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गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां डिमांड/कॉल ऋणों

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां डिमांड/कॉल ऋणों
के लिए नीति बनायेंगी

4 मार्च 2002

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज घोषित किया कि डिमांड/कॉल ऋण मंजूर करनेवाली/मंजूर करना चाहनेवाली सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को चाहिए कि वे उनके निदेशक बोड़ से यथाविधि अनुमोदित नीति तैयार करें। नीति में निम्नलिखित पहलुओं को शामिल किया जाना चाहिएः

  1. ऐसी कट-ऑफ तारीख का निर्धारण जिसके अंदर ऋण की चुकौती मांगी/बुलायी जाए। यदि कट-ऑफ तारीख एक वर्ष से बाहर हो, स्वीकृतकर्ता प्राधिकारी को चाहिए कि वह उन विशिष्ट कारणों को अभिलिखित करें।
  2. ब्याज की दर और ब्याज के भुगतान के लिए आवधिक विराम का निर्धारण जो तिमाही/मासिक अंतरालों पर किया जाना चाहिए। जिन मामलों में कोई ब्याज लगाया नहीं गया है या ऋण-स्थगन मंजूर किया गया है, स्वीकृतकर्ता प्राधिकारी को चाहिए कि वह उन विशिष्ट कारणों को अभिलिखित करें।
  3. ऋण के कार्य-निष्पादन की समीक्षा के लिए छह महीने से अनधिक कट-ऑफ तारीख का निर्धारण।
  4. ऐसे ऋणों का नवीकरण, उनकी मंजूरी की शर्तों के संतोषजनक अनुपालन को कवर करनेवाली समीक्षा के आधार पर किया जाए।

रिज़र्व बैंक ने यह भी स्पष्ट किया है कि ऐसे सभी ऋण जो डिमांड/कॉल की तारीख से छह महीने से अधिक अवधि के लिए अदत्त रहते हैं या ऐसे ऋण जो देय तारीख से छह महीनों से अधिक अवधि के लिए पिछली अवधि से देय रहते हैं उन्हें अनुपयोज्य आस्तियों के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। ऋणों, अग्रिमों और अन्य ऋण सुविधा के लिए लागू प्रावधानन आवश्यकताएं इन ऋणों को भी लागू होंगी।

पृष्ठभूमि

चूंकि कतिपय गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां खुली अवधि के साथ या ब्याज की दर और उसकी चुकौती के संबंध में किसी निर्धारण के बिना डिमांड/कॉल ऋण मंजूर करती थीं, इन ऋणों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानन पर विवेकपूर्ण मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने में कठिनाई होती थी। इस समस्या को दूर करने और यह सुनिश्चित करने कि इन सभी ऋणों का यथोचित वर्गीकरण किया जाता है तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के वित्तीय विवरणों में अनुपयोज्य आस्तियों की सही स्थिति प्रतिबिंबित कराने के लिए उक्त निदेश जारी किये गये हैं।

अल्पना किल्लावाला
महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2001-2002/979

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