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रिज़र्व बैंक समसामयिक पेपर खण्‍ड 40, 2019 का प्रकाशन

30 जुलाई 2019

रिज़र्व बैंक समसामयिक पेपर खण्‍ड 40, 2019 का प्रकाशन

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने समसामयिक पेपर खण्‍ड 40, सं. 1 को जारी किया। रिज़र्व बैंक समसामयिक पेपर रिज़र्व बैंक की एक अनुसंधान पत्रिका है और इसमें इसके कर्मचारियों का योगदान होता है । इस अंक में चार लेख और तीन पुस्तक समीक्षाएं शामिल हैं।

लेख

1. रात्रि का प्रकाश (नाइट-टाइम ल्युमिनोसिटी) : क्या यह भारत की आर्थिक गतिविधियों की समझ को स्पष्ट करता है ?

अनुपम प्रकाश, अवधेश कुमार शुक्ल, चैताली भौमिक और रॉबर्ट कार्ल माइकल बेयर ने भारतीय संदर्भ में आर्थिक गतिविधि के पूरक उपाय के रूप में रात्रि के प्रकाश का उपयोग करने की संभावनाओं का पता लगाया है । लेखकों का दावा है कि रात्रि का प्रकाश सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और औद्योगिक उत्पादन और ऋण वृद्धि जैसे अन्य महत्वपूर्ण व्यापक आर्थिक संकेतकों के साथ दृढ़ता से संबंधित है। मौसमी कारकों को नियंत्रित करने के बाद भी, कृषि और निजी खपत व्यय में मूल्य-वर्धन के साथ रात्रि के प्रकाश का संबंध सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, नाइट-लाइट डेटा को सांख्यिकीय दृष्टि से महत्वपूर्ण रूप में सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के साथ संबद्ध किया जाता है।

2. भारत में स्थानिक मुद्रास्फीति की गतिशीलता: एक अनुभवजन्य दृष्टिकोण

अरविंद झा और शरत धाल प्रमुख भारतीय राज्यों में कृषि श्रमिकों और औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति पर लगाए जाने वाले विभिन्न मांग, आपूर्ति, नीति और संरचनात्मक कारकों के लिए अनुभवजन्य साक्ष्य प्रदान करते हैं। उनके परिणामों से पता चलता है कि मुद्रास्फीति की दृढ़ता, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, कृषि उत्पादन, तेल की कीमतें, ब्याज दर, राज्य सरकार के व्यय और करों, बिजली और पानी जैसे संरचनात्मक कारकों का क्षेत्रीय उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति पर सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

3. भारत में ग्रामीण मजदूरी गतिशीलता: मुद्रास्फीति क्या भूमिका निभाती है?

सुजाता कुंडू जनवरी 2001 से फरवरी 2019 के दौरान भारत में ग्रामीण मजदूरी के रुझानों का विश्लेषण करने का प्रयास करती हैं, ताकि प्रमुख कारकों की पहचान की जा सकें जो कृषि मजदूरी वृद्धि में हालिया मंदी को परिभाषित कर सकें।पेपर मुद्रास्फ़ीति प्रक्षेपवक्र के लिए वेतन-मूल्य ह्रास के जोखिम का भी आकलन करता है। परिणाम बताते हैं कि कृषि और गैर-कृषि मजदूरी दोनों ग्रामीण मूल्यों के साथ लंबे समय तक सकारात्मक संबंध साझा करते हैं। नवंबर 2013 से फरवरी 2019 की अवधि के लिए, गैर-कृषि मजदूरी, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनएनजीएस) और वर्षा की सामान्य प्रवृति से विचलन जैसे अन्य निर्धारकों को नियंत्रित करने के बावजूद ग्रामीण मूल्यों में बदलाव का नाममात्र कृषि मजदूरी में परिवर्तन पर सकारात्मक और महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा । नाममात्र कृषि मजदूरी गैर-कृषि मजदूरी का एक स्थिर और महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव प्रकट करती है। यह पेपर अध्ययन की अवधि के दौरान भारत में मजदूरी-मूल्य के ह्रास के लिए कोई मजबूत अनुभवजन्य साक्ष्य नहीं खोज पाता है।

4. मुद्रास्फीति अनुमान हेतु युक्तिसंगत अपेक्षाओं का उपयोग

पूर्णिमा शॉ देखे गए मुद्रास्फीति पूर्वानुमान के लिए परिवार मुद्रास्फीति अपेक्षाओं का उपयोग करने की संभावना की जांच करती है। वह पाती हैं कि घरेलू मुद्रास्फीति की अपेक्षाएं भिन्न-भिन्न उपभोग बास्केट से संबंधित हैं। भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी इसे अक्सर वास्तविक मुद्रास्फीति से अपसारी अपेक्षित मुद्रास्फीति के कारण के रूप में उद्धृत किया जाता है। भारत में परिवारों की मुद्रास्फीति की अपेक्षाएं युक्तिसंगतता के लिए सांख्यिकीय गुणों को पूर्ण नहीं करती हैं। इसलिए, वह संयोजन से उत्पन्न, एक इष्टतम वितरण के माध्यम का अनुमान लगाने के लिए मुद्रास्फीति अपेक्षाओं को एकत्र करती है। जैसा कि इष्टतम वितरण का मतलब तर्कसंगत है, वे हेडलाइन मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान सृजित करने के लिए उपयोगी हो सकते हैं। एक आउट-ऑफ-सैंपल निष्पादन विश्लेषण के आधार पर, पेपर स्थापित करता है कि भारतीय परिवारों की कच्ची उम्मीदों को, जब तर्कसंगत मुद्रास्फीति की उम्मीदों में तब्दील किया जाता है, तब वह पेशेवर पूर्वानुमान लगाने वालों के साथ तुलना के योग्य दूरंदेशी जानकारी बन जाती है। इसके अलावा, तब्दील उम्मीदों के लिए विश्वास के बैंड की चौड़ाई शुद्ध समय श्रृंखला पूर्वानुमानों से प्राप्त उम्मीदों की तुलना में बहुत संकीर्ण होती है।

पुस्तक समीक्षा

समसामयिक पेपर में तीन पुस्तक समीक्षाएं भी शामिल हैं

1. हिमानी शेखर ने आतिश आर. घोष, जोनाथन डी. ओस्ट्री और माहवाश एस. कुरैशी द्वारा लिखित पुस्तक "टैमिंग द टाइड ऑफ कैपिटल फ्लो: ए पॉलिसी गाइड" की समीक्षा की है। पुस्तक पूंजी प्रवाह से जुड़े अवसरों और चुनौतियों का एक व्यापक परिदृश्य प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक वित्तीय वैश्वीकरण के इस युग में बड़े और अस्थिर पूंजी प्रवाह के साथ उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईएमडीई) की मदद करने के इरादे से नीतिगत उपायों पर व्यापक रूप से विचार-विमर्श करती है।

2. रिचर्ड एच. थेलर द्वारा लिखित पुस्तक "मिसबिहेविंग: द मेकिंग ऑफ बिहेवियरल इकोनॉमिक्स" की शोभित गोयल ने समीक्षा की है। पुस्तक पारंपरिक आर्थिक मॉडल की सीमाओं को प्रदर्शित करती है जो पूर्ण रूप से तर्कसंगत लेकिन काल्पनिक ’इकोन्स’ मानती है और वास्तविक मनुष्यों के व्यवहार या ‘दुर्व्यवहार’ के तरीके पर एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है।

3. इप्सिता पाधी ने रघुराम जी. राजन द्वारा लिखित "द थर्ड पिलर: हाउ मार्केट्स एंड द स्टेट लीव द कम्युनिटी बिहाइंड" पुस्तक की समीक्षा की। पुस्तक समाज के अक्सर उपेक्षित तीसरे स्तंभ - समुदाय पर प्रकाश डालती है। पुस्तक एक समाज के तीन स्तम्भ- राज्य, बाजार और समुदाय की भूमिका के पुनर्संतुलन के लिए व्यापक समाधान प्रस्तुत करती है।

योगेश दयाल
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2019-2020/283

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