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आरबीआई बुलेटिन – फरवरी 2023

17 फरवरी 2023

आरबीआई बुलेटिन – फरवरी 2023

आज रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का फरवरी 2023 अंक जारी किया। बुलेटिन में 6-8 फरवरी, 2023 का मौद्रिक नीति वक्तव्य, एक भाषण, छ: आलेख और वर्तमान आंकड़े शामिल हैं।

छ: आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. भारत के लिए पुनर्गठित त्रैमासिक पूर्वानुमान प्रतिरूप (क्यूपीएम 2.0); III. केंद्रीय बजट 2023-24 - एक आकलन; IV. ईएसजी प्रकटीकरण और प्रदर्शन: अंतर-देशीय दृष्टांत; V. ऋण-मांग पर बैंकरों के रुख - महामारी के बाद सुधार; और VI. फेडरल रिज़र्व की कार्रवाइयों का दीर्घ प्रभाव: मौद्रिक नीति और भारत में अनिश्चितता के प्रसार-प्रभाव।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

वर्ष 2023 में संभवतः पूर्वानुमान की तुलना में हल्की वैश्विक मंदी रहेगी, हालांकि वृद्धि-पथ अप्रत्याशित है। भारत में घरेलू खपत और निवेश को, कृषि और संबद्ध गतिविधियों की सशक्त संभावना, मजबूत व्यापार और उपभोक्ता विश्वास और अच्छी ऋण वृद्धि से लाभ मिलेगा। आपूर्ति प्रतिक्रिया और लागत-स्थिति में सुधार की संभावना है, भले ही जनवरी में मुद्रास्फीति में उछाल देखा गया हो। संघीय बजट 2023-24 में पूंजीगत व्यय पर जोर देने से निजी निवेश बढ़ने, रोजगार सृजन और मांग मजबूत होने और भारत की संवृद्धि संभावना बढ़ने की उम्मीद है।

II. भारत के लिए पुनर्गठित त्रैमासिक पूर्वानुमान प्रतिरूप (क्यूपीएम 2.0)

जॉइस जॉन, दीपक कुमार, आशीष थॉमस जॉर्ज, प्रतीक मित्रा, मुनीश कपूर और माइकल देबब्रत पात्र द्वारा

यह आलेख भारत के लिए अद्यतन तिमाही पूर्वानुमान प्रतिरूप का विवरण प्रस्तुत करता है। यह आलेख इसके प्रदर्शन और प्रासंगिकता को समृद्ध करने के लिए अधिक भारत-केंद्रित विशेषताओं के साथ प्रतिरूप संरचना और गुणांकों पर फिर से विचार करता है। यह मुद्रास्फीति और संवृद्धि की मध्यम-अवधि के अनुमानों को प्रकट करता है और लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (एफआईटी) ढांचे के तहत निर्धारित लक्ष्यों/अधिदेश को प्राप्त करने के लिए नीतिगत विश्लेषण प्रस्तुत करता है। संशोधित और अद्यतन प्रतिरूप को क्यूपीएम 2.0 के रूप में व्यक्त किया गया है। यह परियोजना आरबीआई की मध्यम अवधि की कार्यनीति उत्कर्ष 2022 के तहत पूरी की गई है।

प्रमुख बिंदु:

i) क्यूपीएम 2.0 में किए गए प्रमुख संवर्धन में शामिल हैं (i) मॉडल में राजकोषीय-मौद्रिक नीति सहभागिता, (ii) भारत-विशिष्ट ईंधन कीमत निर्धारण का अधिक सूक्ष्म मॉडलिंग, (iii) पूंजी प्रवाह, विनिमय दर गतिशीलता और केंद्रीय बैंक का विदेशी मुद्रा बाजार हस्तक्षेप।

ii) मुद्रास्फीति जैसे प्रमुख समष्टि चर के लिए, विश्लेषण से पता चलता है कि क्यूपीएम 2.0 का पूर्वानुमान प्रदर्शन मध्यम अवधि सीमा (5-8 तिमाहियों) के लिए वैकल्पिक समय श्रृंखला मॉडल से बेहतर है - वह सीमा जो मौद्रिक नीति निर्णय के लिए सबसे अधिक मायने रखता है।

iii) क्यूपीएम 2.0 विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि एफआईटी फ्रेमवर्क ने एफआईटी की शुरुआत के बाद मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को स्थिर करने में मदद की, जिससे हेडलाइन मुद्रास्फीति के साथ-साथ मुख्य मुद्रास्फीति भी कम हुई। इस अवधि के दौरान अवस्फीति को खाद्य और ईंधन दोनों की आपूर्ति पक्ष से निकलने वाले अनुकूल आघातों के साथ-साथ एक विवेकपूर्ण राजकोषीय नीति से भी समर्थन मिला। कोविड के बाद की अवधि में आपूर्ति श्रृंखला में लगातार व्यवधान और ऋणात्मक उत्पादन अंतराल के बीच निरंतर इनपुट लागत दबावों ने मुद्रास्फीति का दबाव पैदा कर दिया है।

III. केंद्रीय बजट 2023-24 - एक आकलन

सक्षम सूद, इप्सिता पाढ़ी, अनूप के. सुरेश, बिचित्रानंद सेठ और समीर रंजन बेहरा द्वारा

इस आलेख में केंद्रीय बजट 2023-24 का आकलन प्रस्तुत किया गया है। बजट में समष्टि-स्थिरता को मजबूत करने के लिए विश्वसनीय राजकोषीय समेकन के प्रति वचनबद्धता के साथ-साथ वृद्धि के प्रमुख लीवर के रूप में पूंजीगत व्यय की परिकल्पना की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  1. वर्ष 2023-24 में, सकल राजकोषीय घाटे को 2022-23 (आरई) में सकल घरेलू उत्पाद के 6.4 प्रतिशत से सकल घरेलू उत्पाद के 5.9 प्रतिशत तक समेकित करने का बजट है।

  2. वर्ष 2010-20 के दौरान 1.7 प्रतिशत के औसत से 2023-24 में पूंजीगत व्यय को जीडीपी के 3.3 प्रतिशत तक बढ़ाने का अनुमान है, जबकि राजस्व व्यय वृद्धि को 1.2 प्रतिशत पर सीमित किया गया है।

  3. प्राप्ति पक्ष में, सकल कर राजस्व में 0.99 की बजट उछाल के साथ 10.4 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है जो प्रवृत्ति स्तर के करीब है।

  4. विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन ने सार्वजनिक ऋण में कमी लाने में योगदान दिया है।

IV. ईएसजी प्रकटीकरण और प्रदर्शन: अंतर-देशीय दृष्टांत

सौरभ घोष और सिद्धार्थ नाथ द्वारा

दुनिया भर के नीति निर्माता अपने नियामक ढांचे में "पर्यावरण, सामाजिक और अभिशासन (ईएसजी)" सिद्धांतों के एकीकरण पर ध्यान दे रहे हैं। कोविड-19 के बाद के दौर में एकीकृत जोखिम प्रबंधन ढांचे के लिए विश्वसनीय प्रकटीकरण एक पूर्वापेक्षा बन गया है। इस संदर्भ में, इस आलेख में 2010 के बाद से व्यापक बाजार सूचकांकों की तुलना में अंतर-देशीय एमएससीआई-ईएसजी प्रमुख सूचकांक का उपयोग करके ईएसजी प्रमुख की आघात सहनीयता पर विचार किया गया है।

प्रमुख बिन्दु :

  1. ईएसजी सूचकांकों ने आम तौर पर नमूना अवधि में लाभ और अस्थिरता क्लस्टरिंग द्वारा मापे गए जोखिमों के शमन दोनों ही मामले में व्यापक बाजार सूचकांकों से बेहतर प्रदर्शन किया।

  2. डिफरेंस-इन-डिफरेंस और बाजार मॉडल से प्राप्त अनुमानों के अनुसार ईएसजी सूचकांकों ने कोविड-19 के अप्रत्याशित आघातों का सामना व्यापक बाजार सूचकांकों की तुलना में बेहतर तरीके से किया।

  3. बाजार मॉडल ढांचे का उपयोग करके ईएसजी सूचकांकों के प्रदर्शन के संदर्भ में जब देशों के क्रम की गणना की जाती है तो नमूना देशों में भारत उच्च स्थान पर है।

V. ऋण-मांग पर बैंकरों के रुख - महामारी के बाद सुधार

हरिद्वार यादव और सुप्रिया मजूमदार द्वारा

बैंक ऋण सर्वेक्षण (बीएलएस) का उपयोग प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा प्रमुख क्षेत्रों में ऋण स्थितियों और निकट अवधि के लिए उनकी संभावनाओं पर बैंकों की धारणाओं को समझने के लिए किया जाता है जो एक प्रमुख संकेतक के रूप में कार्य करते हैं। तिमाही बीएलएस के अध्ययन के आधार पर इस आलेख में महामारी के दौरान भारत में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) की भावनाओं के विकास के बारे में बात की गई है। इस आलेख में इस बात पर भी चर्चा की गई है कि, सर्वेक्षण में शामिल संभावना संकेतकों के आधार पर आर्थिक सुधार और ऋण मांग पर अपेक्षाओं ने कैसे प्रतिक्रिया व्यक्त की।

प्रमुख बिन्दु :

  1. महामारी की पहली और दूसरी लहर के कारण अप्रैल-जून 2020 और अप्रैल-जून 2021 के दौरान देखी गई प्रतिकूल प्रतिक्रिया के बाद ऋण स्थितियों के आकलन के संदर्भ में ऋण देने पर बैंकरों की भावनाओं में तेजी से सुधार हुआ। महामारी की अवधि के दौरान क्रेडिट स्थितियों पर दृष्टिकोण उत्साहित बना रहा।

  2. खुदरा/व्यक्तिगत ऋण के मामले में आकलन में तेजी आई। ये वे क्षेत्र थे जिनके लिए महामारी की दोनों लहरों के दौरान परिदृश्य गंभीर रूप से प्रभावित हुआ था।

  3. बैंकरों की धारणा मोटे तौर पर औद्योगिक संभावना सर्वेक्षण (आईओएस) में दर्ज उधारकर्ताओं की धारणाओं में देखे गए रुझानों की पुष्टि करती है, जो दर्शाता है कि ऋण के लिए आपूर्ति और मांग दोनों की संभावना समान थी।

  4. हाल के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि आगामी तिमाहियों में ऋण मांग के लिए बैंकरों की धारणा आशावादी बनी हुई है।

VI. फेडरल रिज़र्व की कार्रवाइयों का दीर्घ प्रभाव: मौद्रिक नीति और भारत में अनिश्चितता के प्रसार-प्रभाव

भानु प्रताप और थांगजासन सोना

जटिल व्यापार और वित्तीय संबंधों वाले आज के जगत में प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं में समष्टि-आर्थिक नीतिगत रुख में बदलाव से उत्पन्न आर्थिक आघातों का सीमा-पारीय संचरण उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई है। इस आलेख में पिछले दो दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की मौद्रिक नीतिगत कार्रवाइयों के प्रभाव का विश्लेषण किया गया है।

प्रमुख बिन्दु:

  1. अंतरराष्ट्रीय साक्ष्यों के अनुसार, अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के मौद्रिक नीति के रुख में बदलाव से भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, जो घरेलू उत्पादन और मुद्रास्फीति को बदल देते हैं।

  2. अमेरिकी मौद्रिक नीति में बदलाव ने 2008 से पहले की अवधि में लागत-जनित आघात की तरह काम किया, जो वैश्विक स्पिलओवर के विनिमय दर चैनल के अनुरूप था। हालांकि, 2008 के बाद की अवधि में अमरीकी मौद्रिक नीति के आघातों का संचरण मुख्यतः वित्तीय चैनल के माध्यम से हुआ है, अर्थात् वित्तीय स्थितियों में परिवर्तन करके, जिससे भारत में विकास और मुद्रास्फीति प्रभावित हुई है।

  3. अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के रुख और नीतिगत कार्रवाइयों के बीच बढ़ी हुई अनिश्चितता के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में कुल मांग कम होने का अनुमान है।

बुलेटिन में शामिल आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/1741

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