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आरबीआई बुलेटिन – अप्रैल 2025

आज, भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का अप्रैल 2025 अंक जारी किया। बुलेटिन में द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य (9 अप्रैल 2025), चार भाषण, चार आलेख और वर्तमान आँकड़े शामिल हैं।

चार आलेख इस प्रकार हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. स्थायी जमा सुविधा के तीन वर्ष: कतिपय अंतर्दृष्टि; III. जलवायु नीति अनिश्चितता और ऊर्जा संबंधी पण्य कीमतों की बदलती गतिकी; और IV. भारत में ग्रामीण उपभोक्ता विश्वास: अंतर को कम करना।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

व्यापार और टैरिफ़ दबावों में वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप वित्तीय बाज़ार में अस्थिरता ने निकट भविष्य में वैश्विक संवृद्धि के कमज़ोर होने के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। यद्यपि वैश्विक आर्थिक संभावना में गिरावट से भारत की आर्थिक संवृद्धि, कमज़ोर बाह्य माँग के कारण प्रभावित हो सकती है, लेकिन घरेलू संवृद्धि के चालक, अर्थात उपभोग और निवेश, बाह्य प्रतिकूलताओं के प्रति अपेक्षाकृत कम असुरक्षित हैं। 2025 के लिए सामान्य से बेहतर दक्षिण-पश्चिम मानसून के पूर्वानुमान से कृषि क्षेत्र की संभावनाओं को बढ़ावा मिला है, जिससे कृषि आय में वृद्धि हो सकती है और खाद्य कीमतें नियंत्रण में रह सकती हैं। मुख्य रूप से खाद्य कीमतों में कमी के कारण मार्च में हेडलाइन मुद्रास्फीति 67 महीने के निचले स्तर 3.3 प्रतिशत पर आ गई।

II. स्थायी जमा सुविधा के तीन वर्ष: कतिपय अंतर्दृष्टि

अवनीश कुमार, प्रियंका सचदेवा और इंद्रनील भट्टाचार्य

अपनी शुरुआत के तीन वर्ष पूरे होने पर, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ), भारतीय रिज़र्व बैंक के चलनिधि प्रबंधन ढांचे का एक महत्वपूर्ण घटक बन गया है, जिसने एलएएफ कॉरिडोर के आधार के रूप में स्थिर दर प्रतिवर्ती रेपो का स्थान ले लिया है। यह आलेख केंद्रीय बैंकों द्वारा उपलब्ध कराई गई स्थायी सुविधाओं के समग्र संदर्भ में भारत में एसडीएफ का मूल्यांकन प्रस्तुत करता है।

मुख्य बातें:

  • एसडीएफ की शुरुआत सामान्यतः वैश्विक सर्वोत्तम पद्धतियों के अनुरूप है, जिसमें जमा सुविधाएं, गैर- जमानती जमाराशियों के रूप में होती हैं।

  • एसडीएफ के अंतर्गत पर्याप्त निधि जमा होने के साथ-साथ चलनिधि की कमी की स्थिति का एक साथ उत्पन्न होना, बैंकिंग प्रणाली के भीतर चलनिधि के असममित वितरण का संकेत देता है।

  • रिज़र्व बैंक द्वारा कुल अवशोषण के अनुपात के रूप में एसडीएफ शेष राशियों की हिस्सेदारी में वृद्धि, बैंकों की बढ़ी हुई चलनिधि वरीयता को दर्शाती है।

  • अनुभवजन्य परिणाम, डब्ल्यूएसीआर और इसके स्प्रेड को निर्धारित करने में चलनिधि की स्थिति, चलनिधि अनिश्चितता और बाजार सूक्ष्म संरचना के महत्व को दर्शाते हैं।

III. जलवायु नीति संबंधी अनिश्चितता और ऊर्जा संबंधी पण्य कीमतों की बदलती गतिकी

सतद्रु दास और विद्या कामटे द्वारा

यह आलेख जलवायु नीति संबंधी अनिश्चितता और वैश्विक ऊर्जा संबंधी पण्य कीमतों के बीच संबंधों, तथा 1991-2022 के दौरान भारत में थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) मुद्रास्फीति पर इसके प्रभावों का पता लगाता है।

मुख्य बातें

  • जलवायु नीति संबंधी अनिश्चितता (सीपीयू) सूचकांक द्वारा दर्शाए गए जलवायु नीति संबंधी अनिश्चितता और वैश्विक ऊर्जा संबंधी पण्य कीमतों के बीच संबंध समय के साथ विकसित हुआ है, जिसमें मार्च 2017 में एक संरचनात्मक विराम हुआ।

  • परिणाम दर्शाते हैं कि मार्च 2017 से पूर्व, सीपीयू में आघात के कारण ऊर्जा की कीमतों में और डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई; लेकिन उसके बाद से, सीपीयू में आघात के कारण ऊर्जा की कीमतों और डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति में कमी आई है।

  • भारत की घरेलू मुद्रास्फीति पर प्रभावों के संदर्भ में, जलवायु के स्तर पर वैश्विक नीति संबंधी अनिश्चितता बढ़ने से भारत को लाभ हो सकता है क्योंकि इनका वैश्विक ऊर्जा की कीमतों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हालाँकि, इन चरों के बीच संबंध लगातार विकसित हो रहा है और इस पर नज़र रखने की ज़रूरत है।

IV. भारत में ग्रामीण उपभोक्ता विश्वास: अंतर को कम करना

सौरज्योति सरदार, मनु स्वर्णकार, अयान पॉल और तुषार बी दास द्वारा

यह आलेख रिज़र्व बैंक के ग्रामीण उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण (आरसीसीएस) पर आधारित पृष्ठभूमि, सर्वेक्षण पद्धति और परिणामों का संक्षिप्त विवरण प्रदान करता है। सर्वेक्षण, समग्र अर्थव्यवस्था, रोजगार, मूल्य स्तर और मुद्रास्फीति, घरेलू आय और व्यय पैटर्न से संबंधित उपभोक्ता विश्वास में बदलावों को दर्शाता है।

मुख्य बातें:

  • आरसीसीएस की शुरुआत ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के उपभोक्ताओं को लक्ष्य करके 2022 में की गई थी। जुलाई 2024 से, आरसीसीएस ने सभी भारतीय राज्यों और 3 संघ शासित प्रदेशों के 100 से अधिक जिलों को शामिल किया है, जिसके लक्षित नमूने का आकार 9,000 है।

  • सर्वेक्षण के परिणाम दर्शाते हैं कि समग्र अर्थव्यवस्था और रोजगार के बारे में ग्रामीण परिवारों के मनोभावों में 2022 के बाद से उल्लेखनीय सुधार हुआ है, तथा आगामी वर्ष की संभावना पर आशावाद कायम है।

  • यद्यपि मुद्रास्फीति संबंधी चिंताएं बरकरार हैं, लेकिन वर्तमान की धारणाएं और भविष्य की मुद्रास्फीति की प्रत्याशाएं धीरे-धीरे कम हो रही हैं।

  • जबकि वर्तमान आय संबंधी मनोभाव सौम्य बनी हुई है, ग्रामीण परिवारों ने अपनी भावी आय और समग्र व्यय के बारे में निरंतर आशावाद व्यक्त किया है।

बुलेटिन के आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और यह भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

(पुनीत पंचोली) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2025-2026/153

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