RbiSearchHeader

Press escape key to go back

पिछली खोज

थीम
थीम
टेक्स्ट का साइज़
टेक्स्ट का साइज़
S3

Press Releases Marquee

आरबीआई की घोषणाएं
आरबीआई की घोषणाएं

RbiAnnouncementWeb

RBI Announcements
RBI Announcements

असेट प्रकाशक

80271959

आरबीआई बुलेटिन - जुलाई 2021

15 जुलाई 2021

आरबीआई बुलेटिन - जुलाई 2021

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का जुलाई 2021 का अंक जारी किया। बुलेटिन में तीन आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

ये तीन आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. भारत में मौद्रिक नीति संचरण: हाल के घटनाक्रम; और III. भारतीय दवा उद्योग निर्यात के संचालक।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

टीकाकरण में तेजी ने दूसरी लहर के कम करने के साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सन्निकट संभावनाओं को उज्ज्वल कर दिया है। जहां गतिविधि के कई उच्च आवृत्ति संकेतकों में सुधार हो रहा है, वहीं कुल मांग में ठोस वृद्धि अभी तक आकार नहीं ले पाई है। आपूर्ति पक्ष की ओर मानसून में पुनरुद्धार के साथ कृषि की स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन दूसरी लहर से विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों की बहाली बाधित हो गई है। मुद्रास्फीति में तेजी मुख्य रूप से प्रतिकूल आपूर्ति व्यवधानों और महामारी के कारण क्षेत्र-विशिष्ट मांग-आपूर्ति में तालमेल खत्म हो गया है। वर्ष के दौरान इन कारकों में सुधार होगा क्योंकि आपूर्ति पक्ष के उपाय प्रभावी होते हैं।

II. भारत में मौद्रिक नीति संचरण: हाल के घटनाक्रम

अक्टूबर 2019 में एक्सटर्नल बेंचमार्क लिंक्ड लेंडिंग रेट (ईबीएलआर) व्यवस्था लागू होने के बाद से अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) की जमा और उधार दरों में नीतिगत रेपो दर में बदलाव के संचरण में काफी सुधार हुआ है। बैंकों से एकत्र किए गए डेटा से पता चलता है कि बकाया ऋणों का हिस्सा कुल अस्थिर दर वाले ऋण में बाह्य बेंचमार्क से जुड़ा हुआ है, जो सितंबर 2019 के दौरान 2.4 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 के अंत तक 28.5 प्रतिशत हो गया है। ऋणों के बाह्य बेंचमार्क-आधारित मूल्य-निर्धारण को अपनाने से जमा दरों में त्वरित समायोजन के लिए बाजार के आवेगों को बल मिला है। इसके अलावा, कमजोर ऋण मांग स्थितियों के बीच अधिशेष चलनिधि स्थितियों के संयोजन ने बैंकों को अपनी जमा दरों को कम करने में सक्षम बनाया है। जमा दरों में कमी के परिणामस्वरूप एससीबी के लिए निधियों की लागत में गिरावट आई है, जिससे उन्हें अपने एमसीएलआर को कम करने और बदले में उनकी उधार दरों को कम करने के लिए प्रेरित किया गया है।

III. भारतीय दवा उद्योग निर्यात के संचालक

इस आलेख में भारतीय दवा उद्योग की गतिकी को समझने का प्रयास किया गया है क्योंकि यह पिछले दो दशकों में विकसित हुआ है और विशेष रूप से निर्यात बाजारों में निर्यात के निर्धारकों को समझने के उद्देश्य से जांच-पड़ताल की गयी है जो इस क्षेत्र को भविष्य में अपनी निर्यात क्षमता का लाभ उठाने में मदद कर सकते हैं।

  • संयुक्त उद्यमों और घरेलू क्षमता में सुधार जैसे विभिन्न चैनलों के माध्यम से घरेलू अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) क्षमता होने के बावजूद, भारतीय दवा उद्योग वर्तमान में सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (एपीआई) के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, विशेष रूप से चीन से।

  • 2007 से 2019 तक 12 साल की अवधि में 42 भारतीय दवा फर्मों के पैनल डेटा का उपयोग करते हुए अनुभवजन्य विश्लेषण से पता चलता है कि आयात तीव्रता और अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) व्यय निर्यात तीव्रता के दो प्रमुख निर्धारक हैं।

  • इस क्षेत्र की वैश्विक स्थिति को ऊपर उठाने के लिए कच्चे माल के आयात का समय पर विविधीकरण और आर एंड डी के प्रति दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर बल दिया गया है।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2021-2022/534

RbiTtsCommonUtility

प्ले हो रहा है
सुनें

संबंधित एसेट

आरबीआई-इंस्टॉल-आरबीआई-सामग्री-वैश्विक

RbiSocialMediaUtility

आरबीआई मोबाइल एप्लीकेशन इंस्टॉल करें और लेटेस्ट न्यूज़ का तुरंत एक्सेस पाएं!

Scan Your QR code to Install our app

RbiWasItHelpfulUtility

क्या यह पेज उपयोगी था?