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आरबीआई बुलेटिन - दिसंबर 2022

20 दिसंबर 2022

आरबीआई बुलेटिन - दिसंबर 2022

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का दिसंबर 2022 अंक जारी किया। बुलेटिन में चार भाषण, आठ आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

आठ आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. भारत में मुद्रास्फीति वृद्धि का गहन विश्लेषण; III. परिवारों के पूर्वाग्रह के समायोजन हेतु मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं का निर्धारण; IV. सरकारी वित्त 2022-23: एक छमाही समीक्षा; V. भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को मापना; VI. भारत में असंगठित क्षेत्र की गतिविधि के लिए एक सम्मिश्र संयोग सूचकांक; VII. 2022-23 में कृषि: खरीफ का निष्पादन और रबी की संभावना; और VIII. व्यष्टि वित्त के माध्यम से वित्तीय समावेशन - भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र का मूल्यांकन।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

जोखिमों का संतुलन तेजी से अंधकारमय वैश्विक संभावना की ओर झुका हुआ है और उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाएं (ईएमई) अधिक असुरक्षित प्रतीत हो रहीं हैं, भले ही आने वाले आंकड़े संकेत दे रहे हों कि वैश्विक मुद्रास्फीति चरम पर रही होगी। जैसा कि उच्च आवृत्ति संकेतकों में प्रवृत्तियों में परिलक्षित होता है, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए निकट अवधि की संवृद्धि संभावना घरेलू चालकों द्वारा समर्थित है। भारत में मजबूत पोर्टफोलियो प्रवाह के परिणामस्वरूप नवंबर के दौरान इक्विटी बाजारों ने नई ऊंचाईयों को छुआ। सब्जियों की कीमतों में गिरावट के कारण हेडलाइन मुद्रास्फीति नवंबर में 90 आधार अंक घटकर 5.9 प्रतिशत हो गई जबकि मूल मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत पर स्थिर रही। निविष्टि लागत के दबावों में कमी, अभी भी उत्प्लावक कॉर्पोरेट बिक्री और अचल आस्तियों में निवेश में वृद्धि, भारत में कैपेक्स चक्र में तेजी की शुरुआत का संकेत दे रही हैं जो भारतीय अर्थव्यवस्था में संवृद्धि की गति को बढ़ाने में योगदान करेगी।

II. भारत में मुद्रास्फीति वृद्धि का गहन विश्लेषण

माइकल देबब्रत पात्र, आशीष थॉमस जॉर्ज, जी वी नाधनेल, जॉइस जॉन द्वारा

यह पेपर फरवरी 2022 के बाद भारत में मुद्रास्फीति के पथ का विस्तृत विश्लेषण प्रदान करने का प्रयास करता है। यह अलग-अलग आंकड़ों, मूल्य दबावों के स्रोत (महीने से महीने), मुद्रास्फीति का वितरण और उसका समय, और वैश्विक और घरेलू समष्टि आर्थिक स्थिति के सापेक्ष अन्य सांख्यिकीय उपायों की पड़ताल करता है।

प्रमुख बिन्दु:

  • आरंभिक मुद्रास्फीतिकारी दबाव उत्तरोत्तर आपूर्ति आघातों के कारण था, लेकिन जैसे-जैसे उनका प्रभाव कम हुआ, व्यय में प्रतिकार वापसी और विशेष रूप से वस्तुओं से संपर्क-गहन सेवाओं की ओर झुकाव, मूल्य दबावों को सामान्यीकृत कर रहा है और उन्हें सतत बना रहा है। तथापि, अस्थायी आघात, विशेष रूप से सब्जियों में, ने हेडलाइन नंबरों में कुछ अस्थिरता उत्पन्न की है।

  • हेडलाइन मुद्रास्फीति के चक्रीय रूप से संवेदनशील घटकों का योगदान हाल के महीनों में बढ़ता हुआ प्रतीत होता है, जो मांग दबावों का संकेत देता है।

  • मुद्रास्फीति के योगदानकर्ताओं के ऐतिहासिक वियोजन से पता चलता है कि हाल की अवधि (2022-23 की दूसरी तिमाही) में, मूल मुद्रास्फीति पर कमोडिटी की कीमतों के दूसरे दौर के प्रभावों ने मुद्रास्फीति के अपने लक्ष्य से विचलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

III. परिवारों के पूर्वाग्रह के समायोजन हेतु मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं का निर्धारण

सिलु मुदुली, जी वी नाधानेल और सितिकांथ पट्टनाइक द्वारा

परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशाएँ आमतौर पर महत्वपूर्ण पूर्वाग्रह प्रदर्शित करती हैं। यह आलेख भारत के लिए एक पूर्वाग्रह समायोजित मुद्रास्फीति प्रत्याशा श्रृंखला बनाने का प्रयास करता है ताकि भविष्य की मुद्रास्फीति पथ के जोखिमों का मूल्यांकन करने के लिए इसकी उपयोगिता की जांच की जा सके। यह विशेष रूप से लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (एफ़आईटी) को अपनाने के बाद, समय के साथ एंकरिंग करने वाली प्रत्याशाओं के विकास को समझने के लिए एक मुद्रास्फीति प्रत्याशा एंकरिंग (आईईए) सूचकांक का निर्माण भी करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • पूर्वाग्रह के कई स्रोत हैं – प्रत्याशा को प्रभावित करने में एक परिवार की अपनी खपत समूह के अत्यधिक प्रभाव से लेकर, किसी की आय और रोजगार की संभावना के व्यक्तिगत मूल्यांकन तथा खपत और बचत को बनाए रखने की क्षमता तक, जो मुद्रास्फीति के स्तर, आर्थिक संवृद्धि की स्थिति, ब्याज दरें और अर्थव्यवस्था के समक्ष आपूर्ति के आघातों से प्रभावित हो सकता है।

  • जब परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं की डेटा श्रृंखला को अनुमानित पूर्वाग्रहों के लिए समायोजित किया जाता है, तो ऐसी श्रृंखला हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति के साथ बेहतर संरेखण प्रदर्शित करती है, जिसमें असमायोजित मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं की श्रृंखला की तुलना में हेडलाइन मुद्रास्फीति की भविष्यवाणी करने की उच्च पूर्वानुमान शक्ति होती है।

  • मुद्रास्फीति प्रत्याशा एंकरिंग सूचकांक, जो मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं की संवेदनशीलता, निरंतरता और स्थिरता के आयामों का पता लगाता है, दर्शाता है कि एफआईटी अवधि में एंकरिंग में सुधार हुआ है, तथापि बार-बार आपूर्ति के आघात जिनका कोविड के बाद से सामना किया जा रहा है, प्रत्याशाओं को अस्थिर करने का जोखिम उत्पन्न करते हैं।

IV. सरकारी वित्त 2022-23: एक छमाही समीक्षा

आयुषी खंडेलवाल, रचित सोलंकी, सक्षम सूद, इप्सिता पाढी, अनूप के सुरेश, समीर रंजन बेहरा और अत्रि मुखर्जी द्वारा।

यह आलेख वर्ष 2022-23 के लिए सरकारी वित्त की छमाही समीक्षा प्रस्तुत करता है। यह केंद्र और राज्यों की प्राप्ति और व्यय का विश्लेषण करता है और प्रमुख घाटे के संकेतकों और उनके वित्तपोषण के संदर्भ में परिणामों पर चर्चा करता है। 2022-23 की पहली और दूसरी तिमाही के लिए सामान्य सरकार (केंद्र और राज्य) के वित्त पर पूर्वानुमानों के साथ-साथ 2022-23 की दूसरी छमाही के पूर्वानुमानों को निकट-अवधि के राजकोषीय संभावना के साथ प्रस्तुत किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • महामारी से प्रेरित नकारात्मक प्रभाव विस्तार में कमी के साथ, केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्यों के वित्त में 2022-23 की पहली छमाही में उल्लेखनीय रूप से सुधार हुआ है, यहां तक कि यूरोप में युद्ध के कारण लक्षित वित्तीय उपाय किए गए हैं।

  • केंद्र ने प्रत्यक्ष कर और जीएसटी दोनों में मजबूत कर संग्रह दर्ज किया, जो अर्थव्यवस्था में अविरत बहाली, बेहतर कर सुशासन और प्रशासन के साथ-साथ कॉर्पोरेट क्षेत्र के स्वस्थ तुलन पत्र को दर्शाता है।

  • राज्यों ने भी अपने राजकोषीय मापदंडों को मजबूत किया है जैसा कि उनके समेकित जीएफडी और निवल बाजार उधार में गिरावट से स्पष्ट है। तथापि, राज्यों का पूंजीगत व्यय कमजोर बना हुआ है।

V. भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को मापना

धीरेंद्र गजभिए, रशिका अरोड़ा, अरहम नाहर, रिगजेन यांगडोल, ईशु ठाकुर द्वारा

भारत विश्व स्तर पर चल रही डिजिटल क्रांति में एक अग्रणी प्रतिनिधि के रूप में उभरा है, लेकिन डिजिटल अर्थव्यवस्था के आकार के संबंध में कुछ विश्वसनीय अनुमान हैं जो साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को बाधित करते हैं। यह लेख इनपुट-आउटपुट तालिकाओं का उपयोग करके भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था के आकार को मापकर उस रिक्ति को भरने की कोशिश करता है और डिजिटल अर्थव्यवस्था द्वारा उत्पन्न रोजगार पर अनुमान प्रदान करता है।

मुख्य बिंदु:

  • भारत की मूल डिजिटल अर्थव्यवस्था (हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर प्रकाशन, वेब प्रकाशन, दूरसंचार सेवाएं और विशेष और सहायक सेवाएं) 2014 में सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) के 5.4 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 8.5 प्रतिशत हो गई। उन क्षेत्रों, जहां डिजिटल व्यवधान देखा गया है, को शामिल करते हुए, डिजिटल रूप से निर्भर अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी 2019 में लगभग 22 प्रतिशत रही।

  • डिजिटल रहित क्षेत्रों के साथ मजबूत वायदा सहबद्धता के कारण भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था, भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना में 2.4 गुना तेजी से बढ़ी है। समय के साथ डिजिटल आउटपुट गुणक में बढ़ोत्तरी हुई है, जो संवृद्धि को गति प्रदान करने हेतु डिजिटल अर्थव्यवस्था में निवेश की भूमिका को उजागर करता है।

  • रोजगार के अनुमान बताते हैं कि मूल डिजिटल क्षेत्र में 49 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। कुल डिजिटल रूप से निर्भर अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए, लगभग 62.4 मिलियन कर्मचारी डिजिटल रूप से बाधित क्षेत्रों में कार्यरत हैं।

VI. भारत में असंगठित क्षेत्र की गतिविधि के लिए एक सम्मिश्र संयोग सूचकांक

चैताली भौमिक, सपना गोयल, सतद्रु दास और गौतम द्वारा

भारत में मापित आर्थिक गतिविधि में लगभग आधी गतिविधि असंगठित क्षेत्र में होती है जहाँ उच्च आवृत्ति सूचना के संदर्भ में अंतराल हैं। इस लेख का उद्देश्य असंगठित क्षेत्र के लिए एक सम्मिश्र संयोग सूचकांक (यूएनसीसीआई) तैयार करने हेतु विभिन्न प्रॉक्सी संकेतकों को सुव्यवस्थित रूप से जोड़कर असंगठित क्षेत्र की आर्थिक गतिविधि पर सूचना संबंधी मौजूदा अंतर को पाटना है।

मुख्य बिंदु:

  • चूंकि कृषि और कृषि से इतर गतिविधि में चक्रीय पैटर्न और मौसमी भिन्नता काफी भिन्न होती है, इसलिए कृषि और कृषि से इतर गतिविधियों के लिए अलग-अलग यूएनसीसीआई तैयार किए जाते हैं। तब एक समग्र यूएनसीसीआई दोनों का भारित औसत लेकर तैयार होता है, जहाँ समग्र जीवीए में संबंधित क्षेत्रीय हिस्सेदारी को भार के रूप में उपयोग किया जाता है। यूएनसीसीआई तैयार करने के लिए कुल चौदह उच्च आवृत्ति संकेतकों (एचएफ़आई) की पहचान की गई। यूएनसीसीआई को घटक संकेतकों से सामान्य प्रवृत्ति प्राप्त करने के लिए एक गतिशील कारक मॉडल का उपयोग करके विकसित किया गया है।

  • यूएनसीसीआई, जुलाई 2022 से असंगठित गतिविधि में वृद्धि दर्शाते हैं। समग्र के साथ-साथ क्षेत्रीय (कृषि और कृषि से इतर) यूएनसीसीआई ने असंगठित सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में वृद्धि के साथ उचित सह-गति दिखाई, जो राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित किया जाता है।

VII. 2022-23 में कृषि: खरीफ निष्पादन और रबी संभावना

ऋषभ कुमार, कीर्ति गुप्ता और एन. अरुण विष्णु कुमार द्वारा

भारत में कृषि उत्पादन मुख्य रूप से दक्षिण पश्चिम मानसून और उत्तर पूर्व मानसून दोनों मौसमों के दौरान वर्षा की संचयी मात्रा और इसके सामयिक तथा स्थानिक वितरण; सिंचाई की सुविधा; गुणवत्तापूर्ण बीजों, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और श्रम की समय पर और पर्याप्त उपलब्धता; कीमत की उम्मीदें; और अंत में, सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और खरीद नीतियों द्वारा निर्धारित होता है। इस आलोक में, लेख के दो प्राथमिक उद्देश्य हैं: (i) भारतीय राज्यों में खरीफ ऋतु (जून से सितंबर 2022) के दौरान कृषि क्षेत्र के निष्पादन की समीक्षा करना और (ii) आगामी रबी ऋतु (अक्तूबर 2022 से मार्च 2023) के लिए एक प्रारंभिक दृष्टिकोण प्रदान करना।

मुख्य बिंदु:

  • 2022-23 में, यद्यपि, संचयी दक्षिण-पश्चिम मानसून वर्षा सामान्य से अधिक थी, इसके असमान सामयिक और स्थानिक वितरण और मौसम के अंत में भारी बारिश से, लगाई हुई खरीफ फसल के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

  • जहां तक रबी संबंधी संभावना का संबंध है, उच्च एमएसपी, पर्याप्त जलाशय स्तर और मिट्टी की नमी की स्थिति तथा बृहद क्षेत्रफल और उपज का समर्थन करने वाले जलवायु कारकों के कारण गेहूं उत्पादन की संभावनाएं अच्छी हैं।

VIII. व्यष्टि वित्त के माध्यम से वित्तीय समावेशन - भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र का मूल्यांकन

एस. चिन्नगैहलियान और पल्लवी चव्हाण द्वारा

यह लेख उत्तर-पूर्व पर विशेष ध्यान देते हुए भारत में लघु वित्त के क्षेत्रीय वितरण और वित्तीय समावेशन में इसके योगदान का विश्लेषण करता है।

मुख्य बिंदु:

  • व्यष्टि वित्त, जिसने दक्षिणी क्षेत्र में जड़ें जमा लीं, समय के साथ ऐतिहासिक रूप से अल्प बैंक वाले पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में फैल गया, इस प्रकार, यह आंशिक रूप से क्षेत्रीय बैंकिंग विभाजन को पाट रहा है। हालांकि, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के भीतर व्यष्टि वित्त तक पहुंच और इसके उपयोग में राज्य-स्तर के अंतर हैं।

  • आगे चलकर, वित्तीय समावेशन के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र के भीतर अपेक्षाकृत अल्प सेवा प्राप्त राज्यों पर अधिक ध्यान देते हुए, उत्तर-पूर्व पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/1416

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