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भारतीय रिज़र्व बैंक बुलेटिन– मई 2025 - आरबीआई - Reserve Bank of India

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भारतीय रिज़र्व बैंक बुलेटिन– मई 2025

आज, रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का मई 2025 अंक जारी किया। बुलेटिन में दो भाषण, चार आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

चार आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. आर्थिक गतिविधि और बैंक नोट: नए दृष्टिकोण; III. डिजिटल फ़ुटप्रिंट: इंटरनेट खोजों के माध्यम से भारत के आवक पर्यटन को समझना; और IV. भारत में सब्जियों की कीमतों पर मौसम संबंधी विसंगतियों का प्रभाव।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

निरंतर व्यापार व्यवधान, उच्च नीतिगत अनिश्चितता और कमजोर उपभोक्ता मनोभाव वैश्विक संवृद्धि के लिए बाधाएं उत्पन्न कर रहे हैं। इन चुनौतियों के बीच, भारतीय अर्थव्यवस्था ने आघात-सहनीयता दिखाई। औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों के विभिन्न उच्च आवृत्ति संकेतकों ने अप्रैल में अपनी गति बनाए रखी। रबी की बंपर फसल और अधिक क्षेत्र में गर्मियों की फसलों की बुवाई, साथ ही 2025 के लिए अनुकूल दक्षिण-पश्चिम मानसून का पूर्वानुमान, कृषि क्षेत्र के लिए शुभ संकेत हैं। हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति जुलाई 2019 के बाद से लगातार छठे महीने कम होकर अपने सबसे निचले स्तर पर आ गई, जिसका मुख्य कारण खाद्य कीमतों में निरंतर कमी है। घरेलू वित्तीय बाजार की भावनाएं, जो अप्रैल में तनावपूर्ण रहीं, मई के तीसरे सप्ताह से सुधरने लगीं।

II. आर्थिक गतिविधि और बैंक नोट: नए दृष्टिकोण

गौतम अडुपा, प्रदीप भुइयां, दिलीप कुमार वर्मा और निरुपमा कुलकर्णी द्वारा

यह आलेख संचलन में बैंक नोटों पर आर्थिक गतिविधि के प्रभाव की जांच करता है, जिसमें औपचारिक क्षेत्र की भूमिका पर विशेष ध्यान दिया गया है। कुल आर्थिक गतिविधि के लिए प्रॉक्सी के रूप में उच्च आवृत्ति मासिक नाइटलाइट्स डेटा और औपचारिक आर्थिक गतिविधि के माप के रूप में कर संग्रह डेटा का प्रयोग करके यह विश्लेषण, कुल आर्थिक उत्पादन को नियंत्रित करते हुए संचलन में नोटों (एनआईसी) पर औपचारिकता के प्रभाव को अलग करता है।

मुख्य बातें:

  • 2014-2024 के दौरान एनआईसी की संवृद्धि दर (मूल्य के संदर्भ में) पिछले दो दशकों की तुलना में काफी कम थी।
  • 1994-2004 के दौरान एनआईसी की संवृद्धि सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में काफी अधिक थी; तथापि, अगले दो दशकों में यह अंतर काफी कम हो गया है।
  • नाइटलाइट्स और करों के बीच तथा नाइटलाइट्स और सकल घरेलू उत्पाद के बीच भी सकारात्मक संबंध मौजूद है।
  • आलेख में इस बात के मजबूत साक्ष्य मिले हैं कि औपचारिक आर्थिक गतिविधि से बैंक नोटों का उपयोग कम हो जाता है।

III. डिजिटल फुटप्रिंट्स: इंटरनेट सर्च के माध्यम से भारत के आवक पर्यटन को समझना  

लोकेश और ए आर जयरामन द्वारा

यह आलेख भारत में आवक पर्यटन को ट्रैक करने के लिए गूगल पर गंतव्य अंतर्दृष्टि (डीआईजी), जोकि एक गैर-पारंपरिक उच्च-आवृत्ति डेटा स्रोत है, का उपयोग करता है। डीआईजी, यात्रा-संबंधी खोजों के माध्यम से वैश्विक पर्यटन के रुझानों पर नज़र रखता है। यह अध्ययन, विदेशी पर्यटकों के आगमन (एफ़टीए) और विश्व के बाकी हिस्सों से भारत की यात्रा के लिए की गई गूगल खोजों के बीच संबंध की जांच करता है।

मुख्य बातें:

  • एफटीए और यात्रा-संबंधी खोज मात्रा सूचकांक के बीच एक मजबूत संबंध है।
  • यह सूचकांक एफटीए में दिशात्मक परिवर्तनों को यथोचित रूप से अच्छी तरह से दर्शाता है।
  • सूचकांक ग्रेंजर एफटीए का कारण बनता है, जो एफटीए का अनुमान लगाने वाली एक अग्रणी संकेतक के रूप में कार्य करने की इसकी क्षमता को परिलक्षित करता है।

 
IV. भारत में सब्जियों की कीमतों पर मौसम संबंधी विसंगतियों का प्रभाव  

निशांत सिंह और लव कुमार शांडिल्य द्वारा

सब्जियों की कीमतों में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव होता है और ये भारत के खाद्य और हेडलाइन मुद्रास्फीति में अहम भूमिका निभाती हैं। सब्जियों की कीमतों में उतार-चढ़ाव अक्सर आपूर्ति पक्ष के व्यवधान से बढ़ जाता है, जो मुख्य रूप से मौसम के आघातों से प्रेरित होता है, जिसके लिए मौसम की बदलती परिस्थितियों की नियमित निगरानी की ज़रूरत होती है। यह अध्ययन इस बात की जांच करता है कि मौसम की विसंगतियाँ, विशेषतया बारिश और तापमान, भारत में सब्जियों की कीमतों को कैसे प्रभावित करते हैं।

मुख्य बातें:

  • सब्जियों की कीमतों में मौसमी परिवर्तन के साथ-साथ बाजार में आवक और भण्डार के स्तर में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के बाद, अनुभवजन्य अनुमान बताते हैं कि मौसम संबंधी विसंगतियों से सब्जियों की कीमतों पर दबाव बढ़ता है, जबकि तापमान संबंधी विसंगतियों का अधिक तात्कालिक प्रभाव पड़ता है।
  • इसके अलावा, हाल के समय में तापमान संबंधी विसंगतियों का प्रभाव बढ़ गया है, जो मूल्य स्थिरता के उद्देश्य को समर्थन देने के लिए तापमान प्रतिरोधी फसल किस्मों को तेजी से अपनाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

बुलेटिन के आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।  

 

(पुनीत पंचोली)  
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2025-2026/384

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