बुलेटिन– फरवरी 2025
आज, भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का फरवरी 2025 अंक जारी किया। बुलेटिन में द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य (7 फरवरी 2025), एक भाषण, चार आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं। चार आलेख इस प्रकार हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. केंद्रीय बजट 2025-26: एक मूल्यांकन; III. भारत में सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता और उसका सामाजिक-आर्थिक प्रभाव; और IV. कृषि आपूर्ति शृंखला की गतिकी: रबी विपणन मौसम के दौरान अखिल भारतीय सर्वेक्षण से प्राप्त अंतर्दृष्टि। I. अर्थव्यवस्था की स्थिति वैश्विक अर्थव्यवस्था तेजी से विकसित हो रही राजनीतिक और प्रौद्योगिकीय परिदृश्यों के बीच देशों में अलग-अलग संभावना के साथ स्थिर लेकिन मध्यम गति से बढ़ रही है। वित्तीय बाजार अवस्फीति की धीमी गति और टैरिफ के संभावित प्रभाव से चिंतित हैं। उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की ओर से बिकवाली का दबाव देखा जा रहा है और मजबूत अमेरिकी डॉलर के कारण मुद्रा का अवमूल्यन हो रहा है। भारत में, उच्च आवृत्ति संकेतक, 2024-25 की दूसरी छमाही के दौरान आर्थिक गतिविधि की गति में क्रमिक वृद्धि की ओर इशारा करते हैं, जो आगे भी जारी रहने की संभावना है। केंद्रीय बजट 2025-26 घरेलू आय और खपत को बढ़ावा देने के उपायों के साथ-साथ पूंजीगत व्यय पर निरंतर ध्यान केंद्रित करके राजकोषीय समेकन और संवृद्धि उद्देश्यों को विवेकपूर्ण तरीके से संतुलित करता है। जनवरी में खुदरा मुद्रास्फीति पांच महीने के निचले स्तर पर आ गई, जिसका मुख्य कारण सब्जियों की कीमतों में तेज गिरावट थी। II. केंद्रीय बजट 2025-26: एक मूल्यांकन आकाश राज, हर्षिता यादव, कोवुरी आकाश यादव, आयुषी खंडेलवाल, अनूप के सुरेश और समीर रंजन बेहरा द्वारा यह आलेख केंद्रीय बजट 2025-26 का मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। बजट ‘विकसित भारत’ के दृष्टिकोण के अनुरूप समावेशी, दीर्घकालिक आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा देते हुए राजकोषीय अनुशासन के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है। चार प्रमुख संवृद्धि इंजनों - कृषि, एमएसएमई, निवेश और निर्यात पर कार्यनीतिक ध्यान केंद्रित करते हुए, बजट तत्काल उपभोग समर्थन और दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधारों के बीच संतुलन बनाता है। मुख्य बातें:
III. भारत में सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता और उसका सामाजिक-आर्थिक प्रभाव रचित सोलंकी, कोवुरी आकाश यादव, आयुषी खंडेलवाल, समीर रंजन बेहरा और अत्रि मुखर्जी द्वारा केंद्र और राज्यों दोनों द्वारा पूंजीगत व्यय पर जोर दिए जाने की पृष्ठभूमि में, यह लेख उदारीकरण के बाद से भारत के सार्वजनिक व्यय की प्रवृत्तियों के विकास की जांच करता है। यह सरकारी व्यय की गुणवत्ता और संरचना को आकार देने में संरचनात्मक सुधारों, समष्टि आर्थिक बदलावों और नीतिगत पहलों की भूमिका को रेखांकित करता है। सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता (क्यूपीई) सूचकांक - जिसमें पूंजीगत व्यय, विकासात्मक व्यय और ब्याज भार संकेतक शामिल हैं - को डायनामिक फैक्टर मॉडल (डीएफ़एम) का उपयोग करके इन चरों को संचालित करने वाले सामान्य अंतर्निहित कारक को प्राप्त करने के लिए बनाया गया है1 । परिणामी सूचकांक का उपयोग सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता और सामाजिक-आर्थिक परिणामों के बीच संबंध की अनुभवजन्य जांच करने के लिए किया गया है। मुख्य बातें:
IV. कृषि आपूर्ति श्रृंखला की गतिशीलता: रबी विपणन सीजन के दौरान अखिल भारतीय सर्वेक्षण से प्राप्त अंतर्दृष्टि राजिब दास, ऋषभ कुमार, मोनिका सेठी , लव कुमार सांडिल्य और एलिस सेबस्तीन द्वारा यह आलेख किसानों, व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं के अखिल भारतीय सर्वेक्षण के माध्यम से कृषि आपूर्ति श्रृंखला की गतिशीलता की जांच करता है। सर्वेक्षण में 12 रबी फसलों को शामिल किया गया है, जैसे कि अनाज के अंतर्गत गेहूं, चावल और मक्का, दलहन के अंतर्गत चना और मसूर, तिलहन के अंतर्गत रेपसीड और सरसों; तथा प्रमुख फल और सब्जियां, मई-जुलाई 2024 के दौरान चुनिंदा उत्पादन (चुने हुए वस्तुओं के प्राथमिक उत्पादक केंद्र) और उपभोग केंद्रों (प्रमुख शहरों) में किया गया। प्रमुख खरीफ फसलों को शामिल करते हुए इसी तरह के सर्वेक्षण 2018 और 2022 में किए गए थे। मुख्य बातें:
बुलेटिन के लेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
(पुनीत पंचोली) प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/2194 1 गतिशील कारक मॉडल (डीएफएम) एक सांख्यिकीय तकनीक है जिसका उपयोग उन सामान्य अंतर्निहित कारकों को निकालने के लिए किया जाता है जो कई समय श्रृंखला चरों के सह-गति को संचालित करते हैं। |
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