अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियां जमाकर्ताओं के प्रति अपनी सकल देयताओं के 10.0 प्रतिशत तक भारतीय यूनिट ट्रस्ट तथा अन्य म्युच्युअल निधियों की यूनिटों में निवेश कर सकती थीं। ये निवेश इस शर्त पर थे कि किसी एक म्युच्युअल निधि में निवेश उनकी सकल देयताओं के 2.0 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। अलबत्ता, किसी एक म्युच्युअल निधि में निवेश के लिए 2.0 प्रतिशत की अलग-अलग अधिकतम सीमा अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियों के यूटीआइ योजनाओं में निवेशों पर लागू नहीं थी।

भारतीय यूनिट ट्रस्ट का द्विशाखन कर दिये जाने के परिणामस्वरूप यूटीआइ की म्युच्युअल निधि गतिविधियां किसी अन्य म्युच्युअल निधि की ही तरह भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोड़ (म्युच्युअल फंड्स) (विनियमावली, 1996) द्वारा संचालित होंगी। इसके परिणामस्वरूप, यह निर्णय लिया गया था कि यूटीआइ में निवेशों को विशेष दर्जा दिये जाने को समाप्त कर दिया जाए।

अल्पना किल्लावाला
महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2002-2003/1013

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