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भारतीय रिज़र्व बैंक बुलेटिन– दिसंबर 2024

आज, रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का दिसंबर 2024 अंक जारी किया। इस बुलेटिन में द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य (4-6 दिसंबर), दस भाषण, चार आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

ये चार आलेख इस प्रकार हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. सरकारी वित्त 2024-25: अर्ध-वार्षिक समीक्षा; III. दैनिक आरक्षित निधि रखरखाव में बैंकों का व्यवहार; IV. वास्तविक प्रभावी विनिमय दर और भारत के व्यापार संतुलन पर इसके प्रभाव

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

वैश्विक अर्थव्यवस्था स्थिर संवृद्धि और नरम मुद्रास्फीति के साथ लचीआघात सहनीयता प्रदर्शित कर रही है। 2024-25 की तीसरी तिमाही के लिए उच्च आवृत्ति संकेतक (एचएफआई) संकेत देते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था दूसरी तिमाही में देखी गई मंदी से उबर रही है, जो मजबूत त्यौहारी गतिविधि और ग्रामीण मांग में निरंतर वृद्धि से प्रेरित है। रबी की बुवाई में तेजी के साथ कृषि और ग्रामीण उपभोग की संभावनाएं बेहतर होती दिख रही हैं। खाद्य कीमतों में कमी के कारण नवंबर 2024 में हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति घटकर 5.5 प्रतिशत रह गई।

II. सरकारी वित्त 2024-25: अर्ध-वार्षिक समीक्षा

हर्षिता यादव, आयुषी खंडेलवाल, कोवुरी आकाश यादव, रचित सोलंकी, अनूप के सुरेश, समीर रंजन बेहरा और अत्रि मुखर्जी द्वारा

यह लेख केंद्र और राज्यों की प्राप्तियों और व्यय की प्रवृत्तियों, प्रमुख घाटा संकेतकों और उनके वित्तपोषण को देखते हुए 2024-25 की पहली छमाही के लिए सरकारी वित्त की समीक्षा प्रस्तुत करता है। 2024-25 की प्रथ पहली छमाही के लिए सामान्य सरकारी (केन्द्र एवं राज्य) वित्त पर अनुमान भी प्रस्तुत किए गए हैं।

मुख्य बातें:

  • कर और गैर-कर दोनों स्रोतों का केंद्र का राजस्व संग्रह, 2024-25 की पहली छमाही में उत्साहजनक रहा है। कर प्राप्तियों में मजबूत वृद्धि मुख्य रूप से आयकर और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के कारण हुई, जबकि गैर-कर राजस्व को रिजर्व बैंक द्वारा अधिशेष अंतरण में वृद्धि से लाभ हुआ। व्यय के संबंध में, जबकि राजस्व व्यय बजटीय लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, पूंजीगत व्यय में सुस्ती है।

  • वर्ष 2024-25 की पहली छमाही के दौरान राज्यों की राजस्व प्राप्तियों में वृद्धि कर राजस्व से प्रेरित थी, जबकि गैर-कर राजस्व और केंद्र से अनुदान में संकुचन हुआ था। व्यय के संबंध में, राज्यों ने 2024-25 की पहली छमाही के दौरान राजस्व व्यय की गति बनाए रखी, जबकि उनके पूंजीगत व्यय में गिरावट आई।

  • कई राज्यों ने अपने 2024-25 के बजट में रियायतों की घोषणा की है; इस तरह के खर्च से संसाधन, महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के विकास से दूर हो सकते हैं।

III. दैनिक आरक्षित निधि रखरखाव में बैंकों का व्यवहार

सुजीश कुमार, मंजूषा सेनापति और प्रज्ञा दास द्वारा

नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) और इसकी विभिन्न विशेषताएं जैसे दैनिक न्यूनतम रखरखाव, वृद्धिशील आरक्षित आवश्यकताएं और आरक्षित देयताओं पर छूट, भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति में चलनिधि प्रबंधन के लिए प्रभावी उपकरण हैं। यह आलेख विभिन्न सीआरआर नीति परिवर्तनों, विशेषकर लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (एफआईटी) अवधि के दौरान, भारत में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के दैनिक आरक्षित निधि रखरखाव व्यवहार का विश्लेषण करता है।

मुख्य बातें:

  • एफआईटी की प्रक्रिया और बैंकों के लिए स्वचालित स्वीप-इन और स्वीप-आउट (एएसआईएसओ) सुविधा की शुरूआत से एससीबी द्वारा रखे गए औसत दैनिक अतिरिक्त आरक्षित निधि के स्तर में कमी आई है, जिससे बैंकों के वृद्धिशील संसाधन मुक्त हो गए हैं, जिन्हें बैंकों द्वारा उत्पादक उद्देश्यों के लिए लगाया जा सकता है।

  • एएसआईएसओ सुविधा ने बैंकों के आरक्षित निधि रखरखाव में अस्थिरता को काफी हद तक कम कर दिया है और उन्हें अपने दैनिक आरक्षित निधि को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने में सक्षम बनाया है।

  • आरक्षित निधि रखरखाव में अंतर-बैंक अस्थिरता कम थी और एससीबी ने अपनी आरक्षित निधि का बेहतर प्रबंधन किया जब दैनिक न्यूनतम रखरखाव आवश्यकता 90 प्रतिशत थी - इस मानक से कम आवश्यकताएं उच्च अस्थिरता से जुड़ी थीं।

IV. वास्तविक प्रभावी विनिमय दर और भारत के व्यापार संतुलन पर इसके प्रभाव

श्रीजश्री सरदार, दीपक आर. चौधरी, प्रियंका प्रियदर्शनी, अंशुल और संगीता दास द्वारा

यह आलेख उन कारकों की जांच करता है जो क्रॉस-कंट्री सेटिंग में वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा, यह गैर-रेखीय ऑटोरिग्रैसिव डिस्ट्रिब्यूटेड लैग (एनएआरडीएल) मॉडल का उपयोग करके भारत के व्यापारिक संतुलन पर आरईईआर गतिविधि के प्रभाव का विश्लेषण करता है।

मुख्य बातें:

  • चुनिंदा उभरती अर्थव्यवस्थाओं के अंतर-देशीय अनुमानों से संकेत मिलता है कि आरईईआर उत्पादकता अंतर, व्यापार की शर्तों, सरकारी व्यय और शुद्ध विदेशी परिसंपत्तियों से प्रभावित होता है।

  • भारत के लिए अनुभवजन्य विश्लेषण व्यापार संतुलन और आरईईआर के बीच असममित संबंध के अस्तित्व को इंगित करता है।

  • अनुभवजन्य निष्कर्ष यह दर्शाते हैं कि भारत में आरईईआर में मूल्यह्रास से व्यापार संतुलन में सुधार होता है, जबकि मूल्यवृद्धि से इसमें गिरावट आती है। व्यापार संतुलन पर आरईईआर मूल्यह्रास का प्रभाव, अल्पावधि में समतुल्य आरईईआर मूल्यवृद्धि से अधिक होता है, तथा दीर्घावधि में इसके विपरीत होता है।

बुलेटिन लेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

(पुनीत पंचोली) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/1773

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