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भारतीय रिज़र्व बैंक ने अतिरिक्त मौद्रिक प्रोत्साहन की घोषणा की

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02 जनवरी 2009

भारतीय रिज़र्व बैंक ने अतिरिक्त मौद्रिक प्रोत्साहन की घोषणा की

वैश्विक वित्तीय परिस्थिति की अनिश्चितता अब भी जारी है। अमरीका, यू.के., यूरो क्षेत्र और जापान में मंदी की आधिकारिक घोषणा के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था की ह्रासोन्मुख जोखिम में वृद्धि हुई है। साथ ही, विकसित अर्थव्यवस्थाओं में नीति के प्रयास मंदी को कम करने का प्रबंधन करने और व्यवहार्य अवस्फीतिकारी प्रवृत्तियों को रोकने की ओर अधिक है। अमरीका ने फेडरल की निधियों के दर को 0 से 0.25 प्रतिशत तक घटाया है। कई अन्य विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाएं जैसे कि जापान, कैनडा, रिपब्लिक ऑफ कोरिया, हाँग-काँग और चीन ने भी अपने नीति दरों को कम किया है।

भारतीय वित्तीय क्षेत्र ने वैश्विक वित्तीय संकट जोकि इतना गहरा और अस्थिर है के दौरान भी लचीलापन बनाए रखा है। हमारे वित्तीय बाज़ारों का ठीक तरह से कार्य करना जारी रहा। तथापि, भारत की विकास की गति वित्तीय संकट और उससे उभरी वैश्विक आर्थिक मंदी दोनों के कारण प्रभावित हुई। यह प्रभाव पहले सोचा था उससे भी अधिक गहरा और व्यापक हो गया है। फिर भी, वैश्विक गतिविधियों और हमारी आपूर्ति और माँग प्रबंधन के उपायों के कारण मुद्रास्फीति कम हो रही है।

इन गतिविधियों को दर्शाते हुए रिज़र्व बैंक ने अपनी नीति के रूझान को माँग प्रबंधन से हटाकर विकास में नरमी को रोकने की ओर किया है। खासकर, इन उपायों का लक्ष्य घरेलू और विदेशी मुद्रा चलनिधि को बढ़ाना है और यह सुनिश्चित करना है कि अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को ऋण प्रवाह जारी रहे। उल्लेखनीय रूप से सितंबर 2008 के मध्य से रिज़र्व बैंक ने चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रिपो दर को 9.0 प्रतिशत से 6.5 प्रतिशत तक घटाया, चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर को 6.0 प्रतिशत से 5.0 प्रतिशत तक घटाया और आरक्षित नकदी निधि अनुपात को 9.0 प्रतिशत से 5.5 प्रतिशत से घटाया।

रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए विभिन्न उपायों के माध्यम से वित्तीय प्रणाली को उपलब्ध कराई गई प्राथमिक चलनिधि की संचयी राशि 3,00,000 करोड़ रुपए है। इतनी व्यापक राशि से यह सुनिश्चित हुआ कि मध्य नवंबर की शुरूआत से चलनिधि स्थिति सुगम रही जैसाकि कई संकेतक दर्शाते है। 18 नवंबर 2008 से नीति के रूझान में निरंतरता के कारण चलनिधि समायोजन सुविधा में अधिकतर अधिशेष राशि बनी रही। ओवर-नाइट मुद्रा बाज़ार दर 3 नवंबर 2008 से निरंतर चलनिधि समायोजन सुविधा सीमा के भीतर बनी रही। 10 वर्षीय बेंचमार्क सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिलाभ 29 सितंबर 2008 को 8.66 प्रतिशत से घटकर 1 जनवरी 2009 को 5.31 प्रतिशत हो गया। रिपो और प्रत्यावर्तनीय रिपो दरों में कटौती से संकेत लेकर सभी सार्वजनकि क्षेत्र बैंकों और विभिन्न निजी क्षेत्र और विदेशी बैंकों ने अपने बेंचमार्क मूल उधार दरों (बीपीएलआर) को घटाया। उल्लेखनीय रूप से, शीर्ष के पाँच सार्वजनकि क्षेत्र बैंकों ने अपनी बीपीएलआर को 1 अक्तूबर 2008 के 13.75 से 14.00 प्रतिशत के स्तर से वर्तमान के 12.00 से 12.50 प्रतिशत के स्तर तक घटाया।

रिज़र्व बैंक वैश्विक गतिविधियों और घरेलू आर्थिक परिस्थितियों पर निरंतर निगरानी रखे हुए है। हर्ष की बात यह है कि मुद्रास्फीतिकारक दबाव उल्लेखनीय रूप से सुगम हुए। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआा) में वर्ष-दर-वर्ष के घट-बढ़ से मापी गई मुद्रास्फीति 20 दिसंबर 2008 को 6.38 प्रतिशत तक घटी जोकि 2 अगस्त 2008 को 12.91 प्रतिशत की उच्च मुद्रास्फीति से आधे से भी ज्यादा कम हुई। तथापि, उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति जैसेकि अक्तूबर-नवंबर 2008 को 10.38 से 11.11 प्रतिशत की स्तर में विभिन्न उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों में दर्शाई गई है में अभी सुगमता दर्शाना बाकी है।

साथ ही, आर्थिक क्रियाकलापों में मंदी दिखाई दे रही है। निर्यात ने फरवरी 2002 से पहली बार हाल ही के लगातार दो महीनों अक्तूबर-नवंबर 2008 के लिए नकारात्मक वृद्धि दर्ज की है। औद्योगिक उत्पाद का सूचकांक (आइआइपी) ने अक्तूबर 2008 के दौरान 0.4 प्रतिशत नकारात्मक वृद्धि दर्ज की जिसमें विनिर्माण क्षेत्र ने अप्रैल 1994 से पहली बार 1.2 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की। 4.1 प्रतिशत पर अप्रैल-अक्तूबर 2008 के दौरान आइआइपी वृद्धि पूववर्ती वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 9.9 प्रतिशत से आधे से भी कम थी। सेवा क्षेत्र जोकि पिछले कई वर्षों से विकास प्रमुख चालक रहा है में भी मंदी आई है। व्यवसाय के विश्वास पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है। निवेश माँग में कमी आने के स्पष्ट संकेत है।

हालांकि रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति के रूझान की प्रतिक्रिया में कुछ सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्रों की बैंकों ने अपनी उधार दरों में कटौती की है फिर भी बढ़ती ऋण जोखिम पर चिंता के साथ-साथ आर्थिक क्रियाकलापों की मंदी से ऋण वृद्धि में कमी होना दिखाई दे रहा है। रिज़र्व बैंक बैंकों को निरंतर अपने ऋण संविभाग की निगरानी रखने पर ज़ोर देने को कहा है और उन्हें जहाँ कहीं आवश्यक हो ऋण की पुनर्संरचना करना, अशोध्य आस्तियों को बढ़ने से संपूर्णत: रोकना और आस्ति गुणवत्ता को सुधारने में कई वर्षों से प्राप्त लाभों की सुरक्षा करना सहित त्वरित कार्रवाई करने पर ज़ोर दे रहा है। साथ ही, बैंकों को चाहिए कि वे अपने जोखिम का उपयुक्त मूल्य लगाएं और यह सुनिश्चित करें कि गुणवंत उद्यमों को निधि उपलब्ध कराना जारी रखा जाए। रिज़र्व बैंक इस बात कि सराहना करता है कि सामान्य परिस्थितियों में भी जोखिम प्रबंधन करना मुश्किल है; यह अनिश्चितता और मंदी के वातावरण में और भी अधिक कठिन है।

वर्तमान वैश्विक और घरेलू समष्टि आर्थिक परिस्थिति की समीक्षा करने पर रिज़र्व बैंक ने निम्नलिखित अतिरिक्त उपाय करने का निर्णय लिया:

रिपो दर

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रिपो दर को तत्काल प्रभाव से 100 आधार बिंदुओं से घटाते हुए 6.5 प्रतिशत से 5.5 प्रतिशत किया जाए।

प्रत्यावर्तननीय रिपो दर

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर को तत्काल प्रभाव से 100 आधार बिंदुओं से घटाते हुए 5.0 प्रतिशत से 4.0 प्रतिशत किया जाए।

आरक्षित नकदी निधि अनुपात

  • अनुसूचित बैंकों के आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को 17 जनवरी 2009 से शुरू होनेवाले पखवाड़े से 50 आधार बिंदुओं से घटाते हुए 5.5 प्रतिशत से 5.0 प्रतिशत किया जाए।

आरक्षित नकदी निधि अनुपात को घटाने से वित्तीय प्रणाली में लगभग 20,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त चलनिधि डाली जाएगी। यह अपेक्षा है कि नीति ब्याज दारों और आरक्षित नकदी निधि अनुपात में कटौती से और बैंकों को उत्पादक प्रयोजनों के लिए उपयुक्त ब्याज दरें उपलब्ध कराने में सहायता मिलेगी। रिज़र्व बैंक अपनी ओर से प्रणाली में सुगम चलनिधि स्थिति को बनाए रखेगी।

हमारी अर्थव्यवस्था का मूल आधार मज़बूत है। एक बार हम इस सकंट से बाहर निकल आते है और वैश्विक बाज़ारों में संयम और विश्वास लौट आता है तब भारत में आर्थिक गतिविधि तेज़ी से बढ़ेगी। किंतु यह दर्दनीय समझौते का समय अपरिहार्य है।

अल्पना किल्लावाला
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2008-2009/1023

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