आरबीआई बुलेटिन – जुलाई 2022 - आरबीआई - Reserve Bank of India
आरबीआई बुलेटिन – जुलाई 2022
16 जुलाई 2022 आरबीआई बुलेटिन – जुलाई 2022 भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का जुलाई 2022 का अंक जारी किया। बुलेटिन में आठ भाषण, छह आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं। छह आलेख ये हैं : I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. मौद्रिक नीति: आपूर्ति-चालित मुद्रास्फीति का सामना करना; III. नीति के लिए सुदूर संवेदी एप्लिकेशन: कृषि जिंसों के आमद का आकलन; IV. फेड टेपर और भारतीय वित्तीय बाजार: इस बार अलग है; V. कोविड-19 की प्रतिकूलताएं और भारत का आवक विप्रेषण VI. भारत में विदेशी मुद्रा बाजारों का इलेक्ट्रॉनिकीकरण। I. अर्थव्यवस्था की स्थिति मंदी और युद्ध की आशंकाओं से घिरे वैश्विक परिदृश्य में, भारतीय अर्थव्यवस्था सुदृढ़ता दर्शा रही है। हाल में मानसून की बहाली, विनिर्माण और सेवाओं में तेजी, मुद्रास्फीति दबाव में स्थिरता और पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय आरक्षित निधियों के रूप में मजबूत सुरक्षित भंडार, पर्याप्त खाद्यान्न स्टॉक, और अच्छी तरह पूंजीकृत वित्तीय प्रणाली ने एकसाथ मिलकर संभावना को उज्ज्वल किया है तथा मध्यावधि में एक टिकाऊ उच्च संवृद्धि पथ के लिए स्थितियाँ मजबूत की हैं। II. मौद्रिक नीति: आपूर्ति-चालित मुद्रास्फीति का सामना आपूर्ति-चालित मुद्रास्फीति के प्रत्युत्तर में मौद्रिक नीति की भूमिका ने वर्तमान वैश्विक मुद्रास्फीति प्रकरण के मद्देनजर बहुत ध्यान आकर्षित किया है। यह आलेख, मुख्यत: कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि द्वारा तैयार प्रतिकूल आपूर्ति आघात के प्रति तिमाही पूर्वानुमान प्रतिरूप की मदद से यह दर्शाता है कि मौद्रिक नीति प्रत्युत्तर, क) आघात की प्रकृति; ख) समग्र मांग की स्थिति; ग) मौद्रिक नीति विश्वसनीयता; और घ) आघात के प्रति अर्थव्यवस्था में अन्य कारकों की प्रतिक्रिया, से निरुपित होता है। प्रमुख बिंदु:
III. नीति के लिए सुदूर संवेदी एप्लिकेशन: कृषि जिंसों के आमद का आकलन खाद्य मुद्रास्फीति और सामान्य मुद्रास्फीति के प्रक्षेपवक्र को आकार देने में आपूर्ति पक्ष के कारकों की भूमिका सुपरिचित है। निकट भविष्य में मुद्रास्फीति के रुझान का आकलन करने के लिए फसल उत्पादन के समय पर उपलब्ध और विश्वसनीय संकेतक महत्वपूर्ण हैं। इस संदर्भ में, इस अध्ययन में कृषि मंडियों में जिंसों की आमदों के काफी पहले से आकलन के लिए उपग्रह चित्र-आधारित वनस्पति संकेतकों की उपयोगिता की छान-बीन की गई है। प्रमुख बिंदु:
IV. फेड टेपर और भारतीय वित्तीय बाजार: इस बार अलग है समष्टि आर्थिक आघात से संबद्ध प्रतिकूल आर्थिक परिणामों पर कार्रवाई के रूप में फेड द्वारा शुरू किए गए वृहद् आस्ति क्रय कार्यक्रमों के टेपर में उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में वित्तीय बाजार के चरों को उल्लेखनीय रूप से प्रभावित करने की क्षमता है। इस आलेख में भारतीय वित्तीय बाजारों पर फेड की दो टेपर घोषणाओं (22 मई 2013 और 3 नवंबर 2021) के प्रभाव की तुलना की गई है। प्रमुख बिंदु:
V. कोविड-19 की प्रतिकूलताएं और भारत का आवक विप्रेषण कोविड-19 महामारी के दौरान भारत का आवक विप्रेषण चालू खाते की प्राप्तियों का एक सुदृढ़ स्रोत सिद्ध हुआ है। इस आलेख में देशों में विप्रेषण प्रवाह की सुदृढ़ता को निर्धारित करने वाले कारकों की पहचान की गयी है तथा विप्रेषण की भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक संरचना में परिवर्तन पर प्रकाश डाला गया है, जो ग्राहक देश और प्रेषक देश के संकट गतिकी और विभिन्न कामगार वर्गों में प्रभाव की गंभीरता से चालित है। प्रमुख बिंदु:
VI. भारत में विदेशी मुद्रा बाजारों का इलेक्ट्रॉनिकीकरण बहु-बैंक प्लेटफॉर्मों के उद्भव के साथ वैश्विक विदेशी मुद्रा (एफएक्स) व्यापार के इलेक्ट्रॉनिकीकरण ने व्यापार (ट्रेड) के निष्पादन और कीमत निर्धारण को बदल दिया है। इनमें से कुछ परिवर्तन तटवर्ती (ऑनशोर) भारतीय रुपया (आईएनआर) बाजार में भी देखे जा सकते हैं, यद्यपि सीमित रूप में। इस आलेख में भारत में इलेक्ट्रॉनिकीकरण और इसके व्यापक प्रभावों के संदर्भ में विदेशी मुद्रा बाजारों में हाल के परिवर्तनों को दर्ज किया गया है। प्रमुख बिंदु:
(योगेश दयाल) प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/546 |