भारतीय रिज़र्व बैंक ने पूँजी खाता लेनदेन के लिए और उदारीकरण उपायों की घोषणा की - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक ने पूँजी खाता लेनदेन के लिए और उदारीकरण उपायों की घोषणा की
25 जून 2012 भारतीय रिज़र्व बैंक ने पूँजी खाता लेनदेन के लिए और उदारीकरण उपायों की घोषणा की भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआइ) ने भारत सरकार के परामर्श से निम्नलिखित उपायों को तत्काल प्रभाव से लागू करने का निर्णय लिया है: यह निर्णय लिया गया है कि विनिर्माण और मूलभूत सुविधा क्षेत्र तथा विदेशी मुद्रा अर्जन करने वाली भारतीय कंपनियों को अनुमोदन मार्ग के अंतर्गत पूँजी व्यय और/अथवा नए रुपया पूँजी व्यय के प्रति बकाया रुपया ऋणों की चुकौती के लिए बाह्य वाणिज्यिक उधार(इसीबी) के उपभोग की अनुमति दी जाए। ऐसे बाह्य वाणिज्यिक उधारों की समग्र सीमा 10 बिलियन अमरीकी डॉलर होगी। सरकारी प्रतिभूतियों (जी-प्रतिभूति) में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) द्वारा निवेश की विद्यमान सीमा में 5 बिलियन अमरीकी डॉलर की राशि तक और बढ़ोतरी की गई है। इससे सरकारी प्रतिभूतियों में विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा निवेश के लिए समग्र सीमा 15 बिलियन अमरीकी डॉलर से 20 बिलियमन अमरीकी डॉलर हो जाएगी। सरकारी प्रतिभूतियों के लिए अनिवासी निवेश आधार को व्यापक आधारित बनाने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि सरकारी संपत्ति निधियों (एसडब्ल्यूएफ), बहु-पार्श्विक एजेंसियों, धर्मादा निधियों, बीमा निधियों, पेंशन निधियों जैसे दीर्घावधि निवेशकों तथा विदेशी केंद्रीय बैंकों को भी सेबी के साथ पंजीकृत होने की अनुमति दी जाए ताकि वे भी 20 बिलियन अमरीकी डॉलर की समस्त सीमा के लिए सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करें। 10 बिलियन अमरीकी डॉलर की उप सीमा (5 वर्षों की अवशिष्ट परिपक्वता के साथ विद्यमान 5 बिलियन अमरीकी डॉलर तथा 5 बिलियन अमरीकी डॉलर की अतिरिक्त सीमा) को 3 वर्षों की अवशिष्ट परिपक्वता होगी। मूलभूत सुविधा ऋण में विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा निवेश की योजना तथा मूलभूत सुविधा विकास निधि (आइडीएफ) योजना के लिए शर्तों को अवरूद्धता (लॉक-इन) अवधि तथा अवशिष्ट परिपक्वता के अनुसार और विवेकसम्मत बनाया गया है। इसके अतिरिक्त अर्हक विदेशी निवेशक (यूएफआइ) अब उन पारस्परिक निधि (एमएफ) योजनाओं में निवेश कर सकते हैं जो मूलभूत सुविधा से संबंधित पारस्परिक निधियों में निवेश के लिए वर्तमान में 3 बिलियन अमरीकी डॉलर की उप-सीमा के अंतर्गत मूलभूत सुविधा क्षेत्र में अपनी आस्तियों (या तो ऋण अथवा ईक्विटी अथवा दोनों में) का कम-से-कम 25 प्रतिशत धारण करते हैं। विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा), 1999 के अंतर्गत उपर्युक्त उपायों के लिए परिचालनात्मक/विनियामक दिशानिर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/2057 |